प्राकृतिक संसाधनों की बदहाली से विचलित सोनांचल विकास मंच

Sonanchal Vikas Manch
Sonanchal Vikas Manch


मध्य प्रदेश राज्य के पूर्व में छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा से सटे अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिलों को मिलाकर शहडोल संभाग बना है। इस संभाग की कुल आबादी लगभग 24.60 लाख है। संभाग प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है। अच्छी खासी बरसात होती है। इस क्षेत्र में कोयले की बहुत सी खदानें हैं। उन खदानों के कारण पूरे देश में इस इलाके की पहचान मुख्य कोयला उत्पादक क्षेत्र के रूप में है। कोयले के अलावा इस इलाके में घने जंगल हैं। इस इलाके की मुख्य नदी सोन है। संभाग की पहचान अपेक्षाकृत पिछड़े इलाके के रूप में है। इस संभाग में अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं।

पिछले कुछ सालों से इस संभाग के ग्रामीण इलाकों में पानी का संकट बढ़ रहा है। नदियों में पानी घट रहा है। छोटे नाले समय के पहले सूख रहे हैं। तालाबों में कम जल भराव हो रहा है। उनके जल भराव के रास्ते रुक रहे हैं। पुराने स्टॉप-डैम काम नहीं कर रहे हैं। हैण्डपम्प और कुओं का जलस्तर भी कम हो रहा है। कोयले की खदानों के इलाके में अलग तरह की समस्याएं हैं। सभी जानते हैं कि माईनिंग को चालू रखने के लिये खदानों से बहुत बड़ी मात्रा में पानी पम्प किया जाता है। इस कारण खदानों के आस-पास के इलाकों का भूजल स्तर बहुत नीचे चला जाता है। उथले जलस्रोत सूख जाते हैं। दूसरी समस्या खदानों से निकाले पानी के कारण है। यही पानी सामान्य उपचार के बाद पेयजल के रूप में काम में लाया जाता है। इस पानी में अनेक हानिकारक खनिज घुले होते हैं। इस पानी के इस्तेमाल के कारण पेट की बीमारियाँ होती हैं।

इस साल पर्यावरण दिवस पर अनूपपुर, उमरिया और शहडोल जिलों के अनेक लोग पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की बिगड़ती सेहत पर चर्चा करने के लिये सोनांचल विकास मंच के बुलावे पर भीषण गर्मी के बावजूद शहडोल में एकत्रित हुए। पूरे दिन चली चर्चा में आम सहमति से जो घोषणा पत्र मंजूर हुआ उसकी मुख्य बातें निम्नानुसार हैं-

1. शहडोल संभाग की सभी नदियों को जीवित किया जाए।

2. संभाग के सभी तालाबों के पानी को स्वच्छ तथा पीने योग्य बनाने के लिये प्रयास किया जाए।

3. मनुष्यों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये जल स्वराज की अवधारणा पर अमल किया जाए। पानी पर समुदाय की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाए। घोषणा पत्र पर हुई चर्चा में जल स्वराज को सिद्दत से परिभाषित किया गया और कहा गया कि पीने और निस्तार के साथ-साथ आजीविका के लिये लगने वाले पानी को जल स्वराज का अभिन्न अंग माना जाना चाहिए।

सोनांचल विकास मंच 4. कोयला अंचल से आई महिलाओं का कहना था कि उनके इलाकों में सामान्य इलाज की तो व्यवस्था है किन्तु कोयले के खराब पानी के कारण मुख्यतः बच्चों को होने वाली पेट की बीमारियों के इलाज के लिये विशेषज्ञ चिकित्सकों का अभाव है। इसी तरह निरापद पेयजल की वैकल्पिक व्यवस्था की भी कमी है। उनका कहना था कि कोयले की खदानों से निकले खराब पानी के कारण बच्चों को होने वाली पेट की बीमारियों के इलाज के लिये विशेषज्ञ चिकित्सकों का स्थायी इन्तजाम होना चाहिए। निरापद पानी के लिये खदानों से निकले पानी पर आधारित पेयजल व्यवस्था समाप्त की जाए। स्वच्छ पेयजल की स्थायी वैकल्पिक व्यवस्था कायम की जाए।

5. संभाग में रेनवाटर हार्वेस्टिंग की मौजूदा व्यवस्था आधी-अधूरी है। इसमें सुधार किया जाए। इसके तकनीकी पक्ष को मजबूत किया जाना चाहिए। तकनीकी पक्ष को मजबूत करने का अर्थ है हितग्राही को उस पानी की मात्रा का ज्ञान जो जमीन में उतारी गई है और वह कहाँ और कितनी मात्रा में किस गहराई पर मिलेगी। लोगों का मानना है कि इस ज्ञान के बिना प्रयास आधा-अधूरा है।

6. अधिकांश लोगों का मानना था कि स्टॉप-डैम सबसे अधिक महंगी संरचना है। उसकी उम्र बहुत कम होती है। वह बहुत जल्दी अनुपयोगी हो जाता है। उसमें मिट्टी जमा हो जाती है। उसके किनारे की मिट्टी के कटने के कारण वे बेकार हो जाते हैं। बढ़ते जल संकट को देखते हुए उनका बेहतर विकल्प खोजा जाए।

7. संभाग के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बिगाड़ को ठीक किया जाए। उसे इष्टतम स्तर पर लाया जाए। इसके लिये जन प्रतिनिधियों, प्रशासकों, प्रोग्राम मैनेजरों, समाजसेवी और प्रकृति चिन्तकों की भागीदारी तथा अधिकारिता सुनिश्चित की जाए।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण दिवस के अवसर पर पिछड़े माने जाने वाले इलाके से वह चिन्ता रेखांकित हुई है जो बड़े-बड़े मंचों पर भी अक्सर नहीं सुनी जाती। कुछ लोगों का अनुभव है कि बड़े-बड़े मंचों पर तो अक्सर अध्ययन के नए क्षेत्र या डी.पी.आर. के अवसर ही तलाशे जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि जून के प्रथम सप्ताह में शहडोल संभाग की अनेक छोटी नदियों में प्रवाह समाप्त नहीं हुआ है। इसके उलट, मध्यप्रदेश की राजधानी के आस-पास के जिलों तथा आर्थिक रूप से सम्पन्न मालवा में आवश्यक चेतना तथा जागरुकता के बावजूद नदियों के प्रवाह की हालत खराब है। उनमें बेपनाह गंदगी है।

सोनांचल विकास मंच खचाखच भरे हाल में मौजूद वनांचल के समाज का मानना था कि संसाधनों के बिगाड़ में उनकी भूमिका नगण्य है। उन्होंने अपनी सीमित आवश्यकताओं, व्यवस्थाओं और रीति-रिवाजों के कारण जंगलों के पर्यावरण को ठीक स्थिति में रखा है। यह छोटी-छोटी नदियों में अल्प मात्रा में बहते पानी को देखकर स्वीकार किया जा सकता है। जैव विविधता भी किसी हद तक बची हुई है। यह इस कारण नजर आता है क्योंकि इन इलाकों में वन और जीवन के रिश्तों को समझने वाला समाज निवास करता है। सभी को इस हकीक़त के पीछे छुपे संकेतों को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए। उनकी बात सुनी जानी चाहिए। उनके घोषणा पत्र पर अमल किया जाना चाहिए।

पर्यावरण दिवस की बैठक में या उसकी चर्चा में जुमलों का अभाव था। चिन्ता की बहुलता थी। काम करने या सहयोग देने वालों का बाहुल्य था। इसी कारण उस दिन लोगों ने तय किया कि वे अपने-अपने जिलों में लौटकर सबसे पहले एक तालाब का चुनाव करेंगे। जिसे संवारा नहीं वरन सुधारा जा सके। उसकी अस्मिता बहाली की जा सके। उनका कहना था कि वे व्यवस्था से संघर्ष के पक्षधर नहीं हैं। वे सम्पन्न किए जाने वाले कामों में सहयोगी की भूमिका निभाना चाहते हैं। वे मुख्य रूप से जनभागीदारी की उस अवधारणा का पालन करना चाहते हैं जिसे मध्यप्रदेश सरकार आगे बढ़ा रही है। इसी कारण वे अपना घोषणा पत्र सभी सम्बन्धितों तक ले जाने के लिये प्रतिबद्ध हैं। वे सब जो सीधे-सीधे या अन्य तरीके से संभाग में पर्यावरण के विभिन्न पक्षों से जुड़े है। उल्लेखनीय है कि इस मंच से जुड़े राम अवतार गुप्ता या रवि गिल पेशे से मीडियाकर्मी हैं। अनन्त जौहरी, महात्मा गांधी और जयप्रकाश के अनुयायी हैं। इनके साथ हैं अनेक अनाम लोग जो लगभग हर इतवार एक जगह एकत्रित हो अपनी भावनाओं का इजहार करते हैं।
 

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