रिसर्च : विभिन्न जल विभाजकों से उत्पन्न अपवाह पर वन क्षेत्र के घनत्व का प्रभाव


सारांश


वन क्षेत्र में जल धारा प्रवाह के मान का अन्तर समझने हेतु मसूरी क्षेत्र में स्थित दो विभिन्न गुणवत्ता वाले जलागम क्षेत्रों यथा अरनी गाड जलागम क्षेत्र व बन्सी गाड जलागम क्षेत्र पर अध्ययन किया गया है। प्रस्तुत प्रपत्र में दोनों जलागमों के विभिन्न जल वैज्ञानिक पहलू पर प्रकाश डाला गया है। जलविभाजकों का जल विज्ञानिय स्वभाग अत्यन्त जटिल होने के साथ ही समय तथा स्थान के साथ परिवर्तनशील जलवायु तथा स्थलाकृति कारकों पर निर्भर करता है।

दोनों अपवाह क्षेत्रों में जल वैज्ञानिय उपकरणों को स्थापित किया गया। दोनों अपवाह क्षेत्रों की प्रकृति भूमि प्रयोग आधारित मानचित्र के अनुसार विभिन्न है। अति सघन वन क्षेत्र अरनी गाड मेें वर्षा 1627 मि.मी. व बन्सीगाड में वर्षा 1932 मि.मी. दर्ज की गयी। इसमे क्रमशः 2905 मि.मी. व 2958 मि.मी. अपवाह दर्ज किया गया। जून से सितम्बर के मध्य अपवाह का प्रतिशत बन्सीगाड में 81 प्रतिशत व अरनी गाड में 60 प्रतिशत पाया गया। जबकि इस दौरान वर्षा कुल वार्षिक वर्षा के 86-80 प्रतिशत होती है। कम सघन वनजल विभाजक वाले क्षेत्र में कुल वार्षिक प्रवाह 305 मि.मी. (19 प्रतिशत से अधिक) है जोकि घने जल विभाजक क्षेत्रों से लगभग 50 प्रतिशत अधिक है।

परिचय


पहाडी जल विभाजकों में मुक्त जल, विभिन्न कारकों की परस्पर क्रियाओं पर निर्भर करता है। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है वर्षा वितरण, वर्षा की तीव्रता, वनस्पति से आच्छादित क्षेत्र, मिट्टी की विशेषता, भू-वैज्ञानिक संरचना, स्थलाकृति, जल ग्रहण क्षेत्र का ढाल व धारा की आकृति आदि।

जलविज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न देशों द्वारा विभिन्न वन जल विभाजकों में किये गये अध्ययन के आधार पर यह पाया गया है कि किसी भी जलागम क्षेत्र से होने वाले अपवाह में वनों का प्रवाह बहुत महत्त्वपूर्ण होता है। परन्तु कुछ अध्ययनों में यह पाया गया है कि यदि वन काट दिये जाए तो जलागम से, प्रभावित होने वाली वाहिकाओं में प्रवाह का मान बढ़ जाता है। अतः यह बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है कि वन क्षेत्र का जल प्रवाह पर क्या असर पड़ता है। हिमालय क्षेत्र में इस तरह के अध्ययन बहुत कम स्थानों पर किये गये हैं। अतः उपरोक्त जटिलताओं को देखते हुये, मसूरी के पास स्थित दो भिन्न जलागमों का अध्ययन के लिये चयन किया गया है। जिनमें वनों की संरचना तथा घनत्व एक दूसरे से भिन्न है। दोनों जलागमों से होने वाले प्रवाह का मापन करके उनसे होने वाले अपवाहों की तुलना की गयी है।

अध्ययन क्षेत्र


दो उपजलविभाजक क्षेत्र, अरनी गाड व बन्सीगाड जिनका अध्ययन दिया गया है, देहरादून रोड पर 30 कि.मी. दूर उत्तर में स्थित है। दोनों जलविभाजकों का ढाल तीव्र है। अरनी गाड जल विभाजक क्षेत्र का क्षेत्रफल 285 हेक्टेयर है व सघन वन क्षेत्र से ढका है। इसके विपरीत बन्सी गाड जल विभाजक क्षेत्र का क्षेत्रफल 190 हेक्टेयर है, जो कम सघन वन क्षेत्र से ढका है। दोनों जल विभाजक क्षेत्र दक्षिण में स्थित एक ही पर्वत श्रृंखला पर स्थित है तथा दोनों जलविभाजक क्षेत्रोें का महत्तम उन्नयन 540 मीटर व 580 मीटर है। दोनों की धारायें, (Second Order) दूसरे नम्बर की धारायें हैं, जो मुुख्य धारा में मिलती है।

