पिछले 27 सालों से प्रकृति को परमात्मा मानकर उसकी हिफाजत में जुटा विष्णु लांबा

22 Oct 2020
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विष्णु लांबा अब तक करीब ग्यारह लाख पौधे निःशुल्क वितरित कर चुके हैं
विष्णु लांबा अब तक करीब ग्यारह लाख पौधे निःशुल्क वितरित कर चुके हैं

               

पूरी दुनिया आज पर्यावरण संकट के दौर से गुजर रही है। भारत की बात करें, तो सरकार की अनदेखी और लोगों में जागरुकता की कमी के कारण पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संकट तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसका सीधा असर जहां मानव जाति पर हो रहा है, वहीं पशु-पक्षियों और जल की उपलब्धता पर भी संकट गहराता जा रहा है।  इन सबके बावजूद राजस्थान के एक युवा ने पर्यावरण की रक्षा के लिए ना सिर्फ पिता का घर बार छोड़ दिया, बल्कि वह पिछले 27 सालों से प्रकृति को परमात्मा मानकर उसकी हिफाजत में जुटा है। हम बात कर रहे हैं “ट्री मैन ऑफ इंडिया”  विष्णु लांबा की, जिन्होंने आजीवन पर्यावरण की सेवा का संकल्प ही नहीं लिया, बल्कि उसे बखूबी निभा भी रहे हैं।

विष्णु लांबा के अथक प्रयासों से आज समाज में पर्यावरण संरक्षण को लेकर एक नई क्रांति का सूत्रपात हुआ है। बिना सरकारी सहयोग के उन्होंने न सिर्फ लगभग 26 लाख पेड़ जनसहभागिता से लगवाएं हैं, बल्कि अपनी जान पर खेलकर करीब 3 लाख पेड़ों को बचाया भी है। इसके अलावा वे अब तक करीब ग्यारह लाख पौधे निःशुल्क वितरित भी कर चुके हैं।

खास बात ये है कि विष्णु लांबा की मुहिम से आज देश के 22 राज्यों के लाखों युवा जुड़ चुके हैं। साथ ही दुनिया के ज़्यादातर देशों के पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत युवा भी अब उनके संपर्क में हैं। लांबा का मानना है कि वो दिन दूर नहीं, जब हर आम और खास उनकी मुहिम का हिस्सा बनेंगे और वो अपना मिशन पूर्ण करते हुए विश्व के सामने पर्यावरण जगत का श्रेष्ठ उदाहरण रखेंगे।

 

बचपन में पौधे चुराने वाला बना ट्री मैन

पेड़-पौधे और पशु-पक्षियों से गहरा लगाव रखने वाले विष्णु लांबा का जन्म टोंक जिले के लांबा गांव में 3 जून, 1987 को हुआ। मात्र सात साल की उम्र से ही विष्णु ने अपने बाड़े [घर के पास स्थित जानवर रखने की जगह] में तरह-तरह के पौधे लगाना शुरू कर दिया। विष्णु पर पौधे लगाने का इतना जुनून सवार था, कि वे किसी के भी घर और खेत से पौधा चुराने में जरा सी भी देर नहीं करते थे।उनकी इस आदत से तंग आकर घरवालों ने उन्हें उनकी बुआजी के यहां पढ़ने भेज दिया, लेकिन विष्णु का प्रकृति के प्रति प्रेम बढ़ता ही गया। इसके बाद विष्णु अपने ताऊजी के साथ जयपुर आ गए यहां भी इनका प्रकृति प्रेम कम नहीं हुआ और उन्होंने तत्कालीन जयपुर कलेक्टर श्रीमत पाण्डे के जवाहर सर्किल स्थित घर में बनी नर्सरी से पौधे चुरा लिए।

 

संन्यासियों के पास रहकर संस्कृति को जाना

विष्णु लांबा का बचपन से ही पेड़-पौधों और साधु-संन्यासियों के प्रति झुकाव रहा है। अपनी माता से बचपन में सुनी रामायण और महाभारत की कथाओं का उन पर काफी असर हुआ। उनके पिता गांव में स्थित मंदिर के महंत थे। पढ़ाई में कमजोर होने के कारण उनके पिता ने उन्हें गांव के पास रहने वाले रामचंद्र दास महाराज के पास भेज दिया। विष्णु यहां पूरा दिन महाराज के पास रहते और कई बार तो रात को भी यहीं रुक जाते। कह सकते हैं कि पारिवारिक संस्कारों ने विष्णु को संन्यासियों के करीब लाने का काम किया।इसके बाद विष्णु संन्यास की ओर चल पड़े। उसी दौरान टोंक में बनास नदी के किनारे संत कृष्णदास फलाहारी बाबा के संपर्क में आए और साधु दीक्षा लेने की जिद करने लगे। महाराज ने कहा कि तुम्हे बिना भगवा धारण किए ही बहुत बड़ा काम करना है। इसके बाद विष्णु ने साधु दीक्षा लेने का विचार त्याग दिया और अपना जीवन पेड़ों को समर्पित कर दिया।

 

56 से अधिक क्रांतिकारियों के परिवारों को तलाशा

विष्णु लांबा ने आजादी के बाद पहली बार देश के 22 राज्यों में भ्रमण कर 56 से अधिक क्रांतिकारियों के परिवारों को तलाश कर शहीदों के जन्म और बलिदान स्थलों पर पौधारोपण जैसे कार्य कर देशभर में पर्यावरण का संदेश दिया। विष्णु ने देश के तत्कालीन राष्ट्रपति स्व. प्रणब मुखर्जी, राजस्थान की तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला आदि से शहीदों के परिजनों को मिलवाकर उनकी समस्याओं से अवगत करवाया। साथ ही भारत के इन महान क्रांतिकारी परिवारों के सम्मान में सैकड़ों कार्यक्रम करवाकर जनता में प्रकृति और संस्कृति का संदेश देते हुए राष्ट्र प्रेम की अलख जगाई।

 

पूर्व कुख्यात दस्युओं को दिलाई पर्यावरण संरक्षण की शपथ

फिल्म “पान सिंह तोमर'  से प्रेरित होकर विष्णु लांबा ने राजस्थान के चंबल से चित्रकूट तक फैले बीहड़ों की करीब दो साल तक खाक छानी और पूर्व कुख्यात दस्युओं को अपनी मुहिम से जोड़ा। विष्णु ने मलखान सिंह, गब्बर सिंह, रेणु यादव, सीमा परिहार, मोहर सिंह, जगदीश सिंह, पंचम सिंह, सरू सिंह, पहलवान सिंह, बलवंता सहित कई पूर्व कुख्यात दस्युओं से मुलाकात की और उनके साथ भी रहे।विष्णु ने 20 मार्च, 206 को जयपुर में आयोजित पर्यावरण को समर्पित पूर्व दस्युओं के महाकुंभ 'पहले बसाया बीहड़-अब बचाएंगे बीहड़” समारोह के माध्यम से सभी पूर्व दस्युओं को पर्यावरण संरक्षण की शपथ दिलाई। इस तरह का आयोजन दुनिया में पहली बार जयपुर में आयोजित किया गया था।

 

हर साल पक्षियों के लिए लगाते हैं परिंडे

अब तक लाखों पेड़ों को बचा चुके विष्णु लांबा का पक्षियों से प्रेम भी जग जाहिर है। वे पिछले पंद्रह वर्षो से गर्मियों में बेजुबान पक्षियों के लिए 'परिंदों के लिए परिंडा! अभियान चलाकर लाखों परिंडे लगा चुके हैं। इसके अलावा वे पिछले नौ वर्षों से मकर संक्रांति पर चाइनीज मांझे से घायल होने वाले पक्षियों के लिए निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन कर रहे हैं, जिसमें हर साल हजारों पक्षियों का उपचार किया जाता है। विष्णु अपने संस्थान के माध्यम से घायल पशु-पक्षियों के लिए सालभर  रेसक्यू ऑपरेशन भी चलाते हैं।

