पलायन थमा..

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मध्यप्रदेश के अति पिछड़े आदिवासी जिले मण्डला के ग्राम मानेगांव विकासखंड नारायणगंज में हुये “पानी रोको अभियान” ने कृषि मजदूरों के पलायन को रोका है। वर्ष 96-97 में राजीव गाँधी जलग्रहणक्षेत्र प्रबंधन मिशन के अंतर्गत माइक्रोवाटरशेड मानेगांव की स्थापना की गई। माइक्रोवाटरशेड मानेगांव ने अपने दस सदस्यीय दल एवं परियोजना क्रियान्वयन दल के सहयोग से निरन्तर जल तथा मृदा संरक्षण के कार्य जैसे चैकडेम, कन्टूर ट्रेंच, परकोलेशन टैंक, नालाबंधान, वनीकरण आदि कार्य जनसहयोग से संपन्न कराया, परन्तु वर्ष 2001-2002 के प्रारंभ में पानी रोको अभियान-पानी आंदोलन ने इस ग्राम को अत्यधिक प्रभावित किया। ग्राम मानेगांव के पास सिंचाई विभाग के जलाशय का पानी रिस-रिस कर बहता रहता था। वाटरशेड कमेटी ने इस पानी को रोकने की ठानी। एक जगह पर कच्चा मिट्टी का स्टापडेम बनाया गया। गेट को सीमेंट क्रांक्रीट से तैयार किया गया। परन्तु फिर भी स्टापडेम लबालब भर जाता तथा पानी इसके साइड गेट से बहने लगता। तब ग्रामीणों ने इस पानी को अपने खेतों में ले जाने का संकल्प लिया। वर्ष 2002-2003 में साइड गेट से करीब 400 मीटर नहर का निर्माण ग्रामीणों ने 100 प्रतिशत जनसहयोग से किया तथा जिला प्रशासन ने जनसहयोग को देखते हुये 400 मीटर से आगे दांये बांये, दो नहरें, जिसकी लंबाई 1950 मीटर है, बनाने की प्रशासकीय स्वीकृति एवं रुपये 3.40 लाख जारी किये। ग्रामीणों ने वाटरशेड समिति के साथ कार्य पूर्ण किया। जिससे 252 एकड़ एक फसली भूमि दो फसली भूमि में परिवर्तित हो गई। रबी की फसल होने से पलायन करने वाले परिवार पलायन छोड़ अपने खेतों में कार्य करने लगे।

ग्राम मानेगांव में काम करने वाले श्रमिक जो पलायन पर जाते थे। कुल वयस्क व्यक्तियों की संख्या 328 है। इस संख्या के विरूद्ध में पिछले वर्ष पलायन करने वाले व्यक्तियों की संख्या का जायजा ग्राम में वर्तमान में प्रत्येक घर जाकर सुक्ष्म सर्वेक्षण करने पर पाया गया कि 328 श्रमिक के विरुद्ध विगत वर्ष में 45 श्रमिक ग्राम से बाहर पलायन पर गये थे। चालू वर्ष में 31 जनवरी 2003 तक की स्थिति में पलायन करने वाले व्यक्तियों की संख्या गणना करने पर 22 पाई गई है।

ग्राम में पलायन वर्तमान समय में 7 प्रतिशत बताया जा रहा है। ग्राम मानेगांव संभाग मुख्यालय से 70 किमी जिला मुख्यालय से 58 किमी. एवं ब्लाक मुख्यालय से 18 किमी ग्राम मानेगांव जहां पर 90 प्रतिशत आदिवासी निवास करते हैं। पांच वर्ष पूर्व में लोगों का अनुभव है कि यहाँ के लोगों की जीवन शैली में पलायन करना शामिल था। वे ग्राम से बाहर फसल कटाई करने एवं मजदूरी करने हेतु अन्यत्र स्थान को जाते ही थे। पलायन का प्रतिशत कार्य की माँग एवं स्वयं के जरूरत के अनुसार 14 प्रतिशत हुआ करता था पर आज विभिन्न विकास कार्यक्रम जैसे सिंचाई की प्रधानता में 25 प्रतिशत की वृद्धि व खेतों में वाटरशेड मानेगांव द्वारा बनाये गये जलसंरक्षण निर्माण से नाली निर्माण कर 252 एकड़ यानी 101 हेक्टेयर भूमि को जीवनदान दिया गया है। जो आज की स्थिति में ग्राम मानेगांव में नाली निर्माण स्थल से लगा हुआ है। खरीफ एवं रबी फसल क्षेत्र का आंकलन करने पर परिणाम परिलक्षित हो रहा है, तथा खेतों में माइस्चर पीरियड बढ़ने से फसलों का डियूरेशन बढ़ा है। क्रॉपिंग पैटर्न में भी 20 से 40 प्रतिशत बदलाव आया है। फलस्वरूप किसान की व्यस्तता एवं आय बढ़ी है।

