प्रदूषित गंगा का पानी सिंचाई लायक भी नही रहा

13 Apr 2021
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प्रदूषित गंगा का पानी सिंचाई लायक भी नही रहा
प्रदूषित गंगा का पानी सिंचाई लायक भी नही रहा

गंगा भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण नदियों में से एक है । यह भारत के हिमालय से निकलकर बांग्लादेश तक कुल मिलाकर 2525 किलोमीटर की दूरी तय करती हुई बंगाल की खाड़ी के सुन्दरवन तक विशाल भू-भाग को सींचती है हुई जाती है गंगा देश की प्राकृतिक सम्पदा ही नहीं, बल्कि जन-जन की भावनात्मक आस्था का आधार भी है। 2,071 किलीमेटर  तक भारत तथा उसके बाद बांग्लादेश में अपनी लंबी यात्रा करते हुए यह सहायक नदियों के साथ दस लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है। भारत की सबसे बड़ी गंगा नदी अपने सामाजिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है  गंगा का यह मैदान अपनी घनी जनसंख्या के लिए भी जाना जाता है जीवनदायनी गंगा में मछलियों तथा सांपो की अनेक प्रजातियाँ पाई जाती है और तथा मीठे पानी वाले दुर्लभ डॉलफिन भी पाए जाते हैं गंगा कृषि, पर्यटन, साहसिक खेलों तथा उद्योगों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है और अपने तट पर बसे शहरों की जलापूर्ति भी करती है। इसके तट पर विकसित धार्मिक स्थल और तीर्थ भारतीय सामाजिक व्यवस्था के विशेष अंग हैं। इसके ऊपर बने पुल, बाँध और नदी परियोजनाएँ भारत की बिजली, पानी और कृषि से सम्बन्धित जरूरतों को पूरा करती हैं।

वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। गंगा की इस अनुपम शुद्धीकरण क्षमता तथा सामाजिक श्रद्धा के बावजूद इसको प्रदूषित होने से रोका नहीं जा पा रहा है फिर भी इसके प्रयत्न जारी हैं और सफ़ाई की अनेक परियोजनाओं के क्रम में नवम्बर,2008 में भारत सरकार द्वारा इसे भारत की राष्ट्रीय नदी तथा प्रयागराज और हल्दिया के बीच 1600 किलोमीटर गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया है  गंगा नदी की प्रधान शाखा भागीरथी है जो गढ़वाल में हिमालय के गौमुख  स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती हैं गंगा के इस उद्गम स्थल की ऊँचाई करीब 13 हजार फीट है गंगा अपनी घाटियों में भारत और बांग्लादेश के कृषि आधारित अर्थ में भारी सहयोग तो करती ही है साथ ही अपनी सहायक नदियों सहित बहुत बड़े क्षेत्र के लिए सिंचाई के बारहमासी स्रोत भी हैं। इन क्षेत्रों में उगायी जाने वाली प्रधान उपज में मुख्यतः धान, गन्ना, दाल, तिलहन, आलू एवम् गेहूँ हैं। जो भारत की कृषि का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल तथा झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसो, तिल, गन्ना और जूट की बहुत  फसल होती है। गंगा नदी पर निर्मित अनेक बाँध भारतीय जन-जीवन तथा अर्थव्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं इनमें प्रमुख हैं फ़रक्का बाँध, टिहरी बाँध, तथा भीमगोडा बाँध, फ़रक्का बाँध  भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त में स्थित गंगा नदी पर बनाया गया है।

