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पर्वतों की सुरक्षा

हसन जावेद खान


पर्वतों को पृथ्वी की जलवायु का बैरोमीटर (वायुदबाव को आंकने का यंत्र) कहते हैं। बिगड़ते पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट रूप से पर्वतीय पारिस्थितिकी में देखा जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार पर्वत की पारिस्थितिकी नाजुक तथा अति भंगुर होती है क्योंकि पर्वत प्राकृतिक संसाधन तथा मानव संसाधन के भी स्रोत हैं।

यह तो विदित ही है कि मानव द्वारा पर्वतों के संसाधनों का अंधाधुंध दोहन, वनोन्मूलन, खनिजों की अत्यधिक खुदाई, जल का दुरुपयोग, अत्यधिक पर्यटन आदि ने वहां के पर्यावरण को तो क्षति पहुंचाई ही है साथ ही वहां की क्षेत्र-विशेष की वनस्पतियां आदि भी लुप्त होने के कगार पर जा पहुंच गई है।

आकस्मिक तथा भयंकर रुप से होते जलवायु परिवर्तन अवश्य ध्यान आकर्षित करते हैं। दुर्लभ जीव-जन्तु, वनस्पति के लुप्त हो जाने से लेकर ग्लेशियर के पिघलने तक के मूल परिवर्तन ऊपर तथा नीचे के भागों में जल के भंडारों को निश्चय ही प्रभावित करते हैं। जलवायु में परिवर्तन मानव द्वारा पर्वतों के अतिदोहन का ही परिणाम है जो पर्वतों की पारिस्थितिकी पर भी दुष्प्रभाव डालता है। जल के संसाधन पर किसी भी प्रकार का प्रभाव निश्चित रूप से पीने अथवा कृषि कार्य हेतु जल की उपलब्धता तथा गुणवत्ता पर आघात करता है। जल की यह कमी पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय निवासियों के बीच स्पर्धा का कारण बन जाती है। स्थानीय लोग अपने अन्य संसाधनों के अभाव के कारण जल की आपूर्ति से एक सीमा तक वंचित रह जाते हैं और संसाधनों के विकास की दौड़ में पीछे रह जाते हैं।

पर्वतीय क्षेत्र धरती की सतह का लगभग 24 प्रतिशत भाग होता है, जबकि संसार की एक चैथाई जनसंख्या पर्वतीय क्षेत्रों (पर्वत तथा आस-पास) में रहती है। यह विचार योग्य है कि पूरे विश्व के पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 50 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं (जो पर्वतीय क्षेत्रों के निवासियों की आबादी की 80 प्रतिशत है)। संसार के अनेक राष्ट्र पर्वतों में बसे लोगों की शोचनीय दशा से चिंतित हैं और इस सम्बन्ध में चिन्ता का मुख्य विषय पर्वतीय पारिस्थितिकी ही है। जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि स्थानीय लोग पारिस्थितिकी पर नियंत्रण रखने में निपुण थे लेकिन उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक स्थितियां के बिगड़ने से उन्होंने अपनी पर्वतीय पारिस्थितिकी पर ही नियंत्रण खो दिया है।

पर्यावरण में जिस तीव्रता से परिवर्तन हो रहे हैं उसके अनुसार पर्वत भी अपने आप को अनुकूल नहीं बना पाते हैं। पर्वतीय संसाधनों का और अधिक दोहन केवल पर्वतों के लिये ही नहीं अपितु समूचे विश्व के लिए भी भारी क्षति है। यदि पर्वतों का अस्तित्व बनाए रखना है और उनके अथाह संसाधनों का दीर्घकाल तक उपयोग करना है तो निश्चय ही कुछ ठोस निर्णय लेने होंगे।

