परमाणु विकिरण के संग हम

मानव येन केन प्रकारेण अपने प्रयासों से जो भी पाना चाहता है पा तो लेता है। तब पता लगता है कि ये सुख वास्तव में कितने दुख लेकर आया है और अन्ततः दुख ही रह जाते हैं और सुख विलुप्त हो जाता है। ऐसा ही कुछ जापान में आई सुनामी, भूकम्प और न्यूक्लियर रिएक्टर के विस्फोटों के संदर्भ में कहा जा सकता है। जहाँ सुनामी रोकने के लिए 10 मीटर ऊँचा परकोटा समुद्र किनारे बनाया गया और सुनामी आई 13 मीटर ऊँची और सुख को बहा ले गई। भूकंप निरोधी बिल्डिंग्स होने के बावजूद टेप्को के कूलिंग सिस्टम गड़बड़ा गये परिणाम एक एक कर रिएक्टर में विस्फोट होने लगे और सारी की सारी व्यवस्था प्रकृति के आगे नतमस्तक हो गई।

परमाणु विशेषज्ञों के अनुसार रिएक्टरों के नष्ट हो जाने के ख़तरे से इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि ईधन छड़े फ्यूल राड्स अत्याधिक क्षतिग्रस्त हो गई हैं। विशेषज्ञों के अनुसार चारों क्षतिग्रस्त रिएक्टर अगले दो दिन में अत्याधिक गंभीर स्थिति तें पहुँच जायेगें ऐसे में हवा का रूख बहुत कुछ तय करेगा। यदि हवाए समुद्री दिशा में बहीं, तो ख़तरा टलने की संभावना होगी। जबकि शहर की ओर हवाएँ बहने पर जापान से दर्दनाक खबरें आ सकती हैं। ये विकिरण रूस तक पहुँच गया है। अब जापान के पड़ोसी देश फिलीपींस, ताइवान, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड, मलेशिया तथा हांगकांग में इसका असर फैलने की आशंका है। एशियाई देशों में यहाँ से आयात होने वाली सामग्री की गहन जांच की जा रही है। विशेष रूप से दूध से बने उत्पादों, सब्जियों, मछलियॉ व अन्य खाद्य सामग्री की निगरानी आवश्यक है। लोंगों को यह भी हिदायत दी जा रही है कि अनावश्यक रूप से आयोडीन की गोलियों का सेवन न करें, इसके गैर जरूरी सेवन से शरीर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

भारत समेत पूरे एशिया में एक ईमेल के माध्यम से कतिपय लोगों द्वारा डराने का प्रयास किया। जिसमें कहा गया था कि जापान के फुकुशिमा न्यूक्लियर प्लांट से हुए रेडिएशन लीक के मद्देनज़र एशिया के लोग सावधानी बरतें। जिस एजेंसी के माध्यम से यह ईमेल किया गया था, उसने इस बात का खण्डन किया है। फ़र्जी ईमेल में कहा गया था कि ‘अगर बारिश हो तो घर के अंदर रहे, दरवाज़े खिड़कियॉ बंद कर लें, क्योकि यह बारिश केंसर दे सकती है। हल्क़ी फुहार से भी बचें। गर्दन पर थायराईड एरिया में बीटाडीन लगा लें। अतिरिक्त सावधानी बरतें और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के पास ये ईमेल भेजें।’ अमेरिकी कम्प्यूटर इमर्जेंसी रेडिनेस टीम ने इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से कहा है कि वे ऐसे ईमेल से बचके रहें, हो सकता है कि ऐसे ईमेल के ज़रिये आपके कम्प्यूटर को नुकसान पहुँचाने की कोशिश हो। अफ़वाहों से सावधान रहें।

इस त्रासदी ने परमाणु उर्जा के गंभीर नुकसान के प्रति न सिर्फ आगाह किया है, बल्कि परम्परागत उर्जा स्त्रोतों के विकास को बढाने की दिशा में पुर्नविचार करने का मौक़ा भी दिया है। भारत जैसे देशों में जहाँ परमाणु उर्जा कार्यक्रम का विस्तार होने जा रहा है वहाँ इसकी अहमियत और बढ़ जाती है। परम्परागत उर्जा स्त्रोत के रूप में विंड, हाइड्रल, बायोमॉस और फोटा वोल्टिक जैसे स्त्रोतों का विकास करके जापान जैसी भयावह त्रासदी से बचा जा सकता है। परमाणु उर्जा क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे दौर में जब दुनिया के बाक़ी देश परमाणु उर्जा से बिजली बनाने का विरोध करने लगे हैं भारत में भी वैकल्पिक उर्जा स्त्रोतों पर गंभीरता से विचार होना चाहिए। भारत में मौज़ूदा 20 रिएक्टरों से हमारी 2.7 प्रतिशत उर्जा की माँग की पूर्ति हो पाती है। परम्परागत उर्जा के मुकाबले न्यूक्लियर काफ़ी मँहगा भी है। जबकि परम्परागत स्त्रोतों में प्राकृतिक आपदाओं के समय व्यापक विनाश का ख़तरा भी कम रहता है। ग़ौरतलब है कि अमेरिका ने 1973 के बाद से किसी नए रिएक्टर का आदेश नहीं दिया है। जर्मनी ने भी अपने सभी रिएक्टरों को बंद करने का निर्णय ले लिया है। यही हालात अन्य यूरोपीय देशों की भी है। और रूस मे भी चेरनोबिल हादसे के बाद से परमाणु कार्यक्रम की रफ्तार थम गई है। यह सत्य है कि आमतौर पर इन रिएक्टरों को बहुत सुरक्षित बताया जाता है फिर भी इस तरह की प्राकृतिक आपदा के समय कहीं से भी यह नहीं कहा जा सकता है कि दुनिया में कहीं भी यह पूरी तरह सुरक्षित हैं? साधारण परिस्थितियों में जब सब कुछ सामान्य हो तो इनकी सुरक्षा करना बहुत आसान है पर इस तरह से कोई आपदा आ जाए तो सारी व्यवस्था ही छिन्न भिन्न हो जाती है।

वर्तमान में फ्रांस में 58, जापान में 55, भारत में 20, ब्रिटेन में 19, कनाडा में 18, स्वीडन में 10, बेल्जियम में 7, स्विटज़रलैंड में 5 परमाणु उर्जा संयंत्र हैं। भारत के संदर्भ में बात की जाय तो इस विकिरण के प्रभावों का कोई सीधा असर हम पर नही पड़ने वाला कारण भारत और जापान की दूरी करीब 6000 किलोमीटर है। फुकुशिमा न्यूक्लियर त्रासदी से उत्पन्न रेडिएशन अधिकतम 1000 किमी के बाद निष्प्रभावी हो जायेगें। और हवा की दिशा भी अभी भारत के दूसरी और होने से रेडिएशन का यहाँ तक पहुँचना संभव प्रतीत नहीं होता। भूकंपीय क्षेत्र के हिसाब से भी भारत में इस पैमाने का भूकंप आने की संभावना भी बहुत क्षीण है। हमारे पास 20 रिएक्टरों में से मात्र 2 रिएक्टर ही जापान के परमाणु संयंत्र जैसे हैं जहाँ वाष्पित जल रिएक्टरों का इस्तेमाल हो रहा है। बाक़ी 18 रिएक्टर स्वदेशी दाबित गुरूजल रिएक्टर हैं। जापान जैसे तारापुर के दोनों रिएक्टर की जॉच पूरी कर ली गई है और वैज्ञानिकों के अनुसार किसी भी प्रकार की दुर्घटना की संभावना नहीं है। ये सभी तरह सुरक्षित हैं।

रेडियशन डोज को सीवर्ट में मापा जाता है सामान्यतः एक व्यक्ति औसतन 3.0 एमएसवी (मिली सीवर्ट) प्रति वर्ष सहन कर सकता है। जो कि प्राकृतिक स्त्रोत जैसे कॉस्मिक किरणों के द्वारा उसे प्राप्त होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार 100 एमएसवी तक के लेवल पर कैंसर की शुरूआत होती है। पाँच प्रतिशत घातक कैंसर होने की सभावना 1000 एमएसवी से ऊपर तक के लेवल में पाई जाती है। लेकिन यदि लेवल 1000 एमएसवी से ऊपर तक सिंगल डोज हो जाता है तो ऐसी दशा में उसे चक्कर आना, उल्टी आना, बेहोशी आदि लक्षण तत्काल नज़र आने लगते हैं। 5000 एमएसवी से ऊपर तक के लेवल के सिंगल डोज से प्रभावित व्यक्तियों में से आधे से ज़्यादा व्यक्ति एक माह के भीतर अपनी जान गॅवा देते हैं। सहूलियत के लिए इस डोज के मायने निम्नानुसार हैं।

डॉ. बी. डी. श्रीवास्तव प्रोफ़ेसर, भौतिकी विभाग शासकीय पी जी महाविद्यालय, धार, मध्यप्रदेश- 454001, bdshrivastava@gmail com
 

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