सड़क से भूजल भरिए

27 Sep 2010
0 mins read
भूजल
भूजल


सड़कों को नुकसान पहुंचाने वाले वर्षा जल का ठीक से इस्तेमाल कर देश में घटते भूजल स्तर को संभाला जा सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि योजनाओं को समावेशी बनाए जाए और जल की उपलब्धता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।

देश की सड़कों पर प्रतिवर्ष मानसून के दौरान एक सी स्थिति गड्ढे, गड्ढे और अधिक गड्ढे दोहराई जाती है? इससे होने वाले नुकसान को कम करने हेतु थोड़े से हस्तक्षेप की आवश्यकता है। इस हस्तक्षेप से न केवल इन गड्ढों की मरम्मत पर होने वाले खर्च में कमी आएगी बल्कि भू-जल स्तर में भी वृद्धि होगी।

जल संसाधन मंत्रालय के भूतपूर्व विशेषज्ञ एस.के. जैन का कहना है, कि ‘देश में सड़कों के किनारे वर्षा जल संग्रहण (रेन वाटर हार्वेस्टिंग) की संभावनाओं को अभी तक छुआ तक नहीं गया है। अगर सभी शहरी, राष्ट्रीय राजमार्ग एवं राज्य राजमार्ग की सड़कों को इस कार्य हेतु अपना लिया जाता है तो इसके माध्यम से देश को 500 अरब क्यूबिक मीटर (5 लाख अरब लिटर) अतिरिक्त भूगर्म जल उपलब्ध हो सकता है। राष्ट्रीय राजधानी में कुछ स्थानों पर इस सरल तकनीक का उपयोग भी किया गया है।

बारिश का पानी सड़क निर्माण के कार्य में आई सामग्री की चिपके रहने की क्षमता कम कर देता है। केंद्रीय सड़क शोध संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिक सुनील बोस के अनुसार, ‘हमारे पास अगर व्यवस्थित ड्रेनेज एवं केम्बर (सड़क की सतह का उभार) नहीं है तो सड़क पर जल जमाव होगा और सड़क को बांधे रखने वाली परत धीरे-धीरे नष्ट हो जाएगी। इसका एक हल यह है कि बिटुमन (डामर) के स्थान पर कांक्रीट की सड़कें बनाई जाए। (हालांकि इसके अपने नुकसान हैं।) ये सड़कें लम्बे समय तक चल सकती हैं लेकिन इनके निर्माण में तीन गुना अधिक खर्च आता है। बोस के अनुसार ‘सड़क किनारे वर्षा जल संग्रहण से सड़कों के जीवन में भी वृद्धि होगी।‘

यह पद्धति दिल्ली जैसे शहरों में अधिक कारगर सिद्ध हो सकती है जहां की 99 प्रतिशत सड़कें डामर से बनी हैं। अतएव उनके मानसून में खराब होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। सड़क किनारे वर्षा जल संसाधन के लिए बनाए गए निर्माण सतह से पानी को नजदीक के नलकूप में लेकर आएंगे। इस तरह के निर्माण में पानी को फिल्टर कर उसकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जाएगी तथा छेददार कंक्रीट की छत की वजह से वाहनों के आवागमन में भी रुकावट नहीं आएगी। केंद्रीय भूतल जल बोर्ड के वैज्ञानिक राजाराम पुरोहित का कहना है कि,‘ 80 हजार रु. की लागत वाला यह वर्षा जल संवर्धन संयंत्र एक घंटे में 80 किलो लीटर भूजल रिचार्ज कर सकेगा।

कोयम्बटूर में नगर निगम के साथ मिलकर एक गैर सरकारी संस्था सिरुथुली ने सड़क किनारे जल संवर्धन हेतु निर्माण कार्य किए जरुर हैं, परंतु ये अभी भी घर या संस्थानों के डिजाइन के अनुरूप ही विकसित किए गए हैं और इसके लिए पृथक मागदर्शक और मानकों का निर्माण अभी नहीं हो पाया है। जबकि पुरोहित का कहना है कि, ‘हमारी अनुशंसा है कि ऐसे प्रत्येक निर्माण में तेल एवं ग्रीस को सोखने का प्रावधान हो।‘ इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सड़क पर चारकोल और पोटेशियम परमेंगनेट की तह बिछाई जाए। पुरोहित का यह भी कहना है, ‘वर्तमान परियोजनाओं का अनुभव बताता है कि फिल्टर का रखरखाव एक दुष्कर कार्य है।‘

सड़क किनारे के जल संवर्धन संयंत्रों को पूरे देश में बिछे सड़कों के जाल में इस्तेमाल किया जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का विश्वास है कि इस तरह निर्माण प्रत्येक परियोजना का हिस्सा होना चाहिए। राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के इंजीनियर बिश्वजीत मुखोपाध्याय का कहना है कि, ‘हम सामान्य तौर पर प्रत्येक 500 मीटर पर ऐसे निर्माण का अनुबंध में डालना चाहते हैं।‘

इन जल संवर्धन संयंत्रों के लाभ कोयंबाटूर में दिखाई देने लगे हैं जहां मानसून दर मानसून भूजल का स्तर 50 मीटर से भी अधिक बढ़ गया है। सड़क पर जल जमाव और सड़कों का पानी में डूबना अब गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं। कोयम्बटूर नगर निगम ने सिरुथुली संस्था के साथ मिलकर 2006 से अब तक 40 लाख रु. की लागत से ऐसे 150 निर्माण किए हैं।

आंकड़ों का अभी पूर्ण सत्यापन नहीं हुआ है। इस पर कोयम्बटूर जल बोर्ड के वैज्ञानिक सुब्बुराज का कहना है कि ‘यह कार्य हम अगले वर्ष की शुरुआत में मानसून के पूर्व एवं बाद की निगरानी करके पूर्ण कर लेंगे।‘ सिरुथुली को इस तरह के निर्माण करने के लिए केंद्र सरकार से 1 करोड़ रु. का अनुदान भी मिला है। संस्था ने इस हेतु 215 स्थानों को चिन्हित किया है उसमें से 85 का निर्माण सड़कों के किनारे ही किया जाएगा। संस्था ने अभी तक 70 प्रतिशत कार्य पूर्ण कर लिया है और बाकी का कार्य नवंबर तक पूर्ण हो जाने की उम्मीद है। (सप्रेस/डाउन टू अर्थ फीचर्स)
 

 

Posted by
Get the latest news on water, straight to your inbox
Subscribe Now
Continue reading