पर्वत की पीर

9 Sep 2018
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हिमालय पर संकट
हिमालय पर संकट

हमारे पौराणिक ग्रंथों में वर्णित महज एक घटना से पर्वतराज हिमालय की देश-दुनिया के लिये महत्ता का अन्दाजा लगाया जा सकता है। त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के भाई लक्ष्मण और असुर राज रावण के बेटे मेघनाद के बीच हुए युद्ध में लक्ष्मण वीरघातिनी शक्ति से मूर्छित हो गए। तब लंका के सुषैण वैद्य ने बताया कि इनकी मूर्छा दुनिया में सिर्फ एक ही बूटी से ठीक हो सकती है, जो यहाँ से उत्तर दिशा में हिमालय पर्वत पर मिलेगी। तब इस संजीवनी बूटी ने लक्ष्मण को नया जीवन दिशा था। आज ये हिमालय भारत सहित दुनिया के कई देशों के करोड़ों लोगों को जीवन दे रहा है। इंसानी सभ्यता का संवाहक-संरक्षक बना हुआ है। इसकी गोदी से निकलने वाली सैंकड़ों नदियों से दुनिया की पेयजल समस्या खत्म हो रही है।

ये नदियाँ मैदानी भागों को धन-धान्य से लहलहाती आगे बढ़ती हैं। करोड़ों लोग प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका के लिये इन पर आश्रित हैं। सदियों से इंसानी सभ्यता में हो रहे बदलाव का यह मूक साक्षी आज खुद बदलाव के दौर से गुजर रहा है। तेजी से पिघल रहे इसके हिमनद मानो अश्रुधारा से इसकी पीड़ा बताना चाह रहे हों। पर्वतराज की पीर कोई नहीं सुन रहा है। समाज से लेकर सरकार तक मानो गहन मूर्छा से ग्रसित हो चले हैं। हिमालाय का बिगड़ रहा पारिस्थितिकीय सन्तुलन बड़ी विपदा के लिये बार-बार आगाह कर रहा है। आज हिमालय दिवस है। पिछले कई वर्षों से यह दिन इसीलिये मनाया जा रहा है कि पर्वतराज की पीर दुनिया को सुनाई पड़े। जिसकी भी भलाई में हिमालय का रत्ती भर भी योगदान है वे हिमालय की इस मूक पुकार को अभियान बनाने का आज ही संकल्प लें।

जीवन का आधार

कल्पना कीजिए, हिमालय न होता तो क्या होता? पड़ोसी देश से बचाने के लिये एक सजग प्रहरी की तरह तैनात यह पर्वत अपने आप में जीवन का आधार है। इसके ग्लेशियर, इसकी नदियाँ, वनस्पति, जैव विविधता भारत में सतरंगी जीवन का आधार तैयार करते है। अब ये खतरे में है। इसके प्राकृतिक रूप-स्वरूप को नष्ट किया जा रहा है। इसके ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। जैव विविधता नष्ट हो रही है। ऐसे में इस पर्वत सम्पदा को सहेजने की जिम्मेदारी हम सबकी है।

जैवविविधता का धनी

जियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इण्डिया की ताजा रिपोर्ट डायवर्सिटी अॉफ इण्डिया हिमालय बताती है कि भारतीय क्षेत्र के हिमालय का रकबा देश के कुल क्षेत्रफल में 12 फीसद है। देश में जितनी भी जीव प्रजातियाँ पाई जाती हैं, उनमें 30.16 फीसद हिस्सेदारी हिमालय क्षेत्र की है। देश में कुल 100762 जीव प्रजातियाँ हैं, इनमें 30377 प्रजातियाँ-उपप्रजातियाँ सिर्फ हिमालयी क्षेत्र में रहती हैं। इनमें 280 स्तनधारी, 940 पक्षी, 316 मत्स्य, 200 सरीसृप और 80 उभयचर प्रजातियाँ हैं। देश की कुल कशेरुकी जैवविविधता में इसकी हिस्सेदारी 27,6 फीसद है।

ऐसे बना हिमालय धरती की छत तिब्बत को भारतीय उपमहाद्वीप के मैदानी भागों से अलग करने वाली यह पर्वतमाला इण्डियन टेक्टॉनिक प्लेट का यूरेशियन प्लेट से टकराहट के बाद बनी। 2400 किमी विस्तार वाली इस पर्वत शृंखला में 50 से अधिक ऐसी चोटियाँ हैं जो 7200 मीटर से ज्यादा ऊँची हैं। दुनिया की आठ हजार मीटर से ऊँची 14 चोटियों में से आठ यहीं हैं।

विस्तार

देश के छह राज्यों (जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश) में यह फैला है। भौतिक संरचना, जलवायु और पारिस्थितिकी-जैविक पहचान के आधार पर भारतीय क्षेत्र के हिमालय को दो हिस्सों में बाँटा जाता है। ट्रांस हिमालय और हिमालय। पूरा क्षेत्रफल 3.95 लाख वर्ग किमी में फैला हुआ है।

खतरे में प्रजातियाँ

जियोलॉजिकल सर्वे अॉफ इण्डिया की ताजा रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र के 133 कशेरुकी जीवों पर खतरा मंडरा रहा है। वे इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन अॉफ नेचर की लाल सूची में हैं। 43 स्तनधारियों पर गम्भीर खतरा है। पक्षियों की 52 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा है।

