प्रदूषित नदियों की संख्या बढ़ी-नमामि गंगे परियोजना केवल दो नए पहल

2 Jul 2015
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polluted river
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गंगा सफाई योजना भी यमुना के साथ जुड़ी हुई है। योजना गंगा रिवर बेसिन के लिये है। इसकी प्रमुख सहयोगी नदी है यमुना। फिर गोमती, सरयू, बेतवा या चम्बल है। काली और रामगंगा सीधे गंगा में गिरती है। इनका प्रदूषण भी गंगा में जाता है। लिहाजा इन सबके सीवेज निस्तारण और पुनरुद्धार का काम साथ चलेगा। यमुना इनमें प्रमुख है। प्रमुख स्थानों पर है। सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है दिल्ली जहाँ इसका सबसे बदसूरत चेहरा नजर आता है। पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर दिल्ली-वृन्दावन-मथुरा को लिया गया है। सभ्यता की जननी नदियों की हकीक़त दर्दनाक है। जो हाल गंगा-यमुना का है वैसी पीड़ा में देश की 275 नदियाँ हैं। नदियों की हालत सुधरने के बजाय बदतर हो रही है। इनको निर्मल और अविरल बनाने की राह में सबसे बड़ा गतिरोध उन राज्यों की उदासीनता है जिन्हें वह पीने का पानी देती है, जिनके खेतों को सींचती है और जिनके शहरों की गन्दगी बहाकर ले जाती है।

केन्द्रीय प्रदूषण नियनत्रण बोर्ड के मुताबिक देश की 445 नदियों में से 275 नदियाँ प्रदूषित हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक देश के हर कोने में नदियाँ प्रदूषण के बोझ से दबी जा रही हैं। इन नदियों के प्रदूषित खण्ड गिने तो उनकी संख्या 302 है। नदियों की प्रदूषित धारा की लम्बाई 12,363 किलोमीटर है। नदियों के इस प्रदूषित खण्डों को अगर एक दिशा में जोड़ दिया जाए तो प्रदूषण की यह धारा दिल्ली से न्यूयार्क तक पहुँच जाएगी। अहम तथ्य यह है कि प्रदूषित नदियों की संख्या बीते पाँच साल में दोगुनी हुई है। 2009 में लगभग सवा सौ नदियाँ ही प्रदूषित थीं।

नदियों के प्रदूषण का सबसे बडा कारण शहरों से निकलने वाला सीवेज है जो अधिकांश में साफ किये बगैर नदियों में बहा दिया जाता है। जहाँ मलशोधन संयन्त्र लगे हैं वहाँ भी प्रबन्धन व संचालन की कठिनाइयों के बाद तकनीकी समस्या सामने आती है। इन संयन्त्रों से मलजल का पूरा शोधन नहीं हो सकता। प्रशोधित जल और ठोस कचरे के उपयोग के बारे में अभी कोई नीति स्पष्ट नहीं है।

देश में 650 महानगर, षहर और कस्बे हैं जिनकी गन्दगी नदियों में जा रही है। 2009 में इन शहरों से प्रतिदिन 3824.4 करोड़ लीटर गन्दगी नदियों में गिर रही थी जो अब बढ़कर 6200 करोड़ लीटर प्रतिदिन हो गई है। जबकि देश में अभी 18,883 करोड़ लीटर सीवेज को साथ करने की क्षमता है। दरअसल, शहरों में रोज़ाना जितने पानी की आपूर्ति होती है, उसका 80 प्रतिशत से ज्यादा सीवेज के रूप में बाहर आता है।

जिन शहरों में निजी नलकूपों आदि की संख्या अधिक है, वहाँ सीवेज की मात्रा अधिक भी होती है। सभी नदियों में प्रतिदिन कितना औद्योगिक कचरा प्रवाहित होता है, इसका आधिकारिक आँकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन गंगा में जाने वाली औद्योगिक गन्दगी से इसका अनुमान भर लगाया जा सकता है।

नमामि गंगे नामक मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी योजना के अन्तर्गत निर्मल और अविरल गंगा की दिशा में केवल दो महत्त्वपूर्ण काम हुए हैं। समन्वय और वित्तीय बाधाएँ प्रधानमन्त्री ने दूर कर दी है।

गंगा के सफाई में कई मन्त्रालयों का काम है और यह पाँच राज्यों से गुजरती है। प्रधानमन्त्री ने छह जनवरी को कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति बना दी है जिसमें सभी सम्बन्धित मन्त्रालयों के सचिव और पाँचों राज्यों के मुख्य सचिव हैं। इससे नाकरशाही में आपसी समन्वय की बाधा दूर हो गई। असफलता का एक कारण और था। राज्य सरकार के माध्यम से काम होता था। राज्य सरकार अपना हिस्सा नहीं देती थी तो काम नहीं हो पाता था। अब यह पूरी तरह केन्द्र प्रदत्त योजना है।

जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनरुद्धार मन्त्री साध्वी उमा भारती बताती हैं कि गंगा में गिर रहे नालों को तुरन्त रोका जा सकता है। पर यह इतनी सी बात नहीं है। वे पूरे शहर की गन्दगी से जुड़े हैं। पहले शहर की गन्दगी-सीवेज निस्तारण की योजना तैयार करनी होगी। उसके बारे में फैसला करना होगा। गंगा के किनारे 764 उद्योग हैं। उनका रसायन भी गंगा में जाता है और गंगा को घातक रूप से दूषित कर रहा है। नीरी को पानी की जाँच करने का जिम्मा सौंपा गया है।

वह तीनों ऋतुओं में गंगोत्री से गंगासागर तक विभिन्न स्थानों के पानी की जाँचकर उसकी स्थिति की रिपोर्ट देगी। स्थानीय स्थिति के हिसाब से नदी के किनारे उपयोगी पेड़ लगाए जाएँगे। इसी तरह उन तालों को चिन्हित किया जाएगा जिनमें मानसून का पानी जमा रहने और सूखे के समय प्रवाहित होने की प्राकृतिक व्यवस्था रही है। उन पर कई जगह कब्जे हो गए हैं। उन्हें भी चिन्हित किया जा रहा है।

शोध के नतीजे आते-आते करीब डेढ़ साल लगेंगे। पर कई विषयों को लेकर काम आरम्भ हो गया है और तेजी से चल रहा है। शहरों और उद्योगों के कचरे के निस्तारण की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए जा रहे हैं, बन्द प्लांट चालू कराए जा रहे हैं। पिछले 29 वर्षों में गंगा सफाई के नाम पर पाँच हजार करोड़ खर्च हुए, लेकिन गंगा और गन्दी हुई। इसलिये मुकम्मल योजना और पूरी ताकत से काम करना होगा।

गंगा सफाई योजना भी यमुना के साथ जुड़ी हुई है। योजना गंगा रिवर बेसिन के लिये है। इसकी प्रमुख सहयोगी नदी है यमुना। फिर गोमती, सरयू, बेतवा या चम्बल है। काली और रामगंगा सीधे गंगा में गिरती है। इनका प्रदूषण भी गंगा में जाता है। लिहाजा इन सबके सीवेज निस्तारण और पुनरुद्धार का काम साथ चलेगा। यमुना इनमें प्रमुख है। प्रमुख स्थानों पर है। सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान है दिल्ली जहाँ इसका सबसे बदसूरत चेहरा नजर आता है। पायलेट प्रोजेक्ट के तौर पर दिल्ली-वृन्दावन-मथुरा को लिया गया है। गंगा के कानपुर और इलाहाबाद भी पायलट प्रोजेक्ट में हैं।

गंगा के प्रति उनकी श्रद्धा और समर्पण के बावजूद उनकी योजना में गंगा प्रदूषण के कुछ बड़े कारणों का कोई निदान नहीं है। उत्तर प्रदेश के बुलन्दशहर में नरोरा एटॉमिक पावर स्टेशन है। अधिकतर पर्यावरण संस्थाओं का दावा है कि इस प्लांट से निकली राख और गरम पानी सीधे गंगा में गिरते हैं। इसका असर पटना में जाकर दिखता है, जहाँ गंगा में रहने वाली सोंस (डाल्फिन) की आँखों में रोग होने की शिकायतें मिलने लगी।

उधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती और दिल्ली के निवासियों को पानी देने में गंगाजल का बहुत बड़ा हिस्सा चला जाता है। बदले में गन्ने और दूसरी फसलों में इस्तेमाल हुए रासायनिक खादों और कीटनाशक दवाओं का अवशेष गंगा में आता है। अविरल और निर्मल गंगा के मार्ग में छोटे अवरोध नहीं हैं।

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