उदयपुर से 71 कि.मी. दूर उत्तर में अरावली की पहाड़ियों के बीच गोमती नदी पर बनी राजसमुन्द नामक कृत्रिम सरोवर विशाल झीलों के अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है। कंकरौली के द्वारकाधीश मंदिर के निकट इस झील का निर्माण 1662 में महाराजा राजसिंह द्वारा करवाया गया। इसका निर्माण कार्य 13 वर्ष में पूरा हुआ था। झील के निर्माण के विषय में कहा जाता है कि इसका निर्माण अकाल-पीड़ित जनता को अकाल से राहत दिलाने के लिए कराया गया। कुछ कहते हैं कि महाराजा ने हत्याओं के प्रायश्चित स्वरूप इसका निर्माण कराया था। शिल्प कला में बेजोड़ राजसमुंद झील की पाल पर, ताकों में पाषाण पर पं. रणछोड़ भट्ट द्वारा विरचित बृहत् महाकाव्य उत्कीर्ण है। इस महाकाव्य में 1,105 संस्कृत-श्लोक हैं। इन श्लोकों के माध्यम से मेवाड़ आदि का इतिहास ज्ञात होता है। इसी राज प्रशस्ति में उल्लेख है कि महाराजा राजसिंह को झील बनाने की प्रेरणा स्वप्न में मिली थी।
राजसमुंद झील पर सफेद संगमरमर से निर्मित नौ चौकी हैं, जिस पर पशु-पक्षी एवं उत्कृष्ट तक्षण कला पर्यटकों को बरबस ही आकर्षित करती है।
राजसमुंद झील पर नौ अंक का प्रयोग अद्भुत रूप से किया गया है। झील की पाल की लंबाई 999 फुट है और चौड़ाई 99 फुट है प्रत्येक सीढ़ी नौ इंच की है। प्रत्येक छतरी में नौ डिग्री का कोण और 9 फुट की ऊंचाई है।
यहां की छतरियों पर उत्कीर्ण देवी-देवताओं की आकृतियां एवं पुष्प आदि के चित्र सजीव जान पड़ते हैं।
इस स्थान को झील के ही नाम पर राजसमुंद कहा जाता है। पर्यटन के दृष्टिकोण से नौचौकी पर कैफेटेरिया आदि सभी आवश्यक सुविधाएं हैं।
अन्य स्रोतों से:
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बाहरी कड़ियाँ:
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संदर्भ:
1 - प्रकाशन विभाग की पुस्तक - हमारी झीलें और नदियां - लेखक - राजेन्द्र मिलन - पृष्ठ - 51