पृथ्वी का विनाश


चौबीसवीं सदी में हर घर में एक रोबोट रहता था। वह एक सहायक की तरह घर के सारे कार्य करता था। लोग घड़ियों, मोबाइल फोनों इत्यादि में अलार्म नहीं लगाते थे। रोबोट बताए गए समय पर लोगों को उठा देता था। हर रोबोट का एक नाम होता था। रोबोट अब एक मशीन नहीं था कुछ हद तक मानवीय संवेदनाएँ उसमें डाली गई थीं।

नोरा स्कोडोवस्की एक भूगर्भ वैज्ञानिक हैं। वह रूस के एक वैज्ञानिक रिसर्च केन्द्र में कार्यरत हैं। नोरा एक विशेष प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही थीं जिसकी रिपोर्ट देने की तिथि पास आ चुकी थी इसलिये नोरा को दिन में 18 घंटे कार्य करना पड़ रहा था। प्रतिदिन की तरह आज भी वह रात के लगभग बारह बजे ऑफिस से लौट रही थी। बेहद थकी होने के कारण वह जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहती थी। रास्ते में ट्रैफिक सिग्नल पर बार-बार रेड लाइट मिलने पर वह झुंझला गयी। उसने ड्राइवर से कहा- इतनी धीरे गाड़ी चलाते हो कि हर सिग्नल पर रेड लाइट मिल जाती है। ड्राइवर ने नोरा को बताया कि लगभग दो किलोमीटर लम्बा जाम लगा है, जाम खुलने में पाँच घण्टे तो कम-से-कम लगेंगे। क्रोध, भूख और थकान के कारण नोरा आँखें बन्द कर सीट पर लेट गई। नोरा की आँख खुली तब उसने अपने आप को अपने अपार्टमेन्ट में पाया। उसके रोबोट प्रोनो ने उसे जगाया था। दस मिनट के अन्दर प्रोनो चाय ले आया। चाय पीते-पीते नोरा समाचार सुन रही थी। प्रोनो ने आज की तारीख 18 नवम्बर वर्ष 2366 बताई। प्रोनो ने लगभग सारी राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय खबरें नोरा को कुछ ही मिनट में सुना दीं।

अब मानव ने बहुत तरक्की कर ली थी। सड़कों पर जाम नहीं लगते थे। वाहन दुर्घटनाएँ नहीं होती थीं। सड़कों की मरम्मत रोबोटों द्वारा निरन्तर की जाती थी। सड़कें साफ, सुन्दर एवं गड्ढों से रहित थी। वाहनों की गति का नियन्त्रण वाहन में लगे सेंसर्स द्वारा होता था।

देश की नदियों को इस प्रकार जोड़ा गया था कि बाढ़ आना नामुमिकन था। नदियों के दोनों किनारों से बहुत दूर नगर बनाए गए थे ताकि जल स्तर बढ़ने पर भी कोई नुकसान न हो। समुद्र के आस-पास कोई निर्माण कार्य नहीं कर सकता था। वहाँ घने वन लगाए गए थे। अब सुनामी लहरों से जान-माल का कोई नुकसान नहीं होता था। अब वायु प्रदूषण नहीं था। 21वीं सदी के वायु प्रदूषण को इतिहास में पढ़ाया जाता था। उस समय की वायु प्रदूषण जनित बीमारियों के बारे में अब लोग नहीं जानते थे। पेट्रोल 22वीं सदी में ही खत्म हो चुका था लेकिन उसकी समाप्ति से पहले ही पेट्रोल के विकल्पों को खोजने के प्रयास शुरू हो चुके थे।

Fig-6पृथ्वी को बचाने की हर सम्भव कोशिश सफल हो रही थी लेकिन 21वीं सदी में की गई ओजोन परत की क्षति को अब तक पूरा नहीं किया जा सका था। उत्तरी ध्रुव पर ओजोन परत इतनी हल्की थी कि सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी तक पहुँच रही थीं। दक्षिणी ध्रुव पर भी ओजोन परत में छिद्र हो चुके थे। 21वीं सदी में मानव के क्रिया-कलापों ने ऐसी गैसें वातावरण में छोड़ दी थीं कि उनका असर अगले तीन सौ से चार सौ वर्षों तक बना रहा और ओजोन परत घटती ही गई। ओजोन का निर्माण वातावरण में 15 से 20 किलोमीटर की ऊँचाई पर स्वयं होता है लेकिन ओजोन परत का विघटन इतनी तीव्र गति से हो रहा था कि ओजोन परत निरन्तर हल्की होती चली गई। यहाँ तक कि उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव पर ओजोन परत न के बराबर रह गई थी। उत्तरी ध्रुव व दक्षिणी ध्रुव पर लोगों के न रहने के कारण मानव जीवन को कोई खास नुकसान नहीं हुआ। सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाव के उपाय आज घर, दफ्तर, वाहन आदि में किए जा चुके थे।

