रिसर्च : बलुआ मिट्टी में नहरों के परिकल्पन के लिये सरलीकृत लेसी चार्ट


सारांश


साहित्य में उपलब्ध लेसी के सिद्धान्त के आधार पर बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित वक्र अर्द्धलघुगणक (semi log) पैमाने पर प्रकाशित किये गये क्योंकि तत्समय संगणन (computing) की प्रचुर सुविधायें उपलब्ध नहीं थी। उक्त वक्रों से नहरों के परिकल्पन के लिये वांटित अवयवों के परिणामों को पढ़ने में कठिनाई होती है तथा परिणाम सन्निकट होते हैं। परिणामों को पढ़ने में कठिनाई को कम करने के लिये तथा प्राप्त परिणामों में त्रुटियाँ कम करने के लिये प्रस्तुत लेख में लेसी द्वारा बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित वक्रों को सामान्य पैमाने पर विकसित कर प्रस्तुत किया गया है।

Abstract
The curves for the design of alluvial channel based on Lacey’s theory, available in literature are plotted on semi-log scale and involve lot of approximation in reading. An attempt has been made to further simplify these curves by plotting them on normal scale so that the approximation error may be minimised. Regime Slope-Discharge Curve, Regime Velocity-Discharge Curve and Water Depth-Bed Width Curve, based on Lacey’s regime theory have been generated and presented in the paper. It is expected that the charts will be useful to the Field Engineers for the quick design of alluvial channels.

1.0 प्रस्तावना


प्राचीन काल से भारत में कुँओं, तालाबों, नहरों आदि सिंचाई सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है। कृत्रिम सिंचाई योजनाओं में मुख्य रूप से खुली नहरें सम्मिलित है, जो भण्डारण या मोड़ संरचनाओं और वितरण प्रणाली से मिलकर सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराती हैं।

खुली नहर के निर्माण के लिये नहर की आवश्यक क्षमता के अनुसार छिन्नक के आधार पर खुदाई एवं भरण किया जाता है। खुली नहरों में जल बहाव नहर की तली के ढलान पर निर्भर करता है। गुरूत्वाकर्षण के आधार पर पानी ऊँचे स्तर से निचले स्तर पर बहता है। बहते हुए जल को कई प्रकार के कारकों का प्रतिरोध पड़ता है जैसे कि नहर का पृष्ठ तनाव (surface pension), सतह पर वायुमंडलीय दबाव (atmospheric pressure) और नहर के तल पर घर्षण। नहर तल पर घर्षण कई प्रकार के कारकों पर निर्भर करता है जैसे गीली परिधि को बनाने वाले द्रव्य, वक्र, घास पात (weeds) एवं विभिन्न प्रकार के वनस्पति विकास, अभिमार्जन (scouring), रेत या गाद का जमना (silting), अवलम्बित द्रव्य (suspended material) आदि।

अस्तर नहरों (Unlined Canals) के परिकल्पन में मुख्यतः कैनेडी और लेसी के सिद्धान्तों का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। अस्तर नहरों के परिकल्पन के लिये चार मापदंडों का आंकलन किया जाता हैः-

i. जल ग्रहण का क्षेत्रफल (Cross Sectional Area)
ii. हाईड्रोलिक त्रिज्या (R)
iii. जल प्रवाह का वेग (V)
iv. घर्षण ढाल (S)

कैनेडी के सिद्धान्त के रूप में, निरंतरता समीकरण (Q = AV) और प्रवाह समीकरण [V=f (n,R,S)] उपलब्ध हैं। एक अनूठा समाधान प्राप्त करने के लिये, इन दो समीकरणों के अतिरिक्त निम्नलिखित मानदण्डो का भी उपयोग किया जाता हैः

i. अभिमार्जन एवं गाद को दृष्टिगत रखते हुए परिसीमित वेग समीकरण,
ii. उपलब्ध भूमि ढ़ाल से ढ़लान का शासित होना।

तथा रिजीम (regime) स्थिति के आधार पर लेसी द्वारा अनूठा समाधान प्राप्त करने के लिये चार समीकरण प्रतिपादित किये गये।

2.0 बलुआ मिट्टी में नहर परिकल्पन के लिये लेसी द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त


गाद प्रभार के साथ प्रवाहित होने वाली रिजीम (regime) नहरों में प्रवाह को बनाये रखने के लिये नहर का परिमाप, चौड़ाई, गहराई एवं ढ़लान सभी प्रकृति द्वारा तय किये जाते हैं। यह विचार सबसे पहले लेसी द्वारा आगे रखा गया था। लेसी के अनुसार, एक नहर जो बलुआ मिट्टी में असीमित असम्बद्ध (incoherent) में बहती रहे और वह एक ही ग्रेड के द्रव्य को बहाते हुए बिना अवरोध के निरन्तर उसी स्थिति में बहती रहे, तब उन परिस्थितियों में वह नहर पूर्ण रुप से स्थिरता की स्थिति को प्राप्त होती है।

बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये लेसी के अतिरिक्त कई अन्य शोधकर्ताओं द्वारा यथा इंग्लिस, ब्लैच एवं साइमन आदि द्वारा भी रिजीम सूत्र विकसित किये गये हैं तथापि लेसी सूत्र सरल होने के कारण अधिक उपयोग में लाया जाता है। बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित लेसी सूत्र 3,4 निम्न प्रकार हैंः-

बलुआ मिट्टी में नहर परिकल्पना के लिये लेसी द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तजल प्रवाह (Q) एवं गाद कारक (f) के ज्ञात मूल्य के लिये नहर के मानक जैसे नहर तल चौड़ाई (B), गहराई (D) एवं नहर ढाल (S) का अनूठा आंकलन उपरोक्त समीकरणों के उपयोग से किया जा सकता है।

बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये नहर के मानकों का अनूठा मान प्राप्त करने के लिये अर्द्ध लघुगणक (semi log) चार्ट2 भी उपलब्ध है।

3.0 सरलीकृत लेसी चार्ट


बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये एम.एस.एक्सेल (MS Excel) सॉफ्टवेयर की सहायता से निम्नलिखित चार्ट को सामान्य पैमाने पर पुनः विकसित किया गया हैः-

- रिजीम ढाल- जल प्रवाह वक्र
- जल की गहराई-नहर तल चौड़ाई वक्र

3.1 रिजीम ढाल- जल प्रवाह वक्र


1.0 से 250 क्यूमेक जल प्रवाह एवं 0.20 से 4.0 तक के गाद कारक के लिये सूत्र संख्या 4.0 की सहायता से रिजीम ढाल-जल प्रवाह वक्र विकसित कर चित्र संख्या 1.0 में दर्शाया गया है, जिससे किसी भी जल प्रवाह एवं गाद कारक के ज्ञात मान के लिये चित्र संख्या 1.0 से नहर तल ढाल का आसानी से आंकलित किया जा सकता है।

चित्र संख्या 1.0- ढाल-जल प्रवाह वक्र

3.2 जल की गहराई-तल की चौड़ाई वक्र


नहरों के किनारे के ढ़ाल की खुदाई 1.0:1.0 के ढ़ाल में इस अवधारणा के साथ की जाती है कि नहर के तल में गाद जमा होने तथा नहर द्वारा रिजीम प्राप्त होने के उपरान्त नहरों के किनारे के ढ़ाल 0.5:1.0 का ढाल प्राप्त कर लेंगे। 0.5:1.0 ढाल वाली नहर का क्षेत्रफल और गीली परिधि की गणना करने के लिये सूत्र निम्न प्रकार हैंः-

