रिसर्च : कृषि भूखंड से एकत्रित आँकड़ों की सहायता से मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति का मूल्यांकन


सारांश


राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति, जिसे प्राकृतिक संसाधन संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (NRCS-CN) पद्धति के नाम से भी जाना जाता है, किसी दिये गए वर्षा घटक के लिये प्रत्यक्ष सतही अपवाह की मात्रा को ज्ञात करने के लिये उपलब्ध लोकप्रिय पद्धतिओं में से एक है। प्रस्तुत अध्ययन में, अमेरिका के जलविभाजकों के लिये उपलब्ध वृहत P-Q आँकड़ा समूह के आधार पर, अगस्त 2012 से मार्च 2015 के मध्य, भारत के 27 कृषि भूखण्डों में हुई प्राकृतिक वर्षा वृष्टि के आँकड़ों की सहायता से विकसित किए गए मृदा संरक्षण सेवा (वर्तमान में प्राकृतिक संसाधन संरक्षण सेवा)-वक्र संख्या (NRCS-CN) की क्षमता का मूल्यांकन किया गया है। तथा परिणामों की तुलना राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) सारणी के साथ की गई। यह पाया गया है कि राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) सारणी से आंकलित वक्र संख्या के मान, प्रेक्षित P-Q आँकड़ा समूह की सहायता से व्युत्क्रमित मानों से भिन्न हैं। परिणामतः, राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) सारणी वक्र संख्या के प्रयोग द्वारा प्राप्त अपवाह मान, 22 भूखण्डों के आँकड़ों से प्राप्त अपवाह मानों की तुलना में निकृष्ट पाए गए। तथापि, उच्च वक्र संख्या मानों के लिये कुछ बेहतर परिणाम प्राप्त हुए, जिससे यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि वर्तमान मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति से उच्च वर्षा-अपवाह या वक्र संख्या मानों के लिये श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त होते हैं।

Abstract:

The National Engineering Handbook (NEH–4) Soil Conservation Service–Curve Number (SCS–CN) method also known as Natural Resource Conservation Service Curve Number (NRCS–CN) method is one of the most popular methods for computing the volume of direct surface runoff for a given rainfall event. In this study, the performance of NRCS–CN method developed based on a large P–Q dataset of US watersheds is evaluated using a large number of natural storm events data (observed during August 2012 – March 2015) from 27 agricultural plots in India. On the whole, the CN estimates from NEH–4 tables do not match those derived from observed P–Q dataset. As a result, the runoff prediction using former CNs was poor for the data of 22 (out of 24) plots. However, match was little better for higher CN values, consistent with the general notion that the existing SCS-CN method performs better for high rainfall-runoff (or CN) events. The plot-data optimization yielded initial abstraction ratio (λ or Ia/S, where Ia is the initial abstraction and S is the potential maximum retention) values ranging from 0 to 0.659 for ordered dataset and 0 to 0.208 for natural dataset (with 0 as the most frequent value). Most λ-values (out of 27, 26 for natural and 21 for ordered P–Q datasets) were less than the traditionally assumed λ = 0.2 value. Mean and median λ values were, respectively, 0.030 and 0 for natural P–Q dataset, and 0.108 and 0 for ordered P–Q dataset. In addition, Ia was not linearly related with S.

Keywords: Initial abstraction ratio; Agricultural plot; NEH–4 tables; NRCS.

प्रस्तावना


राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति जिसे प्राकृतिक संसाधन संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (NRCS-CN) पद्धति के नाम से भी जाना जाता है, किसी दिये गए वर्षा घटक के लिये लघु कृषि जलविभाजक हेतु प्रत्यक्ष सतही अपवाह की मात्रा को ज्ञात करने के लिये उपलब्ध लोकप्रिय पद्धतियों में से एक है। इस पद्धति की लोकप्रियता के मुख्य कारण (i) इसकी सरलता एवं (ii) अपवाह ज्ञात करने हेतु केवल दो प्राचलों (प्रारम्भिक प्रथक्कीकरण अनुपात ((λ) एवं संभाव्य अधिकतम अवरोधन (S)) का अंतर्वेश किया जाना है।

मापन सुविधाविहीन जलविभाजकों के लिये वक्र संख्या को, जलविभाजक की जलविज्ञानीय विशिष्टताओं (कोलन) उदाहरणतः जलविज्ञानीय मृदा समूह, भूमि उपयोग एवं भूमि स्थिति, एवं आद्रता स्थितियों (AMC) के प्रयोग द्वारा, प्रचलित राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) सारणी की सहायता से व्युत्क्रमित किया गया है। आनुभाविक प्रमाण दर्शाते हैं कि, राष्ट्रीय अभियान्त्रिकी पुस्तिका (NEH-4) सारणी के प्रयोग द्वारा प्राप्त वक्र संख्या मान, जलविज्ञानीय तन्त्र को सामान्यतः अति-अभिकल्पित करते हैं अतः प्रेक्षित वर्षा-अपवाह आँकड़ों पर आधारित वक्र संख्या मानों के प्रयोग हेतु संस्तुति की गई है। प्रेक्षित P-Q आँकड़ा समूह के लिये, वक्र संख्या मानों को ज्ञात करने हेतु उपलब्ध अनुसंधान में अनेकों विधियाँ दर्शाई गई हैं। परन्तु इन उपलब्ध विधियों में, प्रेक्षित वर्षा-अपवाह आँकड़ों से वक्र संख्या मानों को ज्ञात करने के लिये कोई सहमति प्रक्रिया नहीं है क्योंकि प्रत्येक विधि स्वयं में श्रेष्ठतम है।

किसी जलविभाजक हेतु वर्षा-अपवाह आकलन के लिये प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात ((λ) का वास्तविक मापन किया जाना अतिआवश्यक है क्योंकि यह वर्षा-अपवाह आकलन में प्रयोग किए जाने वाले महत्त्वपूर्ण प्राचलों में से एक है। प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात ((λ) मुख्यतः जलविभाजक की क्षेत्रीय स्थिति पर आधारित है इसके अतिरिक्त इसके आकलन में, वर्षा वृष्टि के आरम्भ में होने वाले अवरोधन, अंतःस्यंदन एवं सतही अवसादन भी सम्मिलित होते हैं। यह पाया गया है कि प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात ((λ) का मान अलग-अलग जलविभाजकों एवं अलग-अलग वर्षा घटकों के लिये परिवर्तनीय है। प्राप्त परिणामों के आधार पर यह पाया गया है कि विश्व के अधिकांश भागों में उपलब्ध जलविभाजकों हेतु प्रत्यक्ष सतही अपवाह की मात्रा को ज्ञात करने के लिये प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात ((λ) का मान 0.5 या 0.5 से कम स्वीकार्य है। इसके अतिरिक्त Ia एवं S के मध्य एक अरेखीय सम्बन्ध की संस्तुति भी की गई है।

मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति


मृदा संरक्षण सेवा-वक्र संख्या (SCS-CN) पद्धति में निम्न समीकरण सम्मिलित हैंःजहाँ :
Q = प्रत्यक्ष सतही अपवाह (मि.मी.)
P = वर्षा (मि.मी.)
Ia = प्रारम्भिक पृथक्कीकरण (मि.मी.)
S = संभाव्य अधिकतम अवरोधन (मि.मी.)
λ = प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात

S एवं CN का मान प्रेक्षित P-Q आँकड़ा समूह के आधार पर निम्न समीकरण द्वारा ज्ञात किया जा सकता है। निम्न समीकरण के अनुसार S का मान 0 ≤S ≤∞ तथा CN की उपयुक्त सीमा 0 ≤CN ≤100 के मध्य परिवर्तनीय हो सकती है।

