सेंदई फ्रेमवर्क के आगे की पहल और भावी नीति

7 Feb 2017
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संपोषणीय आधारभूत ढाँचे में सभी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। जिसमें तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप दूसरे प्रकार के जोखिम भी शामिल हैं। नवम्बर 2016 में नई दिल्ली में आयोजित एएमसीडीआरआर के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारे क्षेत्र की राजनीतिक प्रतिबद्धता क्या है। इसके जरिए जोखिम एवं चुनौतियों को चिन्हित करने और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान देने वाले दुर्लभ संसाधनों के समान वितरण में मदद मिलेगी।

18 मार्च, 2015 एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा। इस दिन भारत सहित संयुक्त राष्ट्र के 188 सदस्य देशों ने एक 15 वर्षीय योजना को मंजूर किया। सेंदई फ्रेमवर्क नामक इस योजना को 2015 में जापानी शहर सेंदई में आपदा जोखिम कम करने पर केन्द्रित तीसरे संयुक्त राष्ट्र विश्व सम्मेलन के दौरान मंजूर किया गया। दिलचस्प बात यह है कि 2015 के उपरान्त की विकास कार्यसूची पर केन्द्रित यह पहला सबसे बड़ा संयुक्त राष्ट्र समझौता था। इसके तहत वर्ष 2030 तक के लिये चार प्रमुख प्राथमिक क्षेत्र और सात लक्ष्य निर्धारित किए गए। इस फ्रेमवर्क के सम्भावित निष्कर्षों में आपदा के नए जोखिमों को उभरने से रोकना और आपदा संकटों को कम करना है। सेंदई फ्रेमवर्क के चार प्राथमिक क्षेत्रों में शामिल हैं: (1) जोखिम को समझना, (2) जोखिम नियन्त्रण को मजबूती देना, (3) आपदा प्रतिरोध में निवेश करना और (4) आपदा सम्बन्धी प्रतिक्रिया देने की क्षमताओं का निर्माण करना और आपदा के उपरान्त पुनर्निर्माण करना।

सेंदई फ्रेमवर्क में आपदाओं से होने वाले नुकसानों को कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसमें आपदा के कारण होने वाली मौतों, प्रभावित लोगों, आर्थिक हानि और बुनियादी ढाँचे को होने वाले नुकसान को कम करना शामिल है। इसी प्रकार यह फ्रेमवर्क राष्ट्रीय और स्थानीय रणनीतियों, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग और पूर्व चेतावनी की बेहतर सुविधा के जरिए क्षमता बढ़ाने का आह्वान भी करता है।

इससे पूर्व 2005 में ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (एचएफए) को मंजूर किया गया था। नया फ्रेमवर्क आह्वान करता है कि पुराने फ्रेमवर्क की मंजूरी के बाद के दशक में आपदाओं के कारण जो नुकसान हुए हैं, उनके मद्देनजर नए निर्धारित लक्ष्यों के सम्बन्ध में ठोस कार्य किये जाएँ। सेंदई फ्रेमवर्क सरकार और अन्य हितधारकों द्वारा किए जाने वाले कार्य की निरन्तरता सुनिश्चित करता है, साथ ही कई नए प्रयोगों को भी प्रस्तावित करता है। भारत के लिहाज से देखा जाए तो यह फ्रेमवर्क आपदा के जोखिमों को कम करने और उनकी प्रतिरोधक क्षमता का तत्काल निर्माण करने की हमारी प्रतिबद्धता को दोहराता है।

