पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन है चीड़

27 Dec 2021
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चीड़ के जंगल एक पर्यावरणीय समस्या
चीड़ के जंगल एक पर्यावरणीय समस्या

एलायंस फॉर रिवर (एएफआर) द्वारा टेक्नो हब के साथ संयुक्त रूप से जल उद्यमिता प्रशिक्षण शाला के 71वें सत्र के अंतर्गत 26 दिसंबर 2021 को आयोजित ऑनलाइन कार्यक्रम में बोलते हुए पदमश्री कल्याण सिंह रावत ने कहा कि आज पूरे उत्तराखंड राज्य में चीड़ के जंगल व्यापक रूप से फैल चुके हैं। इन चीड़ के जंगलों से उत्तराखंड को जंगल की आग, भूजल में कमी, पर्यावरण को नुक़सान हो रहा है। चीड़ के पौधे उत्तराखंड में ब्रिटिश काल में लाए गए और आज एक पर्यावरणीय समस्या के रूप में हैं। आज पहाड़ में चौड़ी पत्ती वाले पौधे जैसे बांज, बुरांश आदि को विकसित करने की आवश्यकता है जिससे भूजल में वृद्धि होगी और नौले, धारे में पर्याप्त जल होगा। पहाड़ी धारे ही गंगा, यमुना, पिंडर, कोसी आदि नदियों को जल आपूर्ति करते है जिससे इन नदियों में वर्ष भर जल रहता है।

आज आवश्यकता है कि ऐसे पौधों को रोपा जाए जो चारे के रूप में उपयोग हो सकें, इनसे जड़ी बूटी प्राप्त हो सके, भूजल का पुनर्भरण हो सके तथा गंगा और सहायक नदियां भी जीवित रह सकें, कृषि कार्य हेतु पर्याप्त जल मिल सके। अगर जल स्रोत में वर्ष भर जल होगा तब विभिन्न प्रकार के कार्य जैसे कृषि, बागवानी, घराट, छोटे छोटे व्यवसाय पहाड़ में किए जा सकेंगे तथा रोजगार और पलायन की समस्या को कम किया जा सकेगा। अतः पहाड़ के अनुकूल कार्य करते हुए पर्यावरण को बचाने के लिए सामुदायिक सहभागिता के साथ कार्य करना होगा।

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सत्र के द्वितीय व्याख्यान में उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवम् अनुसंधान केन्द्र (यूसर्क, USERC) देहरादून के वैज्ञानिक एवम् जल प्रशिक्षक डॉ भवतोष शर्मा ने बताया कि पहाड़ में जल के स्रोत होने के उपरांत भी जल की समस्या है जिसका कारण उचित जल प्रबंधन की कमी होना है। इस दिशा में जल शिक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियो एवम् ग्रामीण जनों के मध्य जल संरक्षण, जल गुणवत्ता एवम् स्वास्थ्य स्वच्छता विषयों पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों के द्वारा जागरूकता लाने जा प्रयास किया जा रहा है।

दूरस्थ स्थलों के विद्यालयों के छात्र छात्राओं के लिए वर्तमान समय में ऑनलाइन माध्यम से प्रतिमाह जल शिक्षा कार्यक्रम संचालित किया जा रहा है साथ ही साथ आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से भी यह कार्य संपादित किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त स्नातक एवम् स्नातकोत्तर स्तर के विद्यार्थियों हेतु जल विज्ञान प्रशिक्षण आयोजित किया जा रहा है जिसमें हैंड्स ऑन ट्रेनिंग, फील्ड विजिट, विशेषज्ञ व्याख्यान आदि क्रियाकलाप संपादित हो रहे हैं। जल शाला के माध्यम से जल स्रोतों का वैज्ञानिक अध्ययन विद्यार्थीओं को कराया जा रहा है। 

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प्रशिक्षित विद्यार्थियों को रोजगार एवम् आगे शोध संबंधी कार्यों में सफलता प्राप्त हुई है। आज आवश्कता इस बात की है कि वर्षा जल संग्रहण की विभिन्न विधियों को क्षेत्र की जरूरत के अनुसार अंगीकृत किया जाए, परंपरागत जल संरक्षण के तरीकों को अपनाया जाए, जल स्रोतों को   पुनर्जीवित करने एवम् प्रबंधन विषयक कार्यों को सामुदायिक सहभागिता के साथ सतत् रूप से चलाया जाए। पहाड़ी क्षेत्रों में जल गुणवत्ता के अंतर्गत टर्बिडिटी, टी डी एस, हार्डनेस, कॉलीफार्म बैक्टीरिया जैसे मुख्य पैरामीटर्स पर फोकस करते हुए इनके निदान हेतु जल शिक्षा के माध्यम से आम जन मानस को अवगत कराया जाए, समाधान विषयक प्रशिक्षण दिया जाए जिससे जल जनित बीमारियों से बचाव होगा ।कार्यक्रम में ए एफ आर के श्री संजय गुप्ता, श्री नागेश व्यास, श्रीमती रोशन आरा, अंकित तिवारी, डॉ दीपक खोलिया, शोभित मैठाणी सहित भारत के अलग अलग प्रदेशों से लोगों ने सहभागिता की और प्रश्नों का समाधान प्राप्त किया।

 

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