पुरखों के दफन खजाने से बेखबर वारिस किसान

16 जनवरी/2014/बुन्देलखण्ड क्षेत्र उत्तरप्रदेश में जन्में जमीदार परिवार के वारिस किसान को अपने बाबा-परबाबा की अकूत सम्पति और उनकी जमीदारी के गांवों की फेहरिस्त मुंह जबानी याद है। एक जमाने में देश के सुदूर क्षेत्र से आकर इस इलाके के गांव कहरा के जमींदार की सम्पत्ति जमीदारी की देख-रेख बावत नियुक्ति होने का कारण इनके परदादा की शिक्षा-दिक्षा थी। कुछ समय बाद उस जमींदार परिवार के वारिस भी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समय का चक्र चला तो इनके बाबा का विवाह चैरासी गांव टीहर के जमींदार की पुत्री के साथ हुआ। जिनके कोई पुत्र नहीं होने के कारण वारिस के रूप में वहां की चल -अचल सम्पत्ति इन्हें प्राप्त हुई। जमीदारी के चौरासी गांवों में से दो - तीन दर्जन गांव ससुराल पक्ष के नजदीकी रिश्तेदारों को सौंप दिये। चल सम्पत्ति की कीमती धातुएं चांदी सोने के अकूत भण्डार को कई दर्जन खच्चरों और बैलगाडि़यों में भरकर लठैतों की देख-रेख में अपने गांव कहरा लेकर आये तो ये चर्चा आम हुई।

पूर्व में परिचित एक साधू को इस अकूत सम्पत्ति जो बिना श्रम के निपुत्री जमींदार की मिली थी, की खबर मिली तो उस महात्मा ने इस सम्पत्ति के एक पाई को भी परिवार के लिए खर्चने की मनाही की । साधु ने कहा कि इसके इस्तेमाल से अशुभ होगा, वंश परम्परा अवरूद्ध होगी। साधु की भविष्यवाणी पर भरोसा मान अपने विश्वासपात्र रक्षकों के सहयोग से आनन-फानन इस अकूत खजाने को सदा-सदा के लिए धरती मां के हवाले कर दिया गया। वारिसों के लाख चाहने पर भी उसका पता ठिकाना कानो-कान किसी को हवा तक नहीं लग सकी। आज सभी वारिसों के पास सैकड़ों एकड़ जमीन होते हुए भी प्यासे खेतों की प्यास बुझाने के लिए पानी का जलस्त्रोत भी नहीं है। जिससे वह जमींदारी जमाने के खुख-वैभव के हिस्से की एक झलक भी देख सकें।

आखिर यह भी तो कर सकते थे-

वर्तमान नवसृजित जनपद महोबा के विकासखण्ड कबरई कस्बें में रह रहे जमींदार परिवार की तीसरी पीढ़ी के वारिस किसान अरूण पालीवाल को अपने पूर्वजों की दफन अकूत सम्पत्ति को पाने की लालसा तो नहीं है। न ही उसके नहीं होने की कोई कसक । पर वह इतना जरूर महसूस कर रहे हैं कि भले ही ऐसी सम्पत्ति का उपयोग परिवार के लिए अशुभ रहा हो, किन्तु उससे इस पूरे इलाके में पानी के प्रबन्धन वाले पुनीत कामों को बखूबी किया जा सकता था। इस पर दूरदर्शिता के साथ निर्णय लिया जाता तो पवित्र प्रयोग सम्भव होता।

