पवन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में रोजगार के सुनहरे अवसर


बाड़मेर जैसे विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र के 28,387 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल के 1640 गाँवों में 13 लाख 50 हजार के लगभग ग्रामीण आबादी निवास करती है। जिले के विशाल भू-भाग के गामीण क्षेत्रों में दूर-दूर स्थित ढाणियों में एक-एक या दो-दो परिवार निवास करते हैं। इस परिस्थिति में सरकार के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल एवं ऊर्जा जैसी सामान्य सुविधा को जुटा पाना बहुत मुश्किल कार्य है। इसमें भी पेयजल की निकासी एवं आपूर्ति ऊर्जा पर ही निर्भर है। सम्पूर्ण विश्व में ऊर्जा सम्बन्धित आवश्यकताओं को कम लागत पर पूरा करने के लिये ऊर्जा के परम्परापगत साधनों के विकास के साथ-साथ अपरम्परागत साधनों के विकास एवं उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

भारत सरकार ने भी इस क्रम में ऊर्जा सम्बन्धी नीतियाँ और कार्यक्रमों को तैयार करने के लिये 12 मार्च 1981 को उच्चाधिकार प्राप्त अतिरिक्त ऊर्जा स्रोत आयोग की स्थापना की। तत्पश्चात आयोग की नीतियाँ एवं कार्यक्रमों को लागू करने के लिये 6 दिसम्बर, 1982 को गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोत विभाग की स्थापना की गई।

पृथ्वी पर अपरम्परागत ऊर्जा का असीमित एवं कभी समाप्त न होने वाला भण्डार उपलब्ध है जो कि प्रकृति के अनुपम देन है। विश्व के अनेक देशों में इस प्राकृतिक ऊर्जा के संसाधनों का भरपूर दोहन करके ऊर्जा आवश्यकता को पूरा किया जा रहा है।

भारत में भी इस समय 150 से अधिक निर्माता फिर से उपयोग में लाई जा सकने वाली प्रणालियों और पद्धतियों के विकास एवं उत्पादन में लगे हुए हैं। इनमें सौर प्रणाली, पवनचक्की, परिष्कृत चूल्हे और बायोगैस संयंत्र शामिल हैं।

भारत में ‘पवन ऊर्जा’ दूरस्थ क्षेत्रों, पहाड़ी इलाकों तथा समुद्री तटों वाले क्षेत्रों में निवासियों की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में क्रान्तिकारी भूमिका निभा सकती है। देश में पवन ऊर्जा कार्यक्रम ‘वाटर पम्पिंग’, ‘बैटरी चार्जिंग’ एवं ‘पावर जेनरेटिंग’ के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।

इस कार्यक्रम को गति प्रदान करने के लिये देश के तकनीकी शिक्षा प्राप्त युवा अपने तकनीकी ज्ञान के आधार पर पवन संसाधन का उपयोग करते हुए ऊर्जा संरक्षण, विपणन एवं संग्रहण का कार्य न कर केवल ग्रामीण विकास में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं बल्कि इसे आय का साधन भी बना सकते हैं।

भारत ने आठवीं योजना में अपारम्परिक ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन का लक्ष्य 600 मेगावाट से बढ़ाकर 2,000 मेगावाट किया है। इस क्रम में वर्तमान में देश ने पवन ऊर्जा से 114 मेगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता अर्जित कर ली है जिसमें लगभग 20 प्रतिशत निजी क्षेत्र की क्षमता है। पवन मानचित्रण के लिये 251 और पवन मूल्यांकन के लिये 88 केन्द्र भी बनाए गए हैं।

बाड़मेर जैसे विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र के 28,387 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल के 1640 गाँवों में 13 लाख 50 हजार के लगभग ग्रामीण आबादी निवास करती है। जिले के विशाल भू-भाग के गामीण क्षेत्रों में दूर-दूर स्थित ढाणियों में एक-एक या दो-दो परिवार निवास करते हैं।

इस परिस्थिति में सरकार के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल एवं ऊर्जा जैसी सामान्य सुविधा को जुटा पाना बहुत मुश्किल कार्य है। इसमें भी पेयजल की निकासी एवं आपूर्ति ऊर्जा पर ही निर्भर है।

