पीपीपी मॉडल के विकल्प

28 May 2011
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100 वर्ष पुराना नागचुन तालाब
100 वर्ष पुराना नागचुन तालाब
इस पुस्तिका में मूलतः पीपीपी से जुड़े मुद्दों का अध्ययन किया गया है तथा जल क्षेत्र की वर्तमान समस्याओं के निदान में पीपीपी की उपयोगिता के मूल्यांकन का प्रयास किया गया है। लेकिन इस अध्याय में हम जल क्षेत्र में पीपीपी के अन्य संम्भावित विकल्पों के बारे में भी जानने की कोशिश करेंगे। क्योंकि पीपीपी मॉडल का झुकाव निजी लाभार्जन की ओर है और यह अक्सर समान, न्यायोचित और टिकाऊ जलप्रदाय व्यवस्था बनाने के लक्ष्यों की उपेक्षा करता है। इन विकल्पों का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है और प्रस्तुत अध्ययन की सीमा से परे है, फिर भी, हम यहाँ कुछ संकेत और दिशानिर्देश देना चाहेंगे, जिनका अनुसरण करके निकट भविष्य में इन विकल्पों का अध्ययन और मूल्यांकन किया जा सके।

जलक्षेत्र में वैकल्पिक मॉडलों पर चर्चा करने के लिए हमें कुछ मूलभूत मुद्दों पर ध्यान देना होगा। जलप्रदाय के लिए पीपीपी मॉडल को समझना ही काफी नहीं है, बल्कि जहाँ इस प्रकार के मॉडल क्रियांवित हैं वहाँ की निर्णय प्रक्रिया, जनसहभागिता, पारदर्शिता, सत्ता समीकरण, राजनैतिक अर्थव्यवस्था व समुदायों के सामाजिक-आर्थिक संदर्भ को भी समझना जरूरी होगा। अतः मात्र मॉडलों पर ही चर्चा न करके इनको लागू करने और संचालन के निर्णयों तथा तौर-तरीकों पर भी विचार होना चाहिये।

दूसरा महत्त्वपूर्ण पहलू पीपीपी से संबंधित प्रशासकीय मुद्दों से जुड़ा है। इसका मतलब उन प्रक्रियाओं का मूल्यांकन हैं जिसके द्वारा पीपीपी मॉडल को जलक्षेत्र की समस्याओं का निदान माना गया है। सवाल सिर्फ पीपीपी की आवश्यकता पर ही नहीं है, पीपीपी के पक्ष में निर्णय लेने वाली प्रक्रियाओं पर भी है। सवालों के घेरे में वे तरीके भी हैं जिनके माध्यम से पीपीपी और उसके विकल्पों का मूल्यांकन किया गया था तथा जनता की माँगों और जरूरतों की पूर्ति के लिए पीपीपी का ही चुनाव किया। यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या पीपीपी के पक्ष में लिए गए निर्णय के पूर्व अन्य विकल्पों पर भी विचार किया गया था, निर्णय लेने की वैकल्पिक प्रक्रिया उपलब्ध थी और इस निर्णय प्रक्रिया में समुदाय की भागीदारी और पारदर्शिता का भी ख्याल रखा गया था? ये सभी बहुत महत्त्वपूर्ण सवाल हैं जो वास्तविक पैमाने स्थापित करते हैं जिनके आधार पर किसी परियोजना की सफलता या विफलता निर्धारित हो सकती है। इस अध्याय में दिए गए विकल्पों में से अधिकांश में इन प्रतिमानों का समावेश होने के कारण वे अपने क्षेत्र में समुदायों को बेहतर सेवा देने में सफल रहे हैं।

कुछ वैकल्पिक मॉडल


मूलतः इस दिशा में हमने अनेक प्रकार की व्यवस्थाओं को प्रचलन में देखा है। हमने इन व्यवस्थाओं को उनके कुछ विशिष्ट लक्षणों, जिनका वह प्रतिनिधित्व करती है, के आधार पर वर्गीकृत किया है। जल क्षेत्र में मुख्य रुप से निम्न प्रकार के मॉडल निजीकरण या पीपीपी के विकल्पों के रूप में उपयोग में लाए जा रहे हैं -

