प्रकृति के दो प्रमुख औषधीय प्रदेय : अलसी और तुलसी (The two main medicinal gifts of nature : Alsi and Tulsi)


सारांश


तुलसीअलसी और तुलसी प्रकृति के दो महत्त्वपूर्ण औषधीय प्रदेय हैं। इनका उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रंथों में भी है और वर्तमान में देश-विदेश के वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि इनके सेवन से विभिन्न प्रकार के सामान्य एवं असाध्य रोगों का निदान भी संभव है तथा पर्यावरण की पवित्रता एवं शुद्धीकरण में भी इनका अस्तित्व अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिसका संक्षिप्त अध्ययन इस आलेख में प्रस्तुत किया गया है।

Abstract


Plants are the most important source of medicines and among them Tulsi and Alsi (Linseed) have been well documented for their therapeutic potential. These plants have been used for thousand years in Ayurveda for their diverse healing & spiritual properties. Tulsi and Alsi have been widely used for curing various ailments due to its great pharmacological potentials. Several pharmacological studies have established a scientific basis for therapeutic use of these plants.

प्रस्तावना


भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही औषधीय पौधों के महत्व को समझते हुए उनके सेवन पर बल दिया जाता रहा है। अलसी और तुलसी प्रकृति के दो महत्त्वपूर्ण औषधीय प्रदेय है। इनका उल्लेख भारत के प्राचीन ग्रंथों में भी है तथा वर्तमान में देश-विदेश के वैज्ञानिक अनुसंधानों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि इनके सेवन से विभिन्न प्रकार के सामान्य एवं असाध्य रोगों का निदान भी संभव है।

अलसी


भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही अलसी के सेवन पर बल दिया जाता रहा है। पूर्व में इसका प्रयोग कपड़ों, रंग और वार्निश के निर्माण में भी होता था। अलसी का बोटेनिकल नाम है- लाइनम यूजीटेटीसिमम (Linum usitatissimum) इसका बीज छोटा, सुनहरा व चिकना होता है। अलसी में ओमेगा-3 उपलब्ध होता है, जो हमारे शरीर के मस्तिष्क, स्नायुतंत्र एवं नेत्र के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता है।

रासायनिक संरचना एवं उपयोग


अलसी में लगभग 18-20 ओमेगा-3 फैटी एसिड अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) होते हैं।1 अल्फा-लिनोलेनिक एसिड के कार्यों में प्रमुख हैं- ई.पी.ए. और डी.एच.ए. का निर्माण, रक्तचाप, रक्त शर्करा का नियंत्रण, कॉलेस्ट्रॉल का नियोजन, जोड़ों को स्वस्थ रखना, वसा कम करना, नेत्र-मस्तिष्क और नाड़ी तंत्र का विकास करना। यकृत वृक्क आदि की कार्य क्षमता को बढ़ाना आदि-आदि। अनेक शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि हमारे भोजन में ओमेगा-3 की कमी और ओमेगा-6 की प्रचुरता से शरीर में उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, दमा, अवसाद, कैंसर आदि रोग बढ़ने लगते हैं। शरीर के स्वस्थ संचालन के लिये ओमेगा-3 तथा ओमेगा-6 दोनो 1:1 अर्थात बराबर के अनुपात में होने चाहिए। शरीर में ओमेगा-3 की कमी नहीं होनी चाहिए। मात्र 30 ग्राम अलसी के सेवन से ओमेगा-3 की यही कमी पूरी हो जाती है। अलसी के सेवन से रक्तचाप संतुलित रहता है। यह दिल की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है और हृदय-घात से बचाती है।

विश्व में अनेक शोध-संस्थानों में अलसी से संबंधित शोध हो रहे हैं। ‘‘एड्स रिसर्च असिस्टेंस इंस्टीट्यूट (एआरएआई) सन 2002 से एड्स के रोगियों पर लिगनेन के प्रभावों पर शोध कर रही है और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आये हैं। ‘डा. कैनेथ शेसेल ईएचडी चिल्ड्रंस हॉस्पिटल मेडिकल सेंटर’ सिनसिनाटी के आचार्य डा. कैनेथ शेसेल ईएचडी ने पहली बार यह पता लगाया था कि लिगनेन का सबसे बड़ा स्रोत अलसी है।’’2 किसी व्यक्ति के द्वारा अपनी रोटी में अलसी मिलाकर खाने से उसमें लिगनेन की मात्रा अधिक पायी गई और उक्त विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुँचे थे। विभिन्न शोधों से यह निष्कर्ष निकला था, कि लिगनेन एक शक्तिशाली एण्टी-ऑक्सीडेंट है और यह अलसी में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। अलसी में लिगनेन की मात्रा 800 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम होती है। अलसी में 27 प्रतिशत घुलनशील और अघुलनशील दोनों ही प्रकार के फाइबर होते हैं। कब्ज में यह राहत देती है साथ ही पित्त की थैली में पथरी नहीं बनने देती है। अलसी बीज त्वचा को स्वस्थ बनाकर सौंदर्य का उत्कृष्ट प्रसाधन सिद्ध हुआ है। यह ऐसा सौंदर्य प्रसाधन है जो त्वचा में अंदर से निरवार उत्पन्न करता है, साथ ही वाह्य रूप से भी उपयोगी सिद्ध हुआ है, क्योंकि अलसी के शक्तिशाली एण्टी-ऑक्सीडेंट ओमेगा-3 व लिगनेन त्वचा के कोलेजन की रक्षा करते हैं और त्वचा को स्वस्थ व सुंदर बनाते हैं।3

