पीपल्याहाना तालाब पर काम बन्द लेकिन जल सत्याग्रह जारी

15 Jul 2016
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करीब सौ साल पहले होलकर राजाओं ने पीपल्याहाना गाँव के नजदीक बड़े आकार का यह तालाब लोगों की जरूरत और जलस्तर बनाए रखने के लिये बनवाया था। इसका फायदा अब तक शहर के लोगों को मिल रहा है लेकिन अब सरकार इसकी आधी से ज्यादा जमीन को पाटकर इस पर 280 करोड़ की लागत से नया हाईटेक कोर्ट भवन बनाने जा रही है। इसका शहर के लोग जमकर विरोध कर रहे हैं। महिलाएँ और बच्चे भी इस आन्दोलन में शामिल हैं।तालाब बचाने के लिये आगे आये इन्दौर शहर के लोगों की एकजुटता आखिरकार रंग लाने लगी है। अब इस मामले में सरकार बैकफुट पर नजर आ रही है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इन्दौर में रियासतकालीन तालाब की जमीन को पाटकर यहाँ नया कोर्ट भवन बनाए जाने के काम को फिलहाल बन्द किये जाने और इसके लिये अन्यत्र स्थान पर जमीन आवंटन के लिये चीफ जस्टिस से मुलाकात करने की बात कही। लेकिन तालाब में जल सत्याग्रह कर रहे लोग इससे सन्तुष्ट नजर नहीं आये। वे तालाब से कोर्ट भवन के अन्यत्र निर्माण की माँग पर अड़े हैं।

जल सत्याग्रही बुजुर्ग किशोर कोडवानी गिरती सेहत के बावजूद सत्याग्रह स्थल से हटने को तैयार नहीं है। उधर इस जन आन्दोलन को शहर के लोगों और जन प्रतिनिधियों का लगातार समर्थन मिल रहा है। बारिश का मौसम भी उनके उत्साह और जज्बे को डिगा नहीं पा रहा है।

मुख्यमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के प्रयासों के बाद भी शुक्रवार को भी पीपल्याहाना तालाब पर जल सत्याग्रह और प्रदर्शन जारी है। आम दिनों की तरह यहाँ बड़ी संख्या में शहर के लोग पहुँच रहे हैं।

बारिश में फिर भर गया पीपल्याहाना तालाबलगातार जल सत्याग्रह करने वाले 61 वर्षीय किशोर कोडवानी के पैरों में चमड़ी गलकर घाव बनते जा रहे हैं। लेकिन वे पूरी मजबूती से शहर के लोगों के साथ जल सत्याग्रह कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जब तक सरकार उन्हें पूरे तालाब परिसर को छोड़ने, यहाँ निर्माण कार्य रोकने और कोर्ट भवन निर्माण के लिये अन्यत्र स्थान चयन करने का लिखित आदेश नहीं दे देती, तब तक आन्दोलन लगातार चलता रहेगा।

अब आन्दोलन के समर्थन में शहर की कुछ और संस्थाएँ भी सामने आई हैं। रविवार को यहाँ बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। इसमें शहर के करीब 20 हजार से ज्यादा लोगों के पहुँचने का अनुमान है।

गौरतलब है कि करीब सौ साल पहले होलकर राजाओं ने पीपल्याहाना गाँव के नजदीक बड़े आकार का यह तालाब लोगों की जरूरत और जलस्तर बनाए रखने के लिये बनवाया था। इसका फायदा अब तक शहर के लोगों को मिल रहा है लेकिन अब सरकार इसकी आधी से ज्यादा जमीन को पाटकर इस पर 280 करोड़ की लागत से नया हाईटेक कोर्ट भवन बनाने जा रही है। इसका शहर के लोग जमकर विरोध कर रहे हैं। महिलाएँ और बच्चे भी इस आन्दोलन में शामिल हैं।

भारतीय भू सर्वेक्षण रिकार्ड के मुताबिक यह तालाब 28 हेक्टेयर क्षेत्र में स्थित है। तालाब के बीच में रिटेनिंग वाल बनाई जा रही है। पहली बारिश में ही तालाब रिटेनिंग वाल को पार करते हुए अपनी वास्तविक सीमाओं में आ चुका है।

पीपल्याहाना तालाब को बचाने के लिये विरोध प्रदर्शन करते इन्दौरवासीइधर नगर निगम इन्दौर भी एक बड़ी पहल करने जा रहा है। निगम की बजट बैठक में शहर के बुद्धिजीवियों और पर्यावरणप्रेमियों की मौजूदगी में एक विशेष प्रस्ताव लाये जाने की तैयारी की गई है। इसमें पक्ष–विपक्ष के सभी 85 पार्षद, शहर के आठों विधायक, भाजपा और कांग्रेस के शहर अध्यक्ष, सांसद प्रतिनिधि और पद्म पुरस्कारों से सम्मानित गणमान्यजनों की उपस्थिति में पीपल्याहाना तालाब को बचाने के लिये विशेष प्रस्ताव लाया जाएगा। इसके निगम में पारित होने पर इसे राज्य सरकार को भेजा जाएगा।

लोकसभा अध्यक्ष और इन्दौर से सांसद सुमित्रा महाजन ने इस मुद्दे पर गुरूवार को शहर के लोगों और जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक कर जानकारी दी कि इस मसले पर उनकी प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लम्बी चर्चा हुई है और जन भावना का आदर करते हुए मुख्यमंत्री ने तत्काल पीपल्याहाना तालाब पर हो रहे कोर्ट भवन के काम को रोक दिये जाने के आदेश दिये हैं।