 

कोरोना के संदेश को समझें

लांबा का कहना है कि कोरोना की वजह से उपजी परिस्थितियों ने एक महत्वपूर्ण संदेश और सीख हम सबक दी है, कि प्रकृति की संगत में रहते हुए ही विकास यात्रा सार्थक दिशा में बढ़ सकती है। जहां प्रकृति का शोषण शुरू हुआ, वहां कोरोना जैसी कई आपदाएं वैश्विक समाज के ताने-बाने को उधेड़ देंगी।लांबा के अनुसार आज गंगा साफ होती जा रही है, यमुना का जल पीने योग्य हो गया है, यमुना में प्रदूषण के झाग का स्थान स्वच्छ जल ने ले लिया है, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पिछले दो महीने तक प्रकृति को जीतने की महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगा था। लॉकडाउन ने हमें यह अवसर दिया है कि हम प्रकृति के सहचर बनें, सहभागी बनें और उसे श्रद्धा की दृष्टि से देखें, बाजार की नजरों से नहीं। यदि हम इस कोरोना कालखंड की सीख को अपने जीवन में उतार लेंगे, तो गंगा यमुना ही नहीं, हमारे जीवन की दशा और दिशा भी पवित्र और शुद्ध हो जाएगी। इसलिए संकल्प लें कि हमें प्रकृति का विजेता नहीं, उसका सहभागी बनना है।

ट्री मैन का मानना है कि मनुष्य ने प्रकृति के साथ जो दुस्साहस किया, उसके परिणाम का नाम है कोरोना वायरस। हम इसके सकारात्मक परिणामों में जाएंगे, तो ध्यान में आएगा कि ऐसे में प्रकृति ने स्वयं को संतुलित किया है, जिसके रहते वह विलुप्त प्रजातियां भी नजर आने लगी हैं, जिन्हें सालों पहले देखा गया था।लांबा के अनुसार यह राष्ट्र के लिए शुभ संकेत है, कि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सौर ऊर्जा को प्रोत्साहन देने के लिए वातावरण निर्माण करने में काफी हद तक सफल हो रहे हैं। लेकिन साथ ही साथ जरूरी ये भी है कि गांव में बैठा किसान या मजदूर सौर ऊर्जा की पहुंच तक पहुंच सके।

 

मील का पत्थर बने “श्री कल्पतरू संस्थान! के कार्य

पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना जीवन समर्पित कर चुके विष्णु लांबा ने “श्री कल्पतरू संस्थान” की स्थापना की है। यह संस्थान पिछले 20 वर्षों से एक पौधा नियमित रूप से कहीं न कहीं लगाता आ रहा है। संस्थान ने देश के 100 गांवों को पर्यावरण की दृष्टि से आदर्श ग्राम (कल्प ग्राम) बनाने का संकल्प लिया है, जिसमें तीन गांव विशेष नवाचारों के माध्यम से आदर्श ग्राम बनने की और हैं।संस्थान के प्रयासों से ऋग्वेद काल के बाद पहली बार ग्रीन वेडिंग (पर्यावरणीय विवाह) संपन्न कराई गई, जिसमें दहेज नहीं लेकर सिर्फ कल्प वृक्ष के दो पौधे लिए गए। संस्थान ने विश्व में पहली बार पाली जिले में हाथियों पर वृक्षों की शोभायात्रा निकलवाई। साथ ही राजस्थान के 500 से अधिक वृक्ष मित्रों का सम्मलेन कराया।संस्थान के प्रयासों से जयपुर में होने वाले “जयपुर साहित्य महाकुंभ' में वर्ष 2005 से माला और बुके के स्थान पर आने वाले सभी मेहमानों को तुलसी का पौधा देकर स्वागत करने की अनूठी परंपरा कायम की। इसके अलावा सिन्दूर जैसी दुर्लभ प्रजातियों को संरक्षण देने का कार्य हाथों में लिया और अब वे 200 से अधिक दुर्लभ प्रजातियों के पौधों को घर-घर पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं।

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