अरनी गाड में लगभग 50 प्रतिशत अधिक क्षेत्र में घने ओक वृक्ष पाये जाते हैं, जिनका घनत्व 0.4 व 0.7 के मध्य है। तथा लगभग 20 प्रतिशत क्षेत्र में अधिक घने ओक के वृक्ष पाये जाते हैं, जिनका घनत्व 0.7 से ज्यादा है। अधिकतर आबादी का निवास जल विभाजक सीमा पर है। बन्सी गाड में 75 प्रतिशत भू-भाग खुले वनों के अन्तर्गत है व घने वनों का क्षेत्र लगभग 20 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त 5 प्रतिशत क्षेत्र आबादी मे सम्मिलित है। घने जंगलों में वृक्षों का भाग 15.5±6.6 से.मी. की तुलना में कम घने वृक्षों की तुलना में 30.6± 8.2 से.मी. है।

घने जंगलों में औसतन ऑर्गेनिक कार्बन की मात्रा सतही मृदा में (15 से.मी. गहराई तक) 3.3 प्रतिशत है जबकि कम घने जंगलों में इसकी मात्रा 2.3 प्रतिशत पायी गयी है।

सारणी-1 अरनीगाड और बन्सीगाड जल विभाजक क्षेत्रों का विवरणडिग्रेडेड जल विभाजक क्षेत्र बन्सी गाड में औसत तापमान 15.5 डिग्री सेन्टीग्रेड से 25 डिग्री सेन्टीग्रेड के मध्य पाया गया है जबकि घने जंगल से घिरे व्यापत अरनी गाड जल विभाजक क्षेत्र में औसत तापमान 18 से 20 डिग्री सेन्टीग्रेड के मध्य मापा गया। सापेक्ष आर्द्रता का मान ग्रीष्म काल में न्यूनतम व मॉनसून के दौरान अधिकतर पाया गया। वाष्प की दर 2-4 मि.मी./प्रतिदिन से 6-7 मि.मी/प्रतिदिन के बीच पायी गयी। वर्ष 2008-09 की अवधि में अरनी गाड जल विभाजक क्षेत्र में 2958 मि.मी. वर्षा दर्ज की गयी।

चित्र : 1 अध्ययन क्षेत्र का मानचित्र

क्रियाविधि


हिमालय क्षेत्र के जल विभाजकों में वन आवरण का अपवाह के ऊपर पड़ने वाले प्रवाह का अध्ययन करने के लिये दो जलागम क्षेत्रों का चयन किया गया। इन जलविभाजक क्षेत्रों के बिना आवरण के अतिरिक्त जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियाँ एक समान है। दोनों जल विभाजक क्षेत्रों में अलग-अलग मौसम वैद्यशाला स्थापित की गयी जिसमें वर्षा, कोंण तापमान, आर्द्रता और वाष्पीकरण का मापन किया गया तथा अपवाह मापन हेतु एक 120 डिग्री झुकाव वी-नोच का निर्माण किया गया तथा उसके ऊपर एक स्वचालित डिजिटल जलस्तर मापन रिकार्डर स्थापित किया गया। जलस्तर की मापन डिजिटल रिकार्डर के माध्यम से 15 मिनट के अन्तराल पर किया गया।

चित्र 2 : 120 डिग्री कोण पर निर्मित वीयर और स्वचालित जलस्तर निर्धारण रिकार्डर

परिणाम और चर्चा


वर्ष 2008 (अप्रैल) से 2009 (मार्च) के दौरान एकत्रित वर्षा एवं अपवाह के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है। आँकड़े दर्शाते हैं कि मार्च और अप्रैल के मध्य अपवाह की दर न्यूनतम तथा अगस्त में अधिकतम थी।

बन्सी गाड जलविभाजक क्षेत्र बहुत छोटा है, अपवाह की मात्रा फरवरी से अप्रैल/मई माह में शून्य पायी गयी। अधिकतम अपवाह 1.016 घनमीटर प्रतिसेकंड 17 अगस्त को मापी गयी। जबकि इसकी तुलना में अरनी गाड में 0.88 घनमीटर प्रतिसेकंड का अपवाह मापा गया यह दर्शाता है कि बराबर मात्रा की वर्षा से अपवाह बन्सी गाड जल विभाजक क्षेत्र से अपवाह ज्यादा होता है। अरनीगाड में न्यूनतम अपवाह दर 0.045 घनमीटर प्रतिसेकंड मार्च माह मे मापी गयी।

यदि दोनों जल विभाजक क्षेत्रों से गुजरने वाली वाहिकाओं में होने वाले अपवाह की दर की तुलना प्रति यूनिट क्षेत्र से की जाए तो यह निष्कर्ष निकलता है कि बन्सी गाड जल विभाजक में अधिकतम अपवाह जो 4611 मि.मी. और अरनी गाड जल विभाजक के क्षेत्र में 26.61 मि.मी. परिणाम प्राप्त हुआ जिसकी गणना 17 अगस्त 2009 को की गयी।

