राजस्थान में जल आंदोलन एक आंकलन

29 Nov 2014
0 mins read
कम पानी में कैसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है, यह जानने एवं समझने के लिए राजस्थान के विभिन्न जिलों का भ्रमण किया जा सकता है। यहां ग्रामीण इतने सजग हो चुके हैं कि वे पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग करते हैं। “जल है तो कल है” का नारा यहां हर गली और हर घर में गूंजता है। सरकार की ओर से जल पर न सिर्फ पर्याप्त बजट का प्रावधान किया जाता है बल्कि जल यात्रा के जरिए लोगों को पानी का महत्व भी समझाया जाता है।राजस्थान को भारत के सबसे बड़े राज्य होने का गौरव प्राप्त है तो रेगिस्तानी इलाके के रूप में भी इसे जाना जाता है। इस राज्य का क्षेत्रफल 3.42 लाख वर्ग किलोमीटर के साथ पूरे राज्य का 10 फीसदी है लेकिन जलस्रोत के मामले में यहां की तस्वीर काफी धुंधली है। यहां देश में उपलब्ध कुल जलस्रोत का एक फीसदी से भी कम उपलब्ध है। राजस्थान की ज्यादातर नदियां सिर्फ बारिश के दिन में ही दिखती हैं। एक चंबल नदी ही है जो पूरे साल पानी से भरी रहती है, लेकिन यह राजस्थान के बहुत ही कम हिस्से को पानी देती है। इन विषम परिस्थितियों के बाद भी राजस्थान पानी बचाने के मामले में तत्पर है। राज्य सरकारों की ओर से एक तरफ कुछ इलाकों में ट्रेन से पानी पहुंचाया जा रहा है तो दूसरी तरफ पानी बचाने के तरीके भी समझाए जा रहे हैं। निश्चित रूप से यहां पानी को लेकर जागरुकता भी दिखती है। पेयजल क्षेत्र को प्रान्त में सदा से प्राथमिकता दी जाती रही है। पूर्व काल में निर्मित तथा वर्तमान में विद्यमान कुएं तथा बावड़ियां इस बात का प्रमाण हैं कि यहां कभी पानी को लेकर उदासीनता नहीं बरती गई। एक तरफ यहां के लोग पानी को लेकर काफी संवेदनशील हैं वहीं सरकार की ओर से भी पानी की व्यवस्था एवं पानी के परंपरागत स्रोतों को बनाए रखने में पर्याप्त पैसा खर्च किया जा रहा है। यहां हैंडपंप और ट्यूबवेल के अलावा जलस्रोत को स्थाई रूप देने के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं।

केंद्र की ओर से इस मद में पर्याप्त बजट की व्यवस्था की गई है वहीं राज्य सरकार की ओर से भी इस बार के बजट में जल संसाधन के लिए 777.58 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इसके अलावा पेयजल के लिए योजना मद में 1231 करोड़ और सीएसएस में 284 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। साथ ही राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत 1100 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इसके अलावा 10 अन्य बड़ी परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। इसमें झालावाड़, झालरापाटन, उदयपुर शहर पेयजल वितरण, उम्मेद सागर धवा समदली, सूरतगढ़ टीबा क्षेत्र, डांग क्षेत्र के 82 गांवों, पीपाड़ को आईजीएनपी से एवं टोंक को बीसलपुर से पेयजल देने की भी तैयारी की गई है। इसके अलावा अलवर, भरतपुर, सीकर सहित 15 जिलों के लिए पेयजल संवर्धन योजनाएं चलाई जाएंगी। उदयपुर की देवास परियोजना के प्रथम एवं द्वितीय चरण के लिए 50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

एमएनआरईजीए की रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में राजस्थान में 54 फीसदी कार्य जल संरक्षण के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा परंपरागत जल राशियों का नवीकरण 11.3 फीसदी रहा। इसी तरह सूखे से बचाव के लिए 14.6 फीसदी, लघु सिंचाई कार्य 5.2 फीसदी, अनुसूचित जाति, जनजाति परिवारों की जमीन पर सिंचाई सुविधाओं की व्यवस्था का 15.3 फीसदी कार्य हुआ। इसके अलावा 50.3 फीसदी कार्य जल संचय के तहत किया गया है।राज्य सरकार की ओर से एक तरफ पेयजल की व्यवस्था मुकम्मल की जा रही है तो दूसरी तरफ जल संसाधन को बढ़ावा देने के लिए लगातार कोशिशें जारी हैं। एक तरफ प्रदेश की जनता अपने स्तर पर खुद जल संरक्षण की कोशिश कर रही है तो दूसरी तरफ सरकार की ओर से भी इसमें भरपूर सहयोग किया जा रहा है। राज्य सरकार की ओर से बजट में जल संसाधन के क्षेत्र में भी काफी कार्य करने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें चंबल नदी से कोटा को पेयजल के लिए 150 करोड़ की योजना में से राज्य मद से 44.88 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए हैं। इसी तरह फीडर व नहर की मरम्मत के लिए 478 करोड़ रुपये तक की योजना का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया है। वहीं सिद्धमुख नहर से सिंचाई से वंचित गांवों को साहवा लिफ्ट से जोड़ने के लिए सर्वे कराया जा रहा है। साथ ही आबू रोड की पेयजल समस्या के समाधान के लिए 18 करोड़ रुपये की भैंसासिंह लघु सिंचाई परियोजना पूरी हो रही है। इससे निश्चित रूप से राजस्थान के विभिन्न शहरों में पानी की समस्या का समाधान होगा। इससे पहले राज्य के सूखा संभावित इलाके में 264.71 करोड़ रुपये की लागत से 21 परियोजनाओं का संचालन किया जा चुका है। वहीं गत वर्ष 907 करोड़ रुपये के जरिए 10 कस्बों, 665 ग्राम एवं 227 ढाढियों में पेयजल की व्यवस्था की गई और लोगों को पानी बचाने के लिए जागरूक किया गया। रोहट से पानी की 35 किलोमीटर की 350 एमएमजीआरपी पाइप लाइन की व्यवस्था की गई, जिस पर करीब 17.50 करोड़ रुपये खर्च किए गए। विभिन्न स्थानों पर बने बांधों की मरम्मत को लेकर भी सरकार ने गंभीरता दिखाई है।

जल रेल सेवा


सरकार की प्राथमिकता रही है कि ग्रामीण इलाके में जिन स्थानों पर पानी की समस्या है वहां पहले पानी की व्यवस्था की जाए; साथ ही जागरूकता अभियान भी चलाया जाए। इससे एक साथ दो काम होंगे। लोग पानी के प्रति जागरूक तो होंगे ही, साथ ही उनकी जरूरतें पूरी होंगी। भीलवाड़ा एवं पाली के लिए जल रेल चलाई गई थी। भीलवाड़ा में जहां प्रतिदिन 6.60 लाख लीटर पानी प्रतिदिन सप्लाई किया गया वहीं पाली में 57.60 लाख लीटर। यह पानी अभाव वाले गांवों के अलावा टैंकर के जरिए उन गांवों तक भी पहुंचाया गया, जहां फ्लोराइड की समस्या थी।

राजस्थान में बनी जल नीति


राज्य सरकार ने इस बार प्रदेश की पहली जल नीति को मंजूरी दी है। इस नीति में पीने के पानी को सर्वोच्च और उद्योगों को मिलने वाले पानी को अंतिम वरीयता दी है। नीति के अनुसार राज्य में एक जल नियामक आयोग भी बनेगा जो पानी के उपयोग पर लगने वाले शुल्क की दरें तय करेगा। नहरी क्षेत्र में नहरी पानी का उपयोग करने वाले किसानों को अब तय सीमा से अधिक उपभोग पर नई दरों के साथ भुगतान करना पड़ेगा। इसमें ज्यादा उपयोग करने वालों को ज्यादा पैसा शुल्क के रूप में देना पड़ेगा। हालांकि इससे पहले भी राज्य में जल नीति के लिए कई बार विभिन्न बिंदु तय किए गए, लेकिन उन्हें नीति के रूप में सरकारी स्तर पर लागू नहीं किया जा सका था। इस वर्ष जयपुर, अजमेर, भीलवाड़ा, पाली जैसे शहर में पेयजल की स्थिति को देखते हुए इस समस्या का निस्तारण करने के लिए जल नीति बनाई गई। इससे पहले राज्य सरकार ने हाल ही में दिल्ली में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और गत वर्ष तेरहवें वित्त आयोग के सदस्यों के समक्ष राज्यों को जलीय संकट से उबारने के लिए विशेष दर्जा देने की मांग की थी।

जल नीति से यह होगा—जल नीति में राज्य को पांच अलग-अलग क्षेत्रों में बांटकर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से जल वितरण करने की अनुशंसा की गई है। इसके अनुसार राज्य के बड़े शहरों (जहां पाइप लाइन से वितरण होता हो और सीवरेज लाइनें हों) में 120 लीटर प्रतिदिन, छोटे शहरों (जहां पाइप लाइन से जल वितरण हो रहा हो, लेकिन सीवरेज लाइनें नहीं हो) में 100 लीटर प्रतिदिन, छोटे व कस्बाई शहरों (जहां पाइप लाइन से जल वितरण हो रहा हो, लेकिन सीवरेज लाइनें नहीं हो) में 100 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से पानी दिया जाएगा। शहरों के बाद राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों (रेगिस्तानी) में 70 लीटर प्रतिदिन और गैर-रेगिस्तान ग्रामीण क्षेत्रों में 60 लीटर प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से पानी दिया जाएगा।

ग्रामीण जल प्रबंधन को तवज्जो—राज्य के जल संसाधन मंत्री महिपाल मदेरणा की अध्यक्षता में सचिवालय में कैबिनेट सब-कमेटी की बैठक में जल नीति को मंजूरी देते वक्त ग्रामीण इलाकों पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई। सिंचाई जल, जलीय पर्यावरण प्रबंधन, गंदे पानी को साफ करने, जल की आपूर्ति व उससे जुड़े शुल्क, एकीकृत जल संसाधन आदि बिंदुओं पर चर्चा की गई। केंद्र सरकार के विभिन्न प्रावधानों और अन्य राज्यों में जल प्रबंधन के लिए किए जा रहे प्रयासों पर भी चर्चा हुई।

पनघट से उम्मीद


पानी को लेकर जलदाय विभाग की निगाह भी ग्रामीण इलाके पर टिकी हुई है। गांवों के लोगों को जहां पानी के लिए जागरूक किया जा रहा है। उन्हें समझाया जा रहा है कि गांवों के परंपरागत स्रोतों को बचाते हुए पानी का प्रयोग करें। इसके लिए तैयार की गई महत्वाकांक्षी योजना को पनघट नाम दिया गया है। पनघट नाम देने के पीछे भी ग्रामीणों को कुएं के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना है। हालांकि इस योजना में पानी की आपूर्ति टैंक से की जाएगी, लेकिन जलदाय विभाग के अफसर मानते हैं कि पनघट नाम देने से यह संदेश जाएगा कि अपना पनघट क्यों न बचाया जाए। फिलहाल इस योजना के तहत वर्ष 2001 की जनगणना के मुताबिक जहां 1500 से कम आबादी है वहां विभागीय मानकों के अनुसार पीने का पानी उपलब्ध कराया जाएगा। चार हजार तक आबादी वाले गांवों में पानी की आपूर्ति पनघट योजना के तहत होगी।

