शेखऱ गुप्ता का यह लेख तथ्यों से परे

29 Aug 2009
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(शेखर गुप्ता का मूल लेख देखें)
अंग्रेजी भाषा के एक बड़े पत्रकार शेखर गुप्ता का एक लेख ``एक और हरित क्रांति´´ शीर्षक से दैनिक भास्कर के 24 अगस्त 2009 के अंक में प्रकाशित हुआ है। गुप्ता का यह लेख तथ्यों से परे होकर 5 दशक पुरानी सोच पर आधारित है। श्री गुप्ता ने पंजाब और हरियाणा की खेती का श्रेय 1950 और 1960 के दशकों में बने बड़े बाँधों को दिया है। इसके विपरीत `मंथन अध्ययन केन्द्र´ द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ``अनरेवलिंग भाखड़ा´´ सरकारी आँकड़ों से सिद्ध करती है कि पंजाब और हरियाणा की खेती भूजल दोहन पर निर्भर है जो संसाधनों के दोहन का आत्मघाती तरीका है। इस खनन तथा कुछ अन्य कारणों से इन राज्यों की खेती संकट में हैं।

पंजाब सरकार द्वारा राज्य में ग्रामीण साख और ऋणग्रस्तता के संबंध में गठित एच.एस. शेरगिल समिति ने स्वीकार किया है कि खेती के आधुनिकीकरण और बढ़ते निवेश के बावजूद उत्पादकता में लगातार ठहराव दिखाई दे रहा है। इस वजह से पंजाब के किसान आज कर्ज पर निर्भर हो गये हैं। रिपोर्ट के अनुसार 70: छोटे किसान तो अपना उत्पादन बेचने के बाद भी ऋण की पूरी तरह से भरपाई करने में असफल रहे हैं। इसी कारण हरितक्रांति के अगुआ राज्य में बड़े पैमाने पर किसान आत्महत्या करने को बाध्य हैं।

देश में बड़ी बाँध परियोजनाओं को एक सुनियोजित नीति के तहत आगे बढ़ाया गया। आजादी के बाद पहली पंचवर्षीय योजना में छोटी सिंचाई परियोजनाओं हेतु 77 करोड़ रूपए का प्रावधान कर इनसे 112 लाख एकड़ में सिंचाई का लक्ष्य रखा गया था। जबकि बड़ी परियोजनाओं पर 558 करोड़ रूपए खर्च के बदले 85 लाख एकड़ में सिंचाई का लक्ष्य था। योजना समाप्ति पर छोटी परियोजनाओं का प्रदर्शन शानदार रहा जबकि बड़ी परियोजनाएँ फिसड्डी साबित हुई और अपने लक्ष्य का आधा हिस्सा भी हासिल नहीं कर पाई। लेकिन इसके बावजूद दूसरी पंचवर्षीय योजना से बड़ी परियोजनाओं को ही लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे खेती में कई समस्याएँ खड़ी हुई। अनियंत्रित सिंचाई से पंजाब का 2,000 वर्ग किमी भू-भाग दलदली और 4,900 वर्ग किमी क्षारीयकरण से ग्रस्त होकर बंजर हो गया है। हरियाणा के भाखड़ा कमान के हिसार, सिरसा और फतेहाबाद जिलों में 1 लाख 96 हजार हेक्टर भूमि इन्हीं समस्या से ग्रस्त हो चुकी है। एक ओर साल दर साल दलदलीकरण और क्षारीयकरण की समस्या गंभीर होती जा रही है तो दूसरी और भू-जल के अनाप-शनाप दोहन से डार्क क्षेत्र बढ़ते जा रहे हैं।

यह तथ्य ठीक नहीं है कि नर्मदा बाँध के कारण गुजरात में सूखे का कम प्रभाव पड़ा है। गुजरात सरकार के अनुसार राज्य की 98 लाख हेक्टयर खेतीलायक जमीन में से सरदार सरोवर से मात्र डेढ़ लाख हेक्टर में ही सिंचाई हो पा रही है।

केन्द्रीय जल आयोग, भारत सरकार के ``नेशनल रजिस्टर ऑफ लार्ज डेम्स 2002´´ के प्रकाशन के समय तक देश में 4,050 बड़े बाँधों का निर्माण पूर्ण हो चुका था। इनमें से 55 बाँध तो भाखड़ा और सरदार सरोवर की तरह 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले हैं। ये बाँध सिर्फ पंजाब, हरियाणा और गुजरात में नहीं बने हैं बल्कि इनका विस्तार पूरे देश में है। यदि बड़े बाँध ही सूखा रोकने हेतु पर्याप्त है तो फिर पूरे देश में ही सूखे का प्रभाव नगण्य होना चाहिए था। इसी प्रकार गुजरात के 567 बड़े बाँधों के विरूद्ध मध्यप्रदेश में 803 बड़े बाँध है। तो फिर मध्यप्रदेश में सूखे का असर ज्यादा क्यों है?

श्री गुप्ता की प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के प्रयासों संबंधी सोच उस समय बेनकाब हो जाती है जब वे कहते है कि सिंधु कछार में भाखड़ा जैसे बाँध उस समय बने थे जब विकास विरोधी पर्यावरण और ``झोलेवाला´´ आंदोलन नहीं था। लेकिन बड़ी परियोजनाओं की सच्चाईयों का खुलासा करने वाले नए अध्ययनों के प्रति उनकी अज्ञानता ही सिद्ध करने के पर्याप्त है कि वास्तव में विकास विरोधी और दकियानुसी विचार किसके हैं। है। श्री गुप्ता शायद इस तथ्य से भी परिचित नहीं है कि ऐसे आंदोलनों के अभाव में भाखड़ा और पोंग बाँध से उजड़े लोग विस्थापन के 5.6 दशकों बाद भी बिना पुनर्वास के भटकने को मजबूर है, जबकि नर्मदा परियोजना प्रभावितों को उनकी अपेक्षा बेहतर सुविधाएँ मिली है। यदि श्री गुप्ता की जल प्रबंधन, सिंचाई और खेती के प्रति समझ को नजरअंदाज कर दें तो भी यह देखना जरूरी है कि गुजरात में क्या हुआ? उनके अनुसार वहाँ के नेताओं द्वारा दिए गए नर्मदा बाँध के विचार के कारण बाँध विरोधी आंदोलन सफल नहीं हो पाया। लेकिन वे वहाँ के नेताओं (सभी दलों के) द्वारा नर्मदा बाँध विरोधी आंदोलन को सफल नहीं होने देने के असहिष्णु रवैये से अनजान नहीं रहे होंगें। उन्होंने गुजरात में यही असहिष्णुता गोधरा काण्ड के बाद हुए दंगों में भी अवश्य देखी होगी। इसी असहिष्णुता के कारण नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यालय पर बार-बार हमले किए गए, मीटिंगों के आयोजन लगातार रोका गया और मीटिंग के आयोजकों को धमकाया गया। इनमें से कई हमले पुलिस की उपस्थिति में किए गए जो हमेशा मूकदर्शक बनी रही। हमलावर ज्यादातर स्थानीय होते थे लेकिन कभी गुण्डे और कभी राज्य स्तर के वे नेता (कई बार गुण्डे) भी होते थे जिन्होंने श्री गुप्ता के अनुसार राज्य को नर्मदा बाँधों का `महान´ विचार दिया था। कई बार हमलावरों के फोटो और विडियों भी जारी हुए लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नही की गई। नर्मदा घाटी के लोगों के अधिकार, उनकी अभिव्यक्ति की आजादी और परियोजना के सभी पक्षों को समझने के गुजरात के लोगों के ही अधिकार को कुचलने के लिए हिंसा और धमकियों का सहारा लिया जाना इसी विचार की विशेषता रही है।

बीसवीं सदी के मध्य में प्रकाशित बहुचर्चित राजनीतिक व्यंग्य ``राग दरबारी´´ में श्रीलाल शुक्ल ने भाखड़ा के बारे में लिखा है - ``इस देश के निवासी परम्परा के कवि हैं। चीज़ को समझने के पहले वे उस पर मुग्ध होकर कविता कहते हैं। भाखड़ा-नंगल बाँध को देखकर वे कह सकते हैं, ``अहा! अपना चमत्कार दिखाने के लिए, देखो, प्रभु ने फिर से भारत-भूमि को ही चुना।´´ दुर्भाग्य से इक्कसवी सदी के मूर्धन्य पत्रकारों पर भी यही पंक्ति सटीक साबित हो रही है।

रेहमत
मंथन अध्ययन केन्द्र,
दशहरा मैदान रोड़, बड़वानी (म.प्र.) 451 551 फोन - 07290 222857
मोबाईल-93008 33001
Email - manthan.kendra@gmail.com

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