एस एवं सीएन मान प्रेक्षित

भूखण्ड चयन एवं विवरण


प्रस्तुत अध्ययन 29डिग्री 50’09’’ उत्तरी अक्षांश एवं 77डिग्री55’21’’ पूर्वी देशांतर पर उत्तराखंड के रुड़की शहर में प्रेक्षण हेतु स्थापित एक भूखण्ड में किया गया (चित्र-1)। यह क्षेत्र गंगा नदी की सहायक नदी सोलानी नदी के जलविभाजक के अन्तर्गत आता है। स्थापित भूखण्ड समुद्र तल से 266 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ मुख्यतः ग्रीष्म, वर्षा एवं शरद तीन ऋतुएँ पाई जाती हैं। क्षेत्र का अधिकतम एवं न्यूनतम तापमान क्रमशः 45डिग्री सेन्टीग्रेड एवं 2.5डिग्री सेन्टीग्रेड तक पाया जाता है। इस क्षेत्र में होने वाली वर्षा क्रमशः 1120 से 1150 मि.मी. के मध्य परिवर्तनीय है, जो सामान्यतः मध्य जून से मध्य सितम्बर के मध्य प्राप्त होती है। क्षेत्र में औसत वार्षिक सम्भाव्य वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन 1340 मि.मी. तक पाया जाता है। इस क्षेत्र में आर्द्रता का मान 30 प्रतिशत से 99 प्रतिशत के मध्य परिवर्तनीय पाया जाता है।

प्रेक्षण स्थल स्थापना एवं आँकड़ों का एकत्रीकरण


चयनित कृषि क्षेत्र को प्रेक्षण कार्य हेतु 22 मीटर लम्बे एवं 5 मीटर चौड़े भूखण्डों में विभाजित किया गया। वर्षा एवं अपवाह के प्रबोधन के लिये चार विभिन्न भूमि-उपयोगों जैसे, गन्ना, मक्का, काला चना, एवं परती भूमि के लिये भूखण्डों का चयन किया गया। प्रत्येक भूमि उपयोग हेतु भूखण्डों का निर्माण तीन विभिन्न ढालों (5 प्रतिशत, 3 प्रतिशत एवं 1 प्रतिशत) के लिये किया गया। अगस्त 2012 से मार्च 2015 तक के तीन वर्षों के लिये प्रेक्षण कार्य किए गए, जिनके अन्तर्गत विभिन्न ढालों, भूमि उपयोगों एवं जलीय मृदा समूह (HSG) के लिये 27 प्रेक्षण भूखण्डों हेतु वर्षा एवं अपवाह का प्रबोधन किया गया।

उत्तराखंड में रुड़की के निकट स्थापित प्रेक्षण भूखंडों का विन्यासप्रत्येक भूखण्ड से जनित अपवाह को 3 मीटर लम्बी वाहिका की सहायता से भूखण्ड के निकास पर निर्मित 1 मीटर ग 1 मीटर ग 1 मीटर आकार के टैंकों में एकत्रित किया गया। इस चैम्बर को 5 छिद्रों वाले बहु-छिद्रीय विभाजक द्वारा अवरोधित किया गया। इन टैंकों में एकत्रित प्रवाह के आयतन की विगत 24 घंटों के दौरान होने वाले एकल वर्षा वृष्टि घटक के लिये 5 लब्धि भूखण्ड अपवाह से गुना की गई। अध्ययन स्थल पर स्थापित उल्टी बाल्टी वर्षामापी एवं सामान्य वर्षामापी की सहायता से भूखण्ड में होने वाले अवक्षेपण की गणना की गई। HSG के चयन हेतु द्विरिंग अंतःस्यंदनमापी के प्रयोग द्वारा प्रत्येक भूखण्ड के लिये अंतःस्यंदन परीक्षण किए गए। विभिन्न भूखण्डों के लिये न्यूनतम अंतःस्यंदन क्षमता एवं उनके सापेक्ष HSG के मानों को सारणी -1 में दर्शाया गया है।

वक्र संख्या आकलन


NEH-4 सारणी वक्र संख्याः
किसी भूखंड के लिये CN मानों को CHHT के रूप में निर्दिष्ट किया गया है। भूमि-उपयोग, मृदा प्रकार एवं वनस्पति के आधार पर सभी भूखण्डों के लिए NEH-4 सारणी की सहायता से प्रतिनिधित्व AMC-II-CN (या CN 2) के मानों को व्युत्क्रमित किया गया (सारणी-1)।

P-Q आँकड़ों पर आधारित वक्र संख्याः
निम्न समीकरण (5) के प्रयोग द्वारा अपेक्षित वर्षा (P) एवं अपवाह आँकड़ों (Q) के लिये प्रारम्भिक पृथक्कीकरण अनुपात ((λ) का मान 0.2 मानते हुए प्राचल S का मान ज्ञात किया गया। भूखण्ड के लिये प्राप्त CN के मान प्राकृतिक एवं क्रमिक आँकड़ा समूहों को क्रमशः CNLSn एवं CNLSo के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।