यदि दोनों जल विभाजकों के क्षेत्र से गुजरने वाली वाहिकाओं के हाइड्रोग्राफ को एक दृष्टि से देखा जाए तो यह निष्कर्ष निकलता है कि दोनों क्षेत्रों में वर्षा के जल को बहुत ही कम समय में अपवाह के रूप में बहतेे देखने को मिलता है जिसका कारण जल विभाजक का क्षेत्रफल कम होना व तीव्र ढलान है। यद्यपि दोनों क्षेत्रों के हाइड्रोग्राफ का अवरोही भाग भिन्न है। अरनी गाड की तुलना में बन्सी गाड की अपवाह दर मॉनसून महीनों के बाद ज्यादा तेजी से कम होती जाती है। और बन्सी गाड ग्रीष्म महीनों में सूख जाती है।
यह पाया गया है कि अतिसघन वन क्षेत्र में बहने वाली वाहिका का गैर मॉनसून महीनों के निरन्तर प्रवाह का कारण भूमि में अन्तःस्पंदन है।

चित्र 3 अरनीगाड व बन्सीगाडआकड़ों के विश्लेषण के आधार पर दोनों जलविभाजाकों के क्षेत्र से प्राप्त वर्षा (माह अक्टूबर 2008 से मार्च 2009 तक) कुल वार्षिक वर्षा का 3 प्रतिशत भाग प्राप्त हुआ। इसी अवधि के दौरान बन्सी गाड व अरनी गाड (0.15 घनमीटर प्रति सेकंड) में कुल अपवाह 361 मि.मी. व 545 मि.मी. क्रमशः प्राप्त हुआ। दैनिक अपवाह का मानक विचलन अरनी गाड से बन्सी गाड में 20 प्रतिशत अधिक है। इन परिणामों से ज्ञात होता है कि घने जंगल की अपेक्षा कम जंगल वाले क्षेत्रों में जल का अपवाह अधिक होता है। दोनों क्षेत्रों में अपवाह मई के दौरान न्यूनतम व अगस्त के दौरान अधिकतम है। अगस्त के महीने के दौरान बन्सी गाड में कुल अपवाह, अरनी गाड के सापेक्ष 60 प्रतिशत अधिक है। जुलाई से सितम्बर के मध्य यह अरनी गाड की तुलना में 48 प्रतिशत अधिक है। अपवाह गुणांक मॉनसून अवधि के दौरान (जून-सितम्बर) अरनी गाड व बन्सीगाड जल विभाजक क्षेत्र के लिये क्रमशः 0.39 व 0.61 है। मानसून के पश्चात जल धाराओं मे अपवाह काफी कम हो जाता है। अरनी गाड जल धारा का मान बन्सी गाड के मुकाबले अधिक हो जाता है। अक्टूबर से मार्च के मध्य अरनी गाड का अपवाह, बन्सी गाड की अपेक्षा 50 प्रतिशत अधिक हो जाता है।

बन्सीगाड में कम घने जंगलो में धारा का प्रवाह 9 से 10 महीनों के लिये होता है जबकि अरनी गाड में धारा 12 महीने बहती है। कम घने जंगलों में धारा रुक-रुक कर बहती है। जबकि सघन जंगलों में वर्षा का रिक्त स्थानों में भर जाना, दरारें व अन्य कारणों से पूरे वर्ष प्रवाहित होती है। सघन क्षेत्र अरनी गाड में जड़ों से मुक्त मिट्टी वर्षाजल अवशोषित करने में ज्यादा प्रभावशाली जबकि बिना जंगल की भूमि में वर्षा का जल सतही जल के रूप में धारा में मिल जाता है। इसके अतिरिक्त वन भूमि में नमी सोखने की क्षमता में वृद्धि कर देते हैं। वन जलीय चक्र सन्तुलन मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

निष्कर्ष


इस अध्ययन में दो विभिन्न प्रकार के जल विभाजकों में ऊपर जंगलों के जल विज्ञानिय चक्र पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया गया है। प्राप्त परिणामोें से पता चलता है कि मॉनसून के दौरान घने वन वाले जलविभाजक क्षेत्र की अपेक्षा कम वन वाले जलविभाजक क्षेत्र में वाहिकाओं में अतिरिक्त अपवाह प्रवाह प्राप्त होता है इससे ज्ञात होता है कि घने वनों वाले क्षेत्रों की तुलना में कम वन वाले क्षेत्र में अधिक वार्षिक अपवाह उत्पन्न होता है। दूसरी ओर सघन वन क्षेत्रों में पूरे वर्ष धारा में अधिक प्रवाह होता है जो यह दर्शाता है कि घने वन क्षेत्र में वर्षा के दौरान उप-सतह भूजल भण्डारण में एकत्रित होने के कारण गैर मॉनसून सत्र में, कम घने वन क्षेत्र वन क्षेत्र की तुलना में अधिक अपवाह उत्पन्न करता है। इस परिणाम को देेखते हुये दो भिन्न परिस्थिति वाले जल विभाजकों में वास्तविक भूजल भण्डारण के आकलन की अनुशंसा की जाती है।

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading