फ्लोरोसिस और आयोडीन की कमी है खतरनाक

6 Oct 2018
0 mins read
फ्लोरोसिस
फ्लोरोसिस

क्या आपको पता है कि पानी के साथ ही खाद्य पदार्थों में फ्लोराइड की अधिकता और भोजन में आयोडीन की कमी से कितनी बीमारियाँ हो सकती हैं? नहीं! तो जान लीजिए। फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से 10 गम्भीर बीमारियाँ हो सकती हैं। इस बात की चर्चा ए.के. सुशीला ने हाल ही में प्रकाशित अपने समीक्षा आलेख (review article) में किया है।

फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से पैदा होने वाली बिमारियों में घेंघा रोग, बौनापन, लो आई क्यू, ब्रेन डैमेेज, गूँगापन और बहरापन, थायरॉइड ग्रंथि से हार्मोन के स्राव में विषमता, हड्डियों में विषमता, बौद्धिक विकलांगता, मनोरोग और गर्भवती महिलाओं द्वारा अविकसित बच्चों के साथ ही मरे हुए बच्चों को जन्म देना आदि शामिल हैं।

भारत में फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियाँ लगातार अपना पैर पसार रही हैं। पानी में फ्लोराइड की अधिकता से देश के कुल 35 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 20 बुरी तरह प्रभावित हैं। फ्लोराइड की अधिकता से होने वाली बीमारियाँ महामारी का रूप लेते जा रही हैं।

स्वच्छ पानी और खाद्य सुरक्षा सभी की एक अदद जरूरत है लेकिन भारत सरकार इन्हें सुनिश्चित करने से अभी कोसों दूर है। फ्लोरोसिस मूलतः दूषित भूजल के इस्तेमाल से होता है। भारत में करोड़ों की आबादी हैण्डपम्प, कुओं और ट्यूबवेल से निकले पानी का इस्तेमाल करती है। इसके शोधित न होने के कारण साल-दर-साल लाखों लोग फ्लोरोसिस की चपेट में आते जा रहे हैं।

तय मानक के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा प्रति लीटर 1 मिलीग्राम से कम होनी चाहिए लेकिन देश के कई इलाकों में इसकी मात्रा काफी अधिक है। यह भी तथ्य सामने आया है कि इस मानक यानि प्रति लीटर 1 मिलीग्राम से कम फ्लोराइड की मात्रा वाले पानी का इस्तेमाल करने वाले लोग भी फ्लोरोसिस की चपेट में आ रहे हैं। इसकी मूल वजह सेंधा नमक का इस्तेमाल बताई जा रही है। सेंधा नमक में कैल्शियम फ्लोराइड की मात्रा (157.0 पीपीएम) तक पाई गई जो काफी अधिक है।

भारत में भोजन और पेय पदार्थों की लज्जत बढ़ाने के लिये सेंधा नमक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसीलिए अब फ्लोरोसिस केवल पानी के इस्तेमाल तक ही सीमित नहीं रह गया यह भोजन और पेय पदार्थों के माध्यम से भी आपके शरीर तक अपनी पहुँच बना सकता है।

फ्लोराइड के ठीक उलट आयोडीन की कमी ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में जकड़ रखा है। लोगों में आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा रोग के बढ़ते मामलों को देखते हुए भारत सरकार ने 1962 में राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम (national goitre control programme) चलाया था।

सरकार ने देश की पूरी आबादी (90 प्रतिशत से ज्यादा) को आयोडीन युक्त नमक मुहैया कराने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन 25 वर्षों में आयोडीन युक्त नमक का इस्तेमाल करने वाले घरों का प्रतिशत (78) तक ही पहुँच पाया है जो पूर्व में 49 प्रतिशत था।

तयशुदा मानक के अनुसार नमक में यदि आयोडीन की मात्रा 15 पीपीएम से ज्यादा हो तो उसे आयोडीनयुक्त माना जाता है और यदि 5 पीपीएम से कम हो उसे आयोडीन रहित माना जाता है। आयोडीन का इतेमाल आवश्यकतानुसार करना जरूरी होता है क्योंकि यह थायरॉइड ग्रंथि से टेट्राआयोडोथीरोनिन (T4) और ट्राइआयोडोथीरोनिन (T3) हार्मोन के स्राव के लिये बहुत जरूरी होता है।

