फूल उद्योग से रोजगार की सुगन्ध

13 Feb 2017
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फूल
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महोग गाँव की सालाना आय एक करोड़ से डेढ़ करोड़ तक पहुँच जाती है। इस गाँव को फूलों की खेती के लिये कई राज्य व राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। यहाँ पर हर परिवार के पास आलीशान घर है और यही नहीं गाँव के लोगों ने ‘विलेज लिव इन’ नाम से एक छोटा सा रिजॉर्ट भी शुरू किया है। गाँव के लोगों को गुजरात सरकार की ओर से 2013 में श्रेष्ठ कृषि पद्धति के लिये नरेंद्र मोदी ने सम्मान दिया था। इसके अलावा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद उत्तराखण्ड की ओर से कृषि बागवानी के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने के लिये 2014 में सम्मानित किया गया।

यदि हिमालयी राज्यों में फूल उद्योग को बढ़ावा दिया जाये तो मध्य हिमालय के लोग रोजगार की तलाश में पलायन करते नजर नहीं आएँगे। क्योंकि पहाड़ में थोड़ी वर्षा, थोड़ी नमी और स्वच्छ वातावरण प्राकृतिक है, बस सरकार को लोगों के साथ थोड़ा सा जल संरक्षण के कार्यों को आवश्यक रूप में आगे बढ़ाना होगा। फिर भी जिन लोगों ने खुद के बलबूते ‘फ्लोरीकल्चर’ को विकसित किया है उन्होंने राज्य के सामने एक नजीर पेश की है, साथ ही वे राज्य में स्वरोजगार के लिये आदर्श माने जा रहे हैं।

उल्लेखनीय हो कि अपनी खास आबो-हवा और भौगोलिक परिस्थितियों के चलते उत्तराखण्ड फूलों की खेती के लिये मुफीद जगह है। राज्य सरकार की कोशिशों से अब राज्य के कई हिस्से गुलजार होने लगे हैं, जिससे किसानों को सीधे तौर पर रोजगार का एक नया विकल्प भी मिला है।

कुदरत ने राज्य को जहाँ प्राकृतिक सुन्दरता दी है वहीं फूलों की खेती पर यहाँ कई तरह के प्रयोग भी किये जा सकते हैं। राज्य के उद्यान एवं बागवानी विभाग ने इस दिशा में अहम काम करते हुए किसानों को तकनीकी मदद और अन्य सुविधाएँ देकर इस दिशा में सफलता हासिल की है। जिसका नतीजा यह है कि जब उत्तराखण्ड राज्य अस्तित्व में आया था तब यहाँ फूलों की खेती की ओर किसानों का रुझान नहीं था और ना ही वे इसके फायदों और खेती करने के तरीकों से वाकिफ थे।

सरकार की कोशिशों के चलते पिछले कुछ समय में फूलों की खेती का क्षेत्रफल बढ़कर दस गुना से ज्यादा हो गया है और प्रदेश के पाँच हजार से ज्यादा किसानों को सीधे तौर पर फायदा मिल रहा है। राज्य में फूलों की खेती की खास बात यह है कि यहाँ कई प्रजाति के फूल एक साथ उगाए जा रहे हैं। जिनकी गुणवत्ता अन्य राज्यों के फूलों से बेहतर मानी जा रही है।

वैज्ञानिक तरीके से की जा रही फूलों की खेती से किसानों को अन्य फसलों के साथ ही आर्थिकी को मजबूत करने का बेहतर जरिया मिला है। यही वजह है कि पुराने किसानों के साथ ही नई पीढ़ी के लोग भी फूलों की खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वहीं विभाग की ओर से लगाई जाने वाली पुष्प प्रदर्शनियों में युवाओं का रुझान भी बढ़ रहा है। खेत में फूल उगाने से लेकर बाजार उपलब्ध कराने और ट्रांसपोर्टेशन में भी सरकार काश्तकार के लिये सरकारी सहायता उपलब्ध करवा रही है।

यही वजह है कि उत्तराखण्ड के फूल देहरादून समेत दिल्ली, चंडीगढ़ और देश की अन्य मंडियों तक पहुँचने लगे हैं। जहाँ अपने खास गुणों के कारण उन्हें न सिर्फ अच्छे दाम मिलते हैं बल्कि उत्तराखण्ड राज्य को भी पहचान मिल रही है। पर्यावरण समेत किसानों की आजीविका के लिहाज से उपयुक्त फूलों की खेती से अब कई जिलों में किसान आत्मनिर्भर भी हो गए हैं। उत्तराखण्ड राज्य में किसानों के दस लाख पॉलीहाउस हैं। जिनमें सत्तर फीसदी पॉली हाउस में फूलों की खेती की जाती है। जबकि तीस फीसदी पॉली हाउस सब्जी उगाने के काम आते हैं।

इधर भारत सरकार ने फ्लोरीकल्चर को ‘सनराइज इंडस्ट्री’ के रूप में पहचान की है और इसे 100 प्रतिशत निर्यात उन्मुख दर्जा प्रदान किया है। फूलों की माँग में लगातार वृद्धि के कारण, फ्लोरीकल्चर कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक ट्रेंडों में से एक बन गया है। इसलिये, वाणिज्यिक फ्लोरीकल्चर एक ग्रीनहाउस के अन्दर नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों के अधीन किया जा रहा एक उच्च तकनीक गतिविधि के रूप में उभरा है।

