पर्यावरण और अन्तरानुभागीयताः भारत में पर्यावरण की गुणवत्ता पर जल और स्वच्छता नीतियों का प्रभाव

27 Jan 2020
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जल ही जीवन है - भाग 4

जहाँ पर्यावरण की गुणवत्ता के भाग के रूप में सुरक्षित पेयजल को लम्बे समय से स्वस्थ जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण माना जाता है वहीं दूसरी ओर भारत में स्वच्छता की बेहतर सुविधा को हालिया समय में सुरक्षित पेयजल के प्रावधान प्रदान करने के लिए आवश्यक माना गया है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लोग खुलेम  शौच और खराब ढंग से निर्मित शौचालय के कारण अपने वातावरण में मल के सम्पर्क में आते हैं जिससे मल संचारित संक्रमण (एफटीआई) की आशंका होती है। असुरक्षित जल आपूर्ति, अपर्याप्त स्वच्छता और स्वच्छता व्यवहार को बच्चों में लगभग 88 प्रतिशत डायरिया से होने वाली मौतों का जिम्मेदार कहा जा सकता है। 2017 में, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अनुमान लगाया कि वैश्विक स्तर पर पांच से कम उम्र के 5,25,000 बच्चों की मृत्यु डायरिया की बीमारी के कारण हुई, जिनमें से भारत में 1,17,000 बच्चों की मृत्यु पांच वर्ष से कम उम्र में हुई। इसलिए, पर्यावरण की गुणवत्ता और लचीलापन उतना ही अच्छा है जितनी कि स्थाई और प्रभावी स्वच्छता और सुरक्षित जल प्रावधानों में निवेश।

ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रणाली, जिसमें मल पंक प्रबंधन और जल निकासी शामिल हैं, पर्यावरण में मल संदूषण की बेहतर रोकथाम के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह सतत विकास लक्ष्य 6 के अनुरूप है, जिसके लिए सुरक्षित रूप से प्रबंधित जल और स्वच्छता हासिल करने के लिए ऐसी नीतियों की आवश्यकता होती है जो ऐसी संरचनाओं पर अधिक निवेश करते हैं जो केवल शौचालय और जल की आपूर्ति प्रदान करने से परे जाने क प्रयास करती हैं; उन्हें सकारात्मक, दीर्घकालिक, परिणामों को सुनिश्चित करने के लिए समुदाय और व्यक्तिगत स्वामित्व को प्रोत्साहित करना चाहिए।

जल आपूर्ति और स्वच्छता पर नीतियां

2019 ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता आंदोलन के लिए एक महत्त्वपूर्ण वर्ष रहा है। स्वच्छ भारत मिशन की 2 अक्टूबर की समय सीमा के बाद 2019-29 राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता रणनीति का आरम्भ, जल जीवन मिशन, और संशोधित यूनिफॉर्म वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल स्टैंड-अलोन नीतिगत निर्णय नहीं हैं, बल्कि समग्र और एकीकृत रणनीति के अच्छी तरह से सोचे विचारे भाग हैं जो सब एक तक पहुंच प्रदान करेगी और निर्धनतम आबादी के समावेश को बढ़ावा देगी। यदि इन नीतियों में नीचे दी गई सिफारिशों को शामिल करकते हुए संमिलित रूप से लागू किया जा सकता है, तो इनमें संसाधन प्रबंधन कार्यप्रणालियों और पर्यावरण गुणवत्ता की स्थिति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने की अपार सम्भावनाएं हैं।

पुनः संयोजन (रेट्रोफिटिंग) और अपशिष्ट प्रबंधन में निवेश

2014 में एसबीएम-जी के आरम्भ के बाद से, ग्रामीण क्षेत्रों में 10 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए हैं; 5.9 लाख से अधिक गांवों, 699 जिलों और 35 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने खुद को खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया है। 10 साल की ग्रामीण स्वच्छता रणनीति (2019-29) का लक्ष्य ओडीएफ-प्लस की परिकल्पना को साकार करना है, जो स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के तहत व्यवहार परिवर्तन को बनाए रखने, स्वच्छता सुविधाओं का सर्वत्र उपयोग, नए घरों को शामिल करना और साथ ही प्रभावी ठोस और तरल अपशिष्ट के निपटारे पर केन्द्रित है।