आयोडीन के प्राकृतिक स्रोत सब्जियाँ और खाद्य पदार्थ होते हैं। इनको आयोडीन मिट्टी से मिलता है। लेकिन कालान्तर में मिट्टी में आयोडीन की मात्रा में कमी आती जा रही है इसीलिये इसे अन्य स्रोत से पूरा करना आवश्यक होता है। व्यक्ति में आयोडीन की जाँच उसके पेशाब में मौजूद इसकी मात्रा से होती है।

पूर्व में केवल घेंघा और बौनापन को ही आयोडीन की कमी से उत्पन्न होने वाली बीमारी माना जाता था लेकिन जैसाकि ऊपर बताया गया है इससे कई अन्य गम्भीर बीमारियाँ भी होती हैं। आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों के लक्षण अपने प्रारम्भिक चरण में नहीं दिखते लेकिन जब इनका पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

इस समीक्षा आलेख का पहला उद्देश्य फ्लोराइड की अधिकता से घेंघा रोग सहित अन्य बीमारियों के होने की बात को उजागर करना क्योंकि पहले आयोडीन की कमी को ही इनके होने की वजह माना जाता था। वहीं इसका दूसरा उद्देश्य फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से होने वाली बीमारियों के बीच के सम्बन्ध को उजागर करना भी है।

शरीर में आयोडीन की उचित मात्रा रहने पर भी घेंघा रोग हो सकता है। यह थायरॉइड ग्रंथि को पूरी तरह तहस-नहस कर देता है। इस सम्बन्ध में भारत में 9 अध्ययन और अन्य देशों में 8 अध्ययन किये जा चुके हैं। फ्लोराइड की अधिकता और आयोडीन की कमी से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ पर्यावरण के ह्रास से भी जुड़ी हुई हैं जिनका निदान किया जाना आवश्यक है।

भारत में फ्लोरोसिस को नियंत्रित करने का प्रयास 1987 में आरम्भ किया गया। इसके लिये मूलतः ग्रामीण भारत में तयशुदा मानक के अनुसार फ्लोराइड वाले पानी की सप्लाई को बढ़ावा दिया गया। लेकिन पानी से अधिक फ्लोराइड की मात्रा को निकालने से सम्बन्धित तकनीक के फेल हो जाने के बाद लोग वही पानी पीते रहे और समस्या बढ़ती गई।

उस समय तक खाद्य पदार्थों के माध्यम से भी फ्लोरोसिस होने की बात सामने नहीं आई थी। आरम्भ में फ्लोराइड की समस्या से लड़ने की जिम्मेवारी पेयजल मंत्रालय और ग्रामीण विकास मंत्रालय मिलकर सम्भालते थे। वहीं, आयोडीन की कमी से जूझने की जिम्मेवारी इन मंत्रालयों के अलावा साल्ट कमिश्नर के कन्धों पर थी।

जब यह पता लगा कि इन समस्याओं से लड़ने के लिये लम्बा वक्त चाहिए तो इन्हें राष्ट्रीय प्लान के तहत लाया गया और यह जिम्मेवारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को दी गई। पूर्व से जुड़े मंत्रालय और विभाग सहायक की भूमिका में रहे। राष्ट्रीय फ्लोरोसिस निवारण और नियंत्रण कार्यक्रम (national programme on prevention and control of fluorosis, NPPCF) को 11वीं पंचवर्षीय योजना काल में 2005 में शामिल किया गया। लेकिन इस दिशा में काम की शुरुआत 2008-09 में हुई। फिर पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को देश के सभी पानी के स्रोतों को टेस्ट करने की जिम्मेवारी दी गई।

इस दरम्यान पानी में फ्लोराइड की मात्रा 1.1 से 48.0 मिलीग्राम प्रति लीटर तक दर्ज की गई। इसके बाद एनपीपीएफ के तहत सभी जलस्रोतों का टेस्ट किया जाना आवश्यक कर दिया गया। टेस्ट में लगे लोगों को आयोन मीटर के इस्तेमाल और रख-रखाव के लिये स्पेशल ट्रेनिंग दी गई। आयोन मीटर की सहायता से ही पानी में फ्लोराइड की उपस्थिति की मात्रा का पता लगाया जाता है।

देश में फ्लोराइड की समस्या से ग्रसित लोगों की संख्या में काफी वृद्धि दर्ज है। मनुष्य के शरीर में फ्लोराइड की मात्रा में वृद्धि पानी के अलावा अन्य माध्यमों जैसे भोजन, पेय पदार्थों, मसालों और वैसे चूर्ण जिनमें सेंधा नमक मिला होता है उनके सेवन से भी हो सकती है। इसीलिए शरीर में फ्लोराइड की मात्रा का पता लगाने के लिये अब पेशाब के जाँच की व्यवस्था अपनाई जा रही है।

