सामूहिक अनाज बैंक बनाकर महिलाओं ने किया सूखे का मुकाबला

जनपद जालौन के 95 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसानों की आजीविका का आधार खेती है। सूखे की मार झेल रहे इन किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट खाने का होता है जिससे निपटने हेतु पुरुष वर्ग पलायन कर जाता है और पीछे छोड़ जाता है सभी समस्याओं को झेलने हेतु महिलाओं को।

परिचय


बुंदेलखंड के जनपद जालौन, तहसील कोंच में ज़मीन उबड़-खाबड़, ढालूदार एवं छोटी जोत होने के कारण खेती की उपयुक्त परिस्थितियां नहीं बन पाती हैं। यहां लगभग 95 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसानों की आजीविका का मुख्य आधार खेती एवं खेती आधारित मजदूरी है। सूखे की मार झेल रहे इन किसानों के सामने सबसे बड़ा संकट पूरे वर्ष खाने का है।

छोटी जोत, सिंचाई साधनों की अनुपलब्धता, अनियमित अथवा न होने वाली वर्षा के कारण एक तो खेती हो नहीं पाती। यदि खेती होती भी है तो उत्पादन नहीं मिल पाता और सूखे के कारण इनकी मजदूरी भी प्रभावित होती है। ऐसे में इनके सामने पलायन का रास्ता बचता है।

मुश्किल तो तब होती है, जब परिवार का पुरूष सदस्य पलायन कर जाता है और पीछे बच जाती है महिला एवं उसके साथ ढेर सारी जिम्मेदारियां। इस मुश्किल समय में महिलाओं के ऊपर काम का दोहरा बोझ होता है एक तो सभी की देख-रेख एवं दूसरा उनके लिए खाने का इंतज़ाम करना। इन सबके लिए उसे गांव जवार के सेठ-साहूकार के सामने हाथ फैलाना पड़ता है, गांव के बड़े लोगों के घर बेगार करना पड़ता है। बदले में उसे डेढ़ा ब्याज के बदले अनाज अथवा 10 रु. प्रति सैकड़ा मासिक ब्याज पर रुपया मिल पाता है। कहीं कहीं तो ली गयी मात्रा का दुगुना तक देना पड़ता है। साथ ही चैत में अघोषित कम मजदूरी पर काम करना पड़ता है। जिसे समय पर अदा न कर पाने की स्थिति में उसे शारीरिक व मानसिक शोषण भी झेलना पड़ता है।

इन्हीं सब स्थितियों को झेलती ग्राम पीपरीकलां की महिलाओं ने आपदा के मद्देनज़र सामूहिक रूप से अनाज एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू की और जिसे अनाज बैंक का नाम दिया।

अनाज बैंक बनने की प्रक्रिया


आकार
अनाज एकत्र करने के लिए आमतौर पर मिट्टी की डेहरी का प्रयोग करते हैं, जो बेलनाकार होती है। इसके तहत् पके बांस को पतला-पतला चीर कर फट्टी बना लेते हैं और 6-7 फुट का एक बेलनाकार ढाँचा तैयार कर लेते हैं। इस तैयार ढांचे को गोबर व मिट्टी के मिश्रण से मोटी सतह के साथ लिपाई कर देते हैं। पुनः इस बेलनाकार ढाँचा के ऊपर घास-फूस का गुम्बजनुमा छज्जा तैयार किया जाता है। यह गांव में उपलब्ध संसाधनों से तैयार हो जाता है। इस विधि में लागत बहुत कम आती है। इसके अतिरिक्त टीन के मोटे चादरों की बनी-बनाई डेहरी भी आती है। अधिकांशतः लोग इसी को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि एक तो इसमें मेहनत कम लगती है, दूसरे इसमें रखा अनाज भी सुरक्षित होता है।

