पीएम नरेंद्र मोदी के नाम स्वामी सानंद के शिष्य का पत्र, मोदी ने मां गंगा को दिया धोखा

22 Jul 2019
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स्वामी शिवानंद सरस्वती और स्वर्गीय स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद।
स्वामी शिवानंद सरस्वती और स्वर्गीय स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद।

स्वामी सानंद के एक शिष्य ने बीते वर्ष 11 अक्टूबर को स्वामी सानंद के निधन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक पत्र लिखा था, लेकिन पत्र प्रधानमंत्री को भेजा नहीं था। जिस पत्र को 21 जुलाई को स्वामी सानंद की जन्मतिथि पर सार्वजनिक किया है।

आदरणीय प्रधानमंत्री जी,

मैं वो तरीका जानना चाहता हूँ, जिसके द्वारा आपसे मिला जाता है, क्योंकि अक्सर फिल्मी सितारे आपसे मिल लेते हैं, क्रिकेटर आपसे मिल लेते हैं या उद्योगपति और उनकी बीवियां भी आपसे मिल लेती हैं। बैंकों को लूट कर फरार हो जाने वाले भी आपसे मिल लेते हैं, लेकिन 87 साल के एक वैज्ञानिक संत स्वामी सानन्द आपसे नहीं मिल पाते। आप पतंग उड़ाने का समय निकाल लेते हैं। नगाड़ा और बांसुरी बजाने का समय भी निकाल लेते हैं, लेकिन ऐसा क्या हो गया कि आप एक वैज्ञानिक संत के लिए समय नहीं निकाल पाए। वह संत जो गंगा जी को बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे। उस गंगा को बचाने की लड़ाई जिसे आप मां कहते हुए पूरी दुनिया में घूमने का समय निकाल लेते हैं। इतना तो तय है कि आप चिट्ठी लिखने से नहीं मिलते क्योंकि स्वामी सानन्द जी ने आप को तीन-तीन चिट्ठियां लिखी। उत्तर देना तो दूर आपने पावती भी नहीं भेजी। आप अन्न-जल त्याग कर तपस्या करने पर भी नहीं मिलते क्योंकि स्वामी सानन्द जी पिछले 22 जून से भोजन छोड़ चुके थे और 10 अक्टूबर से जल लेना भी छोड़ दिया था। आखिरकार आपकी राह देखते-देखते 113 दिनों के अनशन के बाद 11 अक्टूबर को उनका शरीर शांत हो गया।

जब आप सत्ता में आए थे तो सुनाई पड़ता था कि आपका खुफिया तंत्र बहुत सक्षम है। हर खबर आप तक पहुँच जाती है, कोई भी सूचना आपसे छिप नहीं पाती। पर अब लगता है कि आपका खुफिया विभाग कुछ ढीला पड़ गया है, क्योंकि सानन्द जी की चिट्ठियां शायद आपको नहीं मिल पाई। उनके अनशन और जलत्याग के बारे में भी आप अंधेरे में रहे, लेकिन आपकी सक्रियता में कोई कमी नहीं है। जैसे ही आपको स्वामी जी के मरने की सूचना मिली आपने तत्काल ट्वीट कर अपनी संवेदना प्रकट कर दी। संवेदना के इस विपुल प्रवाह से निश्चित ही स्वामी जी और आपकी मां गंगा, दोनों ही खुद को बड़ा भागी मान रहे होंगे।

प्रधानमंत्री जी, बहुत सोच विचार कर मैं इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि बड़े भाई (स्वामी सानन्द) की बजाय छोटा भाई यानि कि ‘‘आप’’ ज्यादा मातृभक्त हैं। बड़े भाई ने तो केवल मां गंगा के लिए प्राण दिए। आपने तो हजारों करोड़ रुपए दिए हैं मां गंगा के लिए। यहां तक कि आपने अपना सूट भी नीलाम कर दिया। इस कलियुग में रुपयों से बढ़ कर और क्या सेवा हो सकती है। उन रुपयों से बीमार मां की रंगाई-पुताई हो रही है। रंगी-पुती मां से मिलवाने के लिए आप दुनिया के बड़े बड़े नेताओं को ले कर आते हैं और उनके स्वागत के लिए घाटों पर स्कूल कॉलेज के हजारों बच्चे जिन्हें शायद मालूम ही नहीं कि हिमालय में मां गंगा के मस्तक को विदीर्ण कर दिया गया है। हिमालय के अंदर गंगा को बांधों में इस तरह से कैद कर दिया गया है कि प्रयागराज और काशी तक गंगा की धारा पहुँच ही नहीं पाती और आपके बड़े भाई ने उसी कष्ट में अपने प्राण त्याग दिए हैं, लेकिन मैं मायूस नहीं हूँ। मुझे पूरी उम्मीद है कि बाँधों से बिजली बना कर, गंगा में जहाज चला कर जब आपको अकूत सम्पदा मिल जाएगी और आपके विकास का लक्ष्य पूरा हो जाएगा, तो माँ गंगा को आप अवश्य ही बाँधों से छोड़ देंगे, आखिर वो आपकी भी तो माँ हैं। उन्होंने ही तो आपको काशी बुलाया था।