दरअसल कोर्ट भवन को अन्यत्र बनाए जाने के फैसले पर उन्हें चीफ जस्टिस से बात करनी होगी। इस मुलाकात के बाद ही इसदिशा में कोई बात हो सकेगी। श्रीमती महाजन ने बैठक में यह आश्वस्ति भी दी कि मुख्यमंत्री को उन्होंने सुझाव दिया है कि चीफ जस्टिस से बात कर नए विकल्प पर सहमत होने के लिये अपनी ओर से पूरी कोशिश करें। उन्होंने बताया कि यह लड़ाई वे 1995 से लड़ रही हैं। वे तब प्रशासनिक जज से भी मिली थीं, अब इसमें हाईकोर्ट से बात करना पड़ेगी।

एनजीटी ने भी हाईकोर्ट में अपनी बात रखी है। एनजीटी ने जो निर्णय दिया है, उस मामले में हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात रखी है। एनजीटी ने तालाब के लिये 60 मीटर जगह छोड़ने को कहा है पर हाईकोर्ट का कहना है कि इतनी जमीन छोड़ेंगे तो प्रस्तावित भवन के लिये जगह ही नहीं बचेगी। उन्होंने कहा कि यह एक कलम से होने वाला फैसला नहीं है। फिर भी हम पूरा प्रयास कर रहे हैं। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से बात करने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी।

पीपल्याहाना तालाब को बचाने के लिये बच्चे भी बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैंगुरूवार की शाम स्थानीय लोगों ने तालाब में दीपदान कर सांकेतिक विरोध जताया। व्यापारी संघ ने दीप प्रज्ज्वलित कर तालाब के पानी में छोड़े। इस रचनात्मक विरोध प्रदर्शन में जल सत्याग्रही किशोर कोडवानी सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे। जल सत्याग्रह को समर्थन देने पर्यावरणविद पद्मश्री भालू मोंढे, पद्मश्री कुट्टी मेनन, पद्मश्री सुशील दोषी, पद्मश्री जनक पलटा सहित कई संस्थाओं और संगठनों के लोग भी तालाब पर पहुँचे।

हाईकोर्ट के एक जज ने तो सरकार से हाईटेक कोर्ट भवन बनाने के बजाय त्वरित न्याय की जरूरत को महत्त्वपूर्ण बताया है। हाईकोर्ट के तीन पूर्व न्यायाधीश केके लाहोटी, पीडी मूल्ये, और शम्भू सिंह ने तो इस सरकारी फैसले का विरोध किया है। एमपी से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तनखा ने तो बिना फीस लिये इसकी सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने की घोषणा भी की है। कांग्रेस विधायक जीतू पटवारी सहित कुछ लोगों ने इसकी याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की है।

वकीलों ने इसके समर्थन में काम बन्द रखा और नारेबाजी की। पीपल्याहाना तालाब की जमीन पर बन रहे कोर्ट भवन के विरोध में शहर की सभी कोर्ट में काम बन्द रखकर वकीलों ने विरोध प्रदर्शन किया। इससे जिला कोर्ट, हाईकोर्ट, फेमली कोर्ट, उपभोक्ता कोर्ट आदि में काम पूरी तरह से ठप्प पड़ गया। यहाँ तक कि तारीख बढ़वाने के लिये भी खुद पक्षकारों को उपस्थित रहना पड़ा।

पीपल्याहाना तालाब अतिक्रमण के विरोध में महिलाओं का मनोबल बढ़ातीं मेधा पाटकरएक मोटे अनुमान में जिला कोर्ट के करीब पाँच हजार से ज्यादा मामले प्रभावित हुए, वहीं हाईकोर्ट के भी पाँच हजार मामलों पर इसका असर पड़ा। इन्दौर अभिभाषक संघ के अध्यक्ष सुरेन्द्र कुमार वर्मा और सचिव जय हार्डिया ने बताया कि कोर्ट परिसर में वकीलों ने इकट्ठा होकर तालाब पाटने का विरोध कर नारेबाजी की और प्रदर्शन किया। यदि सोमवार तक कोई समुचित हल नहीं निकलेगा तो सोमवार से वकील अनिश्चितकालीन हड़ताल करेंगे।

पीपल्याहाना तालाब बचाने के लिये अभिभाषक संघ अब सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटिशन भी दायर करेंगे।

विधायक जीतू पटवारी का मानना है कि यह एक ऐसा तालाब है, जिससे शहर के पूर्वी भाग का जलस्तर बना रहता है। यदि यह खत्म हो गया तो शहर में पानी की कमी हो जाएगी। तत्कालीन होलकर राजाओं ने इसी बात को समझते हुए सौ साल पहले शहर के चारों हिस्से में चार बड़े तालाब बनवाए थे, लेकिन अब सरकार इन्हें उजाड़ने पर तुली है। हम शहर के पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होने देंगे। उन्होंने आश्चर्य जताया कि एक भरे पूरे तालाब को नाला बनाने पर सरकार अड़ी है। राष्ट्रीय हरित अधिकरण के निर्देशों का भी खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। आधे से ज्यादा तालाब की जमीन को पाटना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

मुख्यमंत्री के कोर्ट भवन बन्द किये जाने के आदेश के बावजूद जलसत्याग्रह करते स्थानीय लोग

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