इस बाँध का निर्माण कोलकाता बंदरगाह को गाद यानी सिल्ट से मुक्त कराने के लिए किया गया था ग्रीष्म ऋतु में हुगली नदी के बहाव को निरन्तर बनाए रखने के लिए गंगा नदी के जल के एक बड़े हिस्से को फ़रक्का बाँध के द्वारा हुगली नदी में मोड़ दिया जाता है। गंगा पर निर्मित दूसरा प्रमुख टिहरी बाँध है टिहरी विकास परियोजना का एक प्राथमिक बाँध है जो उत्तराखण्ड प्रान्त के टिहरी जिले में स्थित है। यह बाँध गंगा नदी की प्रमुख सहयोगी नदी भागीरथी पर बनाया गया है। टिहरी बाँध की ऊँचाई 261 मीटर है जो इसे विश्व का पाँचवाँ सबसे ऊँचा बाँध बनाती है। इस बाँध से 2400  मेगावाट विद्युत उत्पादन, 270000 हेक्टर क्षेत्र की सिंचाई और प्रतिदिन 102.20 करोड़ लीटर पेयजल दिल्ली, उत्तर-प्रदेश एवम् उत्तराखण्ड को उपलब्ध कराना प्रस्तावित है। तीसरा प्रमुख भीमगोडा बाँध हरिद्वार में स्थित है जिसको सन् 1740 में अंग्रेज़ों ने गंगा नदी के पानी को विभाजित कर ऊपरी गंगा नहर में मोड़ने के लिए बनवाया था। यह नहर हरिद्वार के भीमगोडा नामक स्‍थान से गंगा नदी के दाहिने तट से निकलती है। शुरुआती दौर में इस नहर में जलापूर्ति गंगा नदी में एक अस्‍थायी बाँध बनाकर की जाती थी लेकिन वर्षाकाल शुरू होते ही अस्‍थायी बाँध टूट जाया करता था और मॉनसून अवधि में नहर में पानी चलाया जाता था। इस प्रकार इस नहर से केवल रबी की फसलों की ही सिंचाई हो पाती थी। अस्‍थायी बाँध निर्माण स्‍थल के नीचे की ओर बहाव में वर्ष 1978-1984 की अवधि में भीमगोडा बैराज का निर्माण करवाया गया। इसके बन जाने के बाद ऊपरी गंगा नहर प्रणाली से खरीफ की फसल में भी पानी दिया जाने लगा  गंगा नदी विश्व भर में अपनी शुद्धीकरण क्षमता के कारण जानी जाती है। लम्बे समय से प्रचलित इसकी शुद्धीकरण की मान्यता का वैज्ञानिक आधार भी है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि इस नदी के जल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं, जो जीवाणुओं व अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को जीवित नहीं रहने देते हैं। नदी के जल में प्राणवायु यानी ऑक्सीजन की मात्रा को बनाये रखने की असाधारण क्षमता है लेकिन इसका कारण अभी तक पता नही चल पाया है। एक राष्ट्रीय सार्वजनिक रेडियो कार्यक्रम के अनुसार इस कारण हैजा और पेचिश जैसी बीमारियाँ होने का खतरा बहुत ही कम हो जाता है, जिससे महामारियाँ होने की सम्भावना बड़े स्तर पर टल जाती है  लेकिन गंगा के तट पर घने बसे औद्योगिक नगरों के नालों की गंदगी सीधे गंगा नदी में मिलने से प्रदूषण पिछले कई सालों से भारत सरकार और जनता के चिन्ता का विषय बना हुआ है। औद्योगिक कचरे के साथ-साथ प्लास्टिक कचरे की बहुतायत ने गंगा जल को बेहद प्रदूषित किया है। वैज्ञानिक जाँच के अनुसार गंगा का बायोलॉजिकल ऑक्सीजन स्तर 3 डिग्री सामान्य से बढ़कर 6 डिग्री हो चुका है। गंगा में 2 करोड़ 90 लाख लीटर प्रदूषित कचरा प्रतिदिन गिर रहा है। विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश की 12 प्रतिशत बीमारियों की वजह प्रदूषित गंगा जल है। यह घोर चिन्तनीय है कि गंगाजल न स्नान के योग्य रहा और  न पीने के योग्य र और न ही सिंचाई के योग्य गंगा के प्रदूषित का अर्थ होगा, हमारी समूची सभ्यता का अन्त गंगा में बढ़ते प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए घड़ियालों की मदद ली जा रही है।

शहर की गंदगी को साफ करने के लिए संयन्त्रों को लगाया जा रहा है और उद्योगों के कचरों को इसमें गिरने से रोकने के लिए कानून बने हैं। इसी क्रम में गंगा को राष्ट्रीय धरोहर भी घोषित कर दिया गया है और गंगा एक्शन प्लान व राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना लागू की गयी हैं हालाँकि इसकी सफलता पर प्रश्नचिह्न भी लगाये जाते रहे हैं जनता भी इस विषय में जागृत हुई है। इसके साथ ही धार्मिक भावनाएँ आहत न हों इसके भी प्रयत्न किये जा रहे हैं इतना सबकुछ होने के बावजूद गंगा के अस्तित्व पर संकट के बादल छाये हुए हैं। 2007 की एक संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट के अनुसार हिमालय पर स्थित गंगा की जलापूर्ति करने वाले हिमनद की 2030 तक समाप्त होने की सम्भावना है। इसके बाद नदी का बहाव वर्षा-ऋतु पर आश्रित होकर मौसमी ही रह जाएगा जो कि एक बहुत बड़ा चिंता का विषय है , इस नदी की सफाई के लिए कई बार पहल की गयी लेकिन कोई भी संतोषजनक स्थिति तक नहीं पहुँच पाया प्रधानमन्त्री चुने जाने के बाद भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने गंगा नदी में प्रदूषण पर नियन्त्रण करने और इसकी सफाई का अभियान चलाया।इसके बाद उन्होंने जुलाई 2014 में भारत के आम बजट में नमामि गंगा नामक एक परियोजना आरम्भ की इसी परियोजना के हिस्से के रूप में भारत सरकार ने गंगा के किनारे स्थित 48 औद्योगिक इकाइयों को बन्द करने का आदेश दिया है भारत में 2020 के 25 मार्च से 3 मई तक लोक डाउन होने का कारण गंगा के किनारे सभी फैक्टरी बंद है जिसकी वजह से उनका गंदा पानी गंगा में नहीं जा रहा है और गंगा का जल बहुत अधिक साफ हुआ है पिछले दस सालो में पहली बार  में गंगा का पानी पीने के लायक बताया गया है।

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