1. समुदायिक भागीदारी के मॉडल जैसे ब्राजील के रेफिके और पोर्टो एलेग्रे।
2. जल सहकारी उपक्रम जैसे सांताक्रुज (बोलिविया), ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटाइना)।
3. कर्मचारी यूनियन आधारित मॉडल जैसे ढाका (बांग्लादेश), नॉमपेन्ह (कम्बोडिया)।
4. जन-जन भागीदारी/जल उपक्रमों की भागीदारी जैसे दक्षिण अफ्रीका व बाल्टिक गणराज्यों में है।
5. आंतरिक सुधारों के मॉडल जैसे साओ पाउलो (ब्राजील), कोलम्बो (श्रीलंका)।
6. ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक प्रबंधन व्यवस्थाएँ जैसे भारत में तमिलनाडु और राजस्थान में है।

यहाँ हम इन मॉडलों पर अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं परन्तु उन कारकों को जानने की कोशिश कर रहे हैं जिन्होंने इन मॉडलों को जल क्षेत्र में निजीकरण और व्यावसायीकरण का प्रभावी विकल्प बनाया है। प्रत्येक मॉडल में अच्छी जलप्रदाय व्यवस्था से जुड़े कुछ खास पहलु हैं। जल क्षेत्र में वैकल्पिक व्यवस्थाओं पर इस संक्षिप्त अध्ययन में हमने कुछ ऐसे कारकों को जाना है जो व्यावहारिक तौर पर कई जगहों पर क्रियांवित हैं -

स्वायत्त सार्वजनिक संस्था


ब्राजील के रियो ग्रेन्दे दो सूल प्रांत की राजधानी पोर्टो एलेग्रे शहर की डीएमएई एक स्वायत्त संस्था है। यह एक स्वायत्त संस्था होने के कारण इसका शहरी प्रशासन से पृथक अस्तित्व है और यह अपनी राजस्व वसूली के निवेश पर स्वयं निर्णय ले सकती है और इसके निर्णय शहरी प्रशासन के सीधे हस्तक्षेप से स्वतंत्र हैं। हालांकि इसके महानिदेशक और सदस्यों की नियुक्ति शहरी प्रशासन के महापौर द्वारा की जाती है।

डीएमएई और ग्रीनविच विश्वविद्यालय का अध्ययन कहता है-‘‘जर्मनी, इटली और फ्रांस जैसे यूरोप के अनेक देशों की तरह यह पूर्ण रुप से शहरी प्रशासन की संस्था होकर भी स्वायत्त हैसियत रखती है। यह फ्रांस की नगरनिकाय नियंत्रित संस्था की तरह नागरिक समाज के प्रति भी जवाबदेह है क्योंकि नागरिक समाज के विभिन्न समूहों और संस्थाओं का प्रतिनिधित्व इनकी प्रबंधकारिणी सभा (गवर्निंग बॉडी) में होता है। यूरोपीय संघ की भाषा में यह एक व्यापारी संस्था है जिसमें आर्थिक नियंत्रण के उद्देश्यों से उसके द्वारा प्राप्त धन व ऋण सरकारी नहीं माने जाते है’’।

आर्थिक स्वतंत्रता

बोलिविया के सांताक्रुज शहर में जलप्रदाय सेवा देने वाली सहकारिता आधारित संस्था SAGUAPAC है। इसके सारे उपभोक्ता सहकारी समिति के सदस्य हैं और उन्हें आम सभा में मतदान का अधिकार है। यह आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र है और सुनिश्चित करती है कि पूरी लागत वसूली उपभोक्ताओं से हो। प्रत्येक परिवार को प्रथम 15 घन मीटर पानी सस्ती दरों पर मुहैया करवाया जाता है। संस्था ने पानी के कनेक्शन नहीं काटने की नीति भी अपनाई है।

इसके अध्ययन के उपरान्त विश्व बैंक ने भी स्वीकार किया है कि “सेवा प्रबंधन के लिए सहकारी समाधान सार्वजनिक अथवा निजी तरीकों से बेहतर हो सकता है“।

