प्रदेश की अधिकतर कृषि भूमि हो रही है बंजर

21 Jun 2011
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जब तक हमारे कूहलों की स्थिति अच्छी नहीं होगी, तब तक कृषि पैदावार के आंकड़ों में बढ़ोतरी होना मुश्किल है। सिंचाई के अभाव में अधिकांश कृषि योग्य भूमि रकबा बंजर भूमि में तब्दील होता जा रहा है।

भारत एक कृषि प्रधान देश है। हमारे देश की अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर है। हमारे हिमाचल प्रदेश में भी अधिकांश लोग वर्षों से खेती और बागवानी पर निर्भर हैं। पहाड़ी प्रांत होने के कारण इसकी भौगोलिक स्थिति भी देश के अन्य कृषि प्रधान प्रदेशों की अपेक्षा काफी भिन्न है। हमारे हिमाचल प्रदेश में केवल जिला कांगड़ा में ही खेतों की सिंचाई कूहलों के माध्यम से होती है। जहां कूहलों के द्वारा दरिया और खड्डों का पानी सीधा खेतों तक पहुंचता है, जो कि सिंचाई का वर्षों से सस्ता प्राचीन साधन है। प्रदेश के अन्य जिला जैसे चंबा, मंडी, कुल्लू, किन्नौर, शिमला और हमीरपुर में खेतों की सिंचाई इतनी सस्ती नहीं, जितनी जिला कांगड़ा में है, लेकिन हमारी सरकारों ने इन दुर्गम क्षेत्रों में भी खेतों तक सिंचाई सुविधा प्रदान करने की भरपूर कोशिश की और उसमें सफलता भी मिली।

प्रदेश के इन जिलों में खेत ऊंचे हैं, तो पानी काफी नीचे दरिया में बह रहा है, लेकिन लिफ्ट सिस्टम के माध्यम से वहां भी सिंचाई सुविधा प्रदान की जा रही है। जहां तक जिला कांगड़ा में कूहलों के द्वारा सिंचाई का प्रश्न है, तो यह एक बहुत ही सस्ता सिंचाई का साधन है, लेकिन यहां कूहलों की स्थिति आज वह नहीं रही, जो वर्षों पहले कायम की गई थी। यहां जब कभी कूहलों का निर्माण हुआ था, तो उस समय हर खेत के अंतिम छोर तक इन कूहलों का पानी पहुंचता था। कांगड़ा जिला में जो पुरानी कूहलें थीं, उनमें से अधिकांश कूहलें मरम्मत के अभाव में आज अंतिम सांस ले रही हैं। अधिकांश कूहलें या तो उजड़ चुकी हैं और जो शेष हैं, वे भी बड़ी मुश्किल से 25 प्रतिशत भाग तक ही सिंचाई सुविधा प्रदान कर रही हैं।

आखिर इन कूहलों की सिंचाई का स्तर क्यों गिरा और इसके कारण क्या थे? यह जानना अति-आवश्यक था, लेकिन इसकी कोशिश नहीं की गई। जब तक हमारी कूहलों की स्थिति अच्छी नहीं होगी, तब तक कृषि के पैदावार के आंकड़ों में बढ़ोतरी होना मुश्किल है। सिंचाई के अभाव में अधिकांश कृषि योग्य भूमि रकबा बंजर भूमि में तब्दील होता जा रहा है। महकमा माल के भूमि रिकार्ड की प्रत्येक गांव की जमावंदी में वह सब कूहलें और चोऊ दर्ज हैं, जिनके माध्यम से भूमि के रिकार्ड में जमीन की किस्म अव्वल नैहरी दर्शाई गई है, लेकिन आज मौके पर कितनी कूहलें और चोऊ उस दर्शाई गई नैहरी अव्वल भूमि को सिंचित कर रही हैं और कितनी नहीं, यह जानने की आज तक किसी भी सरकार ने कोशिश नहीं की।

प्रदेश का सिंचाई विभाग केवल उन्हीं कूहलों के रखरखाव और मरम्मत की ओर ध्यान देता है, जिनका जिम्मा सरकार ने उन्हें सौंप रखा है, लेकिन वे भी गिनती में नाममात्र ही हैं, बाकी की कूहलों के रखरखाव व मरम्मत की किसी को चिंता नहीं। आज जरूरत इस बात की है कि हर कूहल व चोऊ को सिंचाई के योग्य बनाया जाए, चाहे इन्हें सिंचाई विभाग के अधीन किया जाए या मनरेगा के अधीन। जब तक हर कूहल चोऊ में पानी अंतिम छोर तक नहीं पहुंचेगा या हर खेत तक नहीं पहुंचेगा, तब तक सिंचाई विभाग, कृषि विभाग और उद्यान विभाग का कोई भी महत्त्व नहीं है। सरकार का दायित्व बनता है कि हरे-भरे हिमाचल प्रदेश का वास्तविक स्वरूप कायम रखने के लिए सिंचाई विभाग, कृषि विभाग, उद्यान विभाग व महकमा माल के अधिकारियों की फौज द्वारा हर कूहल और हर खेत का मौके पर जाकर यह सर्वे कराया जाए कि प्रत्येक मुहाल की जमावंदी में दर्ज आज कितनी कूहलें और चोऊ, सिंचाई सुविधा हर खेत को प्रदान कर रही हैं और कितनी नहीं और यदि सिंचाई दे रही हैं, तो कितने भाग तक दे रही हैं व क्या उनका पानी अंतिम छोर और खेत तक पहुंच रहा है।

कृषि विभाग, उद्यान विभाग और सिंचाई विभाग में करोड़ों रुपए के बजट के प्रावधान का तब तक कोई अर्थ नहीं, जब तक हर कूहल में पानी उसके अंतिम छोर तक न पहुंचे और हर खेत सिंचित न हो। आज कई खेत कागजात माल में नैहरी अव्वल दर्शाए जा रहे हैं, जबकि वह सिंचाई के अभाव में बंजर बन चुके हैं। आज कृषि और बागवानी के क्षेत्र में सुधार लाने के साथ सर्वप्रथम कूहलों की स्थिति में सुधार लाना अति-आवश्यक है। सिंचाई के क्षेत्र में सुधार लाए बिना कृषि और बागवानी के क्षेत्र में प्रगति नहीं हो सकती। यदि कृषि योग्य भूमि को बंजर होने से बचाना है, तो सिंचाई के साधनों पर प्राथमिकता के आधार पर ध्यान देना होगा, नहीं तो वह दिन दूर नहीं, जब समस्त कृषि योग्य भूमि बंजर भूमि में तब्दील हो जाएगी।

(लेखक, भट्टू समूला, तहसील पालमपुर से पूर्व कर्मचारी हैं)
 

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