पी-क्यू आंकड़ों पर आधारित वक्र संख्याइसके पश्चात ((λ) मानों को व्युत्क्रमित करने के लिये S एवं (को उपरोकतानुसार इष्टतमीकृत) किया गया। इसके लिये वर्षा-अपवाह घटकों के कम से कम 10 प्रेक्षणों की उपलब्धता वाले घटकों का उपयोग किया गया। CN (CNHT,CNLSn, oa, CNLSo) मानों को AMC-II स्थिति के लिये माना गया है। आद्र (AMC-III) एवं शुष्क (AMC-I) स्थितियों के लिये CN के मान क्रमशः समीकरण 6 एवं 7 के द्वारा प्राप्त किए गए।

समीकरण 6 एवं 7अपवाह के मान को ज्ञात करने हेतु प्रयुक्त किसी ज्ञात वर्षा घटक के लिये AMC के निर्धारण हेतु 5 दिवसीय पूर्वगामी वर्ष (5) का प्रयोग निम्न प्रकार किया गया।

AMC-I : यदि प्रगतिशील ऋतु में P5 (˂) 35.56 मि.मी. या निष्क्रिय ऋतु में P5 (˂) 12.7 मि.मी.;
AMC-II : यदि प्रगतिशील ऋतु में 35.56 ≤ P5 ≤ 53.34 मि.मी. या निष्क्रिय ऋतु में 12.70 ≤ P5 ≤ 27.94 मि.मी.; एवं
AMC-III : यदि प्रगतिशील ऋतु में P5 (˃) 53.34 मि.मी. या निष्क्रिय ऋतु में P5 (˃) 27.94 मि.मी.।

सारणी-1 : अपवाह क्षेत्र विशिष्चताएँ एवं एलएसएम तथा एनइएच-4

निष्पादन मूल्यांकन के लिये मानदंड


निर्धारण नियतांक (R2) माध्य वर्गमूल त्रुटि (RMSE) नैश सुट्क्लिफ्फे क्षमता नियतांक (NSE) एवं बाइयस (e) के आकलन के निष्पादन मूल्यांकन के लिये चार मानदंडों का प्रयोग किया गया।

निष्पादन मूल्यांकन के लिये मानदंडजहाँ :
Qi = वृष्टि घटक (i) के लिये प्रेक्षित अपवाह (मि.मी.);
Qci = वृष्टि घटक (i) के लिये अनुमानित अपवाह (मि.मी.);
N = वृष्टि घटकों की कुल संख्या
Q = समस्त वृष्टि घटकों के लिये माध्य प्रेक्षित अपवाह

निर्धारण नियतांक (R2) का मान 0 से 1 की सीमा में प्राप्त होता है । R2 का 1 मान प्रेक्षित एवं अनुमानित मानों के मध्य श्रेष्ठ सम्बन्ध को दर्शाता है। नैश सुट्क्लिफ्फे क्षमता नियतांक (NSE) का मान -∞ से 1 की सीमा में प्राप्त होता है। NSE का 1 मान प्रेक्षित एवं अनुमानित मानों के मध्य श्रेष्ठ सम्बन्ध को तथा इसका कम मान निकृष्ट सम्बन्ध को दर्शाता है। E का ऋणात्मक मान दर्शाता है कि माध्य प्रेक्षित मान अनुमानित मान से श्रेष्ठ है।

परिणाम एवं व्याख्या


प्रस्तुत अध्ययन में प्रदर्शित वर्षा-अपवाह विश्लेषण, विभिन्न ढालों, भूमि उपयोगों एवं जलीय मृदा समूह (HSG) के भूखण्डों के लिये प्रबोधित प्राकृतिक वर्षा-अपवाह घटकों पर आधारित है। अगस्त 2012 से मार्च 2015 के मध्य किए गए प्रेक्षण कार्य हेतु वर्षा वृष्टि के कुल 101 घटकों से 0.5 मि.मी. से 93.8 मि.मी. तक की परिवर्तनीय वर्षा प्राप्त हुई। जिनमें से अपवाह मापन हेतु 43 वर्षा वृष्टि घटकों से पर्याप्त वर्षा प्राप्त हुई ।