जल की गहराई-तल की चौड़ाई वक्र1.0 से 250 क्यूमेक जल प्रवाह एवं 0.40 से 2.00 गाद कारक के लिये नहर में जल की गहराई आंकलित करने के लिये समीकरण संख्या 9.0 का उपयोग किया गया। तत्पश्चात सूत्र 3 एवं 8 से नहर तल की चौड़ाई का आंकलित की गयी। नहर में जल की गहराई एवं नहर तल की चौड़ाई को चित्र संख्या 2.0 में प्रदर्शित किया गया है जिससे किसी भी जल प्रवाह एवं गाद कारक के मान के लिये नहर में जल की गहराई एवं नहर तल की चौड़ाई आंकलित की जा सके।

चित्र संख्या 2.0 - पानी की गहराई- नहर तल चौड़ाई वक्र

4.0 सरलीकृत लेसी चार्ट का परिकल्पन के लिये उपयोग


बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित सरलीकृत लेसी चार्ट को उपयोग में लाने के लिये प्रक्रिया निम्न प्रकार हैंः-

i. चैनल द्रव्य के औसत आकार से गाद कारक का आंकलन (f=1.76 umr)
ii. चित्र संख्या 1.0 से ज्ञात जलप्रवाह एवं गाद कारक के लिये नहर के ढ़ाल का मान पढ़ा जा सकता है।
iii. चित्र संख्या 2.0 से ज्ञात जलप्रवाह एवं गाद कारक के लिये नहर के तल चौड़ाई एवं पानी की गहराई ज्ञात की जा सकती है।

6.0 निष्कर्ष/उपसंहार


साहित्य में उपलब्ध लेसी के सिद्धान्त के आधार पर बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित वक्र अर्द्ध लघुगणक (semi log) पैमाने पर प्रकाशित किये गये क्योंकि तत्समय संगणन (computing) की प्रचुर सुविधायें उपलब्ध नहीं थी। उक्त वक्रों से नहरों के परिकल्पन के लिये वांछित अवयवों के परिणामों को पढ़ने में कठिनाई होती है तथा परिणाम सन्निकट होतेे हैं। परिणामों को पढ़ने में कठिनाई को कम करने के लिये तथा प्राप्त परिणामों में त्रुटियाँ कम करने के लिये प्रस्तुत लेख में लेसी द्वारा बलुआ मिट्टी में नहर के परिकल्पन के लिये विकसित वक्रों को सामान्य पैमाने पर विकसित किया गया है। लेख में बलुआ मिट्टी में नहर के सरलीकृत परिकल्पन के लिये प्रस्तुत चार्ट क्षेत्रीय अभियन्ताओं को शीघ्र परिकल्पन करने में बहुत उपयोगी होंगेे ऐसी आशा है।

7.0 सन्दर्भ
1. लेसी, जी (1930) स्टेबल चैनल इन एलुवियम, पेपर न. 4736, प्रोसीडिंग इन्स्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स, लन्दन, इंग्लैंड, वोल्यूम 229।
2. वार्श्नेय, आर.एस. एट.एल (1983) थ्योरी एंड डिजाईन ऑफ इरीगेशन स्ट्रक्चर्स, वोल्यूम 1, चैनल एंड ट्यूबवैल्स, नेम चंद एंड ब्रॉस, रुड़की।
3. मैनुअल ऑन इरीगेशन एंड पॉवर चैनल्स, पब्लिकेशन नं. 171, सेंट्रल बोर्ड ऑफ इरीगेशन एंड पॉवर, नई दिल्ली, मार्च (1984)।
4. क्राइटेरिया फॉर डिजाइन ऑफ क्रॉस सेक्शन फॉर अनलाइन्ड कैनाल्स इन एलुवियम सॉइल, आई.एस. : 7112, ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैन्ड्डर्स, नई दिल्ली (1988)।

सहायक अभियन्ता, सिंचाई अनुसंधान संस्थान, रुड़की, उत्तराखण्ड़, मुख्य अभियन्ता परियोजना (गढ़वाल), सिंचाई विभाग, देहरादून, उत्तराखण्ड

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