रहने के लायक नहीं है शहर

स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार साँस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण चेतावनी के स्तर तक पहुँचने पर चिन्ता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पेट्रोल और डीजल की कारों पर दो से चार फीसद पर्यावरण शुल्क लगाने के सुझाव पर केन्द्र से जवाब माँगा है। इस मामले पर अगली सुनवाई नौ जनवरी को होगी।

मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वायु प्रदूषण को कम करने के तरीके देखने होंगे। मामले में न्यायमित्र हरीश साल्वे ने दिल्ली में वायु प्रदूषण पर भूरेलाल कमेटी (इप्का) की रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें दिल्ली के कई स्थानों पर प्रदूषण का स्तर तय मानक से बहुत ज्यादा पाया गया है। साल्वे ने भूरेलाल कमेटी की ताजा रिपोर्ट भी कोर्ट में पेश की, जिसमें रेड एलर्ट डे घोषित करने की माँग की गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण जब 250 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर पहुँच जाता है तो दुनिया में उसे गम्भीर स्थिति माना जाता है। भारत में इसे 500 पहुँचने पर गम्भीर स्थिति मानते हुए तत्काल अलार्म बजाने, बच्चों के स्कूल बन्द करने, लोगों को मास्क पहनने की सलाह देने और डीजल वाहनों का शहर में प्रवेश बन्द करने की बात कही गई है।

रिपोर्ट में वाहनों के लिए यूरो 4 और यूरो 5 मानक लागू करने की पूर्व में तय समयसीमा को पहले करने की भी माँग की गई है। जैसे यूरो 4 के मानक 2017 के बजाए 2015 में और यूरो 5 के मानक 2020 के बजाए 2017 में लागू कर दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि सरकार को इस रिपोर्ट पर अदालत के आदेश का इन्तजार करने के बजाय खुद ही अमल शुरू कर देना चाहिए।

पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली का वातावरण बेहद जहरीला हो गया है। इसकी गिनती विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में होने लगी है। यदि वायु प्रदूषण रोकने के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाए गए तो इसके गम्भीर परिणाम सामने आएँगे।

डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण को लेकर 91 देशों के 1600 शहरों पर डाटा आधारित अध्ययन रिपोर्ट जारी की है। इसमें दिल्ली की हवा में पीएम 25 (2.5 माइक्रोन छोटे पार्टिकुलेट मैटर) में सबसे ज्यादा पाया गया है। पीएम 25 की सघनता 153 माइक्रोग्राम तथा पीएम 10 की सघनता 286 माइक्रोग्राम तक पहुँच गया है। जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। वहीं बीजिंग में पीएम 25 की सघनता 56 तथा पीएम 10 की 121 माइक्रोग्राम है।

जबकि कुछ वर्षों पहले तक बीजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए। जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ के इस अध्ययन में 2008 से 2013 तक के आँकड़े लिए गए हैं। जिसमें वर्ष 2011 व 2012 के आंकड़ों पर विशेष ध्यान दिया गया है।

एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पाँचवाँ बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 25 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुँच जाते हैं। जिससे साँस व हृदय सम्बन्धित बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़ा का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही थर्मल पावर स्टेशन, पड़ोसी राज्यों में स्थित ईंट भट्ठा आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का नया अध्ययन यह बताता है कि हम वायु प्रदूषण की समस्या को दूर करने को लेकर कितने लापरवाह हैं और यह समस्या कितनी विकट होती जा रही है। खास बात यह है कि ये समस्या सिर्फ दिल्ली में ही नहीं है बल्कि देश के लगभग सभी शहरों की हो गई है। अगर हालात नहीं सुधरे तो वो दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे। जो लोग विकास, तरक्की और रोजगार की वजह से गाँव से शहरों की तरफ आ गए हैं उन्हें फिर से गावों की तरफ रुख करना पड़ेगा।

स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इसके महत्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक ही जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रतिदिन मनुष्य 22000 बार साँस लेता है।

इस प्रकार प्रत्येक दिन में वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड पाया जाता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निऑन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन तथा जल वाष्प होती है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे सन्तुलित बनाए रखती है।

इसमें जरा-सा भी अन्तर आने पर वह असन्तुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो यह खतरनाक हो जाती है।

भारत को विश्व में सातवें सबसे अधिक पर्यावरण की दृष्टि से खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया गया है। वायु शुद्धता का स्तर, भारत के मेट्रो शहरों में पिछले 20 वर्षों में बहुत ही खराब रहा है आर्थिक स्थिति ढाई गुना और औद्योगिक प्रदूषण चार गुना बढा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल लाखों लोग खतरनाक प्रदूषण के कारण मर जाते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईंधन के जलने की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो सन् 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।

पर्यावरण असन्तुलन और विभिन्न प्रकार के प्रदूषण से बचने का बस एक ही मूल मन्त्र है कि विश्व में सह अस्तित्व की संस्कृति का निर्वहन हो। सह अस्तित्व का मतलब प्रकृति के अस्तित्व को सुरक्षित रखते हुए मानव विकास करे। प्रकृति और मानव दोनों का ही अस्तित्व एक दूसरे पर निर्भर है इसलिए प्राकृतिक संसाधनों का क्षय न हो ऐसा संकल्प और ऐसी ही व्यवस्था की जरूरत है। अभी तक इस सिद्धान्त को पूरे विश्व ने खासतौर पर विकसित देशों ने विकासवाद की अन्धी दौड़ की वजह से भुला रखा है।

हाल में ही हुए लोकसभा चुनावों में अधिकांश राजनीतिक दलों ने अपने घोषणापत्र में पर्यावरण सम्बन्धी किसी भी मुद्दे को जगह देना जरूरी नहीं समझा। देश में हर जगह, हर तरफ, हर पार्टी विकास की बातें करती है लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा जो लगातार विनाश को आमन्त्रित करता है। ऐ

से विकास को क्या कहें जिसकी वजह से सम्पूर्ण मानवता का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया हो। सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के कई शहरों का वातावरण बेहद प्रदूषित हो गया है। इस प्रदूषण को रोकने के लिए कभी सरकार ने गम्भीर प्रयास नहीं किए, जो प्रयास किए गए वो नाकाफी साबित हुए और वायु प्रदूषण बढ़ता ही गया। इसे रोकने के लिए अब जवाबदेही के साथ एक निश्चित समयसीमा के भीतर ठोस प्रयासों की दरकार है।

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