भारत में समस्त स्वच्छता कार्यक्रम में निर्मित शौचालय मुख्यतः तीन प्रकार के है: सिंगल  लीच पिट, ट्विन लीच पिट और सेप्टिक टैंक। एकल गड्ढों को रेट्रोफिटिंग की जरूरत होती है- या तो जगह देखते हुए इसे ट्विट पिट में परिवर्तित किया जाए, ताकि समय के साथ मानव उत्सर्जन पूरी तरह से सड़ जाए और कृषि उपयोग के लिए बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं से मुक्त ठोस खाद में बदल जाए या समय-समय पर गड्ढा खाली करने का प्रावधान किया जा सके।

इसी तरह, किसी भी परिस्थिति में सेप्टिक टैंक से निकलने वाले अपशिष्ट को बिना शोधन के खुली नाली या जल स्रोत में प्रवेश नहीं करने देना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि अधिकांश सेप्टिक टैंकों के डिजाइन दोषपूर्ण हैं जिनको मल-मानव उत्सर्जन सहित घरेलू और समुदाय के तरल अपशिष्ट जमा करने के लिए प्रयोग किया जाता है। कुछ सेप्टिक टैंक खुले नालो, खेतों और नदियों से जुड़े पाए जाते हैं। ये जल, मिट्टी और कुछ कृषि उत्पाद को दूषित करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। सेप्टिक टैंक की स्थापना के लिए भारतीय मानक कोड के अनुसार, सेप्टिक टैंक का असंतोषजनक डिजाइन, निर्माण और रखरखाव स्वास्थ्य के लिए खतरे का कारण बनता है।

इसलिए सम्बन्धित अधिकारियों के मार्गदर्शन के लिए न्यूनतम मानकों का निर्धारण आवश्यक माना जाता है। ओडीएफ प्लस पहलों के इस पड़ाव पर, एकल लीच पिट शौचालय और सेप्टिक टैंक दोनों चुनौतीपूर्ण होंगे जहाँ तक मल पंक और सेप्टेज प्रबंधन (एफएसएसएम) और घरेलू और सामुदायिक दोनों स्तरों पर टॉयलेट यूनिटों की उपसंरचना के प्रबंधन की अधिक आवश्यकता है। उपयुक्त सेप्टिक टैंक अंतिम निपटान से पहले सीवेज के एक प्रारम्भिक शोधन का प्रावधान रखते हैं जो जल स्रोतों और मिट्टी की रक्षा करके पर्यावरण के नुकसान को घटाता है।

जल जीवन मिशन का गठन और सभी घरों में पाइप जल आपूर्ति की व्यवस्था

जल शक्ति मंत्रालय ने मार्च 2019 में जल जीवन मार्गदर्शन नोट जारी किया, जो बताता है कि देश में ग्रामीण परिवारों का केवल 18.33 प्रतिशत (3.27 करोड़) ही है जो पाइप जलापूर्ति से जुड़ा हुआ है। वर्तमान अनुमान पर चर्चा की जा रही है कि लगभग 14.60 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं जिन्हें 2024 तक जल जीवन मिशन के माध्यम से 55 लीटर प्रति व्यक्ति की दर से घरेलू नल कनेक्शन की आवश्यकता होगी।

घरेलू नल कनेक्शन के वर्तमान 18 प्रतिशत से 100 प्रतिशत कवरेज का इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कुशल लोगों के पर्याप्त और आनुपातिक पूल का गठन, संस्थागत मजबूती, युक्तिपूर्ण योजना, कार्यस्थल पर सत्यापन सहित लगातार निगरानी, सहायक पर्यवेक्षण, और स्थानीय स्तर पर समुदाय के सदस्यों की भागीदारी आवश्यक है। एफएचटीसी प्रदान करने के लिए कुछ प्रमुख पूरक गतिविधियों जैसे मौजूदा पीडब्ल्यूएस योजनाओं को पूरा करना और पुनः संयोजित करना; सेवा स्तर को 40 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन से बढ़ाकर 55 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन करना; मौजूदा स्रोत की वृद्धि; विश्वसनीय पेयजल स्रोत विकास; धूसर जल प्रबंधन; और एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन, कार्यान्वयन एजेंसियों के लिए प्रमुख कार्य जितना महत्त्वपूर्ण होगा।