भारत सरकार ने सेंदई घोषणापत्र के बाद अनेक महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सम्मेलन के दौरान हमने जो वादा किया था, उसके मद्देनजर नवम्बर, 2016 में आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर एशियाई मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (एएमसीडीआरआर) का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में ‘नई दिल्ली घोषणापत्र’ और ‘सेंदई फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन के लिये क्षेत्रीय कार्रवाई योजना’ को मंजूर किया गया। सेंदई फ्रेमवर्क में निहित आपदा जोखिम को कम करने के सामाजिक दृष्टिकोण के मद्देनजर एएमसीडीआरआर ने अनेक हितधारकों को एक साथ आने एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सेंदई फ्रेमवर्क के कार्यान्वयन के लिये विशिष्ट प्रतिबद्धताएँ कायम करने का अवसर प्रदान किया। एक ओर इन निष्कर्षों से एशिया प्रशांत क्षेत्र में सेंदई फ्रेमवर्क को प्रासंगिक बनाने में मदद मिलेगी तो दूसरी ओर यह समझ आएगा कि इस फ्रेमवर्क को तत्काल लागू करना क्यों महत्त्वपूर्ण है। एएमसीडीआरआर में प्रधानमंत्री ने दस सूत्री कार्यसूची की घोषणा की। इस कार्यसूची का उद्देश्य क्षेत्र में आपदा जोखिम को कम करने के प्रयासों को नए उत्साह से आगे बढ़ाना है।

दूसरी ओर भारत सरकार ने सेंदई फ्रेमवर्क 2015-2030 के लक्ष्यों, उद्देश्यों और प्राथमिकताओं के आधार पर सभी राज्य सरकारों के लिये प्राथमिक कार्रवाई का एक सेट जारी किया है। एएमसीडीआरआर के दौरान भारत सरकार ने एशियाई क्षेत्र में सेंदई फ्रेमवर्क के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु यूएनआईएसडीआर को 10 लाख डॉलर का अनुदान भी दिया है।

सेंदई की प्राथमिकता 4 के मद्देनजर राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) को उच्च स्तरीय प्रशिक्षण और उपकरण, दोनों के लिहाज से मजबूत किया जा रहा है जिससे वह एक पेशेवर आपदा मोचन बल के रूप में सशक्त हो सके। इसके अतिरिक्त भारत सरकार ने 250 करोड़ रुपये के अनुदान के साथ राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया रिजर्व (एनडीआरआर) के गठन को मंजूरी दी है जिसका संचालन राष्ट्रीय आपदा मोचन बल द्वारा किया जाएगा। इस फंड से एनडीआरएफ आपातकालीन वस्तुओं और सेवाओं की इनवेंटरी तैयार करेगा जिसमें टेंट, दवाएँ, खाद्य सामग्री आदि शामिल हैं। इन सभी की जरूरत किसी भी आपदा में तत्काल होती है।

सरकार ने आपदा के समय अपने देश के विशेषज्ञों की काबिलियत को साझा करने और दूसरे देशों की मदद करने की इच्छा जाहिर की है। जापान में 2011 में और नेपाल 2015 में आए भूकम्प के दौरान भारत पीड़ितों की हर सम्भव मदद कर भी चुका है। इसके अतिरिक्त सरकार दक्षेस आपदा प्रबंधन केन्द्र की मेजबानी के द्वारा क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने के लिये निरन्तर प्रयास कर रही है ताकि क्षेत्र में आपदा के जोखिम को कम किया जा सके और सार्क देशों के बीच जानकारियों को साझा किया जा सके। दिल्ली में आयोजित सार्क आपदा प्रबंधन अभ्यास (एसएएडीईएक्स) 2015 सरकार के विचारों और अनुभवों को साझा करने का आदर्श मंच बना था। इसके जरिए यह भी पता चला था कि सदस्य देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग स्थापित करके सरकार किस प्रकार संस्थागत तंत्र को मजबूत करना चाहती है। इसी प्रकार हैदराबाद में स्थित भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केन्द्र (आईएनसीओआईएस) न केवल भारत, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र के 28 देशों को भी आपदा की पूर्व चेतावनी प्रदान करता है।

आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में क्षमता निर्माण करने के लिये एनआईडीएम ने अगस्त 2015 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत विश्वविद्यालय में आपदा अनुसंधान और प्रतिरोधक क्षमता निर्माण सम्बन्धी उत्कृष्टता केन्द्र की स्थापना के लिये वित्तीय सहायता और शैक्षिक सहयोग प्रदान किया गया जिससे बहु-अनुशासनिक ढाँचे के भीतर उच्च शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा दिया जा सके। इसके अतिरिक्त संस्थागत सुदृढ़ीकरण के एक अंग के रूप में भारत सरकार ने नागपुर स्थित राष्ट्रीय सिविल डिफेंस कॉलेज में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल अकादमी का गठन किया है। इस अकादमी में आपदा प्रबन्धन और मोचन में संलग्न कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा। सरकार ने राष्ट्रीय अग्नि सुरक्षा कॉलेज को अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करने के उद्देश्य से 205 करोड़ रुपये का आवंटन भी किया। आधारभूत संरचना के विकास में डीआरआर को शामिल करने के उद्देश्य से हम इससे जुड़ी संस्थाओं को आपदा रोकथाम का बुनियादी प्रशिक्षण प्रदान करने पर विचार कर रहे हैं, विशेष रूप से पर्वतीय राज्यों में स्थित संस्थाओं को।

इसके अतिरिक्त सरकार ने 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू किया है वर्ष 2015-16 और 2019-20 के लिये राज्यों के राज्य आपदा मोचन कोष (एसडीआरएफ) में 61,220 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी है (केन्द्र के अंश के रूप 47,029.50 करोड़ रुपये और राज्य के हिस्से के रूप में 1,49,050 करोड़ रुपये)।

13वें वित्त आयोग द्वारा 2010-11 से 2014-15 के दौरान किए गए 33,580.93 करोड़ रुपये के आवंटन की तुलना में यह काफी अधिक है। एसडीआरएफ के प्रावधानों के अतिरिक्त गम्भीर प्रकृति की आपदाओं के मद्देनजर एनडीआरएफ द्वारा भी फंडिंग की जाती है। वर्ष 2015-16 के दौरान राज्य सरकारों को विभिन्न प्रकार की आपदाओं को प्रबंधित करने के लिये कुल 17,749.18 करोड़ रुपये जारी किए गए (इसमें एनडीआरएफ द्वारा जारी 5,297.22 करोड़ रुपये भी शामिल हैं)।

अन्त में इस बात पर बल देते हुए कि आपदा के जोखिम को कम करने में राज्य की मुख्य भूमिका होती है, सेंदई फ्रेमवर्क आपदा तत्परता और उसे कम करने के साथ-साथ राहत एवं बहाली के लिये निजी क्षेत्र सहित अन्य हितधारकों का भी आह्वान करता है। आपदा जोखिम को कम करने के मिशन में सरकारी और निजी-सभी प्रकार की संस्थाओं के सहयोग की जरूरत होती है। जिससे क्षमता निर्माण हेतु विश्वसनीय और सस्ती आधुनिक तकनीक का प्रयोग और उसे साझा करते हुए इससे जुड़े तन्त्र को मजबूत किया जा सके। भारत सरकार का मानना है कि सम्पोषणीय आधारभूत ढाँचे में सभी बातों का ध्यान रखा जाना चाहिए। जिसमें तेजी से बढ़ते शहरीकरण के परिणामस्वरूप दूसरे प्रकार के जोखिम भी शामिल हैं। नवम्बर 2016 में नई दिल्ली में आयोजित एएमसीडीआरआर के निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारे क्षेत्र की राजनीतिक प्रतिबद्धता क्या है। इसके जरिए जोखिम एवं चुनौतियों को चिन्हित करने और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में योगदान देने वाले दुर्लभ संसाधनों के समान वितरण में मदद मिलेगी।

लेखक परिचय


लेखक केन्द्रीय गृह राज्य मन्त्री और एशियाई क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र निर्दिष्ट आपदा न्यूनीकरण विशेषज्ञ हैं।

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