किसान अरूण पालीवाल अपने उन्हीं पूर्वजों की पुस्तैनी जमीन के पैंतालीस एकड़ वाले बन्धान का उदाहरण देते हुए बतातें है कि आजादी के दशक के पहले यहाँ भीषण सूखा पड़ा था। सूखे के चलते अनाज और पानी के लिए संकट था। एक दिन कई गांव के श्रमिक किसानों ने आकर कहा कि संकट कैसे कटे तो बाबा ने ढांढस बंधाते कहा कि जब तक अन्न का भण्डार और धन है तो सब मिलकर उपयोग करें । ग्रामीणों ने कहा कि हम बिना श्रम के एक दाना अनाज भी नहीं लेंगे । तभी इस बन्धान का निर्माण कार्य एक पैसे खन्ती (सौ वर्ग फिट) मिट्टी कुछ आधा पैसे खन्ती पर पूरा हुआ। उस बंधान को पत्थर लगाकर दुरूस्त किया गया जिसकी मौजूदा निर्माण कीमत पैंतालीस एकड़ जमीन की आज मिलने वाली बाजारू कीमत से कहीं रंचमात्र भी कम नहीं है। जिसमें अकूत जल भण्डार भरने की क्षमता है । उस समय वर्षा जल प्रबन्धन के जो काम हुए थे वह आज भी फायदे पहुंचा रहे हैं। पालीवाल कहते हैं कि हर सदी मे पानी के प्रबन्धन वाले काम हर क्षेत्र में हुए हैं। जो समाज के चाहने से ही सम्भव है। ऐसे पुख्ता पानी के प्रबंधों को सदैव प्राथमिकता के साथ समाज मिलजुल कर करे तो अकूत खजानों का सदुपयोग सम्भव है। जिनके जहां-तहां भण्डार आज भी निष्प्रयोज्य पडे़ है।

बरुण ने खोजा खजाना अरुण का

तीसरी पीढ़ी के वारिस किसान अरुण पालीवाल का दूर दूर तक फैला कृषि फार्म सागर कानपुर रास्ट्रीयमार्ग से जुडा बरबई गाँव में स्थित है। उसी कृषि फार्म पर किसान पालीवाल अपने सहयोगियों के साथ सुबह से शाम तक खेती के काम देखते हैं। कुछ साल पहले पालीवाल को लकवा का प्रहार हुआ था जिससे शरीर में आई शिथिलता के बावजूद भी उनका हौसला अपनी खेती के लिए कमजोर नहीं हुआ ।परिवार में विभाजित जमीन के संवारने उसमे उत्पादन बढाने की अनवरत कोशिस भरी चिंता उनके सतत प्रयासों में झलकती दिखाई देती है। उनकी योजनाओं में अपनी प्यासी जमीन के लिए पानी के भरोसेबंद इंतजाम की प्राथमिकता है। ये कुदरत का करिश्मा ही कहेंगे कि कब किसके हाँथ क्या लग जाय।अट्ठारह मई दो हजार तेरह को ऐसा ही एक करिश्मा हुआ पालीवाल के जेहन में। अपना तालाब अभियान के तहत तालाब बनाने वाले चयनित किसानो के खेत में श्री अनुज कुमार झा जिलाधिकारी महोबा सभी आला अधिकारिओं सहित गाँव बरबई में आने वाले थे । पालीवाल को लगा कि ये काम तो मेरे लिए भी फायदे का है। यही वक्त था कि पालीवाल किसान ने निर्णय लेकर पहला तालाब बनाने के लिए जेसीबी मगवाकर पहला भूमिपूजन जिलाधिकारी के हांथो करवाया । तालाब का एक तिहाई निर्माण ही हो सका था, तभी पानी बरसने लगा जिससे काम रोंकना पड़ा।अधूरे तालाब की सोलह फुट गहराई में आया बर्षा का पानी आठ दस एकड़ फसल की सिंचाई के लिए पर्याप्त है।

बरसात के जाते और फसल बुआई के बाद दिसंबर में दूसरे खेत पर एक हेक्टेयर का तालाब बनाना शुरु कर दिया है। इस तालाब की गहराई बीस फुट तक ले जाने की कोशिस है। जिससे अपनी सौ एकड़ की फसल को फब्बारा सिंचाई का पानी बरसात में समेट सकें। किसान अरुण पालीवाल अब अप्रैल के पहले ही अपने तालाब को बना लेना चाहते हैं। कोई पूंछता है कि इतने बड़े तालाब की जरूरत क्या है, तो पालीवाल सीधा सा हिसाब बताते हुए कहते हैं कि एक गुना निकालो दस बीस गुना पालो। उनका मानना है खेत की एक गुना मिट्टी निकालने पर दस-बीस गुना भू-भाग की फसलों के लिए वर्षा जल संचित किया जा सकता है। जिससे गुणात्मक उत्पादन मिलना तय है। अपने निर्माणाधीन दोनों तालाबों से पालीवाल को भरोसा है कि बमुश्किल तीन चार कुंतल प्रति एकड़ होने वाला अधिकतम उत्पादन आसानी से आठ दस कुंतल प्रति एकड़ में पहुंच जायेगा ।

उन्हें उम्मीद हैं कि 100 एकड़ में प्रति वर्ष चार पांच सौ कुन्तल उत्पादन अतिरिक्त प्राप्त होगा । खर्च के रूप मंी मात्र डीजल खर्चा बढ़ेगा वह भी दो ढाई सौ रू० प्रति एकड़ । जो बीस से पच्चीस हजार रू० मात्र अतिरिक्त खर्च आने की उम्मींद हैं, जिसके एवज में अतिरिक्त भूसा भी होगा । पानी की उपलब्धता से बढ़े उत्पादन का पन्द्रह से बीस लाख रूपए सालाना के फायदे का भरोसा है। किसान अरुण पालीवाल के पुत्र अनुराग पालीवाल जो कभी खेती को अपने जीवन में बहुत उपयोगी नहीं समझ रहे थे। वह अपनी जमीन के बदले और कोई तात्कालिक प्रचलन वाले व्यापार को करने के लिए प्रयास कर रहे थे। अब अनुराग को अपना तालाब बनाने पर पूरा भरोसा है कि-पूर्वजों के इस प्रसाद रूपी जमीन से भी परिवार की जरुरत के साथ हम सम्मान सहित जीवन जी सकते है।अनुराग हर अच्छे काम से जो समाज और प्रकृति के लिए सहपूरक हो सकते हैं उनसे वाकिफ होने की चाहत रखते है। भले ही वह काम परिश्रम के रास्ते से गुजरता हो। अनुराग पालीवाल अपने पिता श्री अरुण पालीवाल के द्वारा बनवाये जा रहे तालाब में हर वर्ष इक्ट्ठा होने वाले वरुण देवता का दिया प्रसाद मान रहे हैं। इस पानी के प्रसाद से आने वाली अतिरिक्त फसल के फायदे को ही अनुराग पूर्वजों के द्वारा जमीन में दफ़न खजाने का वार्षिक लाभांश मान रहे हैं।

तालाब के पानी से दिखने लगा बदलाव

किसान अरुण पालीवाल के अधूरे तालाब में जो वर्षा का पानी संचित हुआ उसके प्रभाव का असर दिखने लगा है। तालाब से करीब दो सौ मीटर पर लगे कई साल पुराने कुआँ-बोरिंग जिसमे चलते-चलते तीन इंची पानी की निकासी डेढ़ इंची में तब्दील हो जाती थी । जिसमे इस साल पानी की निकासी तनिक मात्र भी कम नहीं हो रही है। जिससे कम समय में अधिक सिंचाई भी हुई और बिजली की बचत भी। पहले वर्षों के एवज में इस साल इसी कुआँ-बोरिंग से डेढ़ गुना अधिक फसल की सिंचाई करने का फायदा भी मिला है। इसके पीछे सिर्फ अपने खेत में अपने तालाब का निर्माण उसमे एकत्र हुआ वर्षा जल का प्रभाव है। अनुराग पालीवाल का मानना है कि पानी के साथ कई तरह की योजनायें बनने लगी हैं। अगले साल वह तालाब में मछली पालन कर एक फसली खेती की फसल को दो फसली बनाकर किसानो के लिए नई खेती का मार्ग प्रसस्त करेंगे।

किसान का पता
श्री अरुण पालीवाल
ग्राम- बरबई
विकासखंड- कबरई
जनपद महोबा,बुंदेलखंड उत्तरप्रदेश
संपर्क-०९४५०७०३१९६

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