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सेलुलोस

सेलुलोस वनस्पति जगत्‌ के पेड़-पौधों की कोशिका दीवारों का सेलुलोस प्रमुख अवयव है। पेड़-पौधों का यह वस्तुत: कंकाल कहा जाता है। इसी के बल पर पेड़-पौधे खड़े रहते हैं। वनस्पति जगत्‌ के पौधों शैवाल, फर्न, कवक और दंडाणु में भी सेलूलोस रहता है। प्रकृति में पाए जाने वाले कार्बनिक पदार्थों में यह सबसे अधिक मात्रा में और व्यापक रूप से पाया जाता है।

प्रकृति में सेलुलोस शुद्ध रूप में नहीं पाया जाता। उसमें न्यूनाधिक अपद्रव्य मिले रहते हैं। सेलुलोस सबसे अधिक रूई में (प्राय: 90 प्रतिशत) फिर कोनिफेरस काष्ठ में (प्राय: 60 प्रतिशत) और अनाज के पुआलों में (प्राय: 40 प्रतिशत) पाया जाता है। अपद्रव्य के रूप में सेलुलोस के साथ लिग्निन, पौलिसैकेराइड, वसा, रेजिन, गोंद, मोम, प्रोटीन, पेक्टीन, और कुछ अकार्बनिक पदार्थ मिले रहते हैं।

शुद्ध सेलुलोस सामान्यत: रूई से प्राप्त होता है। प्राप्त करने की विधियाँ सल्फाइट या सल्फेट विधियाँ हैं जिनका विस्तृत वर्णन अन्यत्र लुगदी के प्रकरण में हुआ है (देखें लुगदी)। प्राकृतिक सेलुलोस से अप द्रव्यों के निकालने के लिए साधारणतया सोडियम हाइड्राक्साइड प्रयुक्त होता है। इस प्रकार प्राप्त लुगदी में 89-90 प्रतिशत ऐल्फा-सेलुलोस रहता है। सेलुलोस वस्तुत: तीन प्रकार का होता है; ऐल्फा सेलुलोस, बीटा सेलुलोस तथा गामा सेलुलोस। रूई से प्राप्त शुद्ध सेलुलोस में प्राय: 99 प्रतिशत ऐल्फा सेलुलोस रहता है। इसे प्राप्त करने के लिए रूई को 130से 180सें. पर सोडियम हाइड्राक्साइड के 2 से 5 प्रतिशत विलयन से दबाव में उपचारित करते, फिर विरंजित करते और अंत में धोकर सफाई करते हैं।

सेलुलोस के भौतिक गुणसेलुलोस सफेद, अक्रिस्टलीय पदार्थ है। एक्स-रे अध्ययन से यह कलिल (कोलायडीय, colloidal) सिद्ध होता है, पर रेशे के सेलुलोस में क्रिस्टलीय बनावटें भी दृष्टिगोचर होती हैं। उसमें क्रिस्टलीय क्षेत्र भी पाया जाता है। साधारणत: सेलुलोस रेशों के रूप में पाया जाता है जिनकी लंबाई 0.5 से 200 मिमी और व्यास 0.01 से 0.07 मिमी होता है। इसका विशिष्ट घनत्व 1.50 से 1.53 होता है तथा विशिष्ट ऊष्मा प्राय: 3.2 दहन ऊष्मा 4200 कलारी है। यह ऊष्मा और विद्युत का कुचालक होता है। इसके रेशे द्रवों को शीघ्रता से अवशोषित करते हैं।

सेलुलोस पर ऊष्मा के प्रभाव का विस्तार से अध्ययन हुआ है। शुष्क ऊष्मा का 80से 100 सें. तक यह प्रतिरोधक होता है। कई सप्ताह तक इस ताप पर रखे रहने से ऑक्सीजन के साथ संयुक्त होकर इसके रेशे दुर्बल हो जाते हैं। ऊँचे ताप पर सेलुलोप झुलस जाता है। 270सें. पर यह अपघटित होकर गैसें बनाता है और इसके ऊपर ताप पर इसका भंजन होकर अनेक आसवन उत्पाद प्राप्त होते हैं जिनमें वीटा ग्लूकोशन, कार्बन मानॉक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, जल और अल्प गैसीय हाइड्रो कार्बन रहते हैं। प्रकाश में खुला रखने से रेशों की सामर्थ्य और श्यानता में अंतर देखा जाता है। ऑक्सीजन और कुछ धात्विक उत्प्रेरकों की उपस्थिति में रेशे के ह्रास की गति बढ़ जाती है। बैक्टीरिया, कवक और प्रोटोजोआ से सेलुलोस का किण्वन होकर अंत में कार्बन डाइआक्साइड और जल बनते हैं।

रासायनिक गुण-सेलुलोस रसायनत: निष्क्रिय और वायुमंडल का प्रतिरोधक होता है। शीतल या ऊष्ण वायु, तनुक्षार, साबुन और मृदु विरंजक आदि का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। सांद्र दाहक सोडा से रेशे की चमक बढ़कर रेशे का मर्सरीकरण हो जाता है। तनु अम्लों के सामान्य ताप पर सेलुलोस पर धीरे-धीरे क्रिया होती है। पर ऊँचे ताप पर वह जल्द आक्रांत हो जाता और हाइड्रो सेलुलोस बनता है।

सेलुलोस के संजात- सेलुलोस के अनेक संजात बनते हैं जिनमें कुछ औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के हैं। सबसे अधिक महत्व के संजात एस्टर हैं। सेलुलोस का नाइट्रो एस्टर जिसे साधारणतया गनकॉटन या नाइट्रो सेलुलोस कहते हैं, बड़े महत्व का एस्टर है। यह सेलुलोस पर नाइट्रिक अम्ल और सल्फ्यूरिक अम्ल की मिश्रित क्रिया से बनता है। किस सीमा तक नाइट्रेटीकरण हुआ है यह मिश्रित अम्ल की ओर अन्य परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जिस नाइट्रोएस्टर में नाइट्रोजन 12.5 से 13.5 प्रतिशत रहता है वह गन कॉटन के नाम से विस्फोटक में प्रयुक्त होता है (देखें गन कॉटन)। इससे कम प्रतिशत नाइट्रोजन वाले नाइट्रो एस्टर सेलुलाइड (देखें सेलुलाइड), प्रलाक्षा रस और फिल्म निर्माण आदि में प्रयुक्त होते हैं। सेलुलोस सल्फेट और सेलुलोस फास्फेट भी बने हैं। सेलुलोस ऐसीटेट रेयन, प्लास्टिक और फोटोग्राफिक फिल्म के निर्माण में प्रयुक्त होता है।

अकार्बनिक अम्लों के कुछ मिश्रित एस्टर विलायक के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सेलुलोस जैंथेट भी विस्फोज रेयन और फिल्म में प्रयुक्त होता है।

सेलुलोस के ईथर भी होते हैं। इसके मेथिल, एथिल और बेंजील के ईथर बने हैं। कुछ ईथर अम्लों और क्षारों के प्रतिरोधक होते हैं। निम्न ताप पर उनकी लचक ऊँची होती है, उनके अच्छे गुण अच्छे होते हैं और वे अनेक विलायकों में घुल जाते हैं। ये रेजीन आदि सुधट्य कार्यों के अनुकूल पड़ते हैं। एथिल सेलुलोस का उपयोग रंग संरक्षक लेपों और प्लास्टिकों के निर्माण में व्यापक रूप से आजकल होता है।

सेलुलोस योगशील यौगिक भी, विशेषकर क्षारों के साथ, हैं। ये भौतिक किस्म के पदार्थ हैं या वास्तविक रासायनिक यौगिक हैं, इस संबंध में विशेषज्ञ अभी एकमत नहीं हैं।

उपयोग- सेलुलोस से वस्त्र, कागज, वल्कनीकृत रेशे, प्लास्टिक पूरक, निस्यंदन माध्यम, शल्य कर्म के लिए रूई इत्यादि बनते हैं। इनके संजातों का उपयोग विस्फोटक धूम्रहीन चूर्ण, लैक प्लास्टिक रेयन, एक्स-रे, फिल्म, माइक्रोफिल्म, कृत्रिम चमड़े, सेलोफेन, चिपचिपा पलस्तर और रंग संरक्षक कोलायड आदि अनेक उपयोगी पदार्थों के निर्माण में होता है। अनेक पदार्थों, जैसे मुद्रण की स्याही, पेंटों और खाद्यान्नों आदि, की श्यानता बढ़ाने और उनकी गाढ़ा करने में भी ये प्रयुक्त होते हैं। (सत्येंद्र वर्मा.)

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