इसके साथ ही फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति को जल्दी लाभ मिले इसके लिये अब खाने में से फ्लोराइड की उपस्थित वाले सभी पदार्थों के हटाने के अलावा आहार परामर्श पर जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही मरीज के आहार में पोषक तत्वों, विटामिन, मिनरल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स आदि की मौजूदगी पर भी जोर दिया जा रहा है। इसीलिए यह जरूरी हो गया है कि फ्लोरोसिस के इलाज और जाँच व्यवस्था में सुधार किया जाये।

घेंघा रोगघेंघा रोग (फोटो साभार - विकिपीडिया)आयोडीन की कमी से लड़ने के लिये चलाए जा रहे कार्यक्रम को 1992 से नेशनल आयोडीन डेफिशियेंसी डिसऑर्डर कंट्रोल प्रोग्राम (national iodine deficiency disorder control programme, NIDDCP) के नाम से जाना जाने लगा। इसके पीछे का उद्देश्य था कि आयोडीन की कमी से उत्पन्न होने वाले विकारों को प्रारम्भिक अवस्था में ही नियंत्रित कर लिया जाये। इसी का प्रतिफल है कि भारत की 92 प्रतिशत आबादी आज आयोडीन युक्त इस्तेमाल करती है।

1962 से 2017 के बीच भारत में आयोडीन की कमी से होने वाले घेंघा रोग में व्यापक स्तर पर सुधार हुआ है। लेकिन ज्यादा या पर्याप्त मात्रा में आयोडीन की उपलब्धता वाले इलाकों में घेंघा रोग के मामले अभी भी सामने आ रहे हैं। इसका कारण पानी, खाद्य और पेय पदार्थों में फ्लोराइड की अधिकता का होना माना जा रहा है।

जानवरों में फ्लोराइड की अधिकता से थायरॉइड ग्रंथि पर पड़ने वाले प्रभाव का पहला उल्लेख 1854 में फ्रांस में प्रकाशित एक जर्नल में मिलता है। इसमें कहा गया है कि सोडियम फ्लोराइड की डोज 20 से 120 मिलीग्राम प्रतिदिन एक कुत्ते को चार महीने तक दी गई जिससे उसे घेंघा रोग हो गया। इसके बाद 1979 में अमरीका के मिशिगन में हिलमैन एट अल (hillman et al ) में प्रकाशित एक स्टडी में कहा गया कि गायों की दाँत और हड्डियों पर भी फ्लोराइड के अधिक मात्रा का प्रभाव पड़ता है। उनके भोजन में अनुपूरक मिनरल की अधिक मात्रा के कारण उनके पेशाब में फ्लोराइड की मात्रा काफी बढ़ जाती है।

फ्लोरोसिस से ग्रसित जानवरों में हाइपोथायरॉइडिज्म, एनीमिया, इओसिनोफिलिया जैसी बीमारियाँ देखने को मिलती हैं। उनके पेशाब में फ्लोराइड की मात्रा के बढ़ने से फ्री टेट्राआयोडोथोरोनीन (free tetraiodothyronine (FT4)) और फ्री ट्राइआयोडोथोरोनीन (Free triiodothyronine (FT3)) जैसे तत्त्व उनके वीर्य में कम हो जाते हैं। इसके अलावा चूजों, मादा चूहों और उनके बच्चों आदि में भी अधिक फ्लोराइड से सम्बन्धित मामले देखने को मिले हैं।

चूजों में फ्लोराइड की मात्रा के अधिक होने पर उनके थायरॉइड ग्रंथि में फ्लोराइड जमा होता जाता है। शोधों में यह पाया गया है कि गायों के मेटाबोलिज्म में फ्लोराइड की अधिकता से 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट आ जाती है।

1923 में यूएस पब्लिक हेल्थ सर्विस में प्रकाशित हुए आलमंड एफडब्ल्यू द्वारा सर्जन जनरल को लिखे गए पत्र में उन्होंने बताया था कि इडाहो में 12 से 15 साल के बच्चों द्वारा लगातार 6 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोराइड की मात्रा वाले पानी का सेवन करने से उन्हें घेंघा रोग हो गया। उन्होंने बताया कि मनुष्य का शरीर तो 1 मिलीग्राम प्रति लीटर फ्लोराइड की मात्रा वाले पानी के लगातार सेवन को बर्दाश्त कर सकता है लेकिन 6 मिलीग्राम प्रति लीटर को नहीं।

ज्यादा फ्लोराइड की मात्रा वाले पानी का सेवन तो अमरीका में बहुत पहले से रिकॉर्ड में था लेकिन इस सूचना को वर्षों तक नजरअन्दाज किया गया। अन्ततः 2015 में अमरीकी स्वास्थ्य विभाग ने पानी में फ्लोराइड की मात्रा को नियंत्रित करने सम्बन्धी आदेश जारी किये जिसके तहत सामुदायिक स्तर पर पानी में फ्लोराइड की मात्रा के मानक तय किये गए जिसमें 1962 में जारी निर्देश के जरूरी हिस्सों को शामिल किया गया था।

नए मानक के अनुसार पानी में फ्लोराइड की मात्रा 0.7 मिलीग्राम प्रति लीटर तय की गई है जो पहले 0.7 से 1.2 मिलीग्राम थी। भारत के सन्दर्भ में फ्लोराइड से होने वाले घेंघा का पहला केस एक ब्रिटिश वैज्ञानिक द्वारा 1941 में रिपोर्ट किया गया था। पंजाब प्रान्त का एक बच्चा इस बीमारी से ग्रसित पाया गया था। इस रिपोर्ट में यह रेखांकित किया गया था कि उस बच्चे को यह बीमारी अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड युक्त पानी के सेवन करने से हुई थी।

इसके अलावा एक चीनी रिपोर्ट में भी यह चर्चा की गई है कि पर्याप्त मात्रा में आयोडीन का सेवन करने के बाद भी लोगों में थायरॉइड से सम्बन्धित बीमारी देखने को मिल रही है। एक अन्य चीनी रिपोर्ट में कहा गया है कि 7 से 14 साल के बच्चों में आयोडीन की उचित मात्रा लेने के बाद भी अधिक फ्लोराइड की मात्रा वाले पानी के पीने से उनकी बौद्धिक क्षमता काफी कमजोर हो गई थी। इससे पता चलता है कि पानी में आवश्यकता से अधिक फ्लोराइड की मात्रा थायरॉइड के साथ ही बौद्धिक क्षमता को भी गम्भीर हानि पहुँचाता है।

गुजरात से आई एक रिपोर्ट के मुताबिक पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा होने के कारण भी दाँतों के फ्लोरोसिस के अलावा घेंघा से लोग ग्रसित हो रहे हैं। रूस से आई एक रिपोर्ट के मुताबिक जो औद्योगिक कामगार जरूरत से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के सम्पर्क में रहते हैं उनमें FT3 हार्मोन की मात्रा 51 प्रतिशत तक की कमी हो जाती है। दक्षिण अफ्रीका से आई एक रिपोर्ट में एक निश्चित से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन करने के कारण बच्चों में घेंघा रोग से ग्रसित होने के मामले बढ़ रहे हैं।

भारत के चार क्षेत्र जहाँ पानी में फ्लोराइड की मात्रा 2.4 से 13.5 मिलीग्राम तक थी उन क्षेत्रों के 6 से 12 साल के 200 बच्चों का परीक्षण किया गया। जिसका उद्देश्य उनमें सीरम पैराथायरॉइड हार्मोन्स (serum parathyroid hormones) के स्तर का पता लगाना था। सीरम पैराथायरॉइड हार्मोन, स्केलेटल फ्लोरोसिस के प्रभाव को और भी बढ़ा देता है। सभी बच्चे डेंटल फ्लोरोसिस से ग्रसित थे।

दिल्ली में भी एक ऐसा ही अध्ययन किया गया है। 2015 में केरल के बच्चों में भी पाया गया कि वे घेंघा से ग्रसित थे जबकि उनके पेशाब में आयोडीन की मात्रा सामान्य थी। डेंटल फ्लोरोसिस से ग्रसित बच्चों में हड्डी से जुड़े रोगों के होने की बात सामान्य है लेकिन अभी तक इस समस्या का समुचित हल नहीं निकाला जा सका है।

बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कम मात्रा उनके और उनके बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसी महिलाओं में गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म, मरे हुए बच्चे का जन्म जैसी समस्याओं के होने की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा इनके बच्चों में शिशु मृत्यु दर और कम बौद्धिक विकास की सम्भावना बहुत ज्यादा होती है।

