रियो+20 का आयोजन : हम भविष्य की पीढ़ियों को कैसी पृथ्वी देना चाहते हैं

11 Jun 2012
0 mins read
1992 में लगभग 20 साल पहले पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन किया गया था। जो ब्राजील के शहर रियो दि जेनेरियो में हुआ था। यह सम्मेलन पृथ्वी पर जीवों के सतत् विकास कि चिंताओं को लेकर हुआ था। 20 साल बाद फिर रियो में ही पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन के मुद्दों, चिंताओं, और भविष्य की पीढ़ियों को सतत् विकास के लिए जरूरी संसाधनों की सोच को बता रहे हैं संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून।

कई देशों में वृद्धि रुक गई है। नौकरियां कम हैं, अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है और भोजन, ईंधन तथा उन प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगी है, जिन पर सभ्यता निर्भर होती है। रियो में उपस्थित प्रतिनिधि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की सफलता की बुनियाद पर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। इन लक्ष्यों ने लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने में मदद की है। स्थायी विकास या वहनीय विकास पर नया जोर नौकरियों से भरपूर आर्थिक वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सोशल इनक्लूजन की गुंजाइश भी बना सकता है।

अब से 20 साल पहले पृथ्वी शिखर सम्मेलन हुआ था। रियो दि जेनेरियो में जमा हुए पूरी दुनिया के नेता इस ग्रह के अधिक सुरक्षित भविष्य के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना पर सहमत हुए थे। वे जबर्दस्त आर्थिक विकास और बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं के साथ हमारी धरती के सबसे मूल्यवान संसाधनों जमीन, हवा और पानी के संरक्षण का संतुलन बनाना चाहते थे। इस बात को लेकर वे सहमत थे कि इसका एक ही रास्ता है - पुराना आर्थिक मॉडल तोड़कर नया मॉडल खोजा जाए। उन्होंने इसे टिकाऊ विकास का नाम दिया था। दो दशक बाद हम फिर भविष्य के मोड़ पर खड़े हैं। मानवता के सामने आज भी वही चुनौतियां हैं, बस उनका आकार बड़ा हो गया है। धीरे-धीरे हम समझने लगे हैं कि हम नए युग में आ गए हैं। कुछ लोग इसे नया भूगर्भीय युग कहते हैं, जिसमें इंसानी गतिविधियां धरती की चाल बदल रही हैं।

री-सेट का बटन


प्रति व्यक्ति वैश्विक आर्थिक वृद्धि दुनिया की जनसंख्या के साथ मिलकर पृथ्वी की नाजुक पारिस्थिति पर अभूतपूर्व दबाव डाल रही है। हम यह मानने लगे हैं कि सब कुछ जलाकर और खपाकर हम संपन्नता के रास्ते पर नहीं बढ़ते रह सकते। इसके बावजूद हमने उस सहज समाधान को अपनाया नहीं है। टिकाऊ विकास का यह अकेला रास्ता आज भी उतना ही अपरिहार्य है, जितना 20 वर्ष पहले था। सौभाग्य से हमें इस दिशा में कदम उठाने का दूसरा मौका मिला है। एक महीने से भी कम समय के भीतर दुनिया के नेता एक बार फिर रियो में एकत्र होंगे। इस बार अवसर स्थायी विकास के बारे में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन रियो+20 का है। एक बार फिर रियो री-सेट का बटन दबाने का एक ऐसा अवसर दे रहा है जो एक पीढ़ी को एक ही बार मिलता है। इसका अर्थ यही है कि हम भविष्य के लिए ऐसा नया रास्ता चुनें जो संपन्नता के आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय पहलुओं तथा मानव मात्र के कल्याण के बीच संतुलन रख सके।

नए तरह का विकास


130 से ज्यादा शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष करीब 50 हजार कारोबारी नेताओं, महापौरों, कार्यकर्ताओं और निवेशकों के साथ मिलकर परिवर्तन के लिए एक वैश्विक गठबंधन बनाने वाले हैं। किंतु सफलता की कोई गारंटी नहीं है। अपनी दुनिया को भावी पीढ़ियों के लिए बचाए रखने के लिए हमें अमीर और गरीब, छोटे और बड़े देशों के नेताओं की पूरी भागीदारी और पूर्ण सहयोग की आवश्यकता है। इसके बिना काम नहीं चलेगा। उनके सामने विशाल चुनौती है - परिवर्तन के लिए परिवर्तनशील एजेंडा के प्रति वैश्विक समर्थन जुटाना, 21वीं शताब्दी और उससे आगे के समय के लिए गतिशील लेकिन जारी रहने लायक विकास के बारे में अपनी सोच के तरीके में ढांचागत क्रांति लाने की शुरुआत करना। राष्ट्रीय नेताओं को अपनी जनता की आकांक्षाओं के अनुरूप यह एजेंडा तय करना है।

अगर मैं संयुक्त राष्ट्र महासचिव के नाते सलाह दूं तो वह परिणामों के तीन समूहों पर केंद्रित होगी। सबसे पहला तो यह कि रियो+20 से नई सोच और कार्रवाई की प्रेरणा मिलनी चाहिए। यह तो स्पष्ट हो चुका है कि पुराना आर्थिक मॉडल छिन्न-भिन्न हो रहा है। कई देशों में वृद्धि रुक गई है। नौकरियां कम हैं, अमीर-गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है और भोजन, ईंधन तथा उन प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगी है, जिन पर सभ्यता निर्भर होती है। रियो में उपस्थित प्रतिनिधि सहस्राब्दि विकास लक्ष्यों की सफलता की बुनियाद पर आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे। इन लक्ष्यों ने लाखों लोगों को गरीबी के दलदल से निकालने में मदद की है। स्थायी विकास या वहनीय विकास पर नया जोर नौकरियों से भरपूर आर्थिक वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सोशल इनक्लूजन की गुंजाइश भी बना सकता है, जिसे अर्थशास्त्री तिहरी आधार रेखा कहते हैं।

दूसरा, रियो+20 जनता के बारे में होना चाहिए। जनता का ऐसा शिखर सम्मेलन जो दैनिक जीवन में वास्तविक सुधार की ठोस आशा जगाए। वार्ताकारों के सामने मौजूद विकल्पों में ' शून्य भूख' भविष्य पर्याप्त पोषण के अभाव मं बच्चों के लिए शून्य बौनापन, जिन समाजों में लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता, वहां भोजन और कृषि सामग्री की शून्य बर्बादी- घोषित करना शामिल है। रियो+20 को उन लोगों की आवाज बनना चाहिए जिनकी आवाज हम सबसे कम बार सुन पाते हैं- महिलाएं और युवा। महिलाएं आधा आसमान अपने कंधों पर उठाए रहती हैं, उन्हें समाज में बराबर हैसियत मिलनी चाहिए। हमें उन्हें आर्थिक गतिशीलता और सामाजिक विकास के इंजन के रूप में सशक्त करना चाहिए और युवा हमारे भविष्य का चेहरा हैं। क्या हम उनके लिए अवसर पैदा कर रहे हैं, जबकि उनमें से करीब 8 लाख हर साल हमारी श्रम शक्ति में शामिल होंगे? तीसरा, रियो+20 से शंखनाद होना चाहिए कि बर्बादी नहीं। धरती माता की हम पर बहुत कृपा रही है। अब इंसानों की बारी है कि उसकी प्राकृतिक सीमाओं का सम्मान करें।

साझे भविष्य की साझी संकल्पना


रियो में सरकारों को संसाधनों के युक्तिसंगत उपयोग का आह्वान करना चाहिए। हमारे महासागरों, हमारे जल, वायु और वनों का संरक्षण परम आवश्यक है। हमारे शहरों को और अधिक जीने योग्य बनाया जाना चाहिए, जहां हम प्रकृति के साथ और अधिक मिलजुल कर रह सकें। रियो+20 में मैं सरकारों, कारोबारी प्रतिनिधियों और अन्य गठबंधनों से आग्रह करूंगा कि वे सबके लिए स्थायी ऊर्जा की मेरी पहल को आगे बढ़ाएं। लक्ष्य है - स्थायी ऊर्जा सबको सुलभ कराना, ऊर्जा कुशलता को दोगुना करना और 2030 तक ऊर्जा के अक्षय स्रोतों का उपयोग दोगुना करना। आज की बहुत अधिक चुनौतियां वैश्विक हैं इसलिए उनका सामना वैश्विक स्तर पर ही करना होगा। अब संकीर्ण मतभेदों का समय नहीं है। विश्व नेताओं और उनकी जनता के लिए यह पल एक साझे उद्देश्य, हमारे साझे भविष्य की साझी संकल्पना, हमारे भविष्य के सपने के इर्द-गिर्द एकजुट होने का है।

( लेखक संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव हैं)
(सौजन्य : संयुक्त राष्ट्र सूचना केंद्र, नई दिल्ली)


Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading