राजू टाइटस की ऋषि खेती

28 Sep 2018
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ऋषि खेती
ऋषि खेती

जैविक या ‘ऋषि खेती’ के प्रति गहरे समर्पण और उसे जीवन में उतारने वालों में राजू टाइटस का नाम देश भर में ख्यात था। जापान के किसान मासानोबू फुकुओका की अपने अनुभवों पर लिखी किताब ‘वन स्ट्रॉ रिवोल्यूशन’ (One Straw Revolution) के प्रभाव में राजू ने अपनी ही देशी कृषि-पद्धति विकसित की थी। पिछली 14 सितम्बर 18 को 73 वर्ष के राजू टाइटस हम सबसे सदा के लिये विदा हो गए हैं।

राजू टाइटसराजू टाइटस (फोटो साभार - बाबा मायाराम)मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के पास नर्मदा के किनारे बसा शान्त, सुन्दर और धार्मिक गतिविधियों वाला कस्बाई शहर होशंगाबाद। वहाँ की भीमकाय चट्टानें देखकर लगता है कि जरूर ये शहर युगों पहले नर्मदा में समाया होगा। भूजल की पर्याप्त मात्रा और गहरी, काली कपासी मिट्टी के चलते यह इलाका बरसों से कृषि के लिये बेहद उपयुक्त माना जाता रहा है।

सत्तर के दशक में जर्मन सरकार से कर्ज-अनुदान लेकर बनाई गई ‘तवा आयाकट विकास परियोजना’ में बनी नहरों के कारण होशंगाबाद जिले में नई और भरपूर उत्पादन देने वाली खेती होती है। खरीफ में सोयाबीन तथा रबी में गेहूँ यहाँ की प्रमुख फसलें मानी जाती हैं, लेकिन विगत 4-5 वर्षों से कीटों, रोगों और आपदाओं के कारण कम होती पैदावार ने सोयाबीन के इलाके को अब तेजी से धान के इलाके में बदल दिया है।

भोपाल-होशंगाबाद मार्ग पर ही नर्मदा-तट से कुछ दूर बसा है राजू टाइटस का पुश्तैनी खेत। वर्ष 1961 के आसपास राजू ने जब होश सम्भाला, तब अधिक उत्पादन के चक्कर में वे खेतों में जमकर रासायनिक खादों और कीटनाशकों का उपयोग करते थे। उत्पादन तो बढ़ा लेकिन इससे लागत भी बढ़ी और यह इतनी बढ़ी कि उन्हें अपना पुराना मकान तक बेचना पड़ा।

राजू भाई तब शहर में केन्द्रीय वित्त मंत्रालय की नोट का कागज बनाने वाली ‘सिक्योरिटी पेपर मिल’ में नौकरी करते थे। पिताजी कलेक्टर के स्टेनो थे और माताजी समर्पित शिक्षिका। उनके द्वारा स्थापित स्कूल बाद में शहर की छात्राओं का एकमात्र ‘गृह विज्ञान महाविद्यालय’ बना और वे सेवा-निवृत्ति तक उसकी प्रचार्या रहीं।

टाइटस फार्म के पास ही रसूलिया गाँव में इंग्लैंड की सामाजिक संस्था ‘क्वेकर्स’ द्वारा करीब डेढ़ सौ साल पहले स्थापित ‘फ्रेंड्स रूरल सेंटर’ है। गाँधीजी की नई तालीम से प्रेरित इंग्लैंड की मार्जोरी साइक्स ने वहाँ समाजसेवी प्रताप अग्रवाल के साथ ‘प्राकृतिक खेती अनुसन्धान केन्द्र’ (Natural farming research center) प्रारम्भ किया था।

यह केन्द्र जैविक खेती और पर्यावरण से जुड़े प्रयोग करने और उन पर पुस्तकें प्रकाशित करने में सक्रिय था। जैविक खेती जिसे ‘ऋषि खेती’ भी कहा जाता था, पर जापान के एक किसान और विशेषज्ञ मासानोबु फुकुओका की पुस्तक ‘वन स्ट्रा रिवोल्यूशन’ पहले मूल अंग्रेजी में और फिर हिन्दी अनुवाद ‘एक तिनके से आई क्रान्ति’ (ek tinke se aayi kranti) के रूप में भी वहीं से प्रकाशित हुए थे। राजू के माता-पिता बरसों से इस केन्द्र से जुड़े थे।

भारी मात्रा में रासायनिक खाद, दवाओं और कीटनाशकों की लागत के चलते घाटे में हो रही खेती से परेशान राजू टाइटस अन्ततः खेत बेचने ही निकले थे, लेकिन माता-पिता के ‘फ्रेंड्स रूरल सेंटर’ (Friends Rural Center) से जुड़ाव के चलते उन्होंने एक बार वहाँ के कार्यकर्ताओं से भी मदद माँगी। उन दिनों ‘वन स्ट्रा रिवोल्यूशन’ किताब प्रकाशित हो चुकी थी और वह उनके हाथ लगी।

राजू भाई की माँ श्रीमती पॉलीना टाइटस ने बताया था कि पहले तो राजू ने किताब को पढ़कर एक तरफ रख दिया था। अव्वल तो किताब अंग्रेजी में थी जिसे पढ़ने में हिन्दी-भाषी राजू को कठिनाई थी। दूसरे, किताब में लिखे विचारों को समझने में भी परेशानी थी। लेकिन एक दिन पता नहीं क्यों राजू ने माताजी से फिर वह किताब माँगी और धार्मिक पुस्तक की तरह उसका उन्होंने फिर से अध्ययन किया। यहीं से प्रारम्भ हुई उनकी जैविक खेती की यात्रा जिसको उन्होंने अपनी सूझ-बूझ, दूरदृष्टि और लगन से ‘शून्य जुताई’ तक प्रयोग करके सफल बनाया।

राजू भाई को मिट्टी, जल और तिनका (बायोमास) का आपसी रिश्ता समझ में आ गया। जो लोग खेत में बिखरी सूखी पत्तियों, तिनके, काड़ी, टहनियों आदि को कचरा समझकर बाहर फेक देते हैं या जला देते हैं और गर्मी में खेत की गहरी जुताई इसलिये कर देते हैं ताकि जमीन के अन्दर समाए कीट, फफूंद सूरज की तेज रोशनी से झुलसकर समाप्त हो जाएँ, उन्हें राजू भाई की ‘शून्य जुताई’ से सबक लेना चाहिए। सीमेंट-कांक्रीट की सड़कों की तरह खेत कभी साफ-सुथरे नहीं होते। खेत में पैदा खरपतवार भी मुख्य फसल का मास्क नहीं, पालक होता है। वह फसल को पोषक आहार तो देता ही है, साथ ही खेत के पानी को वाष्पित होने से रोकता है और खेत में नमी बरकरार रखता है।

राजू भाई जुताई कर जमीन के अन्दर प्राकृतिक रूप से बने जैव कार्बन को हवा में उड़ाना पसन्द नहीं करते थे। भूमि के अन्दर कीड़े-मकोड़ों की अपनी एक दुनिया है। यह वे जानते थे कि प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखने के लिये अच्छे और बुरे कीटों और फफूँदों का नियंत्रण अपने आप हो जाता है।

राजू टाइटस की ऋषि खेतीराजू टाइटस की ऋषि खेती (फोटो साभार - बाबा मायाराम)केंचुआ खेत का प्रमुख अंग है। उसके द्वारा निर्मित सूक्ष्म जीवाणु अच्छी फसल के लिये आवश्यक हवा, पानी और खाद्यान्न खुद-ब-खुद जुटा लेते हैं। राजू भाई ने पूरी लगन से केंचुआ, दीमक, सूक्ष्म जीव, इनकी खाद्य शृंखला का निरीक्षण किया था। घर की चौखट को दीमक न लगे, इसलिये वे चौखट के पास ही पर्याप्त मात्रा में लकड़ी का बुरादा रख देते थे, पुराने वृक्षों की डालियों को खेत में पड़ी दरारों में डाल देते थे और सूखे पत्ते फसलों के बीच बिछा देते थे।

रसूलिया में आये ‘वन स्ट्रॉ रिवोल्यूशन’ के लेखक जापान के मासानोबू फुकुओका ने भी उनके खेत का भ्रमण किया और उनकी पीठ थपथपाई। राजू भाई को इससे बड़ा उपहार भला और क्या मिल सकता था। राजू भाई पूरी तरह फुकुओका की पद्धति से ही खेती करते रहे। उनके खेत में बारहों माह आपको वृक्ष, झाड़ियाँ और हरीतिमा दिखेगी। पक्षियों का बसेरा दिखेगा।

बारिश के तुरन्त पहले वे फसल के बीजों की मिट्टी की गोलियाँ बनाते थे और खेत में बिखेर देते थे। उन पर सूखा चारा बिछा देते थे। रबी में भी वे यही तकनीक अपनाते थे, लेकिन सिंचाई का पूरा ख्याल रखकर। मध्य प्रदेश के सेवानिवृत्त अतिरिक्त मुख्य सचिव आरएन बेरवा के मंडीदीप स्थित खेत पर भी राजू भाई ने कुछ वर्ष पूर्व इसी प्रकार से मात्र एक घंटे में तीन एकड़ में गेहूँ की बोवनी छिड़काव तरीके से कर दी थी। वह इतनी सफल रही कि अन्य प्रांतों के प्रगतिशील किसान भी बेरवा जी का खेत देखने पहुँचे थे।

हम सबसे हमेशा के लिये विदा लेने तक, 73 वर्ष के राजू भाई अपने 13 एकड़ के खेत में उनकी धर्मपत्नी शालिनी टाइटस के साथ सफलतापूर्वक प्राकृतिक खेती कर रहे थे। एक एकड़ में वे अपने घर के लिये साल भर का सभी प्रकार का अनाज जुटाते थे और शेष 12 एकड़ में प्राकृतिक सु-बबूल उगाते थे। वे कहते थे कि गरीबों के लिये आधे दाम में जलाऊ लकड़ी बेचकर भी वे अपनी खेती से अच्छी कमाई कर लेते हैं।

राजू भाई का नाम देश में ही नहीं, ‘ऋषि खेती’ के कारण दुनिया भर में पहुँचा था। उनका सदा के लिये विदा होना खेती की एक देशी, वैज्ञानिक और सर्व-सुलभ पद्धति के पैरवीकार का विदा होना है। यह समय है, जब हमें राजू टाइटस जैसे साथियों की जरूरत शिद्दत से महसूस होगी।


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