जिस विवेकहीनता से पर्वतों को निरावृत किया जा रहा है तथा जिसके फलस्वरुप एक अति सुन्दर पारिस्थितिकी का विघटन हो रहा है, उसे अति महत्वपूर्ण मानते हुए दुनिया के अनेक संस्थान व संगठन रोकने के लिए प्रयत्नशील हैं। पिछले कुछ वर्षों में कुछ ऐसे अनेक कदम उठाए गये हैं जो पर्वतों के विघटन को रोकने तथा उसके मूल रूप को फिर से वापस लाने में सहायक होंगे। इनमें से कुछ संस्थानों के प्रयत्न व कार्यक्रमों की रूपरेखा की यहां चर्चा की गई है।

एल्पाइन समझौता


यह सात विभिन्न यूरोपियन एल्पाइन राष्ट्रों स्विटजरलैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, आस्ट्रिया, लिचेटनस्टेन, स्लोवेनिया एवं यूरोपियन यूनियन के संयोग से एल्प्स पर्वत श्रृंखलाओं की रक्षा हेतु एक सामूहिक प्रयत्न है। इसके अनुसार एल्प्स पर्वत का अस्तित्व व उसकी अखंडता किसी विशेष राज्य की सीमा में निर्धारित न होकर अनेक राज्यों का ही सामूहिक क्षेत्र है। इस समझौते पर सन् 1991 में हस्ताक्षर हुए व 6 मार्च 1995 में यह कार्यान्वित हुआ। इस समझौते के अनुसार एक ऐसा आयाम तलाशना होगा जो पारंपरिक तथा आधुनिक विश्व के बीच सामंजस्य रखकर एल्प्स पर्वतों के अस्तित्व की रक्षा कर सके। यह समझौता पारंपरिक रीतियों तथा आधुनिक विश्व की बदलती हुई आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व पर्यावरण की स्थिति के बीच संतुलन बनाए रखने हेतु महत्वपूर्ण प्रयास है।

यूनेप पर्वतीय योजना (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण योजना)


संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण योजना के अनुसार पर्वतों के संरक्षण के लिए एक पर्वतीय योजना की संरचना यूनेप की एक समिति, वल्र्ड कन्जर्वेशन मोनीटरिंग सेंटर (UNEP-WCMC) द्वारा निर्धारित की गई है, जिसका कार्य पर्यावरण से संबंधित अनेक जानकारियां प्राप्त करना, उनका विश्लेषण करना तथा उचित परामर्श देना है। यूरोप तथा मध्य एशिया की राज्य सरकारों के प्रार्थना पर ‘यूरोपियन पर्वतीय कार्य योजना’ की स्थापना की गई। यह कार्य योजना कार्पेथियन, कोकासस तथा मध्य एशिया की पर्वत श्रृंखलाओं की रक्षा हेतु नामांकित की गई है।

यूनेप विश्व संरक्षण निगरानी केन्द्र अपने अन्य सहयोगियों के साथ कार्य कर रहा है जिससे पर्वतीय पारिस्थितिकी के विषय में सभी संभावित जानकारियां उपलब्ध हो पाएं। इस केन्द्र ने पर्वतों तथा उनके वनों का एक विश्व मानचित्र तैयार किया है जो प्रस्तावित पर्वतों की विश्व एटलस के लिए आधारभूत सामग्री उपलब्ध कराएगा। यह केन्द्र अब ‘पर्वत निगरानी’ विकसित करने की दिशा में अग्रसर है जो एक मानचित्र आधारित पर्वतों की जैव विविधता तथा प्रबंधन की प्राथमिकता का वैश्विक सिंहावलोकन होगा। पर्वत निगरानी तथा पर्वत एटलस प्रक्रियाओं के फलस्वरुप उत्सर्जित सामग्री को यूनेप की वेबसाईट न्छम्च्ण् दमज पर डाला जाएगा।