CNHT, CNLSn एवं CNLSo की तुलना


NEH-4 सारणी से प्राप्त CN (CNHT) मानों की तुलना, 27 भूखण्डों पर किए गए प्रेक्षणों से प्राप्त प्रेक्षित एवं क्रमिक P-Q आँकड़ों से प्राप्त CN मानों के साथ की गई (सारणी -1)। प्राप्त CNHT मानों की सीमा 58 से 88 के मध्य पाई गई। प्राकृतिक आँकड़ा समूहों के लिये CNLSn के इष्टतम मान 64.73 से 90.33 के मध्य एवं क्रमिक आँकड़ा समूहों के लिये CNLSo के इष्टतम मान 67.47 से 90.59 के मध्य प्राप्त हुए। CNLSn एवं CNLSo दोनों के लिये प्राप्त मान CNHT की तुलना में अधिक पाये गए (सारणी -1)। चित्र 2च के अनुसार 27 भूखण्डों में से 17 के लिये CNHT एवं CNLSn की तुलना सम्भव नहीं है, क्योंकि CNLSn के मान CNHT से अधिक हैं। युग्मन के आधार पर CNHT एवं CNLSn की तुलना से दोनों के मध्य विशिष्ट अन्तर (p)˂(0.05) प्राप्त हुआ जो यह दर्शाता है की वर्तमान SCS-CN विधि उच्च वर्षा-अफवाह घटकों की तुलना में श्रेष्ठ निष्पादन करती है। चित्र 2b में दर्शाई गई CNHT एवं CNLSo की तुलना से भी समान परिणाम प्राप्त होते हैं। चित्र 2c से प्राप्त CNLSo के मान CNLSn की तुलना में उच्च पाये गए। प्राकृतिक आँकड़ा समूहों से प्राप्त CN मानों की तुलना क्रमिक आँकड़ा समूहों से करने पर CN मानों में 0.15 से 3.22 का अन्तर प्राप्त हुआ। CNLSo एवं CNLSn के मध्य ग्राफ की प्रवृत्ति निम्न समीकरण को सन्तुष्ट करती है।

चित्रः 2 :सारणी-2 में 24 भूखण्डों (1-24) के आँकड़ों के लिये CN (CNHT, CNLSn एवं CNLSo) के समस्त तीन समूहों की शुद्धता परीक्षण के प्रयोग द्वारा निष्पादकता को दर्शाया गया है। 25-27 भूखण्डों को P5 आँकड़ों की अनुपलब्धता के कारण तुलना में सम्मिलित नहीं किया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि CNLSo का निर्माण सर्वश्रेष्ठ है। जबकि CNLSn का निष्पादन CNHT से श्रेष्ठ है। सारणी-2 से स्पष्ट है कि 24 में से 15 भूखण्डों के लिये प्रेक्षित अपवाह का माध्य CNHT की तुलना में श्रेष्ठ आकलन प्रदान करता है। इसी प्रकार 24 में से 8 भूखण्डों के लिये CNLSn या CNLSo की तुलना में प्रेक्षित अपवाह का माध्य श्रेष्ठ परिणाम प्रदान करता है।

सारणी-2 अपवाह आंकलन के लिये निष्पादन मानचित्र 2a, 2b एवं सारणी 1 एवं 2 से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि साहित्य में उपलब्ध जानकारी की तुलना में CNHT एवं CNLSn या CNLSo के मध्य निकृष्ट सम्बन्ध प्राप्त होते हैं। CNHT के विकल्प के रूप में 24 भूखण्डों के लिये NSE के उच्च मान पर आधारित श्रेष्ठ CN मानों की संस्तुति की गई है।

((λ) की व्युत्पत्ति


सारणी - 1 में प्राकृतिक (0-0.208 की सीमा के अन्तर्गत) एवं क्रमिक (0-0.659 की सीमा के अन्तर्गत) दोनों P-Q आँकड़ा समूहों के लिये व्युत्पत्तित इष्टतमीकृत (λ) मानों को दर्शाया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि क्रमिक आँकड़ों के लिये ( λ) के मान अधिक है (चित्र-3)। ( λ) मानों के लिये माध्य एवं मध्यम मान प्राकृतिक आँकड़ा समूहों के लिये क्रमशः 0.030 एवं 0 तथा क्रमिक आँकड़ा समूहों के लिये 0.108 एवं 0 प्राप्त हुए जोकि ( λ=0.2) से कम हैं परन्तु साहित्य में दिये गए मानों के समान हैं।

चित्र-3 27 आंकड़ा समूहों के लिएचित्र - 3 : 27 आंकड़ा समूहों के लिए (λ) के व्युत्पत्तित मान
27 भूखण्डों के सम्पूर्ण आँकड़ों के प्रयोग द्वारा विभिन्न भूखण्डों के लिये Ia-S सम्बन्ध ज्ञात किए गए। Ia एवं S को आपस में प्लॉट करने पर प्राकृतिक एवं क्रमिक आँकड़ा समूहों के लिये अरेखीय सम्बन्ध प्राप्त हुए (चित्र -4)। प्राकृतिक आँकड़ा समूहों के लिये प्रतिगमन समीकरण Ia = -3.16 In (S) + 17.81, R2=0.202 एवं क्रमिक आँकड़ा समूहों के लिये प्रतिगमन समीकरण Ia = -7.98 In (S) + 42.32, R2=0.424 प्राप्त हुई।

अध्ययन की सीमाएँ


प्रस्तुत अध्ययन में प्रेक्षण की सीमाएँ जैसे भूखण्ड का आकार, ढाल, मृदा, कृषि भूमि उपयोग एवं जलवायु परिस्थितियों के निश्चित होने के कारण प्राप्त परिणाम की भी निश्चित सीमाएँ हैं। प्रस्तुत अध्ययन को वृहत स्तर पर किए जाने पर परिणामों में परिवर्तन पाया जा सकता है। आँकड़ों को मैनुअली एकत्रित किए जाने के स्थान पर यदि स्वचालित यन्त्रों की सहायता से एकत्रित किया जाये तो अधिक श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

चित्र 27 भूखण्डों के लिए

निष्कर्ष


अध्ययन से निम्न निष्कर्ष प्राप्त हुए।
1. NEH-4 से प्राप्त CN मान P-Q व्युत्क्रमित CN मानों से सामान्यतः भिन्न पाये गए। तथापि उच्च CN मानों के लिये प्राप्त मान कुछ स्तर तक मेल खाते हैं। जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान SCS-CN मान उच्च वर्षा-अपवाह घटकों के लिये श्रेष्ठ परिणाम प्रदान करते हैं।

2. प्राकृतिक P-Q आँकड़ों के लिये माध्य एवं मध्यम ( मान क्रमशः 0.03 एवं 0.0 तथा क्रमिक P-Q आँकड़ों के लिये 0.108 एवं 0 प्राप्त हुए। λ का मान केवल 1 प्राकृतिक एवं 6 क्रमिक भूखण्ड आँकड़ों के लिये 0.2 से अधिक प्राप्त हुआ। प्राप्त Ia-S सम्बन्ध अरेखीय पाया गया।

सन्दर्भ


सतही जल पर भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCSW), अनुसंधान एवं विकास परियोजना (MOW-627-WRD), जल संसाधन मन्त्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
जैन एम.के., मिश्रा, एस.के., एवं अन्य (2006), अन एनहैन्स्ड रनोफ़्फ़ कर्व मोडेल ईंकोर्पोरेटिंग स्टोर्म ड्यूरेशन एवं नॉन लीनियर आईए-एस रिलेशन, जर्नल ऑफ हाइड्रोलॉजी, 11(6), पृष्ठ 631-635।
मिश्रा, एस.के., जैन एम.के., सिंह वी.पी. (2004), “इवैल्यूएशन ऑफ SCS-CN बेस्ड मॉडल ईंकोर्पोरटिंग एंटीसीडेंट मोइश्चर” , वॉटर रिसोर्सेस मैनेजमेंट, 18(6), पृष्ठ 567-589 ।
मिश्रा, एस.के., सिंह वी.पी. (2003), “SCS-CN मेथोडोलोजी” क्लूवर प्रकाशक। NRCS (1997), “हाइड्रोलॉजी” नेशनल इंजीन्यरिंग पुस्तिका, मृदा संरक्षण सेवा, USDA, वॉशिंगटन, DC।
एससीएस (1972), “हाइड्रोलॉजी” नेशनल इंजीन्यरिंग पुस्तिका, मृदा संरक्षण सेवा, USDA, वॉशिंगटन, DC।

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