सिक्किम-औषधीय पौधों का घर

Green vegetation
Green vegetation

छोटा परन्तु सुंदर हिमालय की उपत्यकाओं का प्रदेश- सिक्किम, वनस्पतियों के अध्ययन की दृष्टि से भारत के सबसे संपन्न क्षेत्रों में से एक है। भारतीय वनस्पतियों की एक तिहाई के लगभग प्रजातियाँ सिक्किम के उष्णकटिबंधीय, शीतोष्ण और पर्वतीय क्षेत्रों में ही पायी जाती हैं। आयुर्वेद की मटीरिया मेडिया (औषधियों के बनाने में प्रयुक्त सामग्रियों का संग्रह) में शामिल लगभग तीन हजार वनस्पतीय औषधियों में से बहुतेरी हिमालय के क्षेत्रों में पायी जाती हैं।

स्थानीय पौधों पर आधारित दवाएँ ग्रामीण घरों और गाँवों में समय-समय पर लगने वाले हाट-बाजारों में आसानी से देखी जा सकती हैं। सिक्किम के लोग अति प्राचीन समय से जड़ी-बूटियों का उपयोग करते आ रहे हैं। उदाहरण के लिये, वे लोग दीर्घ जीवन के लिये, अजम्बरी बूटी, छहजिनसंग पैनाक्स, दमे के उपचार के लिये सिक्किम में पाई जाने वाली इफेडेरा गेराडियामा, तेज बुखार, सर्दी और गले की खराबी में देने के लिये ड्रायमेरिया कोरडेटा के पत्तों का रस, मलेरिया और अन्य बुखारों के लिये डाइकोरा फेब्रीफ्यूजा की जड़ों का उपयोग करते रहे हैं। आँखों की तकलीफ और इक्जिमा में एल्शकोलजिया ब्लैंग तथा महोनिया नेपालेंसिस और स्थानीय महिलाओं द्वारा प्रसव के बाद सफाई और शक्तिवर्धक दवा के रूप में प्रयोग किए जाने वाले यूर्टिका पर्बीफ्लोरा के ताजे फूल, बड़े महत्त्व के हैं।

बूडो-वोफाती का कन्द-ऐस्टिबल रबुलेरिस कमर दर्द के लिये बड़ा लाभकारी माना जाता है। इसे कुचलकर और पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर दिया जाता है या सुपारी की तरह चबाकर शरीर के दर्द से छुटकारा पाने के लिये काम में लिया जाता है। महिलाओं में प्रसव के बाद होने वाले अधिक रक्तस्राव को रोकने और शक्तिवर्धन के लिये इसके कंद का सत शहद, दूध और अंडे के साथ लिया जाता है।

चुंगतांन-लाचेन-लाचुंग क्षेत्रों में पाई जाने वाली फैक्सीनस फ्लोरीवडा की, छाल का रस, अंडा, शहद, गाय के दूध और वीसम आर्टीकुलेटम के तने की लुगदी के साथ मिलाकर लगाने से बाहरी और अंदरूनी दर्द तथा मोच में बड़ा आराम मिलता है। इसे आदमियों और मवेशियों-दोनों के लिये काम में लिया जाता है। यह छाल कड़वी, सिकोड़ने वाली और बुखार उतारने वाले गुणों से पूर्ण मानी जाती है। हिक्चू घाटी, सरम्सा, पेक्यांग और फोडोग क्षेत्रों में पाए जाने वाले मध्यम आकार के पेड़ गाय नोकैरिडा औडोरेटा के बीजों से निकाला गया तेल कुष्ठ रोग के उपचार के लिये प्रसिद्ध है। उत्तरी सिक्किम, दिक्चू और सिंहिंक में दूर-दूर तक पाए जाने वाले मालीमोर या टिक्फीकुंग के पत्तों का काढ़ा कुष्ठ रोग की रामबाण दवा है। बाल बढ़ाने के लिये भी इसका प्रयोग किया जाता है। इसके बीजों की माँग बर्मा में बहुत है जहाँ इसे पानी के उबाल और छानकर मसाले के रूप में काम में लिया जाता है।

विविध उपयोग


लेपचाओं से टिम्बूरन्योक के नाम से प्रसिद्ध सिक्किम लारेओला एक जहरीला पौधा होने के साथ यह एक औषधीय गुणवाला पौधा भी है। यह चुंश्वांग, लाचेन-थांगू, कार्पोनांग और चांगू क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके फल पेट के दर्द में बहुत लाभदायक माने जाते हैं। इसके पत्ते चेचक में काम आते हैं। युगथांग भूभाग के पास पाए जाने वाले सुगंधित पौधे- सेलिनम टेनफोलोइबम की जड़ें पेट की तकलीफों और बुखार में उपयोगी मानी जाती हैं।

