प्लास्टिक कचरे से बनेगा सिंथेटिक ईंधन

30 Jun 2014
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देश में पहली बार प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए इस तरह का कोई प्रयोग होगा। इसके लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक भी पूरी तरह स्वदेशी है। परियोजना के लिए तकनीक मुहैया कराने वाली मैसूर की कंपनी के सह-निदेशक सतीश नारायणस्वामी के अनुसार इसमें जो तकनीक का उपयोग होगा उसके लिए पेटेंट का आवेदन भी किया जा चुका है। यह ऐसी तकनीक है जो प्लास्टिक को फिर से उसके मूल रूप में वापस ला देगी। इसी साल मई महीने में इस तकनीक के लिए पेटेंट आवेदन किया जा चुका है। अरब सागर के किनारे स्थित दक्षिण कन्नड़ जिले के 200 से ज्यादा गांव इन दिनों खामोशी के साथ एक नए क्रांति का सूत्रपात करने की कोशिश में जुटे हैं। इन गांवों के लोग उस समस्या का हल तलाशने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे उनका इलाका ही नहीं पूरा देश परेशान है। यह समस्या है-प्लास्टिक कचरे की।

प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए अभिशाप है मगर इन गांवों के लोगों ने ठान ली है कि वे इस अभिशाप को वरदान में बदल देंगे। इन गांवों के लोगों की पहल से अब जिले में स्थित पुत्तूर तालुक के बेल्लारे गांव में एक ऐसा प्लास्टिक रिसाइक्लिंग प्लांट स्थापित होगा जो प्लास्टिक कचरे से डीजल के समान सिंथेटिक ईंधन बनाएगा। कचरे से बनने वाला यह ईंधन पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल


देश में पहली बार प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए इस तरह का कोई प्रयोग होगा। इसके लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक भी पूरी तरह स्वदेशी है। परियोजना के लिए तकनीक मुहैया कराने वाली मैसूर की कंपनी के सह-निदेशक सतीश नारायणस्वामी के अनुसार इसमें जो तकनीक का उपयोग होगा उसके लिए पेटेंट का आवेदन भी किया जा चुका है। यह ऐसी तकनीक है जो प्लास्टिक को फिर से उसके मूल रूप में वापस ला देगी। इसी साल मई महीने में इस तकनीक के लिए पेटेंट आवेदन किया जा चुका है।

शून्य उत्सर्जन वाला ईंधन


प्लास्टिक रिक्लेमेशन यूनिट (पीआरयू) नामक यह परियोजना देश में अपने आप में यह एकदम नई है। इसके तैयार हो जाने के बाद 500 किलोग्राम प्लास्टिक कचरे से महज दो घंटे में 250 लीटर एक ऐसा कृत्रिम ईंधन तैयार किया जाएगा, जिसके जलने से शून्य उत्सर्जन होगा।

203 पंचायतों हुआ करार


दक्षिण कन्नड़ जिला पंचायत के अध्यक्ष आशा तिम्मप्पा के अनुसार पर्यावरण के प्रति सजग क्षेत्र के 203 पंचायतों के बीच एक करार हुआ है जिसके तहत सभी प्लास्टिक कचरा इस यूनिट को भेजेंगे। नारायणस्वामी ने बताया कि इस ईंधन के उपयोग से पम्पसेट, जेनरेटर, उद्योगों के बॉयलर चलाए जा सकेंगे और लागत प्रति लीटर 25 रुपए कम आएगी।

चिंता का विषय बना प्लास्टिक कचरा


दरअसल, दक्षिण कर्नाटक के पंचायत पर्यावरण के दृष्टिकोण से बेहद संवेदनशील माने जाने वाले पश्चिमी घाट के अंतर्गत हैं जो प्लास्टिक और कचरे के निस्तारण के लिए हरित प्रद्यौगिकी अपनाने के प्रति बेहद सक्रिय हैं। पुत्तूर के पीआरयू को प्लास्टिक कचरा देने का करार करने से पहले यहां के पंचायतों ने मैसूर की एक रिसाइक्लिंग कंपनी के साथ करार किया था लेकिन काफी समय से इस कंपनी ने गांवों का दौरा करना बंद कर दिया है। इससे क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा निस्तारण एक बड़ी समस्या बन गई है। एक ग्राम पंचायत सचिव प्रकाश शेट्टी ने कहा कि प्लास्टिक कचरा गांव के लिए चिंता का विषय है। गांव के अधिकांश लोग खेती और पशुपालन से अपनी आजीविका चलाते हैं।

प्लास्टिक खाते जानवरपशुओं के साथ खतरा यह होता है कि वे प्लास्टिक के थैले और उसमें मौजूद पदार्थ खा जाते हैं। इससे उनके बीमार पड़ने और यहां तक कि उनके मौत का खतरा बना रहा रहता है।

अगले महीने होगा शुरू


नारायणस्वामी ने बताया कि संयंत्र स्थापना का काम प्रगति पर है। यूनिट में हीट एक्सचेंजर्स, फर्नेस, कूलिंग टावर आदि लगाने का काम शुरू हो चुका है। उम्मीद है कि जुलाई मध्य तक यह काम पूरा हो जाएगा। यूनिट जब तैयार हो जाएगा तो इसे चलाने के लिए सिर्फ चार लोगों की ही जरूरत पड़ेगी।

500 किलो प्लास्टिक कचरा


1. संयंत्र में 500 किलो प्लास्टिक कचरे से दो घंटे में बनेगा 250 लीटर ईंधन
2. इस परियोजना के लिए इलाके के 203 ग्राम पंचायतों ने आपस में करार किया है
3. करार के तहत हर पंचायत प्लांट में रिसाइक्लिंग के लिए प्लास्टिक कचरा भेजेगा

250 लीटर बनेगा सिंथेटिक ईंधन


1. बेल्लारे ग्राम पंचायत से संयंत्र के लिए 1.60 एकड़ भूमि आवंटित की
2. गांव के लिए पहले भी प्लास्टिक कचरे से मुक्ति पाने का प्रयास कर चुके हैं
3. पूरी तरह देशी तकनीक

संयंत्र के लिए व्यवसायी ने दी वित्तीय सहायता


उन्होंने बताया कि प्लास्टिक कचरा निस्तारण के लिए ग्राम पंचायत का एक प्रतिनिधिमंडल मैसूर स्थिति नंजनगुड़ अध्ययन दौरे पर गया था। वहां प्रतिनिधी मंडल ने अलटानॉल कंपनी से संपर्क किया जो पुत्तूर में पीआरयू परियोजना के लिए तैयार हो गई। लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती इस परियोजना पर आना वाली लागत थी। इस परियोना के लिए कम से कम 42 लाख रुपए की जरूरत है जो उनके लिए बहुत ज्यादा थी। इसके बाद प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्र के उद्यमियों से संपर्क साधना शुरू किया।

अंत में एक कारोबारी ने इसके लिए वित्तीय सहायता देने की बात मान ली। ग्रामीणों के लिए जमीन को लेकर कोई चिंता नहीं है क्योंकि बेल्लारे गांव में 1.60 एकड़ जमीन इसके लिए चिन्हित हो चुकी है। इसमें से आधा एकड़ जमीन ही संयंत्र लगाने के लिए पर्याप्त है जबकि शेष खाली पड़े जमीन पर प्लास्टिक के कचरे इकट्ठे किए जाएंगे।

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