भू-जल दोहन रोकने को बनेगी नीति
राजस्थान में हुए एक सर्वे के दौरान यह बात सामने आई कि 236 ब्लॉकों में दो सौ से अधिक डार्क जोन हो गए हैं। इनमें वाटर रिचार्ज की तुलना में कई गुना अधिक पानी निकाला जा रहा है। जयपुर शहर में तो यही स्थिति बनती जा रही है जबकि जमीन में होने वाले रिचार्ज की अपेक्षा 90 फीसदी ही पानी निकाला जाना चाहिए। इस स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार किया और भू-जल दोहन व जल संसाधन के प्रबंधन के लिए कड़े कानून बनाने की तैयारी कर ली है। इससे जल पर लिए जाने वाले शुल्क को भी उपयोग के आधार पर तय किया जाएगा। पहले जलनीति बनाई गई और अब नीति के तहत पानी के दुरुपयोग को रोकने के लिए कड़े प्रावधान किए जा रहे हैं। इसमें उपभोग के आधार पर शुल्क को तर्कसंगत बनाने पर जोर दिया गया है। यही नहीं, नई परियोजनाओं को सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र पर आधारित रखने और पेयजल वितरण की व्यवस्था जन व निजी भागीदारी से तय करने का सुझाव दिया गया है। इसके अलावा जल उपभोक्ता समूह बनाकर जल के अत्यधिक दोहन व उपयोग पर लगाम लगाई जाएगी। इन समूहों को जल शुल्क वसूलने व जल प्रणाली के रख-रखाव के लिए अधिकार भी दिए जाएंगे। शहरी क्षेत्र में जल संरक्षण और जल की री-साइक्लिंग के लिए शहरी निकायों के उपनियमों में समुचित प्रावधान किया जाएगा। यह प्रावधान स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव को ध्यान में रखते हुए निर्धारित होंगे। इससे जहां जल का दोहन रुकेगा वहीं जलनीति का पालन भी सही तरीके से हो सकेगा।

यह है स्थिति


भारत में 142 ब्लॉकों को रेगिस्तानी माना जाता है इसमें 85 ब्लॉक राजस्थान के हैं।

1. 237 ब्लॉक में से 30 सुरक्षित शेष डार्क जोन में।
2. वार्षिक औसत वर्षा 531 मिमी।
3. जल की वार्षिक उपलब्धता प्रति व्यक्ति 780 घनमीटर।
4. अगले चालीस साल में 450 घनमीटर रह जाएगी।

मनरेगा के तहत ग्रामीण जलस्रोतों को मिला जीवनदान


केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा के जरिए परंपरागत जलस्रोतों को जीवनदान मिला है। इस योजना में गांव-गांव ढाणी-ढाणी जल संरक्षण के तहत कार्य किए जा रहे हैं। पुराने तालाबों, एनीकटों की मरम्मत के साथ ही नए तालाब की खुदाई भी इस योजना में हो रही है। इससे जहां मजदूरों को रोजगार मिल रहा है वहीं गांवों में मौजूद जल संरक्षण के पुराने स्रोतों को नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। एमएनआरईजीए की रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष में राजस्थान में 54 फीसदी कार्य जल संरक्षण के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा परंपरागत जल राशियों का नवीकरण 11.3 फीसदी रहा। इसी तरह सूखे से बचाव के लिए 14.6 फीसदी, लघु सिंचाई कार्य 5.2 फीसदी, अनुसूचित जाति, जनजाति परिवारों की जमीन पर सिंचाई सुविधाओं की व्यवस्था का 15.3 फीसदी कार्य हुआ। इसके अलावा 50.3 फीसदी कार्य जल संचय के तहत किया गया है।

पाली जिले के देसूरी निवासी खेमाराव मेघवाल का कहना है कि उनके गांव में वर्षों पुराना तालाब था, इसी तालाब से मिट्टी निकाल कर लोगों ने घर बनाया था, लेकिन समय के साथ यह तालाब पूरी तरह से सूख गया था। इसकी गहराई भी कम हो गई थी। नरेगा के तहत इसके सौंदर्यीकरण का कार्य शुरू हुआ। करीब महीने भर काम चला और गांव के हर परिवार से एक-एक कर लोगों को रोजगार भी मिला। एक तरफ लोगों को काम की तलाश में दूसरे स्थान पर नहीं जाना पड़ा वहीं गांव में फिर से तालाब खोदा गया है। यह काफी लंबा-चौड़ा है। बस इस बार जैसे ही बारिश होगी गांव में पानी की समस्या खत्म हो जाएगी। हालांकि गांव में पीने के पानी के लिए पिचका का निर्माण कराया गया है लेकिन जानवरों के लिए व्यवस्थित सुविधा नहीं थी। अब तालाब खोदे जाने से जानवर जहां तालाब में पानी पी सकेंगे वहीं वे उसमें नहा भी सकेंगे। साथ ही कपड़े धोने एवं अन्य कार्य भी तालाब में ही हो सकेंगे।