इन ग्रामीण क्षेत्रों के आईटीआई, पॉलीटेकनिक, अभियांत्रिकी या विज्ञान के छात्रों को यदि पवन संसाधन द्वारा पवन चक्की के माध्यम से ऊर्जा के उत्पादन, संरक्षण, विपणन तथा संग्रहण के लिये उत्प्रेरित किया जाये तो केवल इन बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिलेगा बल्कि स्थानीय ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति भी की जा सकती है।

पश्चिमी राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में वर्ष भर तेज हवाएँ एवं आँधियाँ चलती रहती हैं। जिनका लाभ उठाते हुए ‘पवन चक्की आपरेटर’ अपने यन्त्रों के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन कर इसे अपनी आय का जरिया बना सकते हैं।

उत्पादित ऊर्जा के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्र में कुओं से पानी निकालने, बैटरी चार्जिंग एवं विद्युत उत्पादन का कार्य आसानी से किया जा सकता है। बाड़मेर जिले के मरुस्थलीय गाँवों एवं ढाणियों में ‘पवन ऊर्जा’ का उत्पादन एवं उपयोग समस्याएँ स्वतः ही समाप्त हो जाएँगी तथा ग्रामीण विकास का मार्ग प्रशस्त होगा।

चालू पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत देश में निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए एक सौ मेगावाट पवन ऊर्जा की अतिरिक्त क्षमता की स्थापना की योजना प्रस्तावित है। निजी क्षेत्र के पवन ऊर्जा कार्यक्रम में प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के लिये तमिलनाडु, गुजरात, कर्नाटक एवं आन्ध्र प्रदेश राज्य सरकारें विशेष प्रयास कर रही हैं। इन सरकारों ने ‘पवन विद्युत जनरेटर’ के स्वदेशी उत्पादन की क्षमता को बढ़ाने पर बल देने का मानस भी बनाया है।

उल्लेखनीय है कि भारत में लगभग एक दशक पूर्व समुद्री किनारे वाले क्षेत्रों में उद्यमिता विकास कार्यक्रम के तहत ‘पवन ऊर्जा’ की महत्ता ध्यान में लाई गई। वर्ष 1992 तक देश में पवन ऊर्जा आधारित 151 ‘डीप विण्ड पम्प’ स्थापित किये जा चुके थे तथा 89 पम्पों का कार्य प्रगति पर था। इनमें से राजस्थान में 19 पम्प स्थापित किये गए।

वर्तमान में देश में ‘राष्ट्रीय पवन शक्ति कार्यक्रम’ के तहत निर्धारित क्षमता में से 303 ‘पवन विद्युत जनरेटर’ स्थापित हैं जिनका इकाई आकार 55-300 किलोवाट हैं देश में ‘पवन विद्युत जनरेटर’ के लिये सरकार ने कई लाभदायक प्रबन्धन निर्धारित कर रखे हैं।

कस्टम की एक अधिसूचना के अनुसार जनरेटर के उत्पादकों एवं विनिर्माताओं द्वारा लगभग इन कलपुर्जों का बिना ड्यूटी आयात किया जा सकता है। इस क्षेत्र में स्वदेशी यन्त्रों को बढ़ावा देने के लिये व्यापारिक अवरोध को कम करते हुए पूरे पवन टरबाईन की स्थापना के लिये 40 प्रतिशत कस्टम शुल्क में रियायत का प्रावधान किया गया है। इन संयंत्रों की स्थापना के एक वर्ष के लिये करों में छूट का प्रावधान भी किया गया है।

वाणिज्य कर एवं उत्पाद शुल्क में छूट तथा ‘इण्डियन रिनवेबल इनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी’ के माध्यम से विभिन्न रियायतों सहित वित्तीय सहायता की सुविधा भी उद्यमियों को सुलभ करवाई जाती है। कुछ राज्यों में ऊर्जा बैंकिंग एवं ऊर्जा क्रम करने की व्यवस्था भी सरकार द्वारा प्रदत्त है।

ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोतों का उपयोग करने वाले उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कम्पनी अधिनियम के तहत सरकारी कम्पनी के रूप में ‘भारतीय नवीनीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी’ को पंजीकृत कर रखा है। यह कम्पनी गैर परम्परागत ऊर्जा स्रोतों के क्षेत्र में परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता, कीमतों में रियायत तथा आयकर, विक्रीकर, केन्द्रीय उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क में छूट की विशेष सुविधाएँ प्रदान करवाती हैं।

देश में पवन ऊर्जा का औसत वार्षिक आउटपुट 4,00,000 किलोवाट है तथा यह 120-200 टन कोयले का विकल्प है। इसके अलावा एक 200 किलोवाट का ‘पवन विद्युत जनरेटर’ 2-3.2 टन सल्फर डाइआॅक्साइड, 16-18 धातु का मल, 1.2-2 टन नाइट्रोजन ऑक्साइड, 300-500 टन कार्बन डाइऑक्साइड तथा भारी मात्रा में वायुमण्डल में उड़ने वाली राख से प्रतिवर्ष हमें प्रदूषण से मुक्त रखता है।

देश की एक निजी कम्पनी ‘आरआरबी कन्सल्टेन्ट्स एण्ड इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड’ ने ‘पवन ऊर्जा’ के क्षेत्र में आदर्श प्रस्तुत किया है तथा वर्तमान में 12 राज्यों में करीबन 125 से अधिक पवन जनरेटर स्थापित किये हैं। इन वायु शक्ति केन्द्रों पर लगभग 20 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी किया जा रहा है।

इस क्षेत्र में कार्यरत एक सिद्ध हस्त अभियन्ता पद्मश्री राजेश बख्शी के अनुसार देश में वायु शक्ति से 25 हजार मेगावाट ऊर्जा उत्पादित करने की सम्भावना है। उन्होंने बताया कि थोड़े से तकनीकी ज्ञान के आधार पर और चार माह की अल्प अवधि में ‘पवन टरबाइन’ स्थापित की जा सकती है जिसके माध्यम से 90-95 पैसे प्रति यूनिट लागत पर विद्युत उत्पादन सम्भव है।

लगभग 20 वर्ष तक चलने वाले वायु शक्ति केन्द्र की स्थापना लागत लगभग 12 से 15 हजार रुपए आँकी गई है। श्री बख्शी की एक कम्पनी ‘आरआरबी बेस्टास’ भी है जो हालैण्ड के सहयोग से पवन टरबाइनों के निर्माण में सक्रिय है।

इस कम्पनी का सबसे महत्त्वाकांक्षी ‘पवन ऊर्जा केन्द्र’ पोरबन्दर के पास ‘लाम्बा गाँव में स्थित है। दस मेगावाट क्षमता वाला यह पवन शक्ति आधारित उद्यम एशिया का सबसे बड़ा वायुशक्ति केन्द्र है तथा पवन चक्कियों वाले देश हालैण्ड के सबसे बड़े वायु शक्ति केन्द्र की क्षमता के मुकाबले मात्र दो मेगावाट कम है। लगभग 30 करोड़ रुपए की लागत वाला यह केन्द्र प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों का कारोबार करता है तथा वहाँ तैयार की गई बिजली गुजरात राज्य का बिजली बोर्ड क्रय करता है।

राजस्थान में विद्युत संकट हमेशा मुश्किल लगता है। ऐसे हालात में गाँव-गाँव में पवन ऊर्जा संयंत्रों के आपरेटरों के आगे आने की काफी आवश्यकता है जो कि ऊर्जा की स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हुए स्वयं रोजगार की प्राप्ति कर सकें।

इन युवा आपरेटरों को स्थानीय आईटीआई, पाॅलीटेककनीक, अभियांत्रिकी तथा विज्ञान काॅलेजों में अपरम्परागत ऊर्जा विषयों में तथा ट्रेडों में प्रशिक्षित कर तैयार किया जा सकता है तथा स्वरोजगार योजना के माध्यम से ये संयंत्र लगाने के लिये उत्प्रेरित किया जा सकता है। जब ये आॅपरेटर ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा उत्पादन शुरू कर देंगे तब उन्हें सरकारी स्तर पर ‘ऊर्जा विपणन’ की सुविधा प्रदान कर ग्रामीण क्षेत्रों में ‘ऊर्जा और रोजगार’ दोनों संकट समाप्त किये जा सकते हैं।

हनुमान मन्दिर के पीछे,
सदर बाजार,
बाड़मेर (राज.)

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