प्रकृति की अमूल्य औषधीय धरोहर एलोवेरा

15 Oct 2016
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अगर आपने दादी नानी के नुस्खों को सुना होगा तो कहीं न कहीं एलोवेरा के लाभ के बारे में अवश्य जिक्र हुआ होगा। औषधि की दुनिया में एलोवेरा किसी चमत्कार से कम नहीं है। तो आइये जानें आखिर क्या है एलोवेरा?

.एलोवेरा एक प्राकृतिक उत्पाद है जो एक औषधीय पौधे के रूप में विख्यात है। यह एस्फोडिलेसी कुल का सदस्य है। यह लगभग 5000 वर्ष पुरानी रामबाण औषधि है। इसके विशिष्ट औषधीय गुणों को देखते हुए इसे संजीवनी पौधा भी कहा जाता है। इसकी लगभग 300 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यह एक कटीले पौधे की भाँति होता है जो गर्म शुष्क मौसम में तेजी से बढ़ता है। यह मूलतः अफ्रीका का पौधा है जो लगभग 17वीं शताब्दी में भारत में लाया गया था। यह मुख्यतः अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया के साथ कैनेरी व माडियारा द्वीप से सम्बन्धित है। हालाँकि अब इसे पूरे विश्व में उगाया जाता है। भारत में अधिकांशतः यह राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र तथा तमिलनाडु में पाया जाता है। फार्मास्यूटिकल वितरण के लिये सर्वप्रथम एलोवेरा की खेती वर्ष 1920 में की गई थी।

एलोवेरा की विभिन्न प्रजातियों का संघटन अलग-अलग होता है। बार्बाडेन्सीस मीलर उन कुछ प्रजातियों में से सर्वाधिक प्रभावशाली प्रजाति है। यह पौधा मानव के स्वास्थ्य के धनी स्रोतों में से एक है। इस पौधे के विभिन्न भाग मानव शरीर पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रभाव डालते हैं।

जलवायु तथा वातावरण


एलोवेरा कैक्टस से अत्यधिक समानता प्रदर्शित करता है किन्तु यह एलोबार्बाडेनसिस समूहों के लिली परिवार से सम्बन्धित है। इस पौधे को जल की अत्यधिक कम आवश्यकता होती है तथा यह क्षारीय मिट्टी में भी जीवन-यापन कर सकता है। यह अत्यन्त गर्म क्षेत्र में भी रह सकता है किन्तु अत्यधिक ठण्ड सहन नहीं कर सकता। यह बिना तने का या बहुत ही छोटे तने का एक गूदेदार और रसीला पौधा होता है जिसकी लम्बाई 60-100 सेमी. तक होती है। इसका फैलाव नीचे से निकलती शाखाओं द्वारा होता है। इसकी पत्तियाँ मोटी, भालाकार तथा मांसल होती हैं जिनका रंग हरा, हरा-सलेटी होने के साथ-साथ कुछ प्रजातियों में पत्ती के ऊपरी व निचली सतह पर सफेद धब्बे होते हैं। गर्मी के मौसम के दौरान इसकी तीव्र नोंक पर फूल खिलते हैं। इसकी पत्तियाँ नुकीली एवं कड़वी होने के कारण यह पशुओं तथा कीटों से अपनी सुरक्षा करता है। इसकी पत्तियों में साफ, पारदर्शी किन्तु कड़वा जैल जैसा पदार्थ भरा होता है। इस पारदर्शी जैल में लगभग 98 प्रतिशत जल, कुछ कार्बनिक व अकार्बनिक यौगिक, 18 एमीनो एसिड, विटामिन ए तथा बी आदि पाये जाते हैं। प्रत्येक पत्ती तीन परतों से बनी होती हैः

1. आन्तरिक सतह, जिसमें लगभग 99 प्रतिशत जल, ग्लुकोमेनन, एमीनो एसिड, लिपिड, स्टेरॉल तथा विटामिन पाये जाते हैं।

2. लेटेक्स की मध्य सतह, जोकि कड़वी पीली सतह वाली होती है जिसमें एन्थ्राक्विनॉन तथा ग्लाइकोसाइड उपस्थित होते हैं।

3. 15-20 कोशिकाओं की बाह्य मोटी सतह जिसे रिन्ड कहते हैं उसमें रक्षात्मक क्रियाएँ होती हैं तथा जो प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करता है। इसके अन्दर वैस्क्यूलर बण्डल होते हैं जो जल तथा स्टार्च जैसे पदार्थों के आदान-प्रदान के लिये उत्तरदायी होते हैं।

इसकी सरसता इसे कम वर्षा वाले प्राकृतिक क्षेत्रों में जीवित रहने में सक्षम बनाती है, जिसके कारण यह पठारी एवं शुष्क क्षेत्रों के किसानों में अत्यन्त प्रसिद्ध है। किन्तु यह हिमपात व पाले का सामना करने में असमर्थ है। साधारणतः इन पौधों के लिये टैराकोटा के गमले (चूँकि यह छिद्रयुक्त होते हैं) व उत्तम गुणवत्ता वाली खाद की सिफारिश की जाती है। वर्तमान में यह सजावटी पौधे के रूप में भी प्रयुक्त हो रहा है। अतः गमले में पौधे के लिये बलुई मिट्टी जिसमें पानी का निकास अच्छा हो व तेज खिली धूप की स्थिति आदर्श होती है।

एलो प्रजातियाँ बहुत से देशों की फार्मोकोपिया में एलो चूर्ण आदि के रूप में सूचीबद्ध है।

एलोवेरा के उपयोग एवं औषधीय महत्त्व


इसका प्रयोग एण्टीसेप्टिक, जीवाणुनाशक, रक्त को शुद्ध करने तथा अल्सर में भी किया जाता है। यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया जैसे साल्मोनेला, जो शरीर में कहीं मवाद बनाते हैं, को नष्ट करता है। यह उत्तम बैक्टीरिया नाशक है। प्रभावित अंगों पर इसे सीधा भी लगाया जा सकता है। इसका उपयोग बहुत से उत्पादों जैसे- ताजे जैल, जूस, आहार पूरक, औषधियों व सौन्दर्य प्रसाधनों आदि में किया जाता है।

त्वचा को मॉश्चराइज करने में, क्रीम, क्लींजर, साबुन, शैम्पू आदि में एलोवेरा की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। वर्तमान में इसका अधिकांशतः उपयोग कॉस्मेटिक में किया जा रहा है। इसमें पाया जाने वाला सेल्यूलोज तथा कार्बोहाइड्रेट त्वचा की गहराई तक जाकर बैक्टीरिया व तैलीय निक्षेप को हटाते हैं जिससे त्वचा के रोमकूप खुलते हैं और नई कोशिकाओं का निर्माण होता है तथा मृत कोशिकाएँ हट जाती हैं।

इस पौधे के बहुत से लाभदायक प्रभाव पल्प में उपस्थित पॉलीसैकेराइड में समाहित होते हैं। साफ पारदर्शी पल्प, जिसे जैल के नाम से जाना जाता है, का प्रयोग मेडिकल, सौन्दर्य प्रसाधन तथा स्वास्थ्य विज्ञान में किया जाता है। एलोवेरा पल्प पेट के अल्सर के लिये फायदेमंद है। यह पाचन क्रिया को आसान बनाता है। एलोवेरा जैल घाव के भरने में अत्यन्त सहायक है। इसमें ज्वलनशीलता के लिये प्रतिरोधक क्षमता होती है। एलोवेरा में उपस्थित एन्जाइम, कार्बोक्सिपेप्टीडेज व ब्रेडीकाइनेज दोनों ही दर्द में आराम पहुँचाते हैं व ज्वलनशीलता तथा सूजन को कम करते हैं। यह पेन्क्रियाज के कार्य में मदद करता है, पेन्क्रियाज में इंसुलिन का निर्माण नियन्त्रित करता है। अतः यह मधुमेह के मरीजों के लिये भी उपयोगी है।

एलोवेरा में उपस्थित ल्यूपेल, सैलिसिलिक एसिड, सिनैमिक एसिड, फिनॉल, यूरिया, नाइट्रोजन तथा सल्फर जैसे घटक बैक्टीरिया, कवक तथा वायरस की क्रियाविधि को मन्द करने का कार्य करते हैं। यह कीट-पतंगों के काटे हुए घावों, जलन, सूजन, एलर्जी, संक्रमण आदि में भी सहायक है।

दूध के साथ मिश्रित एलोवेरा का जूस किडनी संक्रमण के उपचार के लिये प्रयोग में लाया जाता है। एलोवेरा में उपस्थित तत्व सैपोनिन आहार नलिका की सफाई करता है तथा भूख बढ़ाता है। यह विषैले पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है जिससे पोषक द्रव्य रक्त में अधिक मात्रा में शोषित हो पाता है तथा रक्त शुद्ध होता है।

एलोवेरा दर्दनाशक होने के कारण जोड़ों, माँसपेशियों तथा गठिया के दर्द में भी उपयोगी है। यह कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड, फास्फोलिपिड तथा नॉनएस्टरीफाइड फैटी एसिड के स्तर को कम करता है। यह पेप्सिन का स्राव कर पाचन क्रिया को सुदृढ़ बनाता है व उदरशूल के दर्द में भी राहत पहुँचाता है। यह ल्यूकेमिया में भी अत्यधिक फायदेमंद है। यह कीमोथेरेपी तथा विकिरण के दुष्परिणामों को भी कम करता है। यह रक्त संचार में भी अत्यन्त फादयेमंद है तथा इस प्रकार यह कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपलब्धता में वृद्धि करता है। यह थैलिसीमिया रोगियों के दर्द को कम करने में सहायक है। यह अस्थमा के रोगियों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है। यह जोड़ों तथा मांसपेशियों को स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है जिसके परिणास्वरूप आर्थराइटिस से रक्षा होती है। यह रक्त से ट्राइग्लिसराइड व कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करके हृदय की कार्यशक्ति बढ़ाता है जिससे हृदय से शुद्ध रक्त तेजी से पूरे शरीर में घूमता है।

 

एलोवेरा का रासायनिक संघटन

एन्थ्रक्विनोन

एन्जाइम

सैकेराइड

विटामिन

अकार्बनिक पदार्थ

एमीनो एसिड

विविध

एलोइन/बार्बालोइन

साइक्लो ऑक्सीजिनेज

सेलुलोज

B1

कैल्शियम

लाइसीन

कोलेस्ट्रॉल

आइसोबार्बालोइन

ऑक्सीडेज

ग्लूकोज

B2

सोडियम

ल्यूसीन

सैलिसिलिक एसिड

एलो-इमोडिन

एमाइलेज

मैनोस

B6

जिंक

हिस्टीडिन

ट्राइग्लिसराइड

इमोडिन

कैटालेज

L-रैमनोस

एस्कार्बिक एसिड

मैग्नीज

प्रोलीन

स्टेरॉयड

एलोटिक एसिड

लाइपेज

एल्डोपेन्टोस

α-टोकोफेरॉल

क्लोरीन

थ्रियोनिन

लिग्निन

सिनैमिक एसिड का एस्टर

क्षारीय फॉस्फोरस

 

β-कैरोटिन

मैग्नीशियम

वैलीन

यूरिक एसिड

एन्थ्रानॉल

कार्बोक्सिपेप्टिडेज

 

कॉलिन

आयरन

मेथियोनिन

जिब्रेलिन

इथेरल ऑयल

पैरॉक्सीडेस

 

फॉलिक एसिड

पोटैशियम

फेनिल एलानिन

β-सीटोस्टेरॉल

 

यह एण्टी-ऑक्सीडेण्ट से धनी है जोकि मुक्त मूलकों को उदासीन करता है। परिणामस्वरूप झुर्रियों में भी अत्यन्त लाभदायक है तथा यह उन तत्त्वों को मन्द करने में भी उपयोगी है जिससे बुढ़ापा शीघ्र आता है।

यह चर्म रोग तथा त्वचा विकारों को ठीक करने में भी प्रभावी है। यह घाव, जले-कटे, फफोले सूर्य की किरणों से जली हुई त्वचा, कील-मुहासों आदि के लिये वरदान है। इसके नियमित प्रयोग से मेटाबोलिक प्रक्रिया को बल मिलता है तथा इसमें उपस्थित विटामिन सी अनेक बीमारियों की रोकथाम करता है। एलोवेरा में पायी जाने वाली धातु जैसे- कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम आदि के कारण हृदय में स्नायु बलवान होते हैं। यह लिवर के संक्रमण को भी दूर करता है तथा पीलिया में लाभदायक है। यह सोरॉयसिस, एग्जीमा में अत्यन्त असरदार औषधि है।

एलोवेरा में उपस्थित होने वाले तत्व बालों की जड़ों को किसी भी प्रकार की बीमारी के विरुद्ध प्रतिरोधात्मक शक्ति प्रदान करते हैं जिससे बालों का झड़ना कम होता है तथा यह रूसी को कम करने में भी प्रभावी है।

वर्तमान में शोधार्थी कैंसर व एड्स से बचाव तथा उपचार में एलोवेरा के औषधीय उपयोगों की ओर अग्रसर हैं।

यदि मानव एचआईवी पॉजिटिव हो और वह नियमित रूप से एलोवेरा की एक सीमित खुराक ले तो यह शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाने में मददगार होता है।

गर्भावस्था में एलोवेरा का उपयोग नहीं करना चाहिए।

एलोवेरा में मौजूद एसीमैनन जीवाणुनाशक व कीटाणुनाशक होने के साथ-साथ इसमें एक प्रयोग द्वारा देखा गया है कि यह चूहे की इम्यून कोशिकाओं को उत्तेजित कर कैंसर को मात देने वाला रसायन साइटोकाइन्स को निर्मित कर सकता है।

इस प्रकार, एलोवेरा एक प्राकृतिक औषधि होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिये अत्यन्त उपयोगी भी है।

सम्पर्क सूत्रः


सुश्री रुचि ओमर
रिसर्च स्कॉलर (रसायन विभाग), छत्रपति शाहू जी महाराज विश्विविद्यालय, कानपुर 208024 (उ.प्र.)[मो. : 8090411971; ई-मेल : ruchiomar13@gmail.com]


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