फ्यूजन ऊर्जा की दिशा में बड़ी सफलता

8 Oct 2014
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अमेरिका में कैलिफोर्निया स्थित नेशनल इग्निशन फेसिलिटी (एनआईएफ) के वैज्ञानिकों ने सूरज को ऊर्जा देने वाले परमाणु रिएक्शन को मुट्ठी में कैद करने में एक बड़ी सफलता हासिल की है। उन्होंने पहली बार अपने प्रयोग में खर्च की गई ऊर्जा से ज्यादा ऊर्जा हासिल करने की जानकारी दी है। इस कामयाबी से वैज्ञानिक नियंत्रित परमाणु संलग्न अथवा न्यूक्लियर फ्यूजन हासिल करने के लक्ष्य के और नजदीक पहुंच गए हैं। न्यूक्लियर फ्यूजन हासिल करने के लिए दुनिया के कई वैज्ञानिक पिछले 60 वर्षों से जद्दोजहद कर रहे हैं।

वैज्ञानिक परमाणु विखंडन की प्रक्रिया को नियंत्रित उससे बिजली प्राप्त करने में कामयाब रहे हैं लेकिन वे अभी तक न्यूक्लियर फ्यूजन को नियंत्रित करने में सफल नहीं हो पाए हैं। तकनीकी दृष्टि से यह बहुत ही कठिन लक्ष्य है। यदि वैज्ञानिक इस लक्ष्य को हासिल कर लेते हैं तो दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा का असीमित स्नेत मिल सकता है। उल्लेखनीय है कि सूरज और दूसरे तारों की ऊर्जा न्यूक्लियर फ्यूजन से ही निकलती है। हाइड्रोजन बम भी न्यूक्लियर फ्यूजन पर आधारित है लेकिन यह रिएक्शन अनियंत्रित होता है।

परमाणु संलगन में पानी से प्राप्त ईंधन स्नेत का इस्तेमाल होता है और इस प्रक्रिया में संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम जैसे खतरनाक आइसोटोप नहीं बनते जो परमाणु विखंडन की प्रक्रिया पर आधारित परमाणु बिजली घरों में उत्पन्न होते हैं। एनआईएफ के रिसर्चरों का कहना है कि उन्होंने मनुष्य के बाल से भी छोटी ईंधन की गोली को कम्प्रेस करने के लिए 192 लेजर किरणों का इस्तेमाल किया। ईंधन के लिए हाइड्रोजन के दो आइसोटोप, ट्राइटियम और ड्यूटिरियम का इस्तेमाल किया गया। इन दोनों आइसोटोप को एक सेकेंड के एक अरबवें हिस्से से भी कम समय के लिए अत्यधिक तापमान और दबाव में कम्प्रेस किया गया।

इससे न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन की शुरूआत हुई। इस प्रक्रिया में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा लेजर किरणों की ऊर्जा से बहुत ज्यादा थी। फ्यूजन रिएक्शन में दो हल्के परमाणु नाभिक आपस में जुड़ कर एक भारी नाभिक बनाते हैं। इस प्रक्रिया में आपस में जुड़ने वाले नाभिकों के द्रव्यमान का कुछ हिस्सा प्रचंड ऊर्जा में तब्दील हो जाता है। एनआईएफ में दुनिया का सबसे बड़ा लेजर सिस्टम स्थापित किया गया है। जिस बिल्डिंग में यह सिस्टम लगाया गया है उसका आकार फुटबाल के तीन मैदानों के बराबर है। एनआईएफ की 192 सघन लेजर किरणों किसी भी लक्ष्य पर पिछले किसी लेजर सिस्टम की तुलना में 60 गुना ज्यादा ऊर्जा छोड़ती हैं।एनआईएफ सिस्टम मार्च 2009 में पूरी तरह संचालन योग्य हुआ था। जब लेजरों की सारी ऊर्जा एक मिलीमीटर आकार के लक्ष्यों पर प्रहार करती है तब उनमें जबरदस्त तापमान और दबाव उत्पन्न होता है।

लक्षित पदार्थों का तापमान 10 करोड़ डिग्री से ज्यादा हो सकता है। इसी तरह लक्ष्यों में उत्पन्न दबाव पृथ्वी के वायुमंडल के दवाब से 100 अरब गुना अधिक हो सकता है। ऐसी परिस्थितियां तारों या विशाल ग्रहों के गर्भ में पाई जाती हैं। कुछ इनसे मिलती जुलती परिस्थितियां परमाणु आयुधों में भी मौजूद रहती हैं। एनआईएफ में वैज्ञानिकों ने लगभग दो साल पहले विश्व की सबसे शक्तिशाली लेजर शाट दाग कर 500 ट्रिलियन वाट्स बिजली पैदा करने में सफलता प्राप्त की थी। एक ट्रिलियन 1000 अरब के बराबर होता है। इस लेजर प्रहार से उत्पन्न बिजली अमेरिका द्वारा किसी भी वक्त इस्तेमाल की जाने वाली बिजली से 1000 गुना ज्यादा थी।

एनआईएफ सेंटर से मिले ताजा नतीजों से वैज्ञानिकों को एक फ्यूजन रिएक्टर बनाने में मदद मिल सकती है लेकिन एनआईएफ सेंटर सिर्फ अपने दम पर कोई व्यावसायिक रिएक्टर नहीं बना सकता । एनआईएफ अमेरिका के परमाणु आयुध कार्यक्रम से भी जुड़ा हुआ है क्योंकि फ्यूजन की प्रक्रिया का इस्तेमाल हाइड्रोजन बमों में होता है। परमाणु संलग्न के लिए यूरोप के वैज्ञानिकों ने एक दूसरी टेक्नोलॉजी चुनी है। इसमें परमाणु संलगन के लिए ईंधन को एक चुंबकीय बोतल में रखा जाता है। चुंबकीय बोतल की तकनीक ब्रिटेन के ऑक्सफर्डशर में चल रहे जेट प्रयोग में आज़माई जा रही है। दक्षिणी फ्रांस में बन रहे अंतरराष्ट्रीय फ्यूजन रिएक्टर में भी यही तकनीक अपनाई जाएगी। दोनों तकनीकों का उद्देश्य यही है कि परमाणु संलगन की प्रकिया को नियंत्रित कर कैसे उसका व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाए।

एनआईएफ के वैज्ञानिकों की नवीनतम सफलता के बावजूद नियंत्रित फ्यूजन रिएक्शन के जरिए बिजली पैदा करना एक बड़ी चुनौती होगी। इसे व्यावसायिक स्तर पर लाने में 30 -40 साल या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है। जब तक फ्यूजन रिएक्शन से 100 गुना अधिक ऊर्जा प्राप्त नहीं होती तब तक इसे बिजली उत्पादन के लायक नहीं माना जा सकता। सूरज की ऊर्जा को मुठ्ठी में कैद करने का रास्ता बहुत लंबा और महंगा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
 

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