पृथ्वी के जीवन के लिये जरूरी है ओजोन की रक्षा

अन्तरराष्ट्रीय ओजोन संरक्षण दिवस, 16 सितम्बर पर विशेष


ओजोन परतओजोन परतजलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा असर ओजोन परत पर पड़ा है जिससे उसके लुप्त होने का खतरा मँडराने लगा है। दरअसल वायुमण्डल के ऊपरी हिस्से में लगभग 25 किलोमीटर की ऊँचाई पर फैली ओजोन परत सूर्य की किरणों के खतरनाक अल्ट्रावायलेट हिस्से से पृथ्वी के जीवन की रक्षा करती है। लेकिन यही ओजोन गैस जब धरती के वायुमण्डल में आ जाती है तो हमारे लिये जहरीली गैस के रूप में काम करती है।

यदि हवा में ओजोन गैस का स्तर काफी अधिक हो जाये तो बेहोशी और दम घुटने तक की स्थिति आ सकती है। देखा जाये तो मौसम के बदलाव ने कहीं प्रचण्ड गर्मी तो कहीं प्रचण्ड सर्दी से पैदा हालात स्थिति को और भयावह बना रहे हैं। गर्मी बढ़ने से हवा में प्रदूषण के रूप में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड व नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी गैसों से ऑक्सीजन के तत्व टूट कर हवा में मौजूद ऑक्सीजन से क्रिया करते हैं। इससे ओजोन गैस बनती है।

हवा में ओजोन का स्तर बढ़ने से उसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है। उस दशा में अन्य प्रदूषक तत्वों की अपेक्षा ओजोन गैस आसानी से शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसका असर शरीर के विभिन्न अंगों पर तेजी से होता है। प्रचण्ड गर्मी लोगों के लिये ओजोन के रूप में नई मुश्किलें पैदा कर रही है। यह मुश्किल हवा में ओजोन के स्तर बढ़ने से पैदा हुई है।

यह समस्या साँस से जुड़ी बीमारियाँ, उल्टी आने और चक्कर आने की मुख्य वजह साबित हो रही है। इस बारे में डॉ. के.के. अग्रवाल का कहना है कि हवा में ओजोन के स्तर बढ़ने से ब्लड प्रेशर व साँस की बीमारियाँ बढ़ने का अन्देशा बना रहता है। इस कारण अक्सर थकान बढ़ने और साँस लेने में दिक्कतें पेश आ रही हैं। यदि मौसम विज्ञानियों की मानें तो बढ़ती गर्मी के लिये भी प्रदूषण ही जिम्मेदार है। ऐसे में हमें प्रदूषण का स्तर कम करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार जिस रफ्तार से ओजोन परत की क्षति हो रही है, उससे हरेक साल त्वचा के कैंसर के तीन लाख अतिरिक्त रोगी पैदा होंगे। इसके अलावा इस बात की प्रबल सम्भावना है कि लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होगी, फसलों को नुकसान पहुँचेगा और समुद्री जीवन के आधार को भी क्षति पहुँचेगी।

वर्ष 1985 में जैसे ही इस बात की जानकारी हुई कि अन्टार्कटिका यानी दक्षिणी ध्रुव पर ओजोन परत में छेद हो गया है, विकसित देशों ने सारा-का-सारा दोष अविकसित देशों पर मढ़ डाला जहाँ पर अभी भी कोयला और लकड़ी का ईंधन के रूप में प्रयोग होता है और वनों की अन्धाधुन्ध कटाई से हरीतिमा खत्म होती जा रही है। लेकिन 1987 आते-आते इस बात का भी खुलासा हो गया कि अब उत्तरी ध्रुव भी नहीं बचा है और अब खतरा केवल विकासशील देशों को ही नहीं, बल्कि विकसित देशों को भी है। तब कहीं जाकर विकसित देशों के कान खड़े हुए।

वर्ष 1988 में मॉन्ट्रियल कन्वेंशन में इस बात पर सहमति बनी कि वर्ष 2000 तक ओजोन के लिये खतरनाक गैसों के प्रयोग एवं रिसाव में 90 फीसदी की कटौती की जाएगी। लेकिन अनेक विकासशील देशों ने इसका विरोध किया और कहा कि यह प्रतिबन्ध सबसे पहले उन पर लागू होने चाहिए जिन्होंने अभी तक पर्यावरण का सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरो कार्बन से सर्वाधिक प्रदूषित किया है। उनके अनुसार विकासशील देशों का सीएफसी का उपयोग वैसे ही बहुत कम है, ऐसी हालत में उनके यहाँ 90 फीसदी का अर्थ है सीएफसी पूरी तरह निषिद्ध हो जाना। उन्होंने माँग की कि इसके स्थान पर अन्य विकल्प विकसित देश विकासशील देशों को उपलब्ध कराएँ।

जाहिर सी बात थी कि वे विकल्प काफी महंगे साबित होंगे। तात्पर्य यह कि पर्यावरण को सबसे ज्यादा प्रदूषित करने वाले पर्यावरण की सफाई का सारा खर्च उठाएँ। सच तो यह है कि विकासशील देशों में से अधिकांश का सीएफसी उपयोग निर्धारित स्वीकृत सीमा से भी कम है, वे उसमें कैसे कटौती स्वीकार कर लेते।

उनका मानना था कि जिन देशों ने अभी तक सबसे ज्यादा उपयोग व निर्गम किया है, वे बड़ी मात्रा में कटौती करें और विकासशील देशों को निर्धारित मात्रा तक उपयोग बढ़ाने की सुविधा प्रदान करें। उस समय विकासशील देशों को 10 साल की छूट दी गई थी कि वे सीएफसी के उपयोग व निर्गम में कमी कर सकें। लेकिन हुआ क्या, यह कि उसके बाद हुए सम्मेलन भी स्थिति में बदलाव लाने में नाकाम साबित हुए।

