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Rupkunde lake in Hindi

समुद्र तल से 4,778 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील सदैव बर्फ की परतों से ढकी रहती है। अतः इसे हिमानी झील कहते हैं। इसके समीप छह सौ वर्ष पुराने नर कंकाल एवं घोड़ों के अस्थि-पंजर भी पाए जाते हैं। इसे रहस्यमयी झील का नाम दिया है। इसकी स्थिति दुर्गम क्षेत्र में है। घाटी के आखिरी गांव बाक घेस बलाण के वृद्ध लोगों और लोकोक्तियों के अनुसार चौदहवीं शताब्दी के राजा यश धवल ने रूपकुंड की यात्रा की थी तथा एक किंवदंती के अनुसार यहां पर कन्नौज के तीर्थ यात्रियों का दल आया था जिनके हिम स्खलन में दब कर मर जाने के अवशेष हैं। कुछ लोग तिब्बत से आये यात्री दल के अवशेष बताते हैं।

रूपकुंड पहुंचने के लिए अंतिम बस स्टेशन बकरीगढ़ है। कर्ण प्रयाग से पिण्डारी नदी के किनारे-किनारे थराली होते हुए देवल वहां से 13 कि.मी. बकरीगढ़ तक कच्चा मार्ग है। बकरीगढ़ से 3 कि.मी. मुन्दौली गांव होते हुए लोहागंज वहां से आखिरी गांव बाण। लोहागंज से एक रास्ता भेक ताल को जाता है जो गढ़वाल मंडल की अन्य झील है। बाण से 12 कि.मी. सीधी चढ़ाई चढ़कर घने जंगलों को पार कर जिस क्षेत्र में पहुंचते हैं उसे वेदनी बुग्याल कहते हैं। आगे 4 कि.मी. खड़ी चढ़ाई के बाद 14,500 फुट पर वगुवावस पहुंचा जा सकता है। इसके बाद सीधी कठिन चढ़ाई प्रारम्भ होती है। चार कि.मी. के बाद रूपकुंड का अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य देख सारी थकान दूर हो जाती है। रूपकुंड झील 60 से 70 मीटर लम्बी तथा 40 से 50 मीटर गहरी हरे-नीले रंग की आंख जैसी आकृति की है। पुराण कथाओं के अनुसार यहां जगदम्बा, कालका, शीतला, सतोषी आदि नव दुर्गाओं ने महिषासुर का वध किया था।

हर बारहवें वर्ष नौटी गांव के हजारों श्रद्धालु तीर्थ यात्री राजजय यात्रा लेकर निकलते हैं। नंदादेवी की प्रतिमा को चांदी की पालकी में बिठाकर रूपकुंड झील से आचमन करके वे देवी के पावन मंदिर में दर्शन करते हैं। इस यात्रा से संबंधित कथा के अनुसार हिमालय पुत्री नंदा जब शिव के साथ रोती-बिलखती जा रही थी मार्ग में एक स्थान पर उन्हें प्यास लगी। नंदा-पार्वती के सूखे होंठ देख शिवजी ने चारों ओर देखा परन्तु कहीं पानी नहीं दिखाई दिया, उन्होंने अपना त्रिशूल धरती पर मारा, धरती से पानी फूट पड़ा। नंदा ने प्यास बुझाई, लेकिन पानी में उन्हें एक रूपवती स्त्री दिखाई दी जो शिव के साथ बैठी थी। नंदा को चौंकते देख शिवजी समझ गये, उन्होंने नंदा से कहा यह रूप तुम्हारा ही है। प्रतिबिम्ब में शिव-पार्वती एकाकार दिखाई दिये। तब से ही वह कुंड रूपकुंड और शिव अर्द्धनारीश्वर कहलाये। यहां का पर्वत त्रिशूल और नंद-घुंघटी कहलाया, उससे निकलने वाली जलधारा नन्दाकिनी कहलायी।

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