भारतीय फ्लोरीकल्चर उद्योग निर्यात उद्देश्यों के लिये परम्परागत फूलों से कटे हुए फूलों की ओर जा रहा है। उदारीकृत अर्थव्यवस्था नियंत्रित जलवायु परिस्थितियों में निर्यात उन्मुख फ्लोरीकल्चर इकाइयों की स्थापना के लिये भारतीय उद्यमियों को एक प्रोत्साहन प्रदान किया है। उद्योग में विकास के साथ-साथ, फ्लोरीकल्चरिस्ट के जैसे पेशेवरों के लिये रोजगार का अवसर बढ़ता है।

उत्तराखण्ड के नैणी गाँव में फूलों की खेती


सीमान्त जनपद उत्तरकाशी के नैणी गाँव के लोग यू तो पहले से ही पारंगत किसान थे। परन्तु वे कृषि को सिर्फ अपने खान-पान के लिये करते थे। पिछले 10 वर्षों में नैणी गाँव की सूरत ही बदल गई। गाँव का हर पढ़ा-लिखा नौजवान अपनी खेती पर इसलिये एकाग्र है कि उन्हें उस खेती ने जहाँ खाद्य सुरक्षा दिलाई, वहीं फूलों की खेती ने उनकी आर्थिकी को भी मजबूती दिलाई है। अब नैणी गाँव में लोग मटर, टमाटर और फूलों की खेती ही करते हैं। उनकी यह नगदी फसल मदर डेयरी दिल्ली को पहुँचती है।

गाँव के उद्यान पंडित जगमोहन चन्द का कहना है कि वे फूलों की हर प्रकार की नस्ले यहाँ उगाते हैं। कहते हैं कि उनके खेतों में जो फूल उगता है उसकी सुन्दरता अन्य जगहों के फूलों से अत्यधिक आकर्षित होती है। ऐसा उन्हें उनके ग्राहक कहकर जाते हैं। अब तो वे फूलों की पूर्ति ही नहीं कर पा रहे हैं। 35 परिवार वाला यह गाँव सम्पूर्ण समय फूलों की खेती पर केन्द्रीत रहता है। ये लोग खेत की मेड़ पर फूलों की खेती करते हैं और बाकि जमीन पर अन्य नगदी फसल को उगाते हैं। यानि कि वे अब आधुनिक हो चुके हैं।

हिमाचल का महोग गाँव फूलों से महका


महोेग में फूल की अलग-अलग किस्मों को उत्पादन किया जाता है। इनमें डच, स्पेनिश, इजरायल, जापान हालैंड आदि देशों की किस्मों के फूल उगाए जाते हैं। इसके अलावा भारतीय किस्मों के फूल का भी उत्पादन होता है। इनमें कारनेशन, निलियम, लेडियम, बासिका केल, ऑन मेटल, फ्लावर, आस्ट्रोमोरिया और गुलाब की विभिन्न किस्में भी उगाई जाती हैं। महोग के लोग बताते हैं कि 1992 से पहले गाँव के सदस्य नारायण शर्मा चायल में महाराजा पटियाला के यहाँ फूलों की देख-रेख का काम किया करते थे।

गाँव के लोगों ने उनसे फूलों की खेती के बारे में सीखना शुरू किया और बाद में फूलों की खेती करना शुरू किया। चायल महोग गाँव के युवाओं ने फूलों की खेती कर इसे अपना रोजगार का साधन बनाया है। महोग गाँव के युवाओं ने अपने पूर्वजों के पेशे को आधुनिक सोच के साथ जोड़कर शहरों को भागने के बजाय गाँव के संसाधनों से फूलों की खेती शुरू की और आज वे इससे लाखों की कमाई कर रहे हैं।

फूलों की खेती करने वाले आत्मस्वरूप, मदनलाल वर्मा और प्यारे लाल वर्मा ने बताया कि उनका गाँव पूरे देश में फूलों की खेती के लिये मशहूर है और गाँव के 70 फीसदी हिस्से में फूलों की खेती होती है। इससे गाँव की सालाना आय एक करोड़ से डेढ़ करोड़ तक पहुँच जाती है। इस गाँव को फूलों की खेती के लिये कई राज्य व राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से भी नवाजा जा चुका है। यहाँ पर हर परिवार के पास आलीशान घर है और यही नहीं गाँव के लोगों ने ‘विलेज लिव इन’ नाम से एक छोटा सा रिजॉर्ट भी शुरू किया है।

महोग गाँव के लोगों को गुजरात सरकार की ओर से 2013 में श्रेष्ठ कृषि पद्धति के लिये नरेंद्र मोदी ने सम्मान दिया था। इसके अलावा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद उत्तराखण्ड की ओर से कृषि बागवानी के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य करने के लिये 2014 में सम्मानित किया गया। हिमाचल प्रदेश कृषि विभाग की ओर से उत्कृष्ट कृषक पुरस्कार 2008 भी इसी गाँव के आत्मस्वरूप को दिया गया था।

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