सामाजिक न्याय और पर्यावरण का नाता

22 Jun 2012
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save environment
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संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने हाल ही में सामाजिक न्याय और पर्यावरण स्थायित्व पर एक सम्मेलन आयोजित किया। इसका उद्देश्य सन् 2000 में न्यूयॉर्क में तय किए गए 8 सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों में से एक की प्राप्ति के बारे में गहन चर्चा करना था। इन 8 लक्ष्यों में से 7वां लक्ष्य था पर्यावरण की दिशा में स्थायित्व हासिल करना और इस क्रम में विकास, गरीबी और स्थायी विकास की एक दूसरे पर निर्भरता की भी पहचान की गई। इस लक्ष्य के तहत पर्यावरण में स्थायित्व सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशिष्ट मानक हासिल करने की बात कही गई।

1. सतत् विकास के सिद्धांत को सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों में शामिल करना।
2. जैव विविधता को होने वाले नुकसान से बचना।
3. तमाम आबादी को मूलभूत स्वच्छता और साफ पेयजल मुहैया कराना।
4. 10 वर्ष के भीतर देश के करीब 10 करोड़ झुग्गी वासियों के जीवन स्तर में सुधार करना।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि संयुक्त राष्ट्र तथा तमाम अन्य संगठनों के लाख प्रयासों के बावजूद दुनिया की आबादी का छठा हिस्सा स्वच्छ पेयजल से महरूम है। वैश्विक पूंजी के इस दौर में मानव सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण जैसी बातें आर्थिक विकास के आगे फीकी पड़ चुकी हैं। ऐसे में इस सम्मेलन में भारतीय न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं, थाई न्यायपालिका के सदस्यों और संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों को मौजूदगी में पर्यावरण तथा मानवाधिकार आदि के मुद्दों पर समग्रता से चर्चा हुई। हमें यह बात याद रखनी होगी कि दुनिया की कुल आबादी का एक तिहाई रोजाना दो डॉलर से कम धनराशि पर अपना गुजारा करता है। वहीं दुनिया की आबादी का पांचवा हिस्सा घनघोर गरीबी में अपने दिन काट रहा है।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सतत् पर्यावरण की प्राप्ति की दिशा में जो कोशिशें की जा रही हैं उनमें विधिक समुदाय की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। अब सवाल यह उठता है कि सामाजिक न्याय और पर्यावरण स्थायित्व के बीच आपस में क्या रिश्ता है। दरअसल व्यवस्था में पनपा अस्थायित्व अक्सर सामाजिक स्तर पर व्याप्त असमानता का कारण बनता है। इसका नकारात्मक असर, प्रदूषण संसाधनों की खपत, पर्यावरण के दोहन आदि के रूप में उन वर्गों पर पड़ा है जो समाज में हाशिए पर हैं।

आमतौर पर सामाजिक न्याय का अर्थ होता है एक ऐसे समाज अथवा संस्थान की स्थापना जो समता के सिद्धांत पर निर्मित हो और जो मानवाधिकारों का मूल्य समझता हो तथा हर व्यक्ति की वैयक्तिकता का सम्मान करता हो। वैश्विक स्तर पर शांति की स्थापना के लिए सामाजिक न्याय अत्यधिक आवश्यक है।

पर्यावरण स्थायित्व हासिल करने के क्रम में गरीबी का उन्मूलन एक बड़ी चुनौती है। गरीबी भी पर्यावरण में गड़बड़ियों के लिए जिम्मेदार है क्योंकि गरीब बहुत हद तक अपनी जरूरतों के लिए अपने आस-पास के पर्यावरण पर ही निर्भर होते हैं। आबादी बढ़ने के साथ ही स्थानीय पर्यावास पर दबाव भी बढ़ता है। मसलन कीटनाशकों का धरती पर असर, खेती के काम के लिए भू जल का दोहन आदि।

सवाल यह है कि हम कैसा भविष्य चाहते हैं? पर्यावरण संबंधी असमानता औद्योगिक देशों में भी मौजूद है। वहां भी गरीब आबादी खराब परिस्थितियों में अपना गुजर बसर कर रही है। अत्यधिक अमीरी और अत्यधिक गरीबी दोनों ही वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। पर्यावरण संबंधी न्याय से उम्मीद यही है कि हमारे आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ्य और सुरक्षित वातावरण हासिल हो। इसलिए पर्यावरण संबंधी न्याय हासिल करने की कोशिश में हमे जाति, नस्ल, रंग लिंग और राष्ट्रीयता तथा अन्य आदि की भावनाओं को एकदम परे हटाकर काम करना होगा।
 

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