यूनेप की योजना समिति (UNEP-WCMC) नेपाल में प्रकृति संरक्षण हेतु ‘किंग महेन्द्र ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन ऑफ नेपाल’ के साथ कार्य कर रही है और इस उद्देश्य में वहां की स्थानीय जातियां भी सुरक्षित क्षेत्रों के प्रबंधन में सहयोग कर रही हैं। इस परियोजना से प्राप्त लाभकारी सूचनाएं अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के कल्याण के लिये उपयोग में लाई जाएंगी।

पर्वतीय मुद्दे और टिकाऊ खेती व ग्रामीण विकास


यह परियोजना खाद्य एवं कृषि संगठन द्वारा गठित है तथा इसका उद्देश्य टिकाऊ कृषि एवं ग्रामीण विकास (सार्ड) के साथ पर्वतीय विकास के अस्तित्व की रक्षा करना है। इस परियोजना द्वारा पर्वतीय क्षेत्र के कृषि तथा ग्रामीण विकास की अनेक समस्याओं का निवारण सुसंगठित नीतियों, अनेक यंत्रों तथा योजनाओं द्वारा करना निर्वाचित हुआ है। टिकाऊ कृषि एवं ग्रामीण विकास और पर्वतीय मुद्दों के कार्य कर रही लिए संयुक्त राष्ट्र की अग्रणी संस्था खाद्य तथा कृषि संगठन (एफएओ) ने स्विटजरलैंड सरकार के सहयोग से पर्वतीय क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि एवं ग्रामीण विकास के लिए चार वर्षीय बहु-दाता योजना (सार्ड-एम) तैयार की है।

सार्ड-एम परियोजना में कृषि तथा ग्रामीण विकास के अस्तित्व के लिये नीतियों की रुपरेखा बनाना, कार्यान्वित करना तथा साथ ही उसका मूल्यांकन करना शामिल है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत चिन्हित क्षेत्रों के ग्रामीणों की जीविका को सुधारने के लिये संगठित नीतियों, विधि-विधान तथा संस्थानों की आवश्यकता है। यह नीतियां पर्वत क्षेत्र तथा निचले भागों के लोगों की कृषि, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्र की विशेष समस्याओं पर विचार करती हैं।

पर्वतीय फोरम


यह एक प्रकार का भूमंडलीय स्तर का मंच है जिसमें 100 से अधिक राष्ट्रों से लाखों लोग, अनेक संगठन, विभिन्न पेशों से जुडे़ हुए लोग एक निश्चित उद्देश्य के लिये कार्य करते हैं। इसके अन्तर्गत विद्युत् संचार प्रणाली द्वारा पर्वत संरक्षण की सूचनाएं प्राप्त करते हैं तथा अपनी समस्याएं रखते हैं। इस मंच से जुड़े हुए संगठन पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर निवारण के लिये प्रस्तुत करते हैं। पर्वत फोरम के इस तंत्रा का आरंभ, कुछ समर्पित पर्वतीय विद्वानों द्वारा सन् 1970 में किया गया था। इस समूह को ‘पर्वतीय कार्य निवारण’ (माउंटेन एजेंडा) नाम से जाना गया है, और 1992 के विश्व शिखर सम्मेलन के अन्र्तगत ‘रियो डी जेनरो’ में इस विषय पर चर्चा हेतु अनेक संगठनों के प्रसिद्ध वक्ता भी शामिल हुए थे। इसके पश्चात् अनेक गैर-सरकारी संगठन भी इस कार्य में सम्मिलित हो गए। इस प्रकार इस मंच का एक स्पष्ट उद्देश्य के लिये विकास होता गया।

पर्वतीय कार्यक्रम एजेंडा


इस प्रकार एक कार्यक्रम या एजेंडा औपचारिक रूप से अनेक देशों के कुछ विद्वानों तथा पर्वतीय मित्रों द्वारा प्रारम्भ हुआ, अब वह भूमंडलीय स्तर पर स्वीकृत नीति के रूप में उजागर होकर पर्वतीय क्षेत्र की रक्षा एवं पर्वत के पर्यावरण को और बिगड़ने से रोकने के लिये कटिबद्ध है। यह समूह भूमंडलीय विकास और पर्यावरण कार्यक्रम के साथ पर्वतों की स्थिति को सुधारने के लिए आयोजित रियो पृथ्वी सम्मेलन (1992 में पर्यावरण और विकास के आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) से पहले बनाया गया था। इस समूह का उद्देशय स्वच्छता और पर्वतों के विकास के लिए समर्थन जुटाना था। इस कार्यक्रम को पर्वतीय ज्ञान बैंक भी कहा गया।

पर्वतों के समेकित विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र (International Centre for integrated mountain development)


यह केन्द्र पर्वतीय क्षेत्र की विस्तृत जानकारी, ज्ञानवर्धन तथा हिमालय की पर्वतीय जनजातियों की जीविका के अस्तित्व को बनाए रखने के लिये बना है। यह अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र हिन्दू कुश-हिमालय क्षेत्र के 8 विभिन्न राष्ट्रों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान तथा विश्व के समस्त पर्वतीय जातियों के हित में कार्य करता है। सन् 1983 में स्थापित इस केन्द्र का संचालन अपने राष्ट्र मित्रों के सहयोग से नेपाल के काठमांडू शहर से होता है। यह केन्द्र अपने क्षेत्रीय सदस्य राष्ट्र, संगठनों तथा आर्थिक सहायता देने वाले संस्थानों के सहयोग से पर्वत के लोगों तथा वहां के पर्यावरण को सुखद भविष्य देने के लिये कटिबद्ध है।

पर्वतीय अनुसंधान पहल (Mountain Research Initiative)


इसकी स्थापना जुलाई 2001 में वैश्विक तथा पर्वतीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों के आवश्यक अनुसंधान हेतु की गई। इसका आशय वैश्विक परिवर्तन विशेष रूप से पर्वतीय पारिस्थितिकी, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र पर होने वाले प्रभावों का बहुमुखी आकलन तथा अनुसंधान करना है। इस अनुसंधान पहल का निम्न उद्देश्य हैः

(1) पर्वतों पर वैश्विक पर्यावरण परिवर्तनों के प्रभाव के संकेत ग्रहण करने की योजना विकसित करना है।

(2) पर्यावरणीय बदलाव के पर्वतों तथा निचले स्थानों पर होने वाले दुष्प्रभाव, जो पर्वतीय क्षेत्र के स्रोतों को प्रभावित करते हैं उनको परिभाषित करना।

(3) पर्वतीय क्षेत्र की भूमि, जल एवं संसाधन प्रबन्धन के बारे में उचित प्रस्ताव व परामर्श देना।

पर्वतीय मेघ-वन-पहल


पर्वतों के मेघ वनों में अद्वितीय पेड़-पौधे तथा अनेक दुर्लभ पशुओं की प्रजातियां मिलती हैं। इन वनों के संरक्षण हेतु अनेक अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों ने आई यू सी एन, यूनेप तथा उसके विश्व संरक्षण निगरानी केन्द्र तथा यूनेस्को की साझेदारी में पर्वतीय मेघ-वनों कोसंरक्षण देने के लिये एक पहल की है जिससे पर्वत तथा निचले भागों में रहने वाले स्थानीय लोग मेघ वन, दुर्लभ पौधों तथा जन्तुओं की विशेष प्रजातियों को संरक्षण देने तथा जल की आपूर्ति को भली-भांति समझ सके। यह पर्यावरणीय बदलाव के अति संवेदनशील सूचक हैं ।

पर्वतीय संस्थान


इस संस्थान का जन्म सन् 1972 में अमेरिका के वाशिंगटन डी.सी. में हुआ। इसके पर्वतीय जातियों के हितों से सम्बन्धित कार्यक्रम हेतु विभिन्न कार्यशालाएं एन्डीन, एल्पेचियन तथा हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में स्थापित किये गए हैं। यह संस्थान स्थानीय पर्वतों के जनजातियों के सहयोग से उनकी सांस्कृतिक विरासत, उनकी विशिष्ट पहचान व उनके प्राकृतिक स्त्रोतों को संरक्षण देने एवं सुदृढ़ बनाने के लिये कार्य करता है।