.नोरा चूँकि एक वैज्ञानिक थी, इसलिये वह जानती थी कि पृथ्वी की धुरी पर झुकाव के कारण ही उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों पर सूर्य की किरणें कभी सीधी नहीं पड़ती और ध्रुवों पर छः महीने दिन व छः महीने रात रहती है। इसी कारण दोनों ध्रुव हमेशा बर्फ से ढके रहते हैं। पृथ्वी के झुकाव के कारण ही यहाँ वसन्त, ग्रीष्म, शरद व शीत ऋतुएँ होती हैं। अब पृथ्वी का झुकाव खत्म होने से मौसम नहीं बदलेंगे व हमेशा 12 घण्टे का दिन और 12 घण्टे की रात होगी। आज तक सिर्फ 21 मार्च व 23 सितम्बर को ही 12 घण्टे का दिन व 12 घण्टे की रात होती थी इसे ‘इक्विनोक्स’ कहा जाता था। सबसे ज्यादा चिन्ता इस बात की थी कि ओजोन परत नष्ट होने के कारण ध्रुवों पर से पृथ्वी का सुरक्षा कवच नष्ट हो चुका था। अतः यहाँ से भारी मात्रा में सूर्य की पराबैंगनी किरणें व उच्च ऊर्जा वाली गामा किरणें पृथ्वी के वायुमण्डल में प्रवेश कर जाएँगी। सूर्य की किरणें ध्रुवों पर सीधी पड़ने के कारण सूर्य की गर्मी और अधिक मात्रा में ध्रुवों पर पहुँचेगी। इससे ध्रुवों की बर्फ पिघल कर जल प्रलय ला देगी और सूर्य के हानिकारक विकिरण जीव-जन्तुओं को नष्ट कर देंगे। पृथ्वी पर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी जैसी कई नाभिकीय विस्फोटों के बाद उत्पन्न होती।

नोरा ने अपने साथी वैज्ञानिकों से तुरन्त सम्पर्क किया। किसी की भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? सारे ब्रह्मीसा में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया था। समुद्रों का जलस्तर बढ़ने की सम्भावना के चलते निचली जगहों पर रहने वाले लोगों को ऊँचाई पर स्थित जगहों पर जाने के निर्देश दे दिए गए थे। जब किसी की समझ में कुछ न आया तब ब्रह्मीसा के पड़ोसी ग्रह मंगल से मदद माँगने के बारे में सोचा गया। मंगल ग्रह पर मानव ने 23वीं सदी के अन्त तक रोबोट भेज दिए थे। रोबोटों ने वहाँ बस्तियाँ बसाई हुई थीं। उनके मस्तिष्क में नैनो कम्प्यूटर लगे हुए थे। रोबोटों में सोच समझ कर निर्णय लेने की शक्ति थी। रोबोट सूर्य की ऊर्जा का इस्तेमाल करते थे। वे हर प्रकार का कार्य करने की शक्ति रखते थे। वे अन्तरिक्ष की दूरियों व परमाणु ऊर्जा की गणना अत्यन्त तीव्र गति से कर सकते थे। रोबोट के पास प्रजनन क्षमता नहीं थी, लेकिन उनकी प्रयोगशालाओं में नये-नये उन्नत किस्म के रोबोट बनते रहते थे और पुराने रोबोट नष्ट होते रहते थे। मंगल ग्रह के रोबोट ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रहों पर पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं की भाषा जान सकते थे, वे उनसे संवाद भी कर सकते थे। उन्होंने अन्तरिक्ष में स्थित उच्च कोटि के अन्तरिक्ष स्टेशन स्थापित कर रखे थे, जहाँ बहुत से रोबोट रहते थे।

ब्रह्मीसा से जब मदद माँगने का सन्देश मंगल ग्रह के रोबोटों को मिला तब उन्होंने उस सन्देश को डीकोड करके जाना कि ब्रह्मीसा पर संकट आया है। ब्रह्मीसा वासियों को रोबोट अपना जनक मानते थे। अतः उन्होंने उनकी मदद करने का निश्चय किया। मंगल ग्रह के रोबोटों ने सूर्य की रोशनी में पाए जाने वाले अत्यन्त गतिशील व अति उच्च भेदन क्षमता वाले कण ब्रह्मटोन की खोज कर ली थी, लेकिन ये कण पृथ्वी तक नहीं पहुँचते थे। रोबोटों ने गणना करके यह पाया कि यदि ब्रह्मटोनों को एक दिशा से पृथ्वी पर डाला जाए तब यह कण पृथ्वी की कोर तक पहुँच कर पृथ्वी को उसकी धुरी पर झुका सकते हैं। रोबोटों ने अन्तरिक्ष स्टेशन पर रहने वाले रोबोटों को एक संदेश भेजा। जिसके अनुसार अन्तरिक्ष स्टेशन के रोबोटों ने कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। एक विशालकाय टेलिस्कोप की दिशा बदलकर उससे सूर्य के ब्रह्मटोन कणों को एकत्र किया और टेलिस्कोप में लगे शीशों द्वारा परावर्तित कर ब्रह्मीसा तक एक खास दिशा में पहुँचाना आरम्भ कर दिया। एक ब्रह्मटोन पृथ्वी तक पहुँच कर पृथ्वी की कोर से टकराकर पृथ्वी को उसकी धुरी पर एक डिग्री के सौवें अंश तक झुका देता था। इसके साथ ही रोबोटों ने टेलिस्कोप की दिशा बदल दी और ब्रह्मटोनों को एकत्र करने वाले यन्त्र को बन्द कर दिया। पृथ्वी फिर अपनी धुरी पर झुक गई। ब्रह्मीसा का संकट टल गया।

अचानक एक तेज आवाज सुनकर नोरा चौंक गई। उसने आँख खोली तो पाया ड्राइवर हॉर्न बजाकर उसे जगाने की कोशिश कर रहा था। एक क्षण को नोरा को लगा कि यह कौन सी दुनिया है? प्रोनो कहाँ गया? फिर कुछ देर बाद नोरा को समझ में आया कि वह सपना देख रही थी। सुबह के पाँच बज रहे थे और वह इस समय घर पहुँची थी।

सम्पर्क सूत्र :


डॉ. अर्पिता अग्रवाल, काकली भवन, 120-बी/2, साकेत, सिविल लाइन्स, मेरठ 250 003 (उत्तर प्रदेश)

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