इसी तरह मारवाड़ जंक्शन के राजेन्द्र सोलंकी, प्रदीप विदावत, हुकमचंद मीणा आदि का कहना है कि उनके गांव में मंदिर के पास वर्षों पुराना तालाब था। मनरेगा के तहत गत वर्ष उसकी खुदाई करवाई गई। गांव के लोगों को रोजगार भी मिला और अब पानी की सुविधा भी हो गई है। तालाब के पास ही पुराना मंदिर है, जब तालाब खोदा गया तो ग्रामीणों ने प्रधान से मंदिर के जीर्णोद्धार की मांग की और अब मंदिर भी सुसज्जित हो गए हैं। मंदिर के पास बने चबूतरे पर गांव के लोग सुबह-शाम इकट्ठा होते हैं। एक तरफ मंदिर है तो दूसरी तरफ तालाब में लहराता पानी। यह दृश्य बहुत ही सुकूनभरा होता है।

पाली जिले के ही रोहट तहसील के शैतान सिंह, धर्मेंद्र शर्मा बताते हैं कि उनके इलाके में मीठा पानी है ही नहीं। पेयजल के लिए भी जोधपुर से पाइप लाइन डाली गई है। पाइप लाइन से आने वाले पानी से इलाके के लोगों की प्यास तो बुझ जाती है लेकिन जानवरों के लिए कोई इंतजाम नहीं था। मनरेगा के तहत इलाके के हर गांव में तालाब खुदाई का कार्य हुआ। पुरानी बावड़ियों को भी दुरुस्त किया जा रहा है। गत वर्ष जिन तालाबों की खुदाई हुई थी, बारिश होने के बाद उनमें पानी इकट्ठा हुआ। कुछ तालाबों में अभी भी पानी भरा है। इस वर्ष नए तालाब भी खोदे गए हैं। बारिश होने के बाद उनमें भी पानी भर जाएगा। इसके अलावा गांवों में सार्वजनिक पिचके का भी निर्माण कराया गया है। इसका भी लोगों को फायदा मिलेगा।

कितने पानी की आवश्यकता


आमतौर पर सभी प्रकार की घरेलू आवश्यकताओं के आधार पर सामान्यतः प्रतिदिन एक आदमी को 40 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। लेकिन अकाल जैसी स्थिति में दैनिक उपयोग के लिए प्रति व्यक्ति कम से कम 15 लीटर पानी की आवश्यकता होती है।

क्यों होता है पानी का संकट


1. वर्षा-जल के संरक्षण की कमी
2. सिंचाई/तराई में अधिक उपयोग
3. भू-जल का पुनर्भरण कम व दोहन अधिक

पानी बचाने के लिए निम्नलिखित तरीके भी अपनाने की जरूरत

घरेलू स्तर पर उपाय


राजस्थान में अन्य राज्यों की अपेक्षा काफी कम बारिश होती हैं। इसलिए भी यहां पानी को लेकर सजग रहने की जरूरत पड़ती है। यदि हम मकान की छत के पानी को इकट्ठा करते रहे तो औसत बरसात से एक पक्के मकान की छत (लगभग 25 वर्ग मीटर) से इतना पानी संग्रह हो सकता है जिससे 10 लोगों के परिवार की 200 से ज्यादा दिनों तक का खाना पकाने एवं पीने के पानी की आवश्यकता पूरी हो सकती है।

सामूहिक जिम्मेदारी


पानी बचाने के लिए सरकारी प्रयास से ज्यादा जरूरी सामूहिक जिम्मेदारी होती है। पानी बचाने के लिए हर व्यक्ति को अपने स्तर पर तैयार रहना चाहिए। साथ ही समय-समय पर सामूहिक बैठक हो, जिसमें इस बात की रणनीति तय की जानी चाहिए कि पानी को कैसे बचाया जाए और उसे कैसे शुद्ध रखा जाए। इस दौरान पानी के स्रोतों को भी मुकम्मल रखने की रणनीति बननी चाहिए। सामूहिक स्तर पर धन एकत्र कर हैंडपंप की मरम्मत, कुएं/तालाब को गहरा करवाना, टांका बनवाना आदि की जिम्मेदारी निभानी चाहिए।

हैंडपंप/कुएं का संरक्षण


हैंडपंप सुरक्षित जल का सामान्यतया उपलब्ध स्रोत है। इसका रख-रखाव करें। गांव के मिस्त्री से हमेशा सम्पर्क रखें व देखें कि आवश्यक स्पेयर पार्ट्स व मरम्मत के औजार उपलब्ध हैं। हैंडपंप से कम से कम 15 मीटर दूर तक कचरा/मलमूत्र का निस्तार ना करें। हैंडपंप के बहते पानी को बागवानी आदि के काम में लें व उसके आस-पास पानी जमा न होने दें। वर्षा के जल से भू-जल का पुनर्भरण आपके हैंडपंप/कुएं मे पानी की उपलब्धता बनाए रखेगा। कुएं में जल का पुनर्भरण आप कुएं के पास एक सोख्ता गड्ढा खोदकर कर सकते हैं। कुएं एवं सोख्ते गड्ढे को हमेशा ढक कर रखें। कुएं निजी हो या सार्वजनिक, इनके पानी की समय-समय पर जांच करवानी चाहिए तथा कुएं एवं पानी को जीवाणुरहित करने के लिए कुएं में ब्लीचिंग पाउडर का घोल डालना चाहिए। उसके लिए आवश्यक हो तो विभाग से सम्पर्क कर परामर्श लेना चाहिए। समय-समय पर कुओं की सफाई भी करें तथा कुओं को ढक कर रखे। हैंडपंप लगाने के लिए बोरवेल की गहराई पर खास ध्यान रखें। जिन गांवों में बाढ़ का खतरा रहता है वहां ऊंचे सुरक्षित स्थल पर एक हैंडपंप होना चाहिए ताकि पीने का पानी उपलब्ध रहे।

तालाब व जोहड़ के जल का संरक्षण


जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण न होने दे। यदि अतिक्रमण हो तो सलाह कर हटा दें। जब भी सम्भव हो तालाब व जोहड़ को गहरा करते रहें ताकि पानी को अधिक मात्रा में संग्रहित किया जा सके। जिन तालाबों का पानी पीने के काम आता हो उनकी पशुओं एवं अन्य संक्रमण से रक्षा करें। तालाब व जोहड़ के निकट शौच न करें। बरसात के मौसम के बाद में जल के जीवाणु परीक्षण करवाएं। यह सुविधा नजदीकी जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में उपलब्ध है। गांव में नये तालाब व जोहड़ समुचित कैचमेंट के साथ हैंडपंप के नजदीक बनाए ताकि बरसात के पानी से भू-जल का स्तर बना रहे एवं आपका हैंडपंप लम्बे समय तक आपको साफ पानी देता रहे।

राजस्थानी आबोहवा ने बनाया पानी का रखवाला

दिखी नई राह


राजस्थान में पानी को लेकर मारामारी रहती है। कुछ इलाकों में पेयजल के लिए ट्रेन से पानी की सप्लाई की जाती है। लेकिन पानी को लेकर यहां किए जा रहे इंतजाम और लोगों की जागरूकता पूरे देश के लिए मिसाल है। यहां आने के बाद तमाम लोगों ने जाना कि पानी का महत्व क्या है और उसे कैसे बचाया जा सकता है। यहां की पानी प्रणाली को अपनाकर पूरे देश से पानी समस्या का निस्तारण किया जा सकता है। साथ ही भविष्य में आने वाले खतरे से निबटने की रणनीति भी बनाई जा सकती है।