उच्च रक्त चाप, डायबिटीज और कैंसर जैसे रोगों से मुक्त होने के लिये अलसी का सेवन अत्यधिक लाभप्रद है। अमेरिका में हुई एक शोध से यह ज्ञात हुआ है कि अलसी में 27 प्रतिशत से अधिक कैंसररोधी तत्व होते हैं। जर्मनी की सुप्रसिद्ध कैंसर वैज्ञानिक डॉ. योहाना बुडविज ने अपने परीक्षणों से सिद्ध कर दिया था कि ‘‘अलसी के तेल में विद्यमान इलेक्ट्रॉन युक्त असंतृप्त ओमेगा-3 वसा कोशिकाएं ऑक्सीजन को आकर्षित करने की अपार क्षमता रखती हैं, पर मुख्य समस्या रक्त में अघुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक पहुँचाने की थी, वर्षों तक शोध करने के बाद वे मालूम कर पाईं कि सल्फरयुक्त प्रोटीन जैसे पनीर अलसी के तेल को घुलनशील बना देते हैं और तेल सीधा कोशिकाओं तक पहुँचकर ऑक्सीजन को कोशिकाओं में खींचता है व कैंसर खत्म होने लगता है। इस तरह उन्होंने अलसी के तेल, पनीर, कैंसर रोधी फलों और सब्जियों से कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो ‘‘बुडविज प्रोटोकाल’’ के नाम से विख्यात हुआ।’’4

तुलसी


प्रकृति का एक अन्य मह्त्त्वपूर्ण प्रदेय है- तुलसी। भारतवर्ष की पौराणिक संस्कृति से लेकर आज तक, अनेक औषधीय और दिव्य गुणों के कारण तुलसी को ‘‘दिव्य पौधा’’ माना गया है। यह न केवल भारतीय परम्परा में ‘आस्था’ का प्रतीक है, वरन इसे एक श्रेष्ठ बहुगुणकारी औषधि होने के कारण आयुर्वेद चिकित्सा-विज्ञान में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्र में तुलसी के विविध गुणों का विवरण उपलब्ध होता है। स्थान एवं शरीर से संबंधित अनेक दोषों के निवारक तुलसी-पौधा और तुलसी दल के संबंध में अनेक विद्वानों ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। धर्मग्रंथों में तुलसी-पूजा के प्रावधान बताये गये हैं और इसे ‘विष्णु प्रिया’ नाम भी दिया गया है। प्रत्येक घर में तुलसी के लहलहाते पौधे तथा उसकी पूजा के उपाय वर्णित हैं। तुलसी का पौधा प्राय: तीन फीट तक का द्विबीजपत्री औषधीय पौधा है, जिसका वनस्पतिक नाम ‘‘ऑसीमम सैंक्टम’’ (Ocimum sanctum) है। विद्वानों ने इसके 22 भेद भी माने हैं, परंतु श्वेत तुलसी, श्यामा तुलसी, राम तुलसी, गंध तुलसी, वन तुलसी अधिक प्रसिद्ध नाम है। ‘‘ऑसीमम सैंक्टम’’ को प्रधान पौधा माना गया है व इसकी दो प्रधान प्रजातियाँ मानी गई है- रामा तुलसी व श्यामा तुलसी। रामा तुलसी की पत्तियाँ हरी होती हैं और श्यामा तुलसी की पत्तियाँ बैंगनी रंग लिये हुए होती हैं। रामा तुलसी के पत्ते श्वेताभ होते हैं तथा श्यामा तुलसी के पत्ते श्याम वर्ण के होते हैं।

रासायनिक संरचना व उपयोग
रसायनिक संरचना की दृष्टि से तुलसी पर अनेक स्थानों पर अनेक शोध हो चुके हैं। इसमें ‘‘अनेक जैव सक्रिय रसायन पाये जाते हैं, जिनमें ट्रेनिंग, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड्स और एल्केलॉइड्स प्रमुख हैं। प्रमुख सक्रिय तत्व हैं- एक प्रकार का पीला उड़नशील तेल, जिसकी मात्रा, संगठन, स्थान व समय के अनुसार बदलते रहते हैं। 0.1 से 0.3 प्रतिशत तक तेल पाया जाना सामान्य बात है। वेल्थ आफ इण्डिया के अनुसार इस तेल में लगभग 71 प्रतिशत यूजीनॉल, बीस प्रतिशत यूनीनॉल मिथाइल ईथर तथा तीन प्रतिशत कार्वाकोल होता है। रामा तुलसी में श्यामा की अपेक्षा कुछ अधिक तेल होता है तथा इस तेल का सापेक्षिक घनत्व भी कुछ अधिक होता है। तेल के अतिरिक्त पत्रों में लगभग 83 मिली ग्राम प्रतिशत की मात्रा विटामिन सी एवं 2.5 मिलीग्राम प्रतिशत कैरोटीन होता है। तुलसी-बीजों में हरे-पीले रंग का तेल लगभग 17.8 प्रतिशत की मात्रा में पाया जाता है। इसके घटक हैं- कुछ सीटों स्टेरॉल, अनेक वसा-अम्ल, मुख्यत: पामिटिक, स्टीयरिक, ओलिक, लिनोलक और लिनोलिक अम्ल। तेल के अलावा बीजों में श्लेशमक प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इस म्यूसिलेज के प्रमुख घटक हैं- पेंटोस, हेक्जा यूरोनिक अम्ल और राख। राख लगभग 0.2 प्रतिशत होती है।’’

वनस्पतिक क्षेत्र में तुलसी का औषधीय महत्व सर्वाधिक है। तुलसी को एक विशेष औषधि माना गया है, जो अनेक रोगों को नष्ट करती है। लिवर (यकृत) संबंधी रोग, पेट-दर्द, मुख का संक्रमण, सिर दर्द, त्वचा-रोग, नेत्रों की तकलीफ, वात, कैंसर, तनाव-अवसाद आदि रोगों में तुलसी सेवन के विविध उपाय आयुर्वेद, ज्योतिष, यूनानी-चिकित्सा आदि में बताये जाते हैं, जिनसे आशातीत लाभ हुआ है। तुलसी को त्रिदोष-नाशक कहा जाता है, और इसके सेवन से रक्त-कणों की वृद्धि होती है। तुलसी का पौधा मलेरिया के कीटाणुओं को नष्ट करता है। तुलसी की लकड़ी का भी वैज्ञानिक महत्व है। तुलसी की लकड़ी धारण करने से शरीर की विद्युत शक्ति नष्ट नहीं होती है। आयुर्वेद में इसे कफनाशक तथा वायुनाशक माना गया है।

निष्कर्ष


इस प्रकार जहाँ एक ओर अलसी को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘‘सुपरस्टार फूड’’ का दर्जा दिया है वहीं तुलसी का पौधा न केवल औषधीय दृष्टिकोण से, वरन आध्यात्मिक, धार्मिक व भौतिक दृष्टि से भी मानव जीवन के लिये अत्यंत उपयोगी है। अपने रूप-रस-गंध से यह पौधा अपने चारों ओर के वातावरण को शुद्ध, रोगों और कीटाणुओं से मुक्त करता है। इस प्रकार अनेक आयुर्वेदाचार्य, चिकित्सक मनुष्य को अलसी व तुलसी का नियमित सेवन करने के लिये प्रेरित करते हैं। यह गर्भावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक मानव स्वास्थ्य के लिये अत्यंत लाभदायक हैं।

संदर्भ
1. टुवानी, शिवनारायण (संपा.) (2011) श्री दत्त जयंती विशेषांक, यथार्थ आरोग्य, इंदौर, पृ. 14।

2. टुवानी, शिवनारायण (संपा.) (2011) श्री दत्त जयंती विशेषांक, यथार्थ आरोग्य, इंदौर, मु. पृ. 51-52।

3. दीक्षित, मिथिलेश (2015) पर्यावरण एवं औषधीय वृक्ष, समांतर विमर्श, उत्कर्ष प्रकाशन, कानपुर (प्रकाशनाधीन)।

4. टुवानी, शिवनारायण (संपा.) (2011) श्री दत्त जयंती विशेषांक, यथार्थ आरोग्य, इंदौर, मु. पृ. 49-50।

5. गायत्री सांस्कृति धरोहर, http:/www.hindi.awgb.org अभिगमन तिथि, 2009।

पल्लवी दीक्षित
असिसटेंट प्रोफेसर, वनस्पति विज्ञान विभाग, महिला विद्यालय डिग्री कॉलेज, लखनऊ-226018, यूपी, भारतDrpallavidixit80@gmail.com

Pallavi Dixit
Assistant Professor, Department of Botany, Mahila Vidyalaya Degree College, Lucknow-226018, U.P., India, Drpallavidixit80@gmail.com

प्राप्त तिथि- 02.05.2015, स्वीकृति तिथि- 1.08.2015

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