पिछौला झील के दक्षिणी द्वार पर स्थित एक टापू पर जगमंदिर महल है। शाहजहां को इसी से ताजमहल बनाने की प्रेरणा मिली थी। झील से जुड़ी अन्य झीलें रंग सागर, स्वरूप सागर व दूध तलाई इसके सौंदर्य की अभिवृद्धि करती हैं। दूध तलाई झील के निकट पहाड़ों को काटकर बनाया गया माणिक्य लाल वर्मा उद्यान भी दर्शनीय है।
मेवाड़ की राजनगरी उदयपुर के राज प्रसादों की दीवारों से पिछौला झील की टकराती लहरों का आनंद ही अलग है। अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच निर्मित इस मनभावन कृत्रिम झील के मध्य जगमंदिर के साथ-साथ जय निवास नामक सुंदर महल भी है। यह इस झील पर तैरते हुए जहाजों की तरह शोभायमान है। उदयपुर नगर की स्थापना के समय ही महाराजा उदयसिंह ने इस सुन्दर झील को विस्तृत रूप दिया था। पिछौला झील चार कि.मी. लम्बी तथा तीन कि.मी. चौड़ी है। इस पर बड़ा पोल नामक मनोहारी बांध बड़ा आकर्षक है। झील के पूर्वी किनारे पर खड़ा हुआ सिटी पैलेस तथा दक्षिणी उद्यान झील के कारण ही शोभनीय है। उत्तर की ओर स्नान घाट और झील के पार्श्व में घूमने का स्थल मन को सम्मोहित कर देता है। राजस्थान का सबसे बड़ा राज प्रसाद इस पिछौला झील के किनारे स्थित है। सुरम्य घाटियों से घिरी पिछौला झील उदयपुर का अत्यन्त लुभावना स्थान बन गई है।
इस झील का नाम पिछौला गांव के आधार पर पड़ा। महाराणा लाखा के शासनकाल में एक बनजारे ने इसका निर्माण कराया था। इसी झील में ‘नटी का चौंतरा’ नामक स्थल एक रोमांचक गाथा की स्मृति कराता है। ‘बीजोरी’ नामक नटनी (नटी) और राजा हमीर के समय में महाराणा के बीच शर्त लग गई थी कि बीजोरी, पिछौला झील के दोनों किनारों पर रस्सी खींचकर और उस पर चलकर पार हो जाये तो उसे मेवाड़ का आधा राज्य सौंप दिया जायेगा। निश्चित ही बीजोरी इस शर्त को पूरा कर लेती पर महाराणा के मनसबदारों व दिवानों ने धोखे व चालाकी से उस रस्सी को काट दिया। अभागी बीजोरी अपनी शर्त के साथ ही झील में समा गई। ‘नटी का चौंतरा’ आज भी शोक मनाता जान पड़ता है।
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