मॉन्ट्रियल कन्वेंशन में इस बात पर सहमति बनी कि वर्ष 2000 तक ओजोन के लिये खतरनाक गैसों के प्रयोग एवं रिसाव में 90 फीसदी की कटौती की जाएगी। लेकिन अनेक विकासशील देशों ने इसका विरोध किया और कहा कि यह प्रतिबन्ध सबसे पहले उन पर लागू होने चाहिए जिन्होंने अभी तक पर्यावरण का सीएफसी यानी क्लोरोफ्लोरो कार्बन से सर्वाधिक प्रदूषित किया है। उनके अनुसार विकासशील देशों का सीएफसी का उपयोग वैसे ही बहुत कम है, ऐसी हालत में उनके यहाँ 90 फीसदी का अर्थ है सीएफसी पूरी तरह निषिद्ध हो जाना। देखा जाये तो सीएफसी में कटौती करने तथा वैकल्पिक गैस ईजाद करने से समस्या का समाधान नजर नहीं आता। सारा-का-सारा दोष अत्यधिक उपभोगवादी संस्कृति का है जिसने प्राकृतिक साधनों के अन्धाधुन्ध दोहन, शोषण व बर्बादी को जन्म दिया है।

चूँकि अमीरों के लिये सब सुलभ है और वे ही ऐसा कर सकते हैं, इसलिये वे ही सारी सम्पदा का उपभोग भी कर रहे हैं और जिस तेजी से कर रहे हैं, उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि गरीब देशों के लिये शायद ही कुछ बच पाएगा। उपभोगवादी संस्कृति के विकास व प्रसार का मनोवैज्ञानिक पहलू भी है जो इसके अर्थशास्त्र, राजनीति एवं समाजशास्त्र से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

जिन संस्कृतियों में उपभोगवाद को महत्त्व नहीं दिया गया है, उनके समर्थक भी आज भौतिक समृद्धि, ऐश्वर्य और अत्यधिक उपभोग की दिशा में दौड़ रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वर्तमान में भौतिक समृद्धि ही सम्माननीय एवं अनुकरणीय बन गई है।

गौरतलब है कि सोच और व्यवहार की इस क्रिया को यदि इंसान स्वयं नहीं बदलेगा तो इसमें दो राय नहीं कि प्रकृति उसे बदलने पर बाध्य कर देगी। फिर चाहे वह मौसम में बदलाव से उत्पन्न पर्यावरण विनाश के कारण हों, ओजोन परत में छिद्र के कारण उत्पन्न त्वचा रोगों व कैंसर के भय से हो अथवा बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न सामाजिक तनावों, उपद्रवों, अराजकता, आतंकवाद व जीवन के लिये असुरक्षा से हो, पर क्या यह जरूरी है कि मालथस सिद्धान्त ही सही साबित हो।

यह भी तो हो सकता है कि मालथस की अपेक्षा हम गाँधी, बुद्ध और महावीर को सार्थक व सफल बनाएँ। होना तो यह चाहिए कि हम स्वेच्छा से उपभोगवादी प्रवृत्ति व जीवनमूल्यों को त्यागकर पृथ्वी को शस्य, श्यामला और समस्त चराचर जीवों के लिये सुरक्षित बनाएँ। तभी ओजोन की रक्षा सम्भव है अन्यथा नहीं।

यदि ऐसा कर पाने में हम नाकाम रहे तो सच कहा जाये तो उपभोक्तावादी दृष्टिकोण इस दौर की त्रासदी है जिसे झेलने के लिये समूची मानवता अभिशप्त है। पेरिस सम्मेलन से भी कुछ खास बदलाव नहीं हुआ है। इसको झुठलाया नहीं जा सकता।


TAGS

hole in the ozone layer in hindi, information about ozone layer protection in hindi, information about ozone layer in hindi, information about ozone layer depletion in hindi, short information about ozone layer in hindi, information about global warming in hindi, ozone layer present in which layer in hindi, ozon layar in hindi, international ozone day slogans in hindi, international ozone day wikipedia in hindi, international ozone day 2016 theme in hindi, international ozone day is celebrated on in hindi, international day for the preservation of the ozone layer 2016 in hindi, problem of the ozone layer in hindi, who discovered ozone layer in hindi, ozone layer depletion in hindi, disadvantages of ozone layer in hindi, short note on ozone layer in hindi, earth's ozone layer in hindi, speech on ozone layer in hindi, couche d'ozone in hindi, story on ozone layer in hindi, causes of ozone layer depletion in points in hindi, explain ozone layer depletion in hindi, conclusion of ozone layer depletion in hindi, what causes ozone depletion in hindi, ozone layer hole in hindi, ozone depletion causes and effects in hindi, the major cause of ozone depletion is in hindi, how is atmospheric ozone depleted in hindi, article on ozone layer depletion in hindi, essay on ozone layer depletion and protection in hindi, speech on ozone layer in hindi, essay on ozone layer in hindi language, essay on ozone layer for kids in hindi, essay on importance of ozone layer in hindi, essay on ozone layer depletion and its effects in hindi, ozone layer essay in english, preservation of ozone layer slogan in hindi, nibandh on ozone layer in hindi, hindi essay on ozone layer in hindi, ozone parat ki suraksha in hindi, ojon diwas in hindi, ozone layer in hindi pdf, essay on ozone layer in hindi language, ozone layer in hindi wikipedia, ozone depletion in hindi, ozone gas in hindi.



Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading