पीढ़ी जल संवाद का अनोखा आयोजन

prem_vijay_patil
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धार। मप्र के आदिवासी बहुल जिले धार में 8 मार्च महिला दिवस पर आयोजित विशेष ग्रामसभा में पीढ़ी जल संवाद नामक कार्यक्रम हुआ। इसमें आदिवासी महिलाओं ने शुद्ध पानी के लिए गांव की पुरानी बावड़ियों को जीवित करने के लिए जनभागीदारी की पहल की। वहीं गांव के बुजुर्गों ने अपने अनुभव के माध्यम से युवा पीढ़ी को बताया कि किस तरह से बिना हैंडपंप के ही बीते जमाने में पानी आसानी से उपलब्ध हो जाता था। युवाओं को यह अहसास हुआ है कि अब समय आ गया है कि पानी के लिए बुजुर्गों के अनुभव की ओर लौटा जाए।

मप्र सरकार ने ग्रामसभा वर्ष में ग्रामसभा का विशेष आयोजन रखा था। इसी के चलते आदिवासी बहुल धार जिला मुख्यालय के भीतरी ग्राम में भी ग्रामसभा का आयोजन हुआ। ये गांव ऐसे दुर्लभ स्थान पर स्थिति है जहां अधिकारी भी पहुंचने में कतराते है। इसकी वजह यह है कि जिला मुख्यालय से बेहद भीतर तिरला विकासखंड की ग्राम पंचायत सियारी का ग्राम मांडली है।

जहां एक भी पक्का मकान नहीं बना हुआ है। इसके बावजूद शुद्ध पानी को लेकर आज जो जागरूकता देखने को मिली वह अपने आप में महत्वपूर्ण थी। आज के इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से पीढ़ी जल संवाद के तहत बुजुर्गों व युवाओं के बीच में चर्चा हुई। इस चर्चा में सामाजिक कार्यकर्ता गगन मुद्गल ने अपनी संवाद कला से चर्चा करवाई। दरअसल यह ग्राम मांडली ऐसी जगह है, जहां फ्लोराइड युक्त पानी के कारण कई लोग विकलांग हो चुके है। आज भी मजबूरी में ये उन हैंडपंपों का पानी पी रहें है जिसके पानी से फ्लोरोसिस की बीमारी बढ़ रही है। ऐसे में ग्राम की महिलाओं और पुरुषों ने घाटी में वर्षों से जीवित बावड़ी का पानी गांव तक लाने का संकल्प लिया है। इसके लिए उन्होंने 1-1 हजार रुपए एकत्रित कर मोटर स्थापना की पहल की है। इसमें ग्राम पंचायत बिजली संयोजक की मदद करेगा। साथ ही अन्य संस्थाएं पानी की टंकी उपलब्ध कराएंगी। बुजुर्गों ने इस बावड़ी के बारे में जिक्र किया तथा समझाइश दी कि इस बावड़ी से पानी लाकर यदि उसका उपयोग किया जाए तो शुद्ध पानी मिलेगा साथ ही बीमारी भी घटेगी। भीलांचल के इस गांव में ग्रामसभा में महिलाओं की उपस्थिति होना और उसमें उनका चर्चा में भाग लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसकी वजह यह है कि यह गांव जिला मुख्यालय से ही करीब 30-35 किमी भीतर स्थित है। ऐसे में यहां पर एक बेहतर व्यवस्था की कल्पना करना भी मुश्किल है। आज का दिन इन गांव वालों के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है।

 

 

मिट्टी खर्च हो गई विकास में

 

 


इस गांव के लोगों को आज बैठक में यह मालूम हुआ कि गांव का पुराना तालाब क्यों खाली हो जाता है। बुजुर्गों ने इस बात का अहसास करवाया कि इस तालाब कि मिट्टी सरकारी तंत्र के लोगों ने आसपास बड़े मिट्टी बांध बनाने में उपयोग कर ली। इससे इस गांव में तालाब में पानी ही नहीं टिकता। पानी के लिए काली मिट्टी होना बेहद जरूरी है। ये गांव वाले अब संकल्पित हुए है कि वे काली मिट्टी लाएंगे। दरअसल ग्राम मांडली वह जगह है जहां पर पथरीली जमीन पर खेती होती है। हाड़तोड़ मेहनत कर आदिवासी लोग उपज लेते है। ऐसे में काली मिट्टी लाने के लिए भी इन्हें खासे जतन करने होंगे किंतु तालाब जीवित करने के लिए अब इसके लिए भी तैयार है।
 

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