अधिक जानकारी के लिये अटैचमेंट देखें।

 

 

 

TAGS

fluorosis, iodine deficiency, goitre, low IQ, cretinism, hypothyroidism, brain damage, mental retardation, psychomotor defects, hearing and speech impairment, abortion and stillbirth in pregnant women, national programme on prevention and control of fluorosis, national iodine deficiency disorders control programme, fluorosis among animals, fluorosis among children, iodine deficiency among women, national goitre control programme, serum parathyroid hormones, rock salt, does fluoride blocks iodine absorption, iodine fluoride formula, iodine removes fluoride, fluoride iodine thyroid, fluoride and iodine absorption, iodine and fluoride, fluoride studies, iodine fluoride detox, What are the symptoms of low iodine?, What foods contain iodine naturally?, What happens if you dont get enough iodine?, Can you test for iodine deficiency?, What is the most common cause of iodine deficiency?, What foods are high in iodine?, What are the symptoms of too much iodine?, What food has a lot of iodine?, Is pineapple high in iodine?, Can you drink iodine?, Is there iodine in sea salt?, What are foods that contain iodine?, Is there a blood test for iodine deficiency?, Is iodine dangerous?, Is iodine poisonous to humans?, iodine deficiency treatment, iodine deficiency test, iodine deficiency symptoms, iodine deficiency disorders, how to prevent iodine deficiency, prevention of iodine deficiency, iodine deficiency hair loss, iodine deficiency symptoms nhs, goitre problems in india, iodine deficient areas in india, prevalence of hyperthyroidism in india, statistics of thyroid disorders in india, prevalence of iodine deficiency in india 2017, prevalence of thyroid disorders in india 2016, prevalence of thyroid disorders in india 2017, most common cause of hypothyroidism in india, indian celebrities with thyroid problem, flousis in india, What is fluorosis disease?, What is endemic fluorosis?, What is fluorosis Wikipedia?, Can fluorosis be treated?, How do you prevent fluorosis?, Can fluorosis go away?, When can fluorosis occur?, How can you prevent fluorosis?, Can fluorosis occur in adults?, Can fluorosis be whitened?, Is fluoridated water dangerous?, fluorosis in india pdf, distribution of fluorosis in india, fluorosis in india, ppt,, prevalence of fluorosis in india, dental fluorosis in india, fluoride belt in india, fluoride affected states in india, prevention and control of fluorosis in india, fluorosis in india, ppt, fluorosis prevention, national tobacco control programme, distribution of fluorosis in india, fluorosis introduction, national control programme, national tobacco control programme in hindi, ntcp, national iodine deficiency disorders control programme ppt, national iodine deficiency disorders control programme wiki, national iodine deficiency disorders control programme slideshare, iodine deficiency disorder control programme current status, role of nurse in iodine deficiency control program, national iodine deficiency control programme slideshare, national goitre control programme 1962, iodine deficiency disorders ppt presentation, Can fluorosis go away?, What do you do for fluorosis?, What age does fluorosis occur?, How does fluorosis happen?, How do you treat fluorosis?, Can adults develop fluorosis?, Is dental fluorosis dangerous?, What causes fluorosis?, Can fluorosis be whitened?, What causes white spots on teeth?, Is fluoridated water dangerous?, What causes enamel hypoplasia?, What is Hypomineralization of teeth?, Is bottled water fluoridated?, What is skeletal fluorosis?, fluorosis toddler, is fluorosis reversible, fluorosis prevention, fluorosis treatment, fluorosis symptoms, fluorosis treatment at home, does fluorosis get worse, fluorosis ppt, national goitre control programme 1962, national goitre control programme ppt, national iodine deficiency disorders control programme wiki, goitre control programme in india, role of nurse in iodine deficiency control program, national iodine deficiency control programme slideshare, iodine deficiency disorder control programme current status, national iodine deficiency disorders control programme slideshare, parathyroid hormone normal range, parathyroid hormone level high symptoms, parathyroid hormone calcium, parathyroid hormone function, low parathyroid hormone, high pth normal calcium, what is the normal range for a pth blood test, what does a high pth level mean, fluoride in Rock salt, fluoride free salt, does sea salt have fluoride, himalayan pink salt nutrition facts, himalayan salt composition, fluoride in salt, table salt fluoride, salt fluoridation in europe.

 

 

 

Posted by
Attachment
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading