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पर्वत - अमूल्य निधि

हसन जावेद खान


प्रकृति में पर्वतों जैसे आकर्षक व दर्शनीय स्थल कम ही हैं। तैरते हुए बादलों के बीच बर्फ से ढकी हुई ऊंची-ऊंची पर्वतमालाएं मन को मोह लेती हैं। पर्वतों का आकर्षण सदैव अदभुत होता है। देवस्वरूप व पूजनीय पर्वत विस्मयकारी व सौंदर्य से भरपूर होते हैं और सैर-सपाटे के लिए आकर्षित करते हैं। 29 मई 1953 को न्यूजीलैंड के एडवर्ड हिलेरी व नेपाल के तेनजिंग नोरगे ने सर्वप्रथम हिमालय की चोटी माउंट एवरेस्ट पर विजय पताका फहरायी। 29,028 फीट लंबी संसार की यह सबसे ऊंची चोटी है जिसकी विजय किसी के लिए भी गर्व का विषय हो सकती है। हिलेरी ने इसे ”अति सुंदर समरूप हिम शंकु’’ बताया।

10 वर्षों के पश्चात्, 22 मई 1963 में नेशनल जियोग्राफी के छायाकार व भूविज्ञानी बेरी जी. विशप और उनके दल के सहयोगी जो नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी की ओर से आयोजित अभियान के अंतर्गत इस पर्वत शिखर पर पहुंचने वाले प्रथम अमेरिकी नागरिक थे। शिखर पर पहुंचे बेरी विशप उत्साहित तो थे किंतु रास्ते में मिले कचरे के ढेर ने उनको निरुत्साहित भी किया। उन्होंने कहा, ”एवरेस्ट संसार का सबसे ऊंचा कचरा गृह है’’।

माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहण के दौरान फेंके गए उपकरणों, भोजन के खाली डिब्बों, दवाइयां, सिरिंज, प्लास्टिक डिब्बे, कपड़े, कागज, ऑक्सीजन की बोतलें, बिजली के संयंत्र और यहां तक कि मानव शवों का अच्छा खासा भंडार है। किसी भी सफल अभियान के अंतर्गत कोई भी पर्वतारोही टीम अनुमानतः 500 किलोग्राम कचरा छोड़ आती है जिसका बहुत थोड़ा-सा भाग ही सड़-गल पाता है।

एडमंड हिलेरी जो माउंट एवरेस्ट के सर्वप्रथम विजेता थे। उन्होंने एवरेस्ट के बिगड़ते पर्यावरण तथा पर्यटन से शेरपाओं के जीवन व संस्कृति को होने वाली इस क्षति पर अपने विचार व्यक्त किए।

सर क्रिस बोनिंगटन जिन्होंन सन् 1975 में एवरेस्ट के दक्षिण-पश्चिमी भाग वाले अभियान का नेतृत्व किया था, ने कहा कि यह अति सुंदर प्राकृतिक सौन्दर्य कचरे के कारण क्षतिग्रस्त हो रहा है। हमें इस स्थिति से निपटना होगा।

इस विषय में माउंट एवरेस्ट ही अपवाद नहीं है बल्कि अन्य पर्वतों की भी यही समस्या है। उदाहरण के रूप में जापान में प्रतिवर्ष लगभग 2,00,000 लोग माउंट फूजी पर कचरे का ढेर छोड़ आते हैं। पर्वतारोही, ट्रैकर आदि मुख्य रूप से इस कचरे के लिए लगभग पूरी तरह जिम्मेदार हैं। केन नॉगुची 25 वर्ष की आयु में सातों महाद्वीपों के सर्वोच्च पर्वत शिखरों पर विजय पाने वाले सबसे युवा पर्वतारोही थे। वह पर्वत शृंखलाओं पर चढ़ कर सफाई अभियान चलाने में सफल हुए। इसी प्रकार अनेक अभियान संसार के विभिन्न भागों में चलाए जा रहे हैं।

पर्वतीय पर्यटन को ही केवल पर्वतों की पारिस्थितिकी पर दुष्प्रभाव का कारण नहीं माना जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में पर्वतों की पारिस्थितिकी में जो विघटन हुआ है उसके लिए मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियां व अंधाधुंध विकास ही उत्तरदायी हैं। विश्व में अनेक राष्ट्रों की सरकारें पर्वतीय पर्यटन से होने वाली आय पर विचार करके पर्वतों के सीमित संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं। एक ओर वनों को काट कर होटल आदि बन रहे हैं तो दूसरी ओर वन सम्पदा (लकड़ी आदि) का पर्यटकों की सुविधा हेतु ईंधन के रूप में उपयोग करने से पर्वतों का वातावरण दूषित हो रहा है।

