पर्यावरण प्रदूषण और हृदय रोग


खतरनाक स्तर पर वायु प्रदूषणजीवन दो तरह के वातावरण में फलता-फूलता है। अभ्यान्तरिक वातावरण जिससे हमें खाने के लिए भोजन और सांस लेने के लिए हवा मिलती है और आंतरिक वातावरण यानी शरीर की भीतरी रचना जो जीवन के लिए आवश्यक हमारी विभिन्न चयापचयी क्रियाओं को कोशिकीय और माइटोकोंड्रियल स्तर पर नियन्त्रित करती है। सकल रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य को इस तरह परिभाषित किया है: ‘‘भौतिक, मानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति निरोग और शक्तिशाली होने को ही अनिवार्यत स्वास्थ्य नहीं कहा जा सकता’’, (होने को) वायु प्रदूषण सहित वातावरण में अन्य गड़बड़ी होने पर उसका स्वास्थ्य, विशेष रूप से हृदय पर बुरा असर पड़ता है।

यह जरूरी नहीं है कि हृदय रोग ‘जीन्स’ का उपहार हो। यह अधिकांशतः पर्यावरण सम्बन्धी कारणों से होता है। इनमें शामिल हैं: (1) वायु प्रदूषण (2) पोषाहार सम्बन्धी कारण-पोषाहार की कमी और अधिकता दोनों, और (3) मनो-सामाजिक व्यवहार जैसे कि शत्रुता और नकारात्मक भावनाएँ जैसे कि क्रोध, लालच, अनुचित इच्छाएँ, भौतिक आसक्ति और जीवन की दैनिक चुनौतियों से कुसमंजन।

मनो-सामाजिक कारण और व्यक्ति की सामान्य आदतें जैसे कि अधिक पोषाहार, धूम्रपान एवं स्थानबद्ध जीवनशैली चक्रीय हृदय रोग और उच्च रक्तचाप को जन्म देते हैं। अत्यधिक भीड़-भाड़ के वातावरण में रहने और पोषाहार के अभाव में आमवातिक ज्वर और संधिवातीय हृदय रोग होता है। भारत में अब भी इस वर्ग के रोग अधिक होते हैं। इधर देश के समृद्धि वर्ग में उच्च रक्तचाप और चक्रीय हृदय रोग भी खूब होने लगे हैं। वातावरण सम्बन्धी कारणों पर नियन्त्रण रखकर और भोजन, पानी और हवा की शुद्धता की ओर ध्यान देकर हृदय रोग सम्बन्धी अनेक समस्याओं से निपटा जा सकता है।

चिकित्सा के जनक हिप्पोक्रेट्स (ईसा से छह शताब्दी पूर्व) ने स्वास्थ्य में वातावरण की भूमिका पर जोर देकर ठीक ही कहा था, ‘‘जो कोई भी चिकित्सा पद्धति का अध्ययन भली-भाँति करना चाहता है उसे इस प्रकार चलना चाहिए: उसे पहले वर्ष भर के मौसम.... पानी.... धरती एवं लोगों के रीति-रिवाज और काम-धंधे पर ध्यान देना चाहिए। क्या वे अधिक भोजन करना और शराब पीना पसन्द करते हैं, अथवा आराम का जीवन बिताने के अभ्यस्त हैं या फिर कसरत और शारीरिक श्रम के शौकीन हैं?”

वातावरण और जीवन के आपसी सम्बन्ध पर इसी तरह का भाव गुरुनानक (1469-1539) ने इन पंक्तियों में प्रकट किया है: ‘‘पवन गुरू, पानी पिता, माता धरती मुहत; दिविस रात दोइ दाइ देआ खेले सगल जगत’’ (हवा ईश्वर के समान है, पानी पिता के समान है और धरती माता है। इन तीनों महत्त्वपूर्ण उपादानों की सुसंगत अन्योन्यक्रिया पर समस्त विश्व कायम रहता है)।

एक व्यक्ति बिना भोजन किए तीन सप्ताह और बिना पानी पिए तीन दिन तक जीवित रह सकता है लेकिन बिना हवा के तीन मिनट भी जीवित नहीं रह सकता। ताजी हवा जीवन के लिए इतनी महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है कि गुरुनानक ने पानी की तुलना पिता से, धरती की माता से और हवा की ईश्वर से की है।

पिछले पचास वर्षों के दौरान उद्योगों का तेजी से विकास हुआ है, मोटर-गाड़ियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और नगरों की आबादी भी बहुत तेजी से बढ़ी है। रसायन कारखानों, ताप बिजलीघरों, मोटर-गाड़ियों, बिजलीघरों और घरों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों में लगाए गए जेनरेटर सेटों से वातावरण में बहुत अधिक प्रदूषक तत्व मिल जाते हैं। ये प्रदूषक तत्व हमारे भोजन और हवा में मिलकर हमारे शरीर में पहुँचते हैं। रासायनिक जहर हमारी त्वचा और आँखों को प्रभावित करते हैं। वायु में घुले जहरीले तत्व जो हमारे फेफड़े, त्वचा, आँख और गुर्दे को नुकसान पहुँचाते हैं, कैंसरजनक होते हैं। प्रदूषित वायु में निम्नलिखित तत्व दिल और उससे सम्बन्धित व्यवस्था को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं:

1. विषैले तत्व और गैसें
(i) कार्बन-मोनो-ऑक्साइड (सी ओ); सल्फर-डाइ-ऑक्साइड (एस ओ1); नाइट्रिक-डाइ-ऑक्साइड (एन ओ2); ओजोन (ओ3); सीसा (पी बी); कार्बन डाइऑक्साइड ( सी ओ2); पारा (एच जी); और कैडमियम (सीडी); (ii) निलंबित विविक्त पदार्थ (एस पी एम); (iii) धुआँ-निकोटीन, हाइड्रोकार्बन; (iv) औद्योगिक कचरा; (v) बिना साफ किया नाली का पानी; (vi) धूम कोहरा; (vii) वायुवाहित प्रर्त्यूजक, फफूंद, जीवाणु और कीटाणु।

2. तापमान और नमी की अधिकता।
3. ध्वनि प्रदूषण

वायु प्रदूषण


कार्बन-मोनो-ऑक्साइड युक्त वायु प्रदूषण से हीमोग्लोबिन की गुणता में परिवर्तन हो जाता है। इससे फेफड़े के रोगों के अलावा दिल को भी नुकसान पहुँच सकता है। सीसा, पारा और केडिमियम के कारण रक्तचाप बढ़ सकता है और अेनक तरह के हृदय रोग हो सकते हैं और धूम कोहरा, सीओ, निलंबित विविक्त भौतिक तत्वों और एस ओ2 से दिल का घातक दौरा पड़ सकता है।

कार्बन-मोनो-आक्साइड (सी ओ) और हृदय संवहनी व्यवस्था


सी ओ की हीमोग्लोबिन के साथ मिलने की क्षमता ऑक्सीजन (ओ2) से 210 गुना अधिक है। सीओ का स्रोत सिगरेट से निकलने वाला धुआँ, गाड़ियों से निकलने वाला दूषित धुआँ और सिगरेट-बीड़ी न पीने वालों द्वारा हवा के जरिए ग्रहण किया जाने वाला सिगरेट-बीड़ी का धुआँ है।

जब कार्बन-मोनो-ऑक्साइड रक्त में प्रवेश करता है, वह तत्काल ऑक्सीजन का स्थान ले लेता है और हीमोग्लोबिन से मिलकर कारबाक्सी हीमोग्लोबिन का निर्माण करता है जो शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण अंगों को नुकसान पहुँचाता है। रोगी नीला पड़ जाता है, उसकी सांस रुकने लगती है और शरीर के महत्त्वपूर्ण अंगों जैसे कि दिल और मस्तिष्क में ऑक्सीजन नहीं पहुँचने से उन्हें स्थाई नुकसान हो सकता है। बच्चों और बूढ़ों पर इस प्रदूषण का असर अधिक होता है सिगरेट पीने वालों में बाक्सी हीमोग्लोबिन की मात्रा 10 से 20 प्रतिशत होती है। मौत से पहले सिरदर्द, चक्कर आना, भ्रम, शिथिलता और सांस लेने में तकलीफ आदि शिकायतें होती हैं। हवा में कार्बन-मोनो-ऑक्साइड के प्रदूषण से बड़ी उम्र के लोगों में दिल का दौरा पड़ने की घटनाओं में वृद्धि हो जाती है। गाड़ियों से निकलने वाले धुएँ और तम्बाकू के धुएँ की रोकथाम के लिए कठोर कानून बनाए जाने चाहिए। कार्बन-मोनो-ऑक्साइड के प्रदूषण से उत्पन्न अस्वस्थता और मृत्युदर को नियंत्रित करने की रणनीति विकसित की जानी चाहिए और उसमें मोटर-गाड़ियों और तम्बाकू के धुएँ की रोकथाम पर मुख्य जोर दिया जाना चाहिए।

सिगरेट का धुआँ


तम्बाकू में निकोटीन सहित लगभग 1500 विषैले तत्व होते हैं। तम्बाकू में पाए जाने वाले अन्य विषों में कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड, मिथेन फार्मलडिहाइड और अनेक हाइड्रोकार्बन हैं। सिगरेट पीने से आमतौर पर स्वास्थ्य को जो नुकसान होता है, उससे सभी परिचित हैं। सिगरेट पीने से होने वाली प्रमुख बीमारियाँ हैं: पुराना श्वसनीशोथ (ब्रांकाइटिस), फेफड़े का कैंसर, गला, पेट, मूत्राशय और ग्रीवा का कैंसर-सिगरेट पीने से दिल का रोग होने की आशंका बहुत बढ़ जाती है। तम्बाकू का किसी भी रूप में सेवन करने से नाड़ी की गति बढ़ जाती है, हृदय की धमनियाँ सिकुड़ जाती हैं, कण्ठशूल और बर्गर रोग, जिसमें पैरों की स्थिति कष्टदायक हो जाती है (और अक्सर उसका अंत गेंगरीन और टांग काटने में होता है) हो जाते हैं। ऐसे लोगों में अचानक दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना भी बढ़ जाती है। बीड़ी-सिगरेट पीने वालों के कारण वायु प्रदूषण से होने वाले अमेरिका में प्रतिवर्ष 53 हजार मौतें होती हैं। बीड़ी-सिगरेट पीने से रक्त में फाइब्रिनोजेन का स्तर, रक्त की चिपचिपाहट और पोलीसाइथीमिया बढ़ जाता है। इस सभी कारणों से हृदय रोग उग्र हो जाता है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हमने जो अध्ययन किए हैं उनसे पता चला है कि 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों की हृदय रोग सम्बन्धी शिकायतों के पीछे प्रमुख कारण बीड़ी-सिगरेट पीना था। अतः बीड़ी-सिगरेट तथा पान के हानिकारक परिणामों और हृदय रोगों से बचाव के लिए तम्बाकू-विरोधी अभियान युद्धस्तर पर चलाया जाना चाहिए।

अन्य वायु प्रदूषक


वायु को दूषित करने वाले एजेंटों के प्रतिकूल प्रभाव की समीक्षा करते हुए लेखक इस बात पर जोर देता है कि इसे रोकने के पर्याप्त उपाय किए जाने आवश्यक हैं। उसकी राय है कि अगर भोजन, पानी और वायु पर प्रभाव डालने वाले वातावरण सम्बन्धी कारणों को नियंत्रित किया जा सके तो हृदय-सम्बन्धी अनेक रोगों को रोका जा सकता है।

विभिन्न प्रदूषकों के कारण हवा की गुणवत्ता में गिरावट आने पर उसका लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अगर लोगों का लम्बे समय तक ऐसी हवा में सांस लेनी पड़े तो उन्हें हृदय रोग सम्बन्धी समस्याएँ हो सकती हैं। अमेरिका के मिशीगन में किए गए एक अध्ययन के अनुसार अगर वायुव्यास में 10 माइक्रोन (पीएचआईओ) अथवा इससे कम का प्रदूषण हो जाता है तो हर रोज 65 वर्ष से अधिक उम्र के कई लोग एक विशेष हृदय रोग से पीड़ित होकर अस्पतालों में भर्ती होने लगते हैं। ओजोन (ओ3) जो गाड़ियों के एग्जॉस्ट से निकलती है, गर्मियों में अधिक मौतों का कारण होती हैं। लंदन में किए गए एक अध्ययन के अनुसार इस मौसम में वायु में ओजोन का स्तर ऊँचा पाया गया। ओजोन का श्वसन और मायोकार्डियम पर विषैला असर पड़ता है। गाड़ियों से अधिकांशतः डीजल इंजन से निकलने वाले एक अन्य प्रदूषक (एच ओ3) से पल्मोनरी एडेना (फुप्फस) हो सकता है और हृदय सम्बन्धी रोग बढ़ सकते हैं। हवा में सल्फर-डाइ-ऑक्साइड (एस ओ2) का प्रदूषण ईंधन के लिए कोयला और लकड़ी जलाने से, ताप बिजली घरों से निकलने वाले धुएँ से और गाड़ियों विशेष रूप से डीजल क एग्जास्ट से निकलने वाले धुएँ से होता है। एस ओ2 के विषैले प्रभावों में शामिल है फेफड़ों की दुर्बलता और उनकी क्षमता में कमी नवप्लाविका से अधिक मौतें, हृदय सम्बन्धी रोग और फेफड़ों के रोगों में वृद्धि। वायु में सीसे का प्रदूषण सीसा मिश्रित पट्रोल के इस्तेमाल से होता है। सीसा प्रदूषण के विषैले परिणामों में शामिल है। बच्चों के आइ क्यू विकास में कमियाँ, विकास सम्बन्धी कमियाँ और सम्भवतः उच्च रक्तचाप। पता चला है कि समीपस्थ गुर्दा नलिकाओं पर अपने प्रभाव के कारण कैडमियम उच्च रक्तचाप पैदा करता है।

समाचार है कि रासायनिक युद्ध और प्रक्षेपास्त्रों के इस्तेमाल से भी वायु प्रदूषण होता है जो हृदय के लिए हानिकारक होता है। इराक-इजराइल युद्ध के दौरान ऐसा देखा गया था।

विषैले प्रभावों के अलावा जैसा कि ऊपर संकेत दिया जा चुका है कि कुछ वायु प्रदूषक बड़ी दुर्गंध पैदा करते हैं जिसे लोग बर्दाश्त नहीं कर पाते और यह असामान्य हृदयगति और रक्तचाप के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से हृदय को प्रभावित करती है। इससे कण्ठशूल हो सकता है और दिल का जबर्दस्त दौरा पड़ सकता है।

तापमान परिवर्तन


मनुष्यों के लिए आदर्श तापमान 20डिग्री से 25डिग्री सेल्सियस है। बहुत गर्म या बहुत सर्द तापमान में हृदयजनित बीमारी और मौतें अधिक होती हैं। उच्च तापमान में द्रव और विद्युत असंतुलन के कारण और कम तापमान में बाह्य प्रतिरोध और रक्तचाप के कारण हृदय रोग से अधिक मौतें होती हैं। नीदरलैंड से प्राप्त के अध्ययन के अनुसार 20डिग्री से ऊपर शीत सम्बन्धित अप्रत्याशित मौतों में 57 प्रतिशत की वृद्धि हुई और 25डिग्री सेल्सियस से ऊपर गर्मी से सम्बन्धित मौतों में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अधिक गर्मी और अधिक सर्दी में इन मौतों का कारण हृदय जनित रोग बताया गया।

ध्वनि प्रदूषण


पता चला है कि अगर बच्चों को शहरी यातायात के अत्यधिक शोर का सामना करना पड़ता है तो इससे उनका रक्तचाप बढ़ जाता है। चूँकि उनमें हृदय की गति नहीं बढ़ी थी अतः यह प्रभाव बाह्य परिधीय संवहनी प्रतिरोध के कारण था। अतः नगर निवासियों में उच्च रक्तचाप का एक कारण पर्यावरणीय शोर हो सकता है। इसलिए उच्च रक्तचाप की रोकथाम की रणनीति बनाते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए और तद्नुसार उपयुक्त कदम उठाए जाने चाहिए विशेषकर बच्चों के संदर्भ में।

पिछले तीस वर्षों में दिल्ली की आबादी और परिवहन गाड़ियों की संख्या में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी हुई है। 1970 में दिल्ली की जनसंख्या 35 लाख थी जो 1990 में 86 लाख हो गई। अनुमान है कि सन 2000 तक यह एक करोड़ 28 लाख हो जाएगी। 1971 में दिल्ली में डीजल से चलने वाली 16,558 गाड़ियाँ थीं जो 1987 में 75,707 हो गईं। यहाँ पर डीजल से चलने वाली गाड़ियों का विशेष रूप से उल्लेख किया जा रहा है क्योंकि ये सल्फर ऑक्साइड का प्रमुख साधन हैं जो हृदय से जुड़ी अनेक बीमारियों के लिए उत्तरदायी होता है। यद्यपि बम्बई और कलकत्ता की तरह दिल्ली में अत्यधिक भीड़-भाड़ की समस्या नहीं है, दिल्ली की निरन्तर बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मकानों का निर्माण और औद्योगिक कारखानों की स्थापना से हरित क्षेत्र के विनाश से पर्यावरण प्रदूषण के कारण गम्भीर पारिस्थितिकीय असंतुलन पैदा हो गया है। नियोजन सम्बन्धी कठोर निर्देश लागू करने के बावजूद औद्योगिक इकाइयों की संख्या में 57 प्रतिशत की वृद्धि हो गई है। 1971 में 26,000 औद्योगिक इकाइयाँ थीं जो 1987 में 41,000 हो गई। कुछ अनधिकृत आवासीय बस्तियों और ‘फार्म हाऊसों’ में ‘महल और प्रदूषण’ के विरोधाभास का नया दृश्य उजागर हो रहा है। बिजली की नियमित सप्लाई न होने के कारण लोगों को डीजल, किरोसीन और पेट्रोल से चलने वाले बड़े जेनरेटर सेट लगाने पड़ते हैं। इस तरह के जेनरेटर सेट अधिकांश व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी लगाए जाते हैं। बार-बार बिजली की कटौती से जेनरेटर सेटों के अधिक इस्तेमाल से न केवल ध्वनि प्रदूषण होता है बल्कि उनके एग्जास्ट से निकलने वाले कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाइ-ऑक्साइड, सीसा, नाइट्रोजन-डाइ-ऑक्साइड और विविक्त पदार्थों से वायुमंडल प्रदूषित होता है। इससे यह विचित्र स्थिति पैदा होती है कि घरों और दुकानों के भीतर तो वातानुकूलित आराम मिलता है और बाहर सांस लेने के लिए शुद्ध वायु तक नहीं मिलती।

समाचारों के अनुसार दिल्ली में इन्द्रप्रस्थ और बदरपुर ताप बिजलीघरों से प्रतिवर्ष 25,550 टन सल्फर-डाइ-ऑक्साइड निकलता है। अनुमान है कि सन 2000 में इन बिजलीघरों से 49,000 टन सल्फर-डाइ-ऑक्साइड निकलेगा। जहाँ घरों से निकलने वाले प्रदूषक तत्वों में पिछले वर्षों के दौरान कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। औद्योगिक और परिवहन स्रोतों से होने वाले प्रदूषण में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अनुमान है कि निलम्बित विविक्त पदार्थ और सल्फर-डाइ-ऑक्साइड की मात्रा में लगभग बराबर की बढ़ोत्तरी होती है क्योंकि दोनों का स्रोत मोटरगाड़ियाँ और उद्योग हैं।

दिल्ली में वर्षा से पहले मई-जून में चलने वाली धूल भरी आंधियाँ निलम्बित विविक्त पदार्थ से वायु प्रदूषण को बढ़ा देती हैं। जून में मासिक औसत निलम्बित कण सान्द्रण 600 यूजी/एम-3 है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार यह 150-230 यूजी/एम-3 होना चाहिए। सड़क परिवहन निलम्बित विविक्त पदार्थों की मात्रा बढ़ाकर पर्यावरणीय प्रदूषण में जबर्दस्त योगदान देता है। बस, ट्रक और टैम्पो डीजल का धुआँ फैलाने के मुख्य स्रोत हैं। साइकिल सवार और दुपहिए या तिपहिए पर सवार लोग इसके मुख्यतः शिकार होते हैं। मथुरा तेलशोधक कारखाने द्वारा दिल्ली को इस्तेमाल के लिए दिए जाने वाले पेट्रोल में सीसे की मात्रा बहुत अधिक, 1.8 ग्रा./लि. है। दिल्ली में पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों का हिसाब लगाया जाए तो इनसे प्रतिवर्ष वातावरण में लगभग 6,000 टन सीसा छूटता है। मोटरगाड़ियों से ही निकलने वाले कार्बन-मोनो-ऑक्साइड का निस्सरण भी बहुत बढ़ गया है। 1980 में यह प्रतिवर्ष 14,000 टन था जो 1990 में बढ़कर 2,65,000 टन हो गया। अनुमान है कि सन 2000 तक यह चार लाख टन हो जाएगा। नाइट्रोजन ऑक्साइड कार्बन-मोनो-ऑक्साइड की प्रवृत्ति का अनुसरण करता है। 1990 में दिल्ली में एन ओ2 का निस्सरण 73,000 टन था। उस समय इसका मुख्य स्रोत ताप बिजलीघर और मोटर-गाड़ियाँ थीं। आमतौर पर दिल्ली में ओजोन (ओ3) के विस्तार पर निगाह नहीं रखी गई है लेकिन दिल्ली की जलवायु ओजोन निर्माण के अनुकूल है। नाइट्रोजन ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन के निस्सरण में भी तेजी से बढ़ोत्तरी हो रही है और इस बात की आशंका है कि अगर समय रहते इसे रोकने के उपाय नहीं किए गए तो दिल्ली में अगले दस वर्षों के दौरान ओजोन वायु प्रदूषण का प्रमुख साधन बन सकता है।

रोकथाम और नियन्त्रण


चूँकि वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत (1) औद्योगिक, (2) मोटर-गाड़ी जनित और (3) घरेलू हैं अतः इसे रोकने की रणनीति में इन तीन स्तरों पर ध्यान देना आवश्यक है।

1. औद्योगिक वायु प्रदूषण: इसे चिमनियों की ऊँचाई अधिक रखकर और कोयला, डीजल, लकड़ी, किरोसीन और अन्य ईंधन इस्तेमाल करने वाले ताप बिजलीघरों और अन्य औद्योगिक इकाइयों के लिए एग्जास्ट में औद्योगिक फिल्टर लगाना अनिवार्य बनाकर नियन्त्रित किया जा सकता है। इस तरह का ईंधन इस्तेमाल करने वाले उद्योगों को आवासीय इलाकों में काम करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए। रासायनिक युद्ध से बचाव के उपायों की जानकारी में शहरी प्रदूषण को रोकने की रणनीति भी शामिल की जानी चाहिए।

2. गाड़ियों का प्रदूषण: नगर निवासियों को डीजल और सीसायुक्त पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों के कारण सबसे अधिक वायु प्रदूषण का सामना करना पड़ता है। समय-समय पर गाड़ियों की जाँच और दोषियों को दंड ही इस प्रदूषण को रोकने का एकमात्र उपाय है।

3. घरेलू प्रदूषण: घरेलू प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं- हवा में विद्यमान सिगरेट का धुआँ, स्टोव और किरोसीन, पेट्रोल तथा डीजल’ पर चलने वाले जेनरेटर सेट। घरेलू प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी है कि सिगरेट-पान रोकने, जेनरेटर के स्थान पर इलेक्ट्रिक इनवर्टर का प्रयोग करने, जेनरेटर सेट को ऊँचे स्थान पर रखने और पर्याप्त संख्या में एयर फिल्टर के इस्तेमाल की सिफारिश की जाए।

निरन्तर बढ़ती जनसंख्या के लिए आवास की व्यवस्था करने हेतु बड़े नगरों के समीपस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में वनों के विनाश से पारिस्थितिकीय सन्तुलन, जीव-वनस्पति और मनुष्यों के बीच का स्वास्थ्य सम्बन्ध बिगड़ गया है। अधिक पेड़ लगाकर इस सम्बन्ध को फिर से ठीक किया जा सकता है। इस तरह वायु प्रदूषण से उत्पन्न अनेक अव्यवस्थाओं का रोका जा सकता है।

सभी लोग इस सत्य को स्वीकार करते हैं और यह बात विश्व भर में विज्ञापित है कि बीड़ी-सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अब हमें जिस बात का प्रचार-प्रसार करने की जरूरत है वह यह है कि ‘अगर वायु प्रदूषण की रोकथाम के पर्याप्त उपायों पर विचार नहीं किया गया और उन्हें तुरन्त लागू नहीं किया गया तो हमारे लिए सांस लेना भी दूभर हा जाएगा।

(लेखक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के हृदय रोग विभाग में प्रोफेसर तथा अध्यक्ष रह चुके हैं।)

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