पर्यावरण संतुलन हेतु नदियों में आवश्यक न्यूनतम जल प्रवाह अध्ययन

भारत वर्ष में बेहतर जीवनयापन एवं आर्थिक विकास हेतु, प्रतिवर्ष शहरीकरण एवं औद्योगिक विकास तीव्र गति से हो रहा है। इस विकास की प्रक्रिया में जल का अत्यधिक महत्व है। जल का उपयोग पीने हेतु, सिंचाई के लिए जल विद्युत बनाने के लिए, शहरीकरण एवं औद्योगीकरण हेतु आदि कार्यों में किया जाता है। किंतु पर्यावरण संतुलन हेतु नदियों में आवश्यक न्यूनतम जल प्रवाह को अनदेखा किया जा रहा है। यह ज्ञात हो कि राष्ट्रीय जल नीति में पर्यावरण हेतु जल की आवश्यकता को महत्वपूर्ण स्थान चौथा दिया गया है।

प्रस्तुत अध्ययन में, विश्व में इस विषय पर किये गये शोधों पर चर्चा की गई है एवं भारत वर्ष में इसकी आवश्यकता अध्ययन द्वारा दर्शायी गई है। अध्ययन में उड़ीसा राज्य की प्रमुख नदी ब्राह्मणी के आंकड़ों का उपयोग करते हुए पर्यावरणीय न्यूनतम जल प्रवाह का आकलन किया गया है।

पर्यावरण संतुलन हेतु नदियों में समयानुसार जल स्तर घटता एवं बढ़ता रहता है। जिससे कि जल की मात्रा, गुणता एवं जलीय पौधों/जीव जंतुओं का संतुलन बना रहता है। लेकिन विकास कार्यों में जल की आवश्यकता में बढ़ोतरी से यह संतुलन बिगड़ जाता है। इसके अतिरिक्त उपयोग में लाये गये जल को, जो कि प्रदूषित हो जाता है, बिना शुद्ध किये नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है। यह ज्ञात हो कि नदी का जल प्रवाह पर्यावरण एवं मानव जीवन हेतु अत्यंत आवश्यक है। राष्ट्रीय जलनीति में पीने के लिए जल, सिंचाई के लिए जल एवं बिजली पैदा करने हेतु जल के पश्चात, पर्यावरण हेतु जल की आवश्यकता को बताया गया है। चित्र-1 में दिखाया गया है कि कुल उपलब्ध जल में पर्यावरण हेतु कितना जल रहना चाहिए।

भारत वर्ष में शहरीकरण, औद्योगिकीकरण से प्रमुख नदियां जैसे कावेरी, गोदावरी, कृष्णा, महानदी, नर्मदा, पेन्नर, इंडस एवं तापी बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं (निल्सन एट आल 2005) सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1999 में अपने निर्णय में कहा था कि दिल्ली में यमुना नदी में 10 cumec पानी प्रवाहित किया जाना चाहिए। लेकिन इसके आकलन में कोई वैज्ञानिक तकनीक का उपयोग नहीं किया गया। प्रस्तुत अध्ययन में वैज्ञानिक तकनीक द्वारा जल विज्ञानीय आंकड़ों का अध्ययन पर्यावरणीय न्यूनतम जल प्रवाह आकलन हेतु किया गया है।

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