माता प्रसाद आज से करीब 40 साल पहले राजस्थान आए। अब उन्होंने जयपुर में मकान भी बना लिया है और उनके बच्चे यहीं रहते हैं, लेकिन वह हर दूसरे माह गांव जाना नहीं भूलते। माता प्रसाद बताते हैं कि ड्यूटी के दौरान पाली, जालोर, उदयपुर एवं बांसवाड़ा में रहना पड़ा। शुरुआती दिनों में उन्हें भी कुछ अजीब-सा लगता था लेकिन अब खुश हैं। यह खुशी इसलिए कि उन्होंने राजस्थान आकर पानी के बारे में जो कुछ भी सीखा, उसके जरिए रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी आसानी से कट रही है। पानी बचाने के लिए राजस्थान में अपनाए जा रहे संसाधनों की उन्होंने अपने परिवार और रिश्तेदारों को जानकारी दी। धीरे-धीरे उनका यह अभियान बढ़ता जा रहा है। अब जब भी वे घर जाते हैं, लोग उनसे मिलना नहीं भूलते। माता प्रसाद बताते हैं कि बचपन से लेकर युवावस्था तक उन्हें खुद पानी की कीमत नहीं पता थी। उन्हें इस बात का भी आभास नहीं था कि वह जिस चीज को निरर्थक बहा रहे हैं, वह जीवन के लिए अमूल्य है। वह गांव की यादों में खोते हुए बताते हैं कि गांव में करीब-करीब हर खेतिहर परिवार में पंपसेट लगा होता है। जिस भी व्यक्ति को नहाना होता है वह पंपसेट चला देता है। एक तरफ हजारों लीटर पानी निरर्थक इधर-उधर बहता रहता है। साथ ही बारिश के दिनों में खेतों का पानी भी निरर्थक रूप से बह जाता है। हमने विभिन्न बावड़ियों को देखा। गांव जाकर प्रयोग किया। लोगों को समझाया कि खेत से बहने वाले पानी को एक स्थान पर रोका जाए। खेतों की मेड़बंदी करवाई गई। पुराने तालाब की फिर से खुदाई करवाई। गांव के लोगों ने सहयोग किया। अब तालाब खुद गया है और उसमें बारिश के दिन में लबालब पानी भर जाता है। ग्राम पंचायत की ओर से इस तालाब का व्यावसायिक प्रयोग करने के लिए मछली पालन भी कराया जा रहा है। यानी संसाधन विकसित होने के साथ ही रोजगार भी मिल गया है।

इसी तरह पीएस शर्मा भी बताते हैं कि वह कृषि विभाग में कार्यरत थे। वह कहते हैं कि हमारे मूल गांव मथुरा के बड़े किसानों के पास तो पंपसेट एवं डीजल इंजन की व्यवस्था है। जब बिजली नहीं आती तो डीजल इंजन से वे अपने खेत की सिंचाई कर लेते हैं। लेकिन छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए सिंचाई एक बड़ी समस्या है। न तो नहर के साधन उपलबध हैं और न ही सरकारी ट्यूबवेल। ऐसे में कई बार फसल सूख जाती थी। हमने नया प्रयोग किया और बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली के बारे में जानकारी दी। इससे एक साथ कई खेतों में सिंचाई व्यवस्था सुचारू होने लगी। किसान खुश हैं।

गृहिणी आशा के पति जोधपुर में एक कपड़ा मिल में कार्यरत हैं। वह यहां आई और कई वर्षों तक किराए के मकान में रहीं। इस दौरान उन्होंने घर के अंदर बने टांके को देखा। मूल आवास पर मकान बनवाने लगीं तो उन्होंने भी घर के अंदर टांके (एक तरह से पानी का टैंक) का निर्माण करवाया। चूंकि यह अपने आप में नया प्रयोग था। आमतौर पर जहां पानी की उपलब्धता है वहां छत पर पानी की टंकी लगा दी जाती है और पानी सीधे टंकी में जाता है। इस दौरान पानी कुछ ज्यादा ही खर्च होता है। कई बार पाइप के लीकेज की वजह से भी यह खर्चा बढ़ जाता है। कई बार पानी की कम जरूरत होने पर भी पंप चलाकर अधिक पानी प्रयोग किया जाता है। नीचे टैंक होने का सबसे अधिक फायदा यह मिलता है कि पानी की जितनी जरूरत हो, उतना ही खर्च किया जाता है। यह प्रयोग घर बनाने में राजगीरों को भी पसंद आया। अब उनके गांव में जो लोग भी नया मकान बनवा रहे हैं, घर में टांका बनवाना नहीं भूलते। अब कुछ लोगों ने इस तरीके को और आगे बढ़ाते हुए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को भी अपनाया है।

वर्षों तक बाड़मेर में रह चुकी मालती बताती हैं कि उन्होंने बाड़मेर जाकर न सिर्फ असली रेगिस्तान देखा बल्कि काफी कुछ सीखा है। अब उन्हें इस बात का अहसास हो गया है कि पानी की हर बूंद कीमती है। इसलिए वह एक बूंद भी निरर्थक नहीं जाने देती हैं। वह बताती हैं कि जब पहली बार बाड़मेर गई तो आश्चर्यचकित रह गई। जिस मकान में रहती थीं, उस मकान की मालकिन को चारपाई पर नहाते देखा तो काफी अचरज हुआ। लेकिन बाद में पता चला कि यह तो पानी बचाने का तरीका है। फिर कुछ दिन बाद पता चला कि उनके बाथरूम का पानी भी एक टैंक में इकट्ठा होता है और यही पानी बाद में जेट पंप के सहारे खेत तक पहुंचता है और उसी से सब्जी उगाई जाती है। गांव जाकर इस बात को दूसरे लोगों को बताया तो कुछ लोग हंसने लगे।

परिवार में सदस्यों की संख्या

पीने का पानी/ खाना पकाने का पानी (लीटर में)

अन्य कार्यों के लिए पानी (लीटर में)

कुल योग पानी (लीटर में)

6

30

60

90

7

35

70

105

8

40

80

120

9

45

90

135

10

50

100

150


पाली में रही पुष्पा सिंह बताती हैं कि राजस्थान आने के बाद उन्हें पता चला कि पानी कितना कीमती है। वह बताती हैं कि उनके पति पाली में एक कंपनी में कार्यरत थे। वर्ष 2007 जुलाई में बारिश हुई तो कई दिनों तक होती रही। पाली शहर के बीच से होकर गुजरने वाली बांडी नदी में बाढ़ आ गई। पानी लगातार बढ़ता रहा और नदी से सटे इलाके में बसे लोगों को दूसरे स्थान पर जाने के लिए कह दिया गया। इस दौरान पूरा शहर पानी देखने के लिए उमड़ पड़ा। मुझे तब पानी का महत्व समझ में आया। बातचीत करने पर पड़ोस की महिलाओं ने बताया कि इतना पानी उन्होंने पहली बार देखा है। यह सुनकर मुझे लगा कि आखिर हम लोग हजारों लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। हमारे पैतृक बिहार में तो बाढ़ का आना लगा रहता है। वहां बाढ़ बड़ी समस्या मानी जाती है तो यहां बाढ़ सुकूनदेह। पुष्पा यह बताती है कि पाली में रहते हुए पानी बचाने के विभिन्न तरीके सीखे। निश्चित तौर पर यह सीख हमारी जिंदगी में काफी अहम होगी। क्योंकि भविष्य में खाने का इंतजाम तो हो जाएगा, लेकिन पानी की समस्या विकराल रूप लेने वाली है क्योंकि हमारे ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं। शोध रिपोर्टों में बताया जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही हो सकता है। ऐसे में हम राजस्थान के लोगों से सीख लेकर पानी को बचा सकते हैं।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
ई-मेल: chandrabhan0502@gmail.com

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading