पर्यावरण मंत्रालय चुप क्यों है ?

उत्तराखंड की समस्याओं पर केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की दृष्टि उतनी कठोर नहीं है, जितनी अन्य राज्यों पर। हरियाणा में पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने रेणुका बाँध पर काम रुकवा दिया, क्योंकि वहाँ पेड़ों के कटान का स्थानीय लोग विरोध कर रहे थे। उत्तराखंड में चमोली जिले की पिंडर घाटी में बन रही देवसारी जल विद्युत परियोजना का दो वर्षों से अनवरत विरोध हो रहा है। उसका संज्ञान पर्यावरण मंत्रालय ने नहीं लिया। केदारनाथ घाटी में बन रही दो जल-विद्युत परियोजनाओं, सिंगोली-भटवाडी तथा फाटा-ब्योंग के विरोध की भी सरकार में कोई सुनवाई नहीं हुई। केदारघाटी में इन योजनाओं का विरोध करने वाले दो आंदोलनकारियों, सुशीला भंडारी तथा जगमोहन झिंक्वाण, को लगभग दो माह तक जेल में रखने के बाद अभी-अभी रिहा किया गया है।

इन स्थानों पर नदियों का पानी रोकने के लिये बैराज (बाँध) बनाए जा रहे हैं, जब कि विश्व भर में बाँधों का विरोध हो रहा है। विश्व बाँध विरोधी दिवस, मार्च 14 को इन तीनों परियोजनाओं के विरोध में जगह-जगह प्रदर्शन तथा सभाएँ की गईं। 1894 के सरकारी भू अधिग्रहण कानून की प्रतियाँ जलाई गईं। अंग्रेजी समय के इस कानून के तहत ही सरकार द्वारा 16 गाँवों की भूमि का अधिग्रहण कर उसे कंपनियों को दिया गया है।

देवसारी परियोजना की जन सुनवाई का पिंडर घाटी की जनता ने तीन बार, 13-10-2009, 22-07-2010 तथा 20-01-2011 को, बहिकार किया था। भूस्वामी संगठन तथा पिंडर घाटी बचाओ आंदोलन द्वारा लगभग तीन वर्षों से किया जा रहा यह विरोध लगातार जारी है। इसमें पैठाणी, पैनगाड़, सुनाऊँ, देवलगाड़, सूना, थराली, चौपडू, नंदकेशरी, इछोली, हथकल्याणी, तलाउर, पदमल्ला, कोठी, धौड, खिरकोट, अठ्ठू, बोरागाड़, चौड, कुन्नीपर्था, मिलखेत, सोरीगाड़, सभाद, थर्मलछोटिंगा, लौसरीबान, मंडोली, खेस, बलाड़, पिनाऊँ, बख, हर्मी, उलंघ्रा, टुडरी, सौरीगाड़, हर्मी, कोठा इत्यादि प्रभावित गाँवों के लोग भाग ले रहे हैं। 252 मेगावाट की इस परियोजना, जिस पर 1,351. 33 करोड़ रुपए खर्च होंगे, को सतलज जल विद्युत निगम बना रहा है। इस परियोजना में पिंडर नदी का पानी ले जाने 17.903 किमीलंबी तथा 6.90 मीटर चौड़ी सुरंग बनेगी। इसके लिए कम्पनी 195.2555 हेक्टे. वन भूमि माँग रही है, जबकि उसे सरकार द्वारा अधिग्रहण की गई 15 गाँवों की भूमि भी मिल चुकी है। जिन लोगों की भूमि ली गई है उनका पुनर्वास कहाँ होगा यह अभी तय नहीं किया गया है। कहा जा रहा है कि इस योजना को पर्यावरण मंत्रालय की स्वीकृति नहीं मिली है, तब भी कंपनी ने उस पर काम आरंभ कर दिया है।

यह भूकंपीय क्षेत्र है और यहाँ सिंगोली गाँव में कई बार भूकंप आ चुके हैं। पिंडर नदी का पानी रोकने के लिए 27.5 किलोमीटर लंबी झील बनाने का काम शुरू भी हो गया है, जिससे जंगल, पानी के सोते तथा भूमि दूषित हो रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह योजना पिंडर घाटी का विनाश कर देगी। इसीलिये लोग जन सुनवाइयों में नहीं जा रहे हैं। यह सुनवाइयाँ प्रशासन ने पुलिस की देखरेख में करवाई हैं।

गढ़वाल में सबसे पहले बने टिहरी बाँध के झगडे़ की अभी तक समाप्ति नहीं हुई है। पिछले वर्ष सितंबर में भारी वर्शा के कारण टिहरी बाँध का जलस्तर समुद्र तट से 832 मीटर ऊँचा कर दिया गया था। टी.एच.डी.सी. का कहना था कि जलस्तर नहीं बढ़ाया गया तो हरिद्वार तक के नगरों को खतरा हो जाएगा। जलस्तर बढ़ाए जाने से भागीरथी के किनारे के गाँवों में भूमि दरकने लगी और ग्रामीण मुआवजे की माँग करने लगे। कंपनी ने इस माँग से हाथ झाड़ लिये। लेकिन मार्च 30 को उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार तथा टी.एच.डी.सी. यह तय करें कि वे किस प्रकार इस नुकसान की भरपाई करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त से पहले ही न्यायालय इस समस्या का समाधान चाहता है। उसने दोनों पक्षों से यह भी पूछा है कि भागीरथी के किनारों की भूमि को दरकने से बचाने के लिए क्या वे हरित पट्टी का विकास करेंगे ? बाँध क्षेत्र में अन्य क्या विकास होगा ? झील बनने पर पानी की शुद्धता को कैसे बचाए रखा जाएगा ? गाँवों को पीने का पानी देने तथा सिंचाई की क्या व्यवस्था होगी ? नागरिक सुविधाएँ, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, बाज़ार, यातायात, के लिए क्या उपाय किए जाएँगे ?

श्रीनगर तथा देवप्रयाग के बीच प्रस्तावित कोटली भेल-1 बी परियोजना को पर्यावरण अपील अथॉरिटी से स्वीकृति नहीं मिली थी। इसे नेशनल हाइड्रो पावर कॉरपोरेशन बनाने वाला था। कंपनी उस परियोजना को बनाने के लिए पुनः प्रयासरत है और वह इज़ाज़त पाने के काम पर फिर से लग गई है। अलकनंदा पर देवप्रयाग के बाद बन रही कोटली भेल-2 पर काम जारी है।
 

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