व्यक्ति की आशायें जहां से जुड़ी होती हैं, वहीं से वह निराश भी होता है। 2014 के चुनाव में जिस दिन आप नामांकन भरने बनारस पहुँचे थे, उस दिन स्वामी सानंद जी भी बनारस में ही थे। जब आपने कहा कि ‘‘मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है ‘‘तो भावी प्रधानमंत्री का गंगा जी के प्रति समर्पण देख स्वामी सानंद बच्चों की तरह खुश हो गए थे। प्रधानमंत्री बनते ही आपके द्वारा अलग गंगा मंत्रालय का गठन और साध्वी उमा भारती को गंगा मंत्री बनाना, उनकी आशायें परवान चढ़ गयीं। उन्होंने तीन वर्षों तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की। समय बीतता गया लेकिन गंगाजी का कोई कार्य होता दिखाई नहीं पड़ा। धीरे धीरे निराशा बढ़ती गयी। अन्ततोगत्वा असफल हो कर उमा भारती की गंगा मंत्रालय से विदाई और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का नए गंगा मंत्री के रूप में अविरलता को ताक पर रख कर गंगा जी में जहाज चलाने जैसी तमाम व्यावसायिक परियोजनाएं और उस पर आप की मौन सहमति से स्वामी जी की हताशा चरम पर पहुँच गयी थी। वो पहचान गए थे आप को.....। हम ही नहीं पहचान पाए। वो एक शिक्षक थे और आजीवन शिक्षक ही रहे। उनके आकलन हमेशा सटीक होते थे। इस बार उन्हें पूरा विश्वास था कि आप उनको नहीं सुनेंगे और दशहरे के पहले उनका प्राणान्त हो जायेगा। ऐसा वो कई बार हम लोगों से कहते थे, लेकिन हम लोगों को विश्वास था कि चाहे आप उनकी मांगों को माने या न माने, लेकिन उनको मरने नहीं देंगे। अंतिम बार भी वही सही साबित हुए और हम सब गलत। आप के ऊपर विश्वास उनके साथियों, शिष्यों और परिवार जनों की सबसे बड़ी भूल थी। पता नहीं आपको कभी उनकी मृत्यु का अपराधबोध होगा या नहीं, लेकिन हम लोग कभी अपराधबोध से मुक्त नहीं हो पायेंगे।

उनकी मृत्यु पर ट्वीट भर कर देने से क्या होगा? उन्होंने स्पष्ट तौर पर आपको जिम्मेदार ठहराया है और राम जी के दरबार में आपकी शिकायत करने की बात कही है। सन्त का शाप कभी भी निष्फल नहीं होता। जितने चट्टानी आप बाहर से दिखते हैं, अंदर से आप उतने ही भीरु हैं क्योंकि जिंदा स्वामी सानन्द से मिलने की आपमें हिम्मत नहीं थी। माँ गंगा को धोखा देकर क्या आज भी आप अपने आप को माँ गंगा का सपूत कह सकते हैं । गंगापुत्र स्वामी सानन्द जी जो गंगापुत्र होने के कारण आप के बड़े भाई हुए, आप उनकी मृत्यु के दोषी हैं। आप शायद ही कभी इस अपराध से मुक्त हो सकें। गंगाजी और स्वामी सानंद को लेकर आपने पहले भी कई ट्वीट किये थे। 2012 में जब आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब वो स्वामी सानन्द थे, एक संत थे और वो अविरल-निर्मल गंगा के लिए अनशन कर रहे थे। उस दौरान उनके बीएचयू हॉस्पिटल से एयर ऐम्ब्युलन्स द्वारा दिल्ली एम्स पहुँचते ही आपने सबसे पहला ट्वीट किया था। इतना ही नहीं तरुण भैया से फोन पर बात कर स्वामी जी के स्वस्थ होने की कामना भी की थी। आज जब आप मां गंगा के आशीर्वाद से प्रधानमंत्री हैं, निर्णय लेने वाले पद पर स्वयं विराजमान हैं तो वो जीडी अग्रवाल हो गए। दुनिया को तो आप अपनी जाति बताते ही रहते हैं लेकिन आज आपने संत की भी जाति खोज ली। आज उनको आप सिर्फ गंगा सफाई के लिए याद कर रहे हैं। क्या हमें ये मान लेना चाहिए कि गंगा जी की अविरलता की बात आप के श्रीमुख से निकला हुआ केवल एक जुमला थी।

2013 में आपने कहा था कि ‘‘जिन लोगों ने गंगा के नाम पर देश को धोखा दिया है, जनता उनसे जवाब मांग रही है। जो गंगा की चिंता नहीं कर सकते वो देश भी नहीं चला सकते।‘‘ आज यही सवाल देश की जनता आपसे पूछ रही है। आप कुछ उत्तर देंगे या यह भी केवल एक जुमला था। ट्वीटर पर हमेशा आप पहले नंबर पर रहते हैं, लेकिन इस बार ट्वीट करने के लिए आप स्वामी जी के मरने का इंतजार करते रहे। जीते जी उनसे मिलने की आप में हिम्मत नहीं थी। स्वामी सानंद जी द्वारा गंगाजी के सवाल पर आपकी साढ़े चार सालों की नाकामी की बखिया उधेड़ दिए जाने से आप डरे हुए थे। ठीक किया आप नहीं मिले......। बची रह गयी आपकी झूठी शान। उनके किसी प्रश्न का उत्तर आपके पास नहीं था। गंगाजी के सवाल पर आप नाकाम रहे हैं, कारण चाहे उमा भारती का नाकारापन हो या नितिन गडकरी की हर जगह पैसा कमाने की चाहत। ये बात आप निश्चित तौर पर समझ लीजिये कि गंगाजी के प्रति आस्था और श्रद्धा की बजाय व्यवसाय का दृष्टिकोण रख कर गंगाजी का काम कभी नहीं हो सकेगा। 

अंग्रेजों को भी झुका के 1916 में गंगाजी की अविरल धारा हासिल करने वाले भारतरत्न महामना मदनमोहन मालवीय जी की बगिया काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ही एक फूल थे स्वामी ज्ञानस्वरूप सानन्द। जिनका पूर्व नाम प्रोफेसर जीडी अग्रवाल था। वो आईआई टी कानपूर में सिविल इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष और सेंट्रल पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड के तीसरे सदस्य सचिव थे। वो देश के शीर्षस्थ पर्यावरण वैज्ञानिक थे। 1989 में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री मेनका गाँधी उन्हें अपना पर्यावरण सलाहकार नियुक्त करना चाहती थीं, लेकिन उस समय भी मंत्रालय के अधिकारियों ने षड़यंत्र कर उन्हें सलाहकार बनाने से रोक दिया था। इस बार भी वो शायद किसी ऐसे ही षड़यंत्र के शिकार होकर मर गए। पुराणों के अनुसार महाराज भगीरथ तपस्या कर गंगा जी को पृथ्वी पर ले कर आए। मालवीय जी ने 1916 में अंग्रेजों को झुका कर गंगा जी की अविरल धारा का समझौता करवाया और आज जो थोड़ी-सी भी नैसर्गिक गंगा जी हिमालय के अंदर बची हैं, वो स्वामी सानन्द जी की देन है। इसके लिए वे कई बार अपनी जान को दांव पर लगा चुके थे। वो सचमुच कलियुग के भगीरथ थे। जितने दिन स्वामी जी ने गंगा जी के लिए अनशन किया उतना वक्त तो स्वयं गंगापुत्र भीष्म ने भी शरशैय्या पर नहीं बिताया था। गंगा के सवाल पर शायद ही उनसे बड़ा कोई और नाम हो। इस विषय के शीर्षस्थ विद्वान तो वो थे ही, उनका समर्पण भी अतुलनीय था। अगर आप सचमुच चाहते तो वो गंगा जी का काम जो 1985 से लेकर अब तक अधर में लटका हुआ है, उसे अंजाम तक पहुँचा सकते थे। चूँकि उनकी मृत्यु की जिम्मेदारी आपके ऊपर है तो बचाव में एक निस्पृह और तपस्वी संत को लांछित किया जा रहा है, जिनका जीवन ही गंगा जी को समर्पित था। क्या ऐसे लोग पूरे विश्व इतिहास में इतने उच्च स्तर के वैज्ञानिक के बलिदान का दूसरा उदाहरण बता सकते हैं।

आप अक्सर उन कामों के बारे में बताते रहते हैं, जो पहली बार आपके ही समय में हुए हैं। पहली बार..... पहली बार..... हम अक्सर आपके भाषणों में ये शब्द सुनते रहते हैं। मैं आपको ये बताना चाहता हूँ कि भारत ही नहीं दुनिया के इतिहास में ये भी पहली बार हुआ है कि एक वैज्ञानिक की मृत्यु अनशन करते हुए हुई है, और इसका एक मात्र कारण है कि आपके द्वारा उनकी उपेक्षा की गयी। गंगा के सवाल पर ये तीसरा बलिदान है। पूर्व में भी मातृसदन के स्वामी निगमानन्द जी और काशी के बाबा नागनाथ जी ने गंगाजी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। स्वामी सानन्द जी के बाद रोहतक के संत गोपालदास जी अनशन पर हैं। उनकी स्थिति नाजुक है। हरिद्वार मातृसदन में स्वामी पुण्यानन्द जी और ब्रह्मचारी आत्मबोधानन्द जी 24 अक्टूबर से अनशन पर बैठ चुके हैं। देखते हैं कितने बलिदानों के बाद आपको अपनी माँ की याद आती है.........

गंगाजी के लिए अनशन करते हुए बलिदान हुए स्वामी सानन्द (प्रो. जी डी अग्रवाल) के एक शिष्य की चिठ्ठी प्रधानमंत्री जी के नाम।

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