पर्वतों का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत नाजुक होता है तथा तापमान में बदलाव भी उसे काफी प्रभावित करता है। जीवाश्म ईंधनों के अंधाधुंध उपयोग के कारण विश्व भर की जलवायु में परिवर्तन हो रहा है जिससे ग्लेशियर यानी हिमनद तेजी से पिघल रहे हैं। इस कारण लाखों लोगों के लिए शुद्ध जल की कमी का खतरा पैदा हो गया है। इसी प्रकार अन्य मानवीय विकास कार्यों जैसे कृषि तथा वनों के विकास हेतु संसाधनों का दोहन भी वायुमण्डलीय ताप को बढ़ाता है।

लेकिन, पर्वतों के वायुमण्डल पर दुष्प्रभाव की हम क्यों अधिक चिंता करें? मानव अनेक शताब्दियों से पर्वतों का दोहन कर रहा है, फिर भी वे मौजूद हैं। संभवतः पर्वतों में स्वंय-निवारक होने की अपार क्षमता है। लेकिन, पर्वतों के पर्यावरण में अब अत्यधिक बदलाव की स्थिति में अनेक पर्वतीय प्रजातियों को परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल होने का समय ही नहीं मिलता हैं। फलस्वरुप अनेक पर्वतीय प्रजातियां नष्ट हो चुकी हैं। इसे भलीभांति समझने के लिए पहले हमें पर्वतों की अनियमित अच्छाइयों के प्रति जागरूक होना चाहिए।

पर्वत ही क्यों?


पर्वतों का पारिस्थितिकी तंत्र वैश्विक रुप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। धरती के कुल क्षेत्रफल का औसतन पांचवां भाग पर्वतों से घिरा है। एशिया का 54 प्रतिशत, उत्तरी अमेरिका का 36 प्रतिशत, यूरोप का 25 प्रतिशत, दक्षिणी अमेरिका का 22 प्रतिशत, आस्ट्रेलिया का 17 प्रतिशत तथा अफ्रीका का 3 प्रतिशत भूभाग पर्वतीय है। कुल मिला कर पृथ्वी का लगभग 24 प्रतिशत भाग पर्वतीय है।

पर्वतों पर विभिन्न ऊंचाईयां पारिस्थितिकी में विविधता लाती हैं जो मानव तथा अनेक प्राणियों तथा वनस्पतियों की शरणस्थली भी बनती हैं। अनेक पशु प्रजातियों का उनके मूल्यवान उत्पादों को पाने हेतु शिकार किया जा रहा है। इसके साथ ही अनेक स्थानिक तथा दुर्लभ प्रजातियां भी पर्वतों पर पाई जाती हैं तथा बहुमूल्य वनस्पतियां भी पर्वतों पर होती हैं जिनका उपयोग खाद्य व औषधि के लिए होता है। अनुमानतः प्रत्येक 10 में से एक मानव पर्वतों पर रहता है। जो मानव समुदाय पर्वतों में बस गए हैं, उन्होंने वहां के निरंतर बदलते हुए पर्यावरण में अपने जीवन को अनुकूल बना लिया है।

पर्वत केवल पर्वतीय लोगों और वहां रहने वाले विविध जीवों की शरणस्थली ही नहीं है अपितु वे अपने आप में अमूल्य प्राकृतिक संपदा समेटे हुए हैं। उनसे मिलने वाले अनेक खनिज पदार्थ, लकड़ी तथा जल नीचे के मैदानों में भी जीवन की आवश्यकता पूरी करते है। चलिए हम विश्व भर के पर्वतों द्वारा हमें दी जा रही बहुमूल्य सेवाओं पर नजर डालें और जानें कि क्यों मानवता के लिए पर्वत इतने महत्वपूर्ण हैं।

जल संपदा


धरती की सतह पर पाए जाने वाले कुल पानी का 80 प्रतिशत भाग पर्वतों में होता है। विश्व की अनेक नदियां पर्वतों से निकलती हैं। पर्वतीय जल संपदा केवल वहां के स्थानीय निवासियों के लिए ही नहीं अपितु धरती की आधी जनसंख्या को भी जल उपलब्ध कराती है।

पर्वतों का जल चक्र में विशेष महत्व होता है। पर्वत वायुमण्डल से आर्द्रता को सोख लेते हैं जो बर्फ या हिम के रूप में बरसती है। यही हिम, वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जल में परिवर्तित होकर औद्योगिक व अन्य कार्यों के लिये उस समय उपलब्ध होता है जब वर्षा कम होती है। इस युग जिसमें कि जल की आपूर्ति सीमित है तथा जल की प्राप्ति के लिये युद्ध की भी संभावना है, पर्वत न केवल पर्यावरण सुरक्षा बल्कि भूराजनैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

ऊर्जा


पर्वत स्थानीय निवासियों के साथ ही निचले मैदानी क्षेत्रों के लिए भी अपार ऊर्जा के भंडार हैं। पर्वतों में मुख्य रूप से जल ऊर्जा, ईंधन हेतु लकड़ी, सौर तथा पवन ऊर्जा प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।

पर्वत जल-विद्युत् ऊर्जा का मुख्य स्रोत है जिसका उपयोग मैदानी भागों में अधिक होता है। प्राचीन काल से पनचक्की का उपयोग पर्वतीय क्षेत्रों में ऊर्जा प्राप्ति विशेषकर आटा पीसने के लिए होता रहा है। नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों में अनुमानतः 25,000 पन चक्कियां तथा 900 से अधिक विद्युत् चालित पन चक्कियों का उपयोग कृषि संबंधी कार्यों हेतु ऊर्जा प्रदान करने में होता है। यह जल ऊर्जा उन विशेष भागों में ऊर्जा का स्रोत बन अर्थव्यवस्था का विकास करती है जहां प्रर्याप्त जीवाश्म ईंधन उपलब्ध नहीं होता है।

लकडी ईंधन, पर्वतों पर ही नहीं अन्य निचले स्थानों व शहरों में भी अत्यन्त उपयोगी है। जैवईंधन (मुख्यतः लकड़ी) पर्वतों के वनों से ही प्राप्त होते हैं। लकड़ी ईंधन का निरंतर उपयोग पर्वतों के वनोन्मूलन का कारण बन मुख्य रूप से हिमालय की तराई के क्षेत्र में पर्वतों पर मृदा का कटाव भी करती है।

धातु व खनिज


प्रकृति के जिन कारणों ने पर्वतों को लाखों वर्षों पूर्व स्थापित किया उन्होंने ही पर्वतों में धातु, खनिज तथा अन्य मूल्यवान पत्थरों को भी वहां संजोया। आज पर्वत शृंखलाएं अपने गर्भ में संसार के मुख्य भंडार के रूप में अनेक खनिज तथा धातुएं जैसे स्वर्ण, तांबा, लोहा, चांदी, जस्ता आदि को समेटे हुए है। तकनीकी विकास तथा मांग के अनुसार और अधिक मात्रा में पर्वतों के गर्भ से यह बहुमूल्य भंडार निकाला जा रहा है।

जैव विविधता


प्रायः ऊंची पर्वत शृंखलाओं की जलवायु ठंडी व वहां भोजन सीमित होता है। इसलिए वहां पर पशुओं तथा वनस्पतियों की कम प्रजातियां ही मिलती हैं। पर्वत उच्चस्तरीय जैव विविधता लिए अनजान टापू की तरह होते हैं जिनमें से अनेक में मनुष्य की दखलंदाजी नहीं हो पायी है। पर्वत अनेक पशुओं तथा वनस्पतियों के शरणस्थल बने हुए हैं, जिनका निचले क्षेत्र में मानव के अंधाधुंध विकास ने नष्ट कर दिया है।

किसी भी पर्वतीय क्षेत्र पर ऊंचाई अथवा तापमान के अनुसार विभिन्न पारिस्थितिकी क्षेत्र होते हैं। कहीं पर घने जंगल, कहीं पर कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हिम नदी पायी जाती है। किसी भी पर्वत के नीचे से ऊपर की ओर जाने पर विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां मिलती हैं। निचले स्थानों पर वनस्पति का पाया जाना पर्वत की स्तरीय जलवायु पर निर्भर करता है। निचले क्षेत्र में प्रायः चैड़ी पत्ती के वृक्षों के वन मिलते हैं जबकि थोड़ा ऊपर के ढलानों पर सुई नुमा पत्ती के आकार के वृक्ष (चीड आदि) पाए जाते हैं। और अधिक ऊपर जाने पर अत्यधिक ठंडे जलवायु क्षेत्र में केवल कुछ ही प्रकार की घास हो पाती है। पर्वतों के शिखर पर वनस्पति नहीं पायी जाती है तथा कोरे चट्टानी शिखर केवल बर्फ से ढके रहते हैं।

पर्वतों पर अनेक दुर्लभ पशु-प्रजातियां देखने को मिलती हैं। उदाहरण के रूप् में रवान्डा तथा युगांडा के ज्वालामुखी पर्वतों पर संसार के कुछ बचे हुए (लगभग 300) पर्वतीय गौरिल्ला पाए जाते हैं। विलुप्तप्राय हिम तेंदुए भी बर्फीली पहाडि़यों में अपने शिकार आइबेक्स व टाहर के साथ पाये जाते हैं। इसी प्रकार अनेक शानदार पक्षी जैसे कि सुनहरी बाज, गिद्ध, एल्पायन स्विफ्ट, दाढ़ी वाला गिद्ध आदि भी वहां अपने शिकार पीका तथा मारमोट के साथ पाये जाते हैं। वहां के स्थानीय पशुओं ने अपने को यहां की विषम परिस्थितियों के अनुकूल बना लिया है। इनमें से अनेक पशुओं की रोएंदार खाल होती है। पर्वतीय भेंड़ व बकरियों के पतले व फुर्तीले पांव उनको फिसलन भरी चढ़ाइयों पर चढ़ने में सहायक होते हैं।

सदियों से अलग-अलग रहने के कारण विशेष प्रजाति के पशु एक विशेष पर्वत शृंखला के क्षेत्र में ही रहते हैं। ऐसी कई प्रजातियां है जो पर्वतीय पारिस्थितिकी के लिए स्थानिक होती हैं।

जलवायु


पर्वतों में वायु तथा बादल को विभिन्न ऊंचाई के क्षेत्रों में पहुंचाने की विशिष्ट प्रवृत्ति होती है। वे निकटतम मैदानी क्षेत्रों में भी जलवायु को प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। हिमपात के समय मैदानी क्षेत्रों में शीत लहर आ जाती है। पर्वतों की जलवायु को ऊर्ध्वाधर रूप में विभिन्न उप-क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। पहाड़ी के नीचे के क्षेत्र में उष्ण जलवायु होती है जहां घने जंगलों का साम्राज्य होता है तो चोटियों पर सिर्फ बर्फ होती है।

कुछ स्थानों पर पर्वत वर्षा को रोक देते हैं जिसके परिणामस्वरुप पर्वत के एक ओर वर्षा हो सकती है और पर्वत के दूसरी ओर रेगिस्तान जैसा वर्षाविहीन भाग हो सकते हैं। सामान्य पर्वतों पर मैदानी स्थानों के विपरीत नमीयुक्त जलवायु होती है। पर्वत विश्व स्तर पर भी जलवायु में परिवर्तन करने में सक्षम होते हैं। पृथ्वी के निरन्तर घूमने तथा कोरिऑलिस बल के कारण अधिकतर वायु पूर्व से पश्चिम के बीच बहती है। परिणामस्वरूप उत्तर-दक्षिणीय पर्वत शृंखलाएं वायु का मार्ग बदलने में सक्षम होती है। सामान्यतः कुछ वायु पर्वतों से ऊपर उठकर स्थानीय ऋतु में परिवर्तन कर देती है किन्तु उत्तर दक्षिण पर्वतीय स्थिति निश्चय ही पूर्वोत्तर हवाओं का मार्ग बदलने में सफल होती है।

रॉकी पर्वत शृंखलाएं जो उत्तरी अमेरिका के पश्चिम में स्थित हैं, वायु को उत्तर दिशा में मोड़ देती हैं, जो दक्षिण की ओर अग्रसर होने से पहले धु्रव प्रदेश को ठंडा करती हैं। उत्तर-पश्चिमी ठंडी हवाएं अमेरिका व कनाडा की जलवायु पर प्रभाव डालती हैं और फलस्वरूप शरद ऋतु को बहुत ठंडा कर देती हैं।

सांस्कृतिक विविधता


विश्व पर्वतों की विशेष भूस्थिति ने सांस्कृतिक विविधता को जन्म दिया है। इसके फलस्वरूप पर्वतों पर मैदानी क्षेत्रों से अलग ही एक सभ्यता दिखाई देती है। पर्वतीय जन-जातियों ने अपनी पौराणिक संस्कृति को सुरक्षित रखा है और इसीलिये वहां पर वास्तु कला, जनजातीय संस्कृति, स्थानीय कलाओं व अंधविश्वास को कोई भी देख सकता है। स्थानीय लोगों को वहां की पारिस्थितिकी का अद्भुत ज्ञान होता है।

अनुमानतः संसार की जनसंख्या के 12 प्रतिशत लोग पर्वतों पर रहते हैं। इसमें से लगभग आधी (46 प्रतिशत) आबादी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित पर्वतीय भागों में रहते हैं। हाल में हुए अनुसंधानों के अनुसार लगभग 1.48 अरब लोग (संसार की जनसंख्या का लगभग 26 प्रतिशत भाग) पर्वतों पर अथवा उनसे बहुत निकट रहता हैं। पर्वतों की ऊंचाई बढ़ने के साथ ही जनसंख्या का घनत्व भी कम होता जाता है। विश्व के अल्पसंख्यक भी बहुतायत से पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं।

पर्यटन व मनोरंजन


हममें से अनेक पर्वतों पर छुट्टियां बिताना पसंद करते हैं। पर्वतों की सुन्दरता, स्वस्थ जलवायु, अलौकिक दृश्य, स्थानीय संस्कृति, सादगीभरा जीवन, तथा शीत खेलों के लिए उचित स्थान व अवसर, पर्वतों को पर्यटन व आमोद-प्रमोद का विशेष स्थान बनाते हैं। स्कीइंग, हाइकिंग, बर्फ व चट्टानों पर साहसिक अभियान, पक्षियों की अमूल्य प्रजातियों के दर्शन आदि पर्वतों के आर्कषण को विशेष रूप से बढ़ाते हैं।

पर्वतीय पर्यटन किसी भी राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका रखता है। वैश्विक पर्यटन उद्योग का 15-20 प्रतिशत (70-90 अरब अमेरिकी डालर) पर्वतीय पर्यटन से संबधित होता है। संसार में लगभग 6.5-7 करोड़ लोग शीत खेलों में भाग लेते हैं (2 करोड़ अमेरिकी, 1.4 करोड़ जापानी, 2.5 करोड़ यूरोपीय इसमें शामिल हैं)। विश्व पर्यटन संस्थान के अनुसार सन् 2010 तक लगभग 1 अरब लोग शीत खेलों में भाग लेने पर्वतों पर पहुचेंगे तथा इससे 1,500 अरब अमेरिकी डालर का राजस्व प्राप्त होगा।

भारत के पर्यटन पर एक दृष्टि डालना आवश्यक है। गंगोत्री जो भारत का एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान हैं वहां प्रति वर्ष 3,000 पर्वतारोही तथा कुली 30,000 पैदल यात्रा अभियान करने वाले तथा 3,00,000 तीर्थ यात्री पहुंचते हैं।

महत्वपूर्ण विशेषताएं


संसार की कुल भूमि का 27 प्रतिशत भाग पर्वतीय वातावरण वाला होता है जो 22 प्रतिशत जनसंख्या को आश्रय देता है। असंख्य लोग जो नीचे के क्षेत्रों में रहते हैं, पर्वत उनको अप्रत्यक्ष रूप से अपनी अविरल सेवा जैसे जल, ऊर्जा, लकड़ी, आमोद-प्रमोद, मनोरंजन तथा जैव विविधता के संरक्षण की सुविधा प्रदान करता है। निश्चित रूप से यह सब पर्वतों की सुंदरता व उनके आलौकिक दृश्यों की छटा को और अधिक बढ़ाते हैं तथा सैलानियों को निरंतर उत्साहित करते हैं। हिम से ढकी हुई पर्वतीय चोटियां सदैव हिम खेलों को तथा नीचे के क्षेत्र ट्रैकिंग को उत्साहित करते हैं। जैसा कि हमने जाना है कि पर्वत भूमण्डलीय पारिस्थितिकी को संतुलित करने में भी सहायक होते हैं।

लेकिन इन महान पर्वतों की रचना किस प्रकार होती है? हमने पर्वतों का मानवता के प्रति योगदान को समझ लिया है अब यह जानना महत्वपूर्ण है कि इन विशाल पर्वतों की रचना किस प्रकार हुई?

अन्य स्रोतों से:




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बाहरी कड़ियाँ:
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विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia):




संदर्भ:

विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित पुस्तक 'पर्वतों पर संकट' से साभार

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