जीवनदायिनी नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ मुख्य रूप से दो बड़ी नदी प्रणाली बनाती हैं।

सिंधु नदी बेसिन

हिमालय के पश्चिम से निकलने वाली नदियाँ सिंधु नदी बेसिन में मिलती हैं। कुछ सहायक नदियों के साथ तिब्बत से निकलकर उत्तर-पश्चिम की ओर बहते हुए भारत से पाकिस्तान जाती है बाद में अरब सागर में मिल जाती है। हिमालय के दक्षिणी ढलान से निकलने वाली झेलम, चेनाब, रावी, ब्यास और सतलज इसकी सहायक नदियाँ हैं।

गंगा ब्रह्मपुत्र बेसिन

इसकी मुख्य नदी गंगा, ब्रह्मपुत्र और यमुना के साथ अन्य सहायक नदियाँ हैं। पश्चिमी तिब्बत से ब्रह्मपुत्र का उद्गम होता है। 2525 किमी लम्बी गंगा, गंगोत्री ग्लेशियर से निकलती है। देश की 43 फीसद आबादी इसके प्रवाह क्षेत्र में निवास करती है। करीब दो दर्जन सहायक नदियों के साथ यह राष्ट्रीय नदी करोड़ों लोगों की आजीविका का स्रोत है।

ग्लेशियर

दुनिया में अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद तीसरा सबसे बड़ा हिम भण्डार है। करीब 15 हजार ग्लेशियर हैं। इनमें 12 हजार घन किमी जल संरक्षित है। हालांकि पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के चलते गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं जो चिन्ता का विषय है।

झीलें

हिमालय क्षेत्र में सैकड़ों झीले हैं। ज्यादातर बड़ी झीलें मुख्य पर्वत शृंखला के उत्तर में हैं। कैलाश पर्वत के पास मानसरोवर झील ताजे पानी की ऐसी ही झील है जो 410 वर्ग किमी में फैली है।

मानसून के लिये अहम

अपने विशालकाय आकार-प्रकार से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले मानसून को रोककर देश के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश कराता है।

उपजाऊ मिट्टी

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ खनिज और उपजाऊ मिट्टी लाकर मैदानी भागों में जमा कर देती हैं। इसीलिये इसे दुनिया का सबसे उपजाऊ मैदान का तमगा हासिल है।

बिजली का उत्पादन

हिमालायी क्षेत्र में कुछ स्थानों पर प्राकृतिक झरनों से तो कुछ जगह बाँध बनाकर बिजली जरूरतें पूरी हो रही हैं। पूरे क्षेत्र में करीब 600 बड़े बाँध हैं। चूँकि ये पूरा क्षेत्र भूकम्प के प्रति बेहद संवेदनशील है और बनाए जा रहे बाँध बड़े भूकम्पों को सहने की क्षमता नहीं रखते हैं, लिहाज आपदा कभी भी हो सकती है। कई पनबिजली योजनाएँ तो बिना पर्यावरणीय जोखिम के आकलन के सिरे चढ़ रही हैं।

औषधीय और दुर्लभ वनस्पतियाँ

वनाच्छादित यह क्षेत्र देश की लकड़ी की जरूरतें तो पूरी ही कर रहा है साथ ही औषधीय गुणों वाले आज भी लोगों की मूर्च्छा दूर कर रहे हैं।

मंडराता खतरा

हिमालय के कुल रकबे में 17 फीसदी हिस्सेदारी उसके ग्लेशियरों की है। तभी इसे तीसरे ध्रुव के नाम से जाना जाता है। यहाँ के विशाल बर्फ भण्डार पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा मँडराने लगा है। इससे जुड़ी पर्वतराज पर दोहरी मार पड़ रही है। पहला तो ग्लोबल वार्मिंग से यहाँ के ऊँचाई वाले क्षेत्रों का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। एक अध्ययन के मुताबिक मध्य हिमालय में 1977 से 2000 के बीच प्रति दशक 0.6 डिग्री सेल्सियस के हिसाब से तापमान बढ़ा है। तिब्बती पठार पर ल्हासा का औसत तापमान पिछले तीन दशक में 1.35 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। दूसरा खतरा भारत और चीन में लकड़ी या अन्य चीजों को जलाने से उत्पन्न उत्सर्जन हिमालयी ग्लेशियरों की सतह को ऊष्मा अवशोषक बना रहे हैं। लिहाजा ये तेजी से पिघल रहे हैं। उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के पिघलने से महासागर का जलस्तर बढ़ रहा है। जबकि इन ग्लेशियरों के पिघलने से करोड़ो लोगों की आजीविका पर सीधा संकट है जो इसकी सदानीरा नदियों पर आश्रित हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2070 तक इन ग्लेशियरों का रकबा 43 फीसद सिकुड़ जाएगा। इससे एशिया में बहने वाली दस बड़ी नदियाँ क्षेत्र के विकास पर प्रतिकूल असर डालेंगी। हालांकि संयुक्त राष्ट्र के ग्लोबल वार्मिंग पर अन्तर सरकारी पैनल ज्यादा भयावह तस्वीर उकेरता है। आशंका जताता है कि 2035 तक ही हिमालय के ग्लेशियर खत्म हो सकते हैं। अनियमित मानसून से हिमस्खलन, भूस्खलन और बाढ़ जैसी विपदाएँ बढ़ी हैं।


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