भूमंडलीय पर्वतीय जैव विविधता का मूल्यांकन


यह एक भूमंडलीय नेटवर्क है जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्वतों की जैव विविधता पर अनुसंधान करती है। यह फ्रांस राष्ट्र के पेरिस शहर में कार्यरत है। यह नेटवर्क पर्वतों की जैविक धरोहर की खोज करता है। यह संस्था पर्वतीय धरती के विकास हेतु कार्य करती है तथा नीति विशेषेज्ञों को पर्वतीय जैव विविधता को बनाए रखने तथा संरक्षण देने के लिये परामर्श देती है।

पर्वतों का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष


संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा ने सन् 2002 को पर्वतों का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया था। इसके अन्तर्गत पर्वत तथा उसके निचले क्षेत्रों की जनजातियों को पर्वतों की धरोहर के महत्व को समझाना, वहां के विकास को गति देना तथासंसाधनों को संरक्षण देना सम्मिलित है। साथ ही साथ पर्वतों के पारिस्थितिकी के बारे में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्पूर्ण जानकारी देना भी सम्मिलित है। इस पूरे कार्यक्रम-वर्ष के अन्तर्गत अनेक राष्ट्रों ने भाग लिया व अपने सुझाव दिये। इस दौरान विश्व के पर्वतों की विशेषताओं की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए अनेक कार्यक्रम भी किए गए।

करगिस्त गणतंत्र द्वारा 29 अक्टूबर से 1 नवम्बर, 2002 को आयोजित ‘बिशकेक वैश्विक पर्वत शिखर सम्मेलन’ पर्वतों का अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष अभियान की सफलतम पराकाष्ठा रही। बिशकेक सम्मेलन में अनेक सरकारी व गैर-सरकारी संगठनों, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों तथा अनेक विद्वानों ने भाग लिया तथा पर्वतों के संरक्षण के विषय में जानकारी जुटाई। इस सम्मेलन के मंच से विभिन्न राष्ट्रों की सरकारों तथा अन्य विद्वानों द्वारा पर्वत के लोगों की जीविका में सुधार, पारिस्थितिकी की सुरक्षा तथापर्वतीय संसाधनों का उचित उपयोग के बारे में उचित जानकारी प्राप्त की गई। पर्वतीयवर्ष-2002 के समापन पर अनेक दस्तावेज तथा टिप्पणियों को आगामी वर्षों में पर्वतों पर संरक्षण हेतु कार्य करने का मार्गदर्शक माना गया।

पर्वतों पर कार्य हेतु वैश्विक कार्यक्रम


यूनेप, संयुक्त राष्ट्र की पर्वतीय समिति तथा खाद्य कृषि संगठन एक अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी/भूमंडलीय कार्यक्रम की संरचना के लिये प्रयत्नशील है जो पर्वतीय विकास के लिये कार्य करेगी। जर्मनी ने इस भागीदारी में साथ देकर एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है।

कार्य श्रम का पर्वतीय जैव विविधता कार्यक्रम


अपनी सातवीं गोष्टी में विभिन्न भागीदारी में जैव विविधता कार्यक्रम को कार्यान्वित करने का निश्चय किया गया था। इस कार्यक्रम में जैव विविधता के संदर्भ में तीन मुख्य विषय प्रस्तुत किये गए जिनके अनुसार सन् 2010 तक स्थानीय, क्षेत्रीय तथा भूमंडलीय स्तर पर जैव विविधता की क्षति को कम किया जायेगा। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत पर्वतीय पारिस्थितिकी की सुरक्षा और पर्वत तथा निचले स्थानों पर रहने वाले लोगों के संसाधनों को सुदृढ़ करना है। निश्चित रुप से संसाधनों की सुदृढ़ता पर्वत की स्वस्थ पारिस्थितिकी पर निर्भर करती है। यह कार्यक्रम जैव विविधता से सम्बंधित अनेक समस्याओं पर प्रकाश डालता है।

जैव विविधता के पर्वतीय क्षेत्र में महत्वपूर्ण स्थान, पारिस्थितिकी विविधता, स्थान विशेष की प्रजातियां, पौधे, पशु तथा उनकी वनीय अनुवांशिक विविधताएं, जनजातियों की सांस्कृतिक विविधताएं, वहां के स्थानीय लोगों का जैव विविधता को संरक्षण देने में योगदान तथा मानव तथा प्रकृति द्वारा पर्वतीय पारिस्थितिकी की भंगुरता, विभिन्न उपयोगों के लिये धरती का बार-बार दोहन करना, ग्लेशियर का सिकुड़ना, जमीन का ऊसर बन जाना, पर्वत के ऊपरी तथा नीचे के क्षेत्रों में पारिस्थितिकी पर प्रभाव विशेष रूप से ऊपरी क्षेत्र का, जो खाद्यान्न, जल तथा अन्य संसाधनों की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

पर्वतीय साझेदारी


पर्वतीय साझेदारी एक स्वेच्छा से लिया गया मैत्राीपूर्ण साहचर्य है जो पर्वतों के पर्यावरण की सुरक्षा तथा वहां के निवासियों के जीवन-स्तर सुधारने के लिये निरंतर प्रयत्नशील है। इस साहचर्य की स्थापना सन् 2002 के पर्वतीय विकास के अस्तित्व की रक्षा हेतु आयोजित शिखर सम्मेलन में हुई थी तथा उसका मुख्य उद्देश्य पर्वत के बारे में महत्वपूर्ण सूचनाओं को एकत्रित करना, समाधान, पर्वतीय संसाधनों का आकलन तथा उनकी विविधता के बारे में अपने साझेदारों को अवगत कराना तथा उनके इस कार्य को करने के लिये प्रोत्साहित करना है। मौजूदा समय में इस साझेदारी में 47 विभिन्न राष्ट्र, 15 अंतर्राष्ट्रीय संगठन तथा 76 अन्य सहयोगी सम्मिलित हैं (उदाहरण के लिए नागरिक संस्थाएं, गैर सरकारी संगठन तथा निजी क्षेत्र) ।

पर्वत के विषय को भूमंडल स्तर पर प्राथमिकता देते हुए इस साझेदारी ने उन्हीं सब विषयों को आगे बढ़ाया है जिसकी समीक्षा 1992 में ‘रियो’ में हुए ‘पृथ्वी शिखर सम्मेलन’ में हुई थी। इस साझेदारी ने पर्वत के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष 2002 में पर्वत पर्यावरण तथा वहां के लोगों के जीवन यापन सम्बन्धी विषयों पर शिखर सम्मेलनों में प्रस्तुत की गई जानकारियां, समस्याओं तथा उनके समाधानों को सुधार हेतु आगे बढा़ने में एक नई दिशा दी है।

पर्वतों का रुदन


पर्वतों में जैविक विविधता में होती निरंतर कमी तथा वहां की पारिस्थितिकी में आए परिवर्तनों ने समूचे विश्व के वैज्ञानिक तथा विद्वानों को इन समस्याओं के प्रति विशिष्ट दायित्व निभाने के लिये प्रोत्साहित किया है तथा यह भी सुनिश्चित कर दिया है कि निकट भविष्य में पारिस्थितिकी में अवनति न हो।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पर्वतों के संसाधनो की सुरक्षा, टिकाऊ विकास, संरक्षण तथा उनसे हुई लाभकारी कार्ययोजनाओं का उचित आवंटन एक चुनौती बन चुका है। पर्वतों की जैव विविधता तथा पारिस्थितिकी का निरंतर होते ह्रास पर नियंत्रण रखने के लिये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्राथमिकता देनी होगी। हमें भी पर्वतीय क्षेत्रों के स्थानीय समुदायों एवं उनके तौर-तरीकों व पारंपरिक ज्ञान को सम्मान, संरक्षण देते रहना होगा।

आधुनिकीकरण तथा विकास की अंधाधुंध प्रक्रियाएं, पर्वतों के संसाधनों का उपयोग या कहें कि दुरुपयोग जैसे पर्यटन, खनिज पदार्थों की खुदाई के लिये लाइसेंस आदि गतिविधियों से पर्वत के स्थानीय लोगों को कोई विशेष लाभ मिलता नहीं तथा ऐसी घटनाओं से उनकी संस्कृति का भी ह्रास हो चला है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक सरकारें, गैर-सरकारी संगठन तथा अन्य संस्थाओं को एकजुट हो कर पर्वतों में रहने वाले स्थानीय लोगों के हित में छोटी-छोटी विकासशील इकाइयों की स्थापना करनी होगी जिसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय जातियों को संरक्षण, उनकी प्रगति तथा उनका आर्थिक संवर्धन करना होगा। पर्वतीय पर्यटन आदि से संबंधित ऐसी नीतियां बनानी होगी जिससे संसाधनों से हुई आय को संसाधनों को ही अधिक सशक्त बनाने हेतु उपयोग में लाया जा सके।

पर्वतों को प्रदूषण से बचाने के लिए वहां पर गन्दगी व कूडे को फैलने से रोकना होगा। जो कूडा-करकट नष्ट हो सकता है उसे वहीं पर नष्ट करना उपयोगी होगा तथा जो नष्ट नहीं हो सकता जैसे शीशा, टीन, बैट्ररी आदि उसे वहां से हटाना ही हितकर होगा।

इसके अतिरिक्त बढ़ते भूमंडलीय तापमान पर भी विचार करना होगा। वैज्ञानिकों के अनुसार आंधी-तूफान, सूखा तथा अन्य मौसम सम्बन्धी आपदाएं भूमंडलीय तापीकरण का ही परिणाम हैं। इस विषय पर जलवायु-परिवर्तन की विशिष्ट जानकारी व आंकड़े तथा दूरगामी भविष्यवाणियां नीति विशेषज्ञों का उचित मार्गदर्शन कर सकती है।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्वतों की अत्यंत नाजुक व भंगुर पारिस्थितिकी जो निश्चय ही क्षीण हो कर टूटने के कगार पर है, आगे नियंत्रित रहे व फिर से अपनी सुदृढ़ स्थिति में पहुंच सके। पर्वत हमें कृषि के लिये व जल-विद्युत् परियोजनाओं की स्थापना के लिए पर्याप्त जल उपलब्धता के साथ पेयजल की आपूर्ति में सहायक होने के साथ दुर्लभ किस्म की फसलों, अन्य खाद्य सामग्री की पैदावार, दुर्लभ औषधियां की खेती हेतु अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के साथ खेल-कूद व आमोद-प्रमोद के लिए आने वाले पर्यटकों को प्राकृतिक सौन्दर्य से आनंदित करने जैसे अनेक उपहार दे सकते हैं।

लेकिन आज पर्वत निश्चय ही आहत हैं। उनका वर्चस्व संकट में है। यह शक्ति स्वरूप पर्वत अपने अपूर्व सौन्दर्य के साथ निश्चय ही अपना सीना ताने अपनी विशालता का परिचय देते हुए हमारे समक्ष खड़े हैं - लेकिन कहीं अंदर तक कमजोर, आहत और हमारी ओर देख रहे हैं - अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये क्या हम अपने ही विनाश के लिये उनकी उपेक्षा करेंगे ?

अन्य स्रोतों से:




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बाहरी कड़ियाँ:
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