सामाजिक वानिकी

राष्ट्रीय कृषि आयोग ने 1976 में ईंधन, चारा लकड़ी और छोटे-मोटे वन उत्पादों की पूर्ति करने वाले पेड़ लगाने के कार्यक्रम के लिए सामाजिक वानिकी शब्द उछाला था। लगभग दस वर्ष बाद आज सरकार की यह योजना सबसे ज्यादा विवादास्पद बन गई है ।

योजना आयोग ने ऊर्जा नीति संबंधी दल के भूतपूर्व सदस्य सचिव श्री टीएल शसंकर ने दिल्ली में रसोई ऊर्जा पर हुई एक बैठक में कहा था, “गरीबों के नाम पर शुरू किए गए अनेक कार्यक्रम जल्दी ही तोड़-मोड़ कर ऊंचे तबके के लोगों के फायदे के कार्यक्रम बना दिए जाते हैं। लेकिन इस संबंध में जितना दुरुपयोग सामाजिक वानिकी का हुआ है, उतना शायद ही और किसी का हुआ होगा।” वन विभाग शायद सोचता ही नहीं होगा कि पेड़ आखिर किसके लिए उगाना है और क्यों लगाना है।”

सामाजिक वानिकी के आलोचकों का कहना है कि इस कार्यक्रम के अंतर्गत पैदा की गई लकड़ी देहात के काम आने के बजाय शहरी और औद्योगिक जरूरतों में ही इस्तेमाल हो रही है। इससे गांवों में रोजगार घट रहे हैं, अनाज पैदा करने योग्य जमीन कम हो रही है और जमीन पर बाहरी मालिकों का कब्जा बढ़ रहा है।

उधर सरकार का कहना है कि नई हरित क्रांति की शुरूआत हो रही है। 1950 से 1980 तक पिछले 30 साल के सुनियोजित विकास कार्यक्रमों के लिए 483.22 करोड़ रुपये लगाए गए थे, 1980-85 की छठीं योजना में वन संवर्धन के लिए 692.49 करोड़ रुपये रखे गए। देश के सभी हिस्सों में सामाजिक वानिकी कार्यक्रम चालू करने के लिए कृषि मंत्रालय ने एक बड़ी योजना बनाई है। इस कार्यक्रम को कुल 13 राज्यों में, जिनमें पूर्वोत्तर के भी कुछ राज्य होंगे, लागू करने के लिए लगभग 780 करोड़ रुपये की एक योजना पर सरकार और विश्व बैंक में बातचीत जारी है।

कई राज्यों के सरकारों ने सामाजिक वानिकी के महात्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू भी कर दिए हैं, जिनके लिए कई विदेशी से आर्थिक सहायता ली जा रही है। उनमें से कुछ एजेंसियां हैं- विश्व बैंक, युसएस.एजेंसी फार इंटरनेशनल डेवलपमेंट अथॉरिटी। अनेक राज्यों में सामाजिक वानिकी विभाग खुल गए हैं।

केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपनी 1983-84 की वार्षिक रिपोर्ट में बड़े गर्व से लिखा है कि 1982-83 में सामाजिक वानिकी ने उल्लेखनीय प्रगति की है और लक्ष्सांकों से कुछ ज्यादा ही काम हुआ है।

1983-84 में तो पेड़ लगाने के काम में लोगों का असाधारण उत्साह देखने में आया। खेतों में लगाने के लिए पौधों का भरी मात्रा में वितरण हुआ। खेतों में लगाने के लिए 1980-81 के बाद से कुल 1000 करोड़ पौधे किसानों को दिए गए। इसके अलावा सामाजिक वानिकी के अंतर्गत कोई 12 लाख हेक्टेयर में पेड़ लगाने का काम किया गया। नवगठित सामाजिक वानिकी विभागों को उम्मीद है कि 1988 के अंत तक 19 लाख 30 हजार हेक्टेयर जमीन सामाजिक वानिकी से ढक जाएगी। इस पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करेगी।

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