साफ आबोहवा के दुश्मनों का राज्य

7 Dec 2011
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महाराष्ट्र की नदियों को खतरा सिर्फ इस कचरे से ही नहीं है बल्कि उनके दामन पर खनन माफिया के हमले भी लगातार हो रहे हैं। मुंबई और आसपास के इलाकों में होने वाले निर्माण कार्य के लिए रोज हजारों टन रेत की जरूरत होती है और तमाम निर्देशों-कानूनों के बीच सियासी संरक्षण के चलते इसके खनन को राज्य में अब तक नियंत्रित नहीं किया जा सका है।

प्रदूषण और महाराष्ट्र का चोली दामन का नाता है। केंद्र सरकार ने हाल ही में देश के 16 राज्यों में खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुके जिन 43 औद्योगिक इलाकों की सूची जारी है, उनमें गुजरात के बाद सबसे ज्यादा इलाके महाराष्ट्र के ही हैं। देश का सबसे ज्यादा 70 फीसदी ई कचरा भी महाराष्ट्र से निकलता है। यही नहीं, खनन माफिया की दबंगई के चलते महाराष्ट्र की नदियां और जंगल भी खतरे में हैं। केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र के चंद्रपुर, डोंबिवली, औरंगाबाद, नवी मुंबई और तारापुर औद्योगिक केंद्रों को खतरनाक स्तर तक प्रदूषित हो चुके इलाकों में रखा है। आईआईटी दिल्ली की मदद से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश के जिन प्रदूषित 88 केंद्रों का निरीक्षण करके वहां प्रदूषण से संबंधित आंकड़े एकत्र किए, उनमें से महाराष्ट्र के ये पांचों इलाके समेकित पर्यावरण प्रदूषण सूचकांक (सीईपीआई) पर 70 से ऊपर रहे। यानी यहां और इनके आसपास रहने वाले नागरिकों के स्वास्थ्य के लिए यहां का जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण प्राणघातक है।

महाराष्ट्र देश में ई-कचरा पैदा करने वाला भी सबसे बड़ा राज्य है। कंप्यूटर का कबाड़, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादों का कचरा, टूटे-फूटे खिलौनों आदि से पैदा होने वाला ये कचरा पर्यावरण में अपने आप नष्ट नहीं होता। देश में ई-कचरा पैदा करने वाली सूची में जो पहले दस शहर हैं उनमें मुंबई के साथ-साथ महाराष्ट्र के दो और शहर पुणे और नागपुर भी शामिल हैं। यह सूची पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा बनाई गई है। महाराष्ट्र सरकार से मिली जानकारी के मुताबिक देश में ई-कचरा के मामले में महाराष्ट्र नंबर एक ही नहीं बल्कि देश का कुल 70 फीसदी कचरा पैदा करने वाला राज्य भी है। लेकिन, सरकार की सुस्ती इसी बात से जाहिर हो जाती है कि राज्य में अब जाकर ई-कचरे के एकत्रीकरण और इसके प्रभावी निस्तारण के लिए राज्यव्यापी सर्वे शुरू हो सका है।

महाराष्ट्र में जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण को लेकर कहीं कोई प्रभावी रणनीति दिखाई नहीं देती। राजधानी मुंबई से होकर गुजरने वाली मीठी नदी बरसों से नाले का काम कर रही है, तमाम औद्योगिक इकाईयों का कचरा सीधे इस नदी में बिना किसी शोधन के गिरता रहा है। एशिया की सबसे बड़ी मलिन बस्ती धारावी के करीब से गुजरने वाली इस नदी में इस बस्ती में चलने वाले तमाम कुटीर उद्योगों के अलावा गैर कानूनी रूप से चलने वाली फैक्ट्रियों का कचरा भी आता है। यही हाल राज्य के दूसरे बड़े शहर और राज्य की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले शहर पुणे के करीब की नदियों का है। महाराष्ट्र की नदियों को खतरा सिर्फ इस कचरे से ही नहीं है बल्कि उनके दामन पर खनन माफिया के हमले भी लगातार हो रहे हैं। मुंबई और आसपास के इलाकों में होने वाले निर्माण कार्य के लिए रोज हजारों टन रेत की जरूरत होती है और तमाम निर्देशों-कानूनों के बीच सियासी संरक्षण के चलते इसके खनन को राज्य में अब तक नियंत्रित नहीं किया जा सका है।

पर्यावरण संरक्षण को लेकर कई मुहिम चला चुकीं और कई बार खनन माफिया के हमलों का शिकार हो चुकीं सुमैरा कहती हैं, महाराष्ट्र में आरटीआई और पर्यावरण कानून की बात करना अपनी जान जोखिम में डालना है। ऐसे किसी भी मुद्दे पर सरकार माफिया के साथ खड़ी दिखाई देती है। शिकायतकर्ता के बारे में जानकारी आरोपित पक्ष को तुरंत मुहैया करा दी जाती है। फिर शुरू होता है दबाने, डराने और धमकाने का सिलसिला। लोगों की जानें भी जा चुकी हैं। पर, सरकारी मशीनरी ऐसे तमाम मौकों पर शिकायकर्ताओं की मदद के लिए आगे नहीं आती। खुद सुमैरा पर कई बार प्राणघातक हमले हो चुके हैं। अवैध खनन के ये मामले केवल महाराष्ट्र की नदियों के आसपास ही नहीं दिखते बल्कि खनन माफिया का एक बहुत बड़ा गिरोह चंद्रपुर के जंगलों के आसपास भी रात के अंधेरे में सक्रिय रहता है। अंतर्राष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस के एक अधिकारी बताते हैं कि खनन माफिया के चलते चंद्रपुर के जंगलों पर खतरा मंडरा रहा है। मामला इसलिए भी संगीन हो चला है क्योंकि अगर कोयले के खनन के चक्कर में इन जंगलों के पेड़ यूं ही लगातार काटे जाते रहे तो पड़ोस के टाइगर रिजर्व को भी खतरा हो सकता है।

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