समिति का गठन


अनाज बैंक बनाने की प्रक्रिया के तहत् वर्ष 2004 में सर्वप्रथम महिलाओं ने बैठक कर समस्या की विकरालता पर आपस में चर्चा की। श्रीमती राजेश्वरी देवी ने कहा कि चैत में जहां हम लोगों को एक बीघा फसल कटाई पर 60 किग्रा. अनाज मिलता है, जबकि सितंबर में जब हमारा कठिन समय होता है, हमें बीघा पीछे सिर्फ 45 किग्रा. अनाज ही मिलता है। इन दिनों को काटने के लिए हमें ब्याज पर मिलने वाले अनाज एवं पैसे पर आश्रित होना पड़ता है। अतः इस स्थिति से निपटने के लिए हमें सामूहिक अनाज बैंक बनाने की प्रक्रिया से जुड़ना होगा। इसके तहत् हम सभी को प्रतिदिन मुट्ठी भर अनाज निकालना होगा। सभी ने इससे सहमति जताई और फिर 70 महिलाओं ने मिलकर अनाज बैंक बनाया और अनाज का एकत्रीकरण कर समुदाय की खाद्य सुरक्षा को संपोषित किया।

भंडारण की प्रक्रिया


इस अनाज बैंक में मुख्य अनाजों-धान, गेहूं, मक्का आदि को एकत्र करने को प्राथमिकता दी गई। इसके अतिरिक्त सामूहिक स्तर पर जो भी खेती की जाती है, उसकी भंडारण भी किया जाता है।

समुदाय में फसल कटने के बाद समिति में आर्थिक रूप से सबसे कमजोर सदस्य को आधार मानकर बचत राशि का निर्धारण किया जाता है। न्यूनतम 10 किग्रा. अनाज एक व्यक्ति रखता है। वहीं आधार बनाकर सभी सदस्य एक ही दिन में उक्त मात्रा में अनाज लाकर डेहरी में रखते हैं। वर्ष 2005 में अनाज बैंक की स्थापना हुई। रबी सीजन में 225 किग्रा. अनाज बैंक में एकत्र हुआ।

नियम व शर्तें


आवश्यकतानुसार अति निर्धन, गरीब, भूमिहीन, महिलाओं एवं विकलांगजनों का चयन समिति बैठक में इनकी आवश्यकता के अनुरूप प्राथमिकता के आधार पर किया जाता है। उसे अनाज बैंक से अनाज उपलब्ध करा दिया जाता है। इससे उस परिवार की कुछ दिनों तक खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित हो जाती है। अगली फसल आने पर यह परिवार लिए गए खाद्यान्न का सवाया अपने अनाज बैंक को वापस करता है। इस प्रकार उनके अनाज बैंकों में अनाज भी बढ़ता जाता है, जिससे अगली बार अधिक संख्या में ज़रूरतमंदों को आवश्यकता एवं संकट के समय अनाज उपलब्ध कराया जाता है।

इस अनाज बैंक के संचालन के लिए 3 महिलाओं की एक संचालन कमेटी का निर्माण किया गया है। उन्हीं का निर्णय सर्वमान्य होता है। उन्होंने आपस में चर्चा कर कुछ नियम बनाए, जिसे सब पर समान रूप से लागू करने का निर्णय लिया। कुछ नियम इस प्रकार हैं-

अनाज का भंडारण सभी सदस्यों द्वारा एक निश्चित समय ही करना अनिवार्य होता है।
यदि किसी सदस्य को आवश्यकता पड़ती है, तो उसे अनाज दिया जाता है। अनाज उत्पादन होने पर वह सवाया अनाज बैंक को वापस करता है।
इस लेन-देन के लिए अलग से रजिस्टर बनाया गया है
अगर किसी सदस्य के पास अनाज नहीं है, तो वह उतने का नगद मूल्य जमा कर देता है।
समूह की खाद्यान्न आवश्यकता पूरी करने के बाद बचे अनाज को बेच दिया जाता है और अगले सीजन में उसी का अनाज खरीद कर पुनः रख दिया जाता है या फिर बेच दिया जाता है। प्राप्त लाभ में पूरे समूह की हिस्सेदारी होती है।
इस तरह के अनाज बैंक जनपद जालौन के बीहड़ में बसे 65 ग्राम पंचायतों में बने हैं, जिनमें कुल 230 कुंतल अनाज (धान/गेहूं) एकत्र है, जो महिला किसानों की ताकत है। इस पूरे अनाज का नियोजन व निगरानी महिलाओं के हाथ में है।
इस पूरी प्रक्रिया के संचालित होने से समुदाय अकाल एवं सूखे की स्थिति में भी जहां खाद्यान्न संकट से नहीं जूझना पड़ रहा है, वहीं उसे मानसिक रूप से निश्चिंतता भी हुई, उसका सामाजिक एवं आर्थिक स्तर भी उन्नत हुआ है।

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