उत्पादन 50 प्रतिशत बढ़ा है। वाटरशेड मानेगांव द्वारा 80 प्रतिशत एवं ग्राम पंचायत द्वारा 20 प्रतिशत सम्पादित कार्यों से पलायन कम हुआ है। विभिन्न सामुदायिक कार्यक्रम जैसे ग्राम पांच स्वयं सहायता समूहों का गठन कराने के उपरांत एक समूह को 25 हजार रुपये का रिवाल्विंग फंड मिल चुका है तथा और समूहों के लिए कार्य प्रगति पर अग्रसर है। चालू वित्तीय वर्ष विभाग के द्वारा ग्राम मानेगांव के कृषकों को प्रोत्साहित करने वाली विभिन्न योजनायें जैसेः-

 

खरीफ फसल हेतु :-

1. मक्का प्रदर्शन : ब्रीडर सीड, जे.एम. 8=8 किग्रा।
2. आरंडी बीज : डी.सी.एम. किस्म 8 किग्रा।
3. अरहर बीज : एन. 148=22 किग्रा।
4. तिल : जी.टी.वन = 3 किग्रा।
5. आदिवासी उपयोग के तहत स्वर्णा बीज व 30 किग्रा के साथ विभिन्न किस्म के बीजोपचार दवा जैसे, थायरम, फंगोडरमा, आदि।

 

रबी फसल हेतु :-

1. अन्नपूर्ण योजना (अदला-बदली) के तहत ग्राम मानेगांव में : 120 क्विंटल गेंहू सूजाता एवं 40 किग्रा अन्य उन्नत बीज (गेहूं) का वितरण किया गया है।
2. चना मिनिकिट बीजी 72-16 किग्रा।
3. चना किस्म 72-10 किग्रा।
4. मटर बीज – 10 किग्रा।
5. आर.एस.जी. 44 चना बीज – 8 किग्रा के साथ विभिन्न किस्म के बीज उपचार दवा जैसे, फंगीडरमा, बायोसिड, बीज उपचार दवा, ट्रायकोडमा विरडी प्राकृतिक फफूंद नाशक एवं जिंक सल्फेट सुक्ष्म पोषक तत्व 50 किग्रा तथा जिप्सम पायराइड एक किग्रा आदि उन्नत बीज वितरण से एवं बीज उपचार दवा से कृषि क्षेत्र में क्रॉपिंग पैटर्न के साथ अनेक लोगों से सुझाव लेकर इस ग्राम के कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई है। आंगनवाडी की सेवाएं एम.डी.एम. जैसे, पूरक कार्यक्रम एवं नाडेप, वर्मीकल्चर, शुष्क शौचालय, उन्नत चूल्हा के कार्य के साथ वर्तमान में बायोगैस सयंत्र निर्माण कार्य प्रगति पर अग्रसर है। इन सब विभिन्न विकासात्मक कार्य करने से अपने गांव में लोगों को बेहतर अवसर की आस बंधायी है।

आज गांव में 50 प्रतिशत पलायन कम हुआ है, प्रगति की यह रफ्तार रही तो भविष्य में मजदूरों की पलायन की स्थिति ही उत्पन्न नहीं होगा।

(जैसा उन्होंने पंचायत परिवार के प्रतिनिधि को बताया।)

लेखक श्री संजय कुमार शुक्ल भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं। आपने झाबुआ में काकरदा सहित अनेक गाँवों में जलसंचय की बेहतर मिसाल कायम करने वाले कार्यों को अंजाम दिया है। इन्दौर में भी जलसंवर्द्धन के लिए नीतियाँ बनाईं।

 

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