प्रदूषणः पराली नहीं, सत्ता है कसूरवार

6 Nov 2019
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प्रदूषणः पराली नहीं, सत्ता है कसूरवार
प्रदूषणः पराली नहीं, सत्ता है कसूरवार

आप जानते हैं कि प्रदूषित हवा (polluted air) में सांस लेने से आप बीमार हो सकते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि प्रदूषित हवा आपको आक्रामक भी बना सकती है? कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी और मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। शोधकर्ताओं द्वारा अर्थशास्त्र, वायुमंडलीय विज्ञान और सांख्यिकी में अध्ययन के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है। दरअसल शोधकर्ताओं ने अमेरिका में बढ़े हुए हमले और अन्य हिंसक अपराधों के रूप में वायु प्रदूषण (air pollution) से व्यवहार पर पड़ने वाले प्रभाव के बीच मजबूत संबंध होने का दावा किया हैं

इस अध्ययन के मुताबिक पीएम 2.5 (pm 2-5)के लिए एक ही दिन में 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक-मीटर की वृद्धि से हिंसक अपराधों में 0.14 फीसद की वृद्धि होती है। शोधकताओं ने यह भी दावा किया कि ओजोन के स्तर में एक ही दिन में दस फीसद की वृद्धि के कारण हिंसक अपराधों में 0.97 फीसद की वृद्धि हुई या हमलों में 1.15 फीसद का इजाफा हुआ है। कहने का मतलब है कि जब आप अधिक प्रदूषण के संपर्क में होते हैं तो आप थोड़े अधिक आक्रामक हो जाते हैं। इसलिए कुछ चीजें जो नहीं होनी चाहिए, वो भी हो जाती है। लिहाजा, यह तो तय हो गया कि वायु प्रदूषण केवल हमारी सेहत को भी प्रभावित करता है, बल्कि हमारे व्यवहार को भी प्रभावित करता है। चीन के तटीय शहर शंघाई में देखा गया कि वायु प्रदूषण खासकर सल्फर डाइऑक्साइड (sulphur dioxide) की मौजूदगी में कुछ समय रहने पर भी लोगों को मानसिक  समस्याओं के लिए अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसी तरह लाॅस एंजिल्स में हुई एक स्टडी में देखा गया कि प्रदूषित वातावरण (polluted environment) में रहने वाले किशोरों में आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ गई है।

शोधकर्ताओं की मानें तो प्रदूषित हवा में रहने से हमारे शरीर में स्ट्रेस हार्मोन काॅर्टिसोल बढ़ जाता है। इससे व्यक्ति की विवेक क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और वह जोखिम का सही आकलन नहीं कर पाता। इसीलिए जिन दिनों अधिक प्रदूषण रहा, उन दिनों लोगों में जोखिम लेने और उत्तेजित होने की प्रवृत्ति अधिक रही और अपराध भी बढ़े। इससे शोधकर्ताओं ने नतीजा निकाला कि वायु प्रदूषण (air pollution) कम करने से अपराध की दरों में गिरावट लाई जा सकती है। शोधकर्ताओं की इस रिपोर्ट में अगर जरा भी सच्चाई है तो हमें हाल ही में जारी एनसीआरबी की रिपोर्ट को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, जिसमें उत्तरी भारी के राज्यों में अपराध के ग्राफ को बढ़ते हुए दिखाया गया है और इसे भी नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा वायु प्रदूषण (air pollution) की समस्या से पूरा उत्तरी भारत ग्रसित है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जहरीली हवा की चादर इसी का एक पहलू है। हालाकि, केंद्र  सरकार से लेकर राज्य सरकारें तक इस प्रदूषण से लड़ रही हैं, लेकिन अफसोस की बात है कि इस समस्या से निपटना सबके बूते से बाहर है। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि हमारी सरकारें पूर साल सोती रहती हैं और मौत जब सामने खड़ी दिखती है तब एकदम से जाग जाती है। शायद हमारी सरकारें किसी बड़ी घटना की प्रतीक्षा में रहती हैं।

बात किसी भी व्यवस्था की हो, समस्या के समाधान के लिए सत्ता के अंदर राजनीतिक इच्छाशक्ति का होना अनिवार्य है। राजनीति-शास्त्र की परंपरागत शैली में सोचें तो प्रशासन और सरकार का गठन जनता की सेवा के लिए किया जाता है। लेकिन कहने की जरूरत नहीं कि सत्ता की बेरुखी ने इस अवधारणा को कमजोर किया है। यही कारण है कि अवाम को सरकार के प्रति बेहद शिकायत होती है। हर साल निश्चित तौर पर अक्टूबर-नवंबर महीने में दिल्ली के प्रदूषण से दो-चार हानो इसी का एक पहलू है। बीते दिनों दावा कि गया था कि दिल्ली की हवा में सुधार हुआ है। लेकिन दीपावली के एक दिन बाद इस दावे की हवा निकल गई। 

कहने की जरूरत नहीं कि इस समस्या को लेकर जितना संजीदा होना चाहिए, सरािर उतनी संजीदा नहीं है। इसी का नतीजा है कि जहरीली हवा में सांस लेना अब हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। दरअसल इसके लिए जिम्मेदार वह सरकारी तंत्र व प्रशासन है जो इसके लिए तत्काल हरकत में तो आते हैं, लेकिन इससे निपटने के लिए स्थायी समाधान के बारे में नहीं सोचते। अब देखिए, सरकार महिलाओं को लेकर संजीदा हुई तो न केवल डीटीसी बसें उनके लिए फ्री की गई, बल्कि तेहर हजार मार्शल डीटीसी बसों में नियुक्त भी किए गए। संजीदगी की ही बात है कि दिल्ली के शिक्षा माॅडल की देश और दुनिया में तारीफ हो रही है। लेकिन प्रदूषण के लिए ऐसी कोई कवायद दिल्ली सरकार कर सकने में अब तक कामयाब नहीं हो सकी है। इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पड़ोसी राज्यों की सरकारों ने दिल्ली सरकार के साथ कोई सहयोग भी नहीं किया।

दरअसल इसके लिए जिस कवायद की जरूरत है, वह देश के प्रमुख उद्योग संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) ने की है। पराली की समस्या से निपटने के लिए सीआइआइ ने हरियाणा और पंजाब के सौ गांवों को गोद लिया है और वह इन गांवों के किसानों को सस्ती दरों पर पराली काटने की मशीने उपलब्ध करा रहा है। पिछले वष्र 19 गांवों में इसका प्रयोग किया गया और नजीते उत्साहजनक निकले, जिससे उम्मीदें बढ़ी हैं। इससे पता चलता है कि इन राज्यों की सरकारों ने किसानों की इस समस्या का समाधान नहीं निकाल है, वरना यह काम सरकार के बूते के बाहर का कतई नहीं था। गौरतलब है कि 1950 के दशक में लंदन शहर में भी यह समस्या पैदा हुई थी। लेकिन वहां की सरकार ने स्थायी समाधान खोल निकाला और पुनः ऐसी स्थिति कभी नहीं बनी। पिछले ही वर्ष चीन की राजधानी बीजिंग में भी यह समस्या थी और वहां की सरकार ने इससे निपटने में काफी सक्रियता दिखाई, जिसका नतीजा यह हुआ कि इसका समाधान कर लिया गया है। हालाकि पराली की समस्या से निपटने के लिए इसे जलाने के बजाय इससे बायोगैस तैयर करने का रास्ता निकाला गया है। हरियाणा के करनाल जिले में संयंत्र लगाने का काम शुरू हो चुका है जो अपनी तरह का देश का पहला संयंत्र होगा। अगर यह कोशिश पहले हो जाती तो, दिल्ली के लोगों को प्रदूषण से राहत मिल चुकी होती। लेकिन सरकार और उसके अमले की लेटलतीफी किसी से छुपी नहीं है। बहरहाल, सरकार को चाहिए कि वह हर समस्या को अपनी जवाबदेही समझ कर ईमानदारी से ठोस कदम उठाने की पहल करें।

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