पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

भूकम्प रोज-रोज तो आते नहीं हैं; यहाँ हमारे क्षेत्र में 1999 के बाद से नुकसान कर सकने वाला कोई भूकम्प नहीं आया है। भूकम्पों के बीच सालों या फिर दशकों का अन्तर होने के कारण हम में से ज्यादातर भूकम्प सुरक्षा के प्रति प्रायः उदासीन हो जाते हैं और देखा जाये तो हमारी यही उदासीनता भूकम्प से होने वाले ज्यादातर नुकसान के लिये जिम्मेदार है।
12 Feb 2017
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पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये
पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये


भूकम्प बहुत बड़े इलाके में अचानक तबाही ला सकता है और इससे हुये नुकसान से उबरने में हमारी उम्मीद से कहीं लम्बा समय भी लग सकता है। अब ऐसा भी नहीं है कि हम भूकम्प के खतरे और इससे बचने के बारे में जानते ही नहीं हैं। पर भूकम्प रोज-रोज तो आते नहीं हैं; यहाँ हमारे क्षेत्र में 1999 के बाद से नुकसान कर सकने वाला कोई भूकम्प नहीं आया है। भूकम्पों के बीच सालों या फिर दशकों का अन्तर होने के कारण हम में से ज्यादातर भूकम्प सुरक्षा के प्रति प्रायः उदासीन हो जाते हैं और देखा जाये तो हमारी यही उदासीनता भूकम्प से होने वाले ज्यादातर नुकसान के लिये जिम्मेदार है।

 

 

 

कहीं धरती न हिल जाये

(इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें)

क्रम

अध्याय

1

पुस्तक परिचय - कहीं धरती न हिल जाये

2

भूकम्प (Earthquake)

3

क्यों आते हैं भूकम्प (Why Earthquakes)

4

कहाँ आते हैं भूकम्प (Where Frequent Earthquake)

5

भूकम्पीय तरंगें (Seismic waves)

6

भूकम्प का अभिकेन्द्र (Epiccenter)

7

अभिकेन्द्र का निर्धारण (Identification of epicenter)

8

भूकम्प का परिमाण (Earthquake Magnitude)

9

भूकम्प की तीव्रता (The intensity of earthquakes)

10

भूकम्प से क्षति

11

भूकम्प की भविष्यवाणी (Earthquake prediction)

12

भूकम्प पूर्वानुमान और हम (Earthquake Forecasting and Public)

13

छोटे भूकम्पों का तात्पर्य (Small earthquakes implies)

14

बड़े भूकम्पों का न आना

15

भूकम्पों की आवृत्ति (The frequency of earthquakes)

16

भूकम्प सुरक्षा एवं परम्परागत ज्ञान

17

भूकम्प सुरक्षा और हमारी तैयारी

18

घर को अधिक सुरक्षित बनायें

19

भूकम्प आने पर क्या करें

20

भूकम्प के बाद क्या करें, क्या न करें

 

अब भूकम्प तो किसी को मारता नहीं है; सारा का सारा नुकसान जमीन के हिलने पर भरभरा कर गिर जाने वाले घरों, मकानों व अन्य के कारण ही होता है। जब हम ऐसी संरचनायें बनाना अच्छी तरह से जानते हैं जो भूकम्प के इन झटकों का सामना कर सके तो ऐसे में भूकम्प से होने वाले नुकसान के लिये एक हद तक हम खुद भी जिम्मेदार हैं।

वैसे देखा जाये तो हम में से ज्यादातर को भूकम्प एक बड़ा खतरा लगता ही नहीं है और शायद ऐसा जानकारी की कमी के कारण हो। खतरे को जानने-समझने के बाद तो शायद ही कोई जानबूझ कर अपने परिवार व परिजनों के जीवन का जोखिम उठाने को तैयार हो।

1344 व 1803 में यहाँ उत्तराखण्ड में आये भूकम्पों के बारे में तो शायद आप न जानते हो पर आप में से कइयों ने 1991 व 1999 में उत्तरकाशी व चमोली में भूकम्प से हुयी तबाही को जरूर देखा होगा। जैसा वैज्ञानिक बताते हैं, यहाँ, इस क्षेत्र में निकट भविष्य में बड़े भूकम्प का आना तय है; बड़ा मतलब सच में बड़ा और विनाशकारी, शायद उत्तरकाशी या चमोली में आये भूकम्प से 50 या फिर 100 गुना शक्तिशाली। ऐसे में बीत रहे हर पल के साथ हम न चाहते हुये भी उस भूकम्प के और ज्यादा करीब जा रहे हैं। ऐसे में यदि समय रहते हमने कुछ नहीं किया तो उस भूकम्प से होने वाली तबाही हमारी कल्पना से कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है। कोशिश कर के हम निश्चित ही इस तबाही को कम कर सकते हैं और अपने परिवार व परिजनों की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं।

यह पुस्तक प्रयास है भूकम्प से जुड़ी विभिन्न जानकारियों को सरल भाषा में आप तक पहुँचाने का ताकि आप इस क्षेत्र में आसन्न भूकम्प के खतरे की गम्भीरता को समझ कर समय रहते बचाव के उपाय कर पायें।

यदि आपको यह जानकारियाँ उपयोगी लगती हैं तो इनको अपने सगे सम्बन्धियों, मित्रों व शुभचिन्तकों के साथ बाँटे और इनके प्रचार-प्रसार में हमारा सहयोग करें।

इस पुस्तक में दी गयी जानकारियों को ज्यादा प्रभावी बनाने के लिये आपके सुझावों का हमें इन्तजार रहेगा।

फरवरी, 2017, देहरादून (पीयूष रौतेला)
 

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