जल गुणवत्ता परीक्षण और निगरानी का मानकीकरण

जल गुणवत्ता परीक्षण एक ऐसा साधन है जिसका सर्वत्र उपयोग सुरक्षित पेयजल की पहचान करने के लिए किया जाता है, चाहे वह स्रोत हो, पाइप वितरण प्रणाली के भीतर हो, या उपभोक्ताओं के उपयोग स्थल पर हो। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पेयजल की आपूर्ति की सुरक्षा को सतत रूप से सुनिश्चित करने का सबसे प्रभावी साधन एक व्यापक जोखिम मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन प्रणाली का उपयोग है, जिसमें जल आपूर्ति के सभी चरणों, जलग्रहण स्रोत से लेकर उपभोक्ता तक सभी का समावेश है। सुरक्षित पेयजल सुनिश्चित करने के महत्व को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने मार्च 2019 में संशोधित यूनिफॉर्म ड्रिकिंग वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग प्रोटोकॉल प्रकाशित किया। यह प्रोटोकॉल विचारोत्तेजक है और प्रभावी रूप से जल गुणवत्ता परीक्षण, निगरानी और चौकसी रखने में राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के मार्गदर्शन में सलाहकार की भूमिका निभाता है। प्रोटोकॉल में ग्राम पंचायत स्तर पर फील्ट टेस्ट किट का उपयोग करके जल की गुणवत्ता की निगरानी, जल परीक्षण प्रयोगशालाओं में पुष्टिकरण जांच और जल की गुणवत्ता निगरानी का विस्तृत विवरण है। इसका उद्देश्य जोखिम का पता लगाने के लिए तहकीकात करना जिससे उन कारणों को जाना जा सके और उनका विश्लेषण किया जा सके जो सीधे या अवांछित पर्यावरणीय परिस्थितियों के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

निष्कर्ष

जबकि देश को खुले में शौच की प्रथा से मुक्त घोषित किया गया है, लेकिन मल पंक और सेप्टेज प्रबंधन पर निरन्तर नजर रखने की आवश्यकता है, क्योंकि इसके बिना पेयजल की गुणवत्ता और सुरक्षा बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। साथ ही रुक-रुक कर जल की आपूर्ति और पाइपों और उनके बाहरी परिवेश के बीच जल के दबाव में निरन्तर परिवर्तन से उपजने वाली सम्भावित चुनौतियों पर नजर रखना भी महत्त्पूर्ण है।

कुल मिलाकर, जल जीवन मिशन या ग्रामीण समुदायों के लिए किसी भी अन्य कार्यक्रमों की सफलता सुनिश्चित करने के लिए, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में ग्राम पंचायतों और ग्राम जल और स्वच्छता समितियों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है। यह आने वाले वर्षों में हासिल उपलब्धियों के स्वामित्व और स्थिरता को सुनिश्चित करेगा, और एक बार समुदाय किसी कार्यशील प्रणाली के महत्व से लाभान्वित होते हैं तो वे संचालन और रखरखाव के प्रयासों में निवेश करने के लिए अधिक इच्छुक होंगे और ऐसा सबके लिए अनिवार्य होगा। इसलिए, यह महत्त्वपूर्ण है कि सभी स्तरों पर सरकारें स्थानीय नेताओं और प्रतिनिधियों के साथ मिलकर काम करें, जो इस कार्य के अग्रणी पैरोकार के रूप में स्थापित होते हैं और जिनके कारण संसाधनों के बीच बेहतर तालमेल लाया जा सकता है और अधिकतम परिणाम हासिल हो सकते हैं।

 

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