भागीदारीपूर्ण प्रबंधन


उदाहरणार्थ कोरडोबा (स्पेन)। टीएनआई और सीईओ का अध्ययन कहता है-‘‘1979 से कंपनी ने व्यापक रूप से स्वीकृत और सुचारु कार्यपद्धति के द्वारा भागीदारीपूर्ण सहप्रबंधन को विकसित किया है। इसका निदेशक मण्डल कंपनी के सभी मुख्य निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार है तथा इसकी सदस्यता विविध क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है। परिषद् के तीन राजनीतिक संगठन अपने दो-दो प्रतिनिधि इस निदेशक मण्डल सदस्य के रूप में नामांकित करते हैं। इस प्रक्रिया पर नगपालिका के चुनाव परिणाम और बहुमत से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। दो मुख्य मजदूर संगठन भी अपने एक-एक सदस्य नामांकित करते हैं और एक सदस्य को नागरिक समुदायों के आंदोलनों की परिषद नामांकित करती है (13% तक नागरिकों की भागीदारी वाली मोहल्ला समितियों की इसमें खास भूमिका है)। निदेशक मण्डल की बैठक में EMACSA के प्रबंधक के साथ-साथ नगरपरिषद के महासचिव और महावित्त नियंत्रक बिना किसी मतदान अधिकार के भाग लेते हैं। इस भागीदारीपूर्ण व्यवस्था की विशेषता व्यापक पादर्शिता है जिसके कारण उन नागरिकों को अपने वैकल्पिक सुझाव देने का अवसर प्राप्त होता है, जो निर्णय प्रक्रिया में प्रतिनिधित्व के बगैर भी हस्तक्षेप कर सकते हैं’’।

जनभागीदारी, भागीदारीपूर्ण बजट प्रक्रिया


सन् 1961 से स्थापित डीएमएई (ब्राजील) संचालन एवं आर्थिक निवेशों में उच्चस्तरीय जनभागीदारी और प्रजातांत्रिक नियंत्रण के साथ काम कर रही है। दैनिक कामकाज और संचालन का नियंत्रण स्थानीय नागरिक समुदाय के प्रतिनिधियों की एक समिति द्वारा किया जाता है। संचालन और निवेश के निर्णय भागीदारीपूर्ण बहस प्रक्रिया के माध्यम से होते हैं। यह एक अद्वितीय और अत्यधिक प्रभावकारी प्रजातांत्रिक प्रक्रिया है जिसमें बजट की प्राथमिकताओं और निवेशों का निर्णय समुदाय के प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है। हेलियो माल्त्ज़ लिखते हैं-‘‘विशेषकर इस भागीदारीपूर्ण बजट प्रक्रिया के क्रियांवयन ने डीएमएई को समाज के और नजदीक ला दिया है तथा उपक्रम पर नए स्तर का नियंत्रण स्थापित किया है। ऐसा सिर्फ माँगों की सुनवाई शुरू होने से ही नहीं हुआ है, बल्कि इसलिए भी हुआ है कि जनता सेवाओं की गुणवत्ता जाँचने में भी शामिल हो गई है’’।

इसी प्रकार की भागीदारीपूर्ण बजट प्रक्रिया ब्राजील की रेसिफे नगरपालिका में भी अपनाई गई है। वहाँ Compesa राज्य सरकार की एक सेवाप्रदाता एजेंसी है, परन्तु वह नगरपालिका के सख्त नियमन और नियंत्रण में है। रणनीतिक निर्णयों, प्रबंधन और सेवाओं की निरंतरता के लिए पानी और स्वच्छता सेवाओं के लिए प्रजातांत्रिक रूप से स्थानीय निकाय गठित किए गए हैं।

इसी संदर्भ में, परन्तु भिन्न परिस्थिति में, तरुण भारत संघ, राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में पिछले करीब ढाई दशकों से काम कर रहा है। तरुण भारत संघ का काम ग्रामीण क्षेत्र में जन सहयोग से जलग्रहण क्षेत्र विकास और पर्यावरण संरक्षण पर केन्द्रित रहा है। कल्पवृक्ष अध्ययन कहता है-‘‘भाँवता कोल्याला और आसपास के गाँवों में ग्रामीणों एवं तरुण भारत संघ के सम्मिलित प्रयासों ने क्षेत्र के लोगों और पर्यावरण के लिए आश्चर्यजनक काम किए हैं। यह प्रयास इस बात का ही संकेत नहीं है कि स्थानीय संस्थाओं में प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा करने की कितनी क्षमताएँ हैं परन्तु यह एक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है कि सामुदायिक सशक्तिकरण और संरक्षणात्मक पहल में गैर सरकारी समूह किस प्रकार अपनी भूमिका निभा सकते हैं’’। इसके आगे कहा गया है कि ‘‘भाँवता कोल्याला हाल ही में पुनर्जीवित नदी अरवरी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है। इस जलग्रहण क्षेत्र में 70 गाँव हैं और पिछले 10 वर्षों में इस क्षेत्र में लगभग 200 जल संग्रहण संरचनाओं का निर्माण किया गया है। इन निर्माणों के कारण जल का पुनर्भरण होने से भूजल स्तर बढ़ गया है, जिससे अरवरी नदी ने फिर से साल भर बहना शुरू कर दिया है’’। इस प्रकार के कार्यों ने गाँवों के समुदायों पर जागरूकता, आत्मनिर्भरता और अपने परिवेश के प्राकृतिक संसाधनों को समझने में बड़ा असर डाला है। जलग्रहण विकास के कार्यों ने गाँवो में पेयजल और सिंचाई दोनों की पूर्ति सुनिश्चित कर दी है और गाँवो के किसानों की आजीविका सुरक्षित की है।

पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी


सार्वजनिक जलप्रदाय उपक्रम तमिलनाडु जल एवं मलनिकास बोर्ड पिछले कुछ वर्षों में सुधार की प्रक्रिया से गुजरा है। जिनके कारण यह उपक्रम अब अपनी नई योजनाओं, विभिन्न विभागों के प्रबंधन, सेवा में होने वाले समस्त व्यय और अन्य विभागीय मामलों की सारी सूचनाएँ प्रदान करने के लिए वचनबद्ध है। तमिलनाडु जल एवं मल निकास बोर्ड का मुख्य कार्य तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रों में जलप्रदाय सुनिश्चित करना है। इसके लिए बोर्ड ने चेंज मेनेजमेंट का तरीका अपनाया। व्यक्ति और समूह को अपेक्षित बदलावों के लिए सुनियोजित तरीके से तैयार करने को चेंज मेनेजमेंट कहते हैं जिसके मुख्य रूप से तीन घटक हैं - बदलाव के लिए तैयार होना, बदलाव को अपनाना और बदलाव लाना। चेंज मेनेजमेंट ने कर्मचारियों की कार्यशैली में परिवर्तन ला दिया है, पहले वे अपने आपको सिर्फ बुनियादी ढाँचा, पाइप और नल संबंधी इंजीनियर ही समझते थे। वहीं अब वे जनता की माँगों और जरूरतों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। इससे जन सेवा में अतिआवश्यक जवाबदेही का पक्ष उभरकर सामने आया है। इसमें विभिन्न समूहों की भागीदारी ‘कूडम’ नामक तमिल अवधारणा के आधार पर हुई है। कूडम में सामूहिक रूप से निर्णय लिया जाता है। इसके कारण न केवल ग्रामीण समुदायों की जल वितरण व्यवस्था संबंधी निर्णय प्रक्रिया में सहयोग प्राप्त हुआ है, अपितु गाँवों के दलित समूहों की भागीदारी भी बढ़ी है।

श्रम संबंधी मुद्दे


हान्डूरास की ‘‘एसएएनएए के प्रबंधन ने 1994 से कंपनी के पुनर्गठन के लिए द्विआयामी रणनीति के तहत श्रमिक संगठनों का पूर्ण सहयोग प्राप्त किया है। श्रमिकों को प्रेरित करने के लिए उनके समर्पण, उत्साह, सत्यनिष्ठा, स्वाभिमान और एकता को प्रोत्साहित किया गया। उन्हें मुख्य संगठनात्मक पक्षों पर स्वपरीक्षणात्मक अभ्यासों में भी शामिल किया गया। पुनर्गठन का काम विकेन्द्रीकरण, बाहरी ठेके देने तथा बढ़े हुए स्टाफ को कम करने से चालू किया गया। परिणामस्वरूप कंपनी की आर्थिक स्थिति सुधरी और तीन वर्षों में पाइप लाइन नेटवर्क बनाने की क्षमता में तीन गुना वृद्धि हुई। इसी समयावधि में राजधानी टेगूसिगल्पा को जलप्रदाय क्षमता में पाँच गुना वृद्धि हुई। लीकेज कम किए गए जिससे टेगूसिगल्पा में प्रति सेकण्ड 100 लीटर पानी की बचत हुई। जलप्रदाय की निरंतरता और विश्वसनीयता बढ़ी और अधिकांश जनसंख्या को चैबीसों घण्टे नल का पानी मिलना संम्भव हुआ’’।

इसी प्रकार वियतनाम के हो ची मिन्ह शहर में ’’लगभग 184 कर्मचारियों को संगठनात्मक नियोजन, संस्था के विकास, जलप्रदाय की देखभाल और प्रबंधन, वित्त प्रबंधन और लेखा, कम्प्यूटर सिस्टम और अंग्रेजी भाषा का प्रशिक्षण दिया गया। यह आंतरिक प्रशिक्षण, बाह्य प्रशिक्षण और विेदेशी प्रशिक्षणों के मिलेजुले रूप में दिया’’।

वित्तीय प्रबंधन


कोलम्बिया की राजधानी बोगाटा की संस्था ईएएबी। 1990 के दशक में बोगाटा के प्रगतिशील महापौरों एनरिके पेनालोसा और अंतानास मोकस ने विश्व बैंक के भारी दबाव के बावजूद पानी के निजीकरण का विरोध किया। बदले में उन्होंने बोगाटा की पानी और मलनिकासी कंपनी ईएएबी का सफलतापूर्वक सुधार कर उसे कोलम्बिया की एक अत्यंत कार्यक्षम और न्यायसंगत सेवा संस्था में परिवर्तित कर दिया। इसमें गरीब बस्तियों के लिए जल सुविधा प्रदान करने को पहली प्राथमिकता दी गई। 2001 तक 95% जनसंख्या को नल के शुद्ध पानी और 87% जनसंख्या को मलनिकासी की व्यवस्था से जोड़ा गया, जो शहर की तेजी से बढ़ती जनसंख्या को दृष्टिगत रखते हुए एक अत्यंत प्रशंसनीय सफलता है। इस विस्तार के लिए वित्त ऐसी प्रगतिशील व्यवस्था लागू करके उपलब्ध करवाया गया जिसमें शहर के धनी लोग वास्तविक जल दरों का 200% तक चुकाते हैं। गरीब उनकी क्षमता के आधार पर वहनीय और कम दरें चुकाते हैं।

ब्राजील के पोर्टो एलेग्रे की डीएमएई संस्था भी ऐसा ही एक उदाहरण है ’’जो लोग पानी का उपयोग केवल अपनी मूलभूत आवश्यकता पूर्ति के लिए करते हैं (20 घनमीटर/माह तक) उसकी पूर्ति 20 से 1000 घनमीटर/माह पानी का उपयोग करने वाले लोगों के द्वारा क्रास सब्सिडी से की जाती है। दूसरे समूह के लिए दरें ’गुणात्मक’ श्रेणी से बढ़ती हैं। और इसके बाद के समूह के लिए यह बहुत मँहगी है। इस शुल्क ढाँचे से हम अपने सभी निवेशों, जो रखरखाव एवं जल तथा मलनिकासी विस्तार में लगते हैं, की पूर्ति कर लेते हैं। इस शुल्क ढाँचे से हम अपनी वार्षिक बजट राशि की 20 से 25% तक बचत भी कर लेते हैं, जो नए निवेशों में सीधे काम आती है’’। डीएमएई सार्वजनिक स्वामित्व की किन्तु आर्थिक रूप से राज्य से स्वतंत्र संस्था है, जिसकी वित्तीय व्यवस्था लगभग 14 लाख शहरवासियों से प्राप्त जल दरों से होती है। यह मुनाफा नहीं कमाने वाला उपक्रम है, जो अपनी अतिरिक्त पूँजी का निवेश शहर की जलप्रदाय और मलनिकासी व्यवस्था को बेहतर बनाने में करता है।

प्रदर्शन का पैमाना


ऐसी अनेक सार्वजनिक जल सेवा संस्थाएँ हैं, जिन्होंने सेवा प्रदान करने के पैमानों जैसे सेवा क्षेत्र को बढ़ाने, गैर राजस्व जल में कमी करने, जल सेवा की गुणवत्ता बढ़ाने, बेहतर भुगतान प्रक्रिया, जलप्रदाय के समय आदि की दृष्टि से असाधारण प्रदर्शन किया है। यहाँ हम कंबोडिया की नामपेन्ह वाटर सप्लाई अथॉरिटी (पीपीडब्ल्यूएसए) के प्रदर्शन की इन्हीं पैमानों के आधार समीक्षा करेंगें-

1. 1996 में जब यह संस्था नई-नई बनी थी तब विभिन्न कारणों से इसका गैर राजस्व जल लगभग 70% था परन्तु संस्था द्वारा कई प्रगतिशील कदम उठाने के बाद 2007 में गैर राजस्व जल की दर घट कर मात्र 10% रह गई। इन कदमों में सभी कनेक्शनों में अनिवार्य मीटरकरण, अवैध कनेक्शन रोकने के लिए निरीक्षण टीम, मरम्मत टीम की चैबीसों घण्टे उपलब्धता, पाइप लाइन सुधार और पुनर्वास कार्यक्रम आदि शामिल हैं।
2. प्रारम्भिक वर्षों में यह संस्था शहर की केवल 20% आबादी को सेवा प्रदान करती थी जबकि सेवा क्षेत्र को बढ़ाने से अब यह 90% आबादी को जलापूर्ति करती है।
3. जलप्रदाय गुणवत्ता बढ़ाने के लिए नामपेन्ह वाटर सप्लाई ऑथोरिटी ने पुरानी पाइप लाइनों और जल शुद्धिकरण संयंत्रों का पुनर्वास तथा सुधार किया है।
4. उपभोक्ताओं के सेवार्थ निःशुल्क शैक्षणिक टीम, सूचना केन्द्र और फोन सम्पर्क स्थापित किया है।
5. उपक्रम ने बिलों के भुगतान में भी सुधार किया है और उसका अनुपात 1993 के 48% की अपेक्षा 2000 में बढ़कर 99% हो गया।

श्रमिक यूनियनों की भागीदारी


बांग्लादेश के ढाका शहर में 1997 में पेयजल व्यवस्था के निजीकरण प्रयासों के तीव्र विरोध हुआ। परिणामस्वरूप वहाँ की कर्मचारी सहकारी संस्था ने शहर की पेयजल व्यवस्था संचालित करने की तैयारी दिखाई। हालांकि निजीकरण तो नहीं रोका गया लेकिन ढाका वाटर एण्ड सेनीटेसन अथारिटी (डीडब्ल्यूएएसए) ने एक ज़ोन के जलप्रदाय प्रबंधन का अनुबंध कर्मचारी सहकारी संस्था को दे दिया। दूसरा ज़ोन प्रायोगिक आधार पर एक वर्ष के लिए एक निजी कंपनी को दिया। एक वर्ष पश्चात परिणाम मिला कि निजी कंपनी की तुलना में कर्मचारी सहकारी संस्था का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। यह इस आधार पर कि उसने गरीबों और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को जलप्रदाय सुविधा बढ़ाई और गैर राजस्व जल को कम किया। इसका इतना असर हुआ कि डीडब्ल्यूएएसए ने निजी कंपनी के ज़ोन को भी कर्मचारी संस्था को हस्तांतरित कर दिया।

पुनर्नगरपालिकाकरण


2007 में इंदौर में सार्वजनिक जल अधिकार पुर्नप्राप्ति यात्रा हेतु सार्वजनिक विचार-विमर्श2007 में इंदौर में सार्वजनिक जल अधिकार पुर्नप्राप्ति यात्रा हेतु सार्वजनिक विचार-विमर्शभारी भ्रष्टाचार घोटाले और धोखाधडि़यों के बाद ग्रेनोबल शहर (फ्रांस) की जलप्रदाय सेवा अंतर्राष्ट्रीय निजी कंपनी स्वेज की एक सहायक कंपनी को दे दी गई थी। एक सशक्त स्थानीय जल आंदोलन और बाद में श्रंखलाबद्ध मुकद्दमों के कारण शहर ने अन्ततः जल व्यवस्था पुनः अपने हाथ में लेने का निर्णय लिया। इस पुनर्नगरपालिकाकरण से जल दरों में कमी और निवेश में बहुत बढ़ोत्तरी हुई। ठेकेदारी की बजाय सार्वजनिक उपक्रम द्वारा सेवा आपूर्ति ने धन की बचत की और उपक्रम अब लाभार्जन के लिए नहीं है। इस पुनर्नगरपालिकाकरण के साथ उपक्रम में प्रजातांत्रिक प्रक्रिया भी विकसित हुई। नए उपक्रम में नगरसभा के द्वारा 6 निर्वाचित प्रतिनिधियों के साथ नागरिक समुदाय (सिविल सोसायटी) के 5 विशेषज्ञों को भी उपक्रम की प्रबंधकारिणी सभा का सदस्य नियुक्त किया गया।

इनके अलावा ऐसे कई कारक हैं जो दुनियाभर में यह स्थापित करते हैं कि कई सार्वजनिक उपक्रम जल और मलनिकास सेवाएँ निजी कंपनियों की तुलना में बेहतर तरीके से दे रहे हैं, जैसे-सबको सुविधा देने की वचनबद्धता, कम शुल्क, लाभ का व्यवस्था में पुनर्निवेश, कर्मचारियों को अधिक लाभ देना, बजट बनाने में भागीदारी आदि।

भारत के अनुभव


भारत में भी दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में शहरी पेयजल प्रदाय सेवा में सुधार के लिए निजीकरण प्रस्तावित किया गया था। जनसमूहों ने वहाँ कई व्यावहारिक प्रस्ताव एवं सुझाव दिए जिनसे निजी कंपनियों की महँगी जलप्रदाय व्यवस्था के बिना भी सेवाओं में सुधार किया जा सकता हैं। स्थानीय जनसंगठन ‘परिवर्तन’ ने जलप्रदाय व्यवस्था में सुधार के लिए पानी के बल्क मीटर लगाने, लीकेज कम करने, वर्षा जल का संरक्षण करने आदि के संबंध में सुझाव दिए। ये प्रस्ताव क्रियांवयन में अपनी सादगी के कारण निजीकरण की तुलना में अलग ही नजर आते हैं। ये सुझाव जल की आपूर्ति तथा माँग में वृद्धि दोनों के लिए सस्ते समाधान प्रस्तुत करते हैं। दिल्ली में चहुँ आरे भारी जनविरोध के कारण दिल्ली जल बार्डे का निजीकरण रोक दिया गया।

स्थानीय संगठनों द्वारा इसी प्रकार के विरोध प्रदर्शन तब भी किए गए थे जब फ्रांसीसी सलाहकारी फर्म कस्तालिया द्वारा यह संकेत दिए गए कि मुम्बई के ’के ईस्ट’ वार्ड के जलप्रदाय का निजीकरण हो सकता है। जब सलाहकार ने यह प्रस्तावित किया कि जलप्रदाय सुधार के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी एक मात्र विकल्प है तब दावेदारों (स्टेक होल्डर्स) की सभा में गहरा मतभेद पैदा हो गया। इस कारण दूसरी मीटिंग में सलाहकार को यह प्रस्ताव भी रखना पड़ा कि वास्तव में सुधार के लिए बृहन्नमुंबई नगरनिगम के जल वितरण विभाग द्वारा प्रबंधित आरै संचालित अन्य विकल्प भी हे सकते हैं।

ऐसे उदाहरण दर्शाते हैं कि निजीकरण के अलावा दूसरे विकल्प भी हो सकते हैं, जो लागत, गुणवत्ता, कार्यक्षमता की दृष्टि से सही हों और स्थानीय परिस्थितियों में बेहतर तरीके से सेवाप्रदाय कर सकते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम उन्हें खोजें, उनका मूल्यांकन करें व फिर जो भी श्रेष्ठ विकल्प उपलब्ध हो उसका तकनीकी, आर्थिक व सामाजिक स्थितियों के आधार पर चुनाव करें।

वैकल्पिक व्यवस्थाओं को अपनाने के दूसरे लाभ ग्रामीण क्षेत्रों में जलप्रदाय सुधार करने की परियोजनाओं के क्रियांवयन से सम्बंधित हैं। यदि हम तमिलनाडु जल एवं मलनिकास बोर्ड, राजस्थान के तरुण भारत संघ और कच्छ (गुजरात) के अनुभवों का अध्ययन करें तो पाएँगें की इनके अधिकांश काम कम लागत वाले और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने वाले हैं। इससे पानी की दरों में भी कमी होगी क्योंकि इसकी तुलना में पीपीपी परियोजनाएँ अधिक लागत वाली होती हैं। ऐसी वैकल्पिक व्यवस्थाएँ मुनाफा कमाने के उद्देश्य से जलप्रदाय नहीं करती हैं जिसके कारण भविष्य में जल दरों में और कमी आती है।

साथ ही, इनमें जनता की वास्तविक भागीदारी होने से सेवाप्रदाता के काम संबंधी निर्णय उसके उच्चाधिकारियों के बजाय सीधे जनता द्वारा लिए जाएँगें। अतः वैकल्पिक मॉडल में मुनाफे के बजाय भागीदारीपूर्ण, जवाबदेह, पूर्णतः सार्वजनिक रूप से प्रबंधित और गुणवत्तापूर्ण पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।

अधिकांशतः देखा गया है कि पीपीपी परियोजनाओ के तहत जल व्यवस्थाएँ ऐसी हैं कि वे शहरी क्षेत्रों के लिए दूर के श्रोतों से पानी लाने के इच्छुक रहती हैं जिसके क्रियांवयन में भारी लागत की आवश्यकता पड़ती है, उदाहरणार्थ-तमिलनाडु के तिरूपुर, और मध्यप्रदेश के खण्डवा, देवास, शिवपुरी, रतलाम आदि। इस प्रक्रिया में ऐसी परियोजनाएँ स्थानीय जल संसाधनों द्वारा प्रदत्त अवसरों का लाभ लेने में चूक जाती हैं। कम से कम शहरों की पूरी नहीं तो आंशिक माँग की पूर्ति स्थानीय संसाधन कर ही सकते हैं। स्थानीय विकल्पों से लागत में कमी आएगी, स्थानीय श्रोतों की उपेक्षा नहीं होगी और उनके पुनर्नवीनीकरण के प्रयास होंगें वस्तुतः यह रणनीति न केवल पीपीपी परियोजनाओं के लिए अपितु सार्वजनिक परियोजनाओं पर भी लागू होती है।

संक्षेप में, जलप्रदाय के वैकल्पिक तरीकों में हम देखते हैं कि कई तरह की प्रक्रियाएँ अपने प्रदर्शन के लिए स्वभाव, विवेक, नियंत्रण और संतुलन (चेक्स एण्ड बैलेंसेस), स्वायत्तता, जवाबदेही, पारदर्शिता आदि जैसे मुद्दों पर सदैव निर्भर करेगी। कुछ सिद्धांत जैसे विकेन्द्रीकरण स्वायत्तता, सहकारिता, भागीदारी आदि कुछ जगहों पर काम करेगी और कुछ जगहों पर नहीं फिर भी, हमें जन भागीदारी जैसे ढाँचों के निर्माण और प्रक्रियाओं को स्थान देने की जरूरत होगी जिससे परिवर्तन हो सके भले ही वह सामने आने में कुछ समय लें। यहाँ यह बताना भी आवश्यक है कि पूर्ण लागत वसूली, क्रास सब्सिडी, लागत आधारित दरें, कर्मचारियों की छँटनी आदि ऐसे महत्त्वपूर्ण तरीके हैं जिससे नागरिकों को अच्छी सेवाओं के साथ सतत जलापूर्ति की जा सकती है। किन्तु ये सब तरीके निजी लाभ के बजाय लोक कल्याण के संदर्भ में देखे जाने चाहिए जिसमें जनकल्याण का व्यापक लक्ष्य निजी लाभों की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण होना चाहिए। उदाहरणार्थ व्यवस्था का एक सिद्धांत पूर्ण लागत वसूली तो हो सकता है परन्तु इसे सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य नहीं होना चाहिए। पूर्ण लागत वसूली का सिद्धांत और पानी की दरों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव सार्वजनिक और निजी व्यवस्था में बहुत भिन्न होंगे क्योंकि निजी व्यवस्था में लागत और दरें निजी लाभों पर आधारित होती है जबकि सार्वजनिक व्यवस्था में ऐसा नहीं होता है।

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