लाचेन से जेम और कार्पोनांग की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले क्लेमेटिस मोन्टेना की जड़ों का चूर्ण सर्दी और सरदर्द के लिये काफी लाभदायक समझा जाता है। परन्तु कच्ची जड़ों को सूँघने पर जलन का अनुभव होता है।

एक्रौस कैलासम जिसे स्थानीय तौर पर नेपाली में माजो और हिन्दी में वाचा कहा जाता है, चेतन गाँव और उत्तरी सिक्किम में फोडोंग के पास दलदली इलाके में बहुतायत से पाई जाती है। इस प्रजाति के कंद में लुभावनी गंजनी तेल की गंध होती है और इसे कुचलकर सर्दी और खाँसी में बाहरी तौर पर उपयोग किया जाता है। राज्य के विभिन्न भागों में कुचला भी बहुतायत से मिलता है।

एक अत्यंत रोचक औषधीय पौधा- पोडोफाइलम सिक्मिेनेसिस, ग्नाथांग के पूर्वी और दक्षिण पूर्वी भाग, पूर्वी जिला और याबुक के ऊबड़-खाबड़ घास के मैदानों से लेकर उत्तरी सिक्किम के हरी-झील वाले क्षेत्रों में पाया जाता है, जिसके कंद और जड़ों से भूरे रंग का गाढ़ा रस (राल) निकलता है। यह ट्यूमर (गांठ) गलाने के काम आता है। गेयूम एलेटम जिसकी जड़ें पेचिश, दस्त और गले की खराबी में काम आती हैं, सेडोन्चेन के आस-पास के भूभाग में आम तौर पर मिलती है।

अन्य महत्त्वपूर्ण औषधीय पौधे हैं- पेट की गड़बड़ी के लिये दायन्ने भोलुआ और विभिन्न प्रकार के बुखारों के लिये चिरेटो। इनके अतिरिक्त बतुलपेल, हेडेरा हेलिक्स, स्टेफेनिया ग्लेब्रा, रोडोडे-ड्रान एन्टोपोगोन, ड्रोसेरा पेलटाटा, (स्वीट) मधुर नेपाली जेरेनियम, पिकोरिया, स्क्रोफूलेरिफ्लोरा और अन्य अनेक औषधीय पौधे भी सिक्किम के विभिन्न इलाकों में पाए जाते हैं।

लोक विश्वास


पूर्वी सिक्किम में पाई जाने वाली मैन्ड्रानोरा कालेसेंस क्लार्क, प्रसिद्ध मैन्ड्रीक पौधे की ही एक अन्य प्रजाति है। इसकी जड़ों में ह्योसीनाइन, ह्योसाइन और मैन्ड्रोगोरीन अल्कोलाएड्स पाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसमें कामोद्दीपक गुण भी होते हैं और दर्द निवारक शक्ति भी दर्द में जब इसे लिया जाता है तो यह अफीम की तरह नींद लाने वाली दवा की तरह काम करता है।

मैन्ड्रेक की जड़ के साथ अनेकों मान्यताएँ और अंधविश्वास जुड़े हुए हैं। यह मानव शरीर की ही तरह दिखती है और इसे सम्मोहक के रूप में उपयोग किया जाता है।। पूर्वी यूरोप में महिलाएँ इसे बांझपन के खिलाफ ताबीज के रूप में लिये रहती हैं। आल्प्स के पर्वतारोही इसे दुर्घटनाओं से सुरक्षा के लिये साथ ले जाते हैं। इसकी जड़ों को एकत्र करने की विशेष विधि है।

वृहद सम्भावनाएँ


इस क्षेत्र की, जातीय औषधीय वनस्पति शास्त्र के अध्ययन की, प्रचुर सम्भावनाएँ हैं। इस तरह के अध्ययन की अति आवश्यकता है क्योंकि सिक्किम की नयी पीढ़ी अपनी इस सम्पन्न धरोहर के प्रति भिज्ञ नहीं है। अतः यह सम्भव है कि अब से 15-20 वर्षों बाद इन पौधों का स्थानीय नाम बताने वाला कोई भी न रहे, इनके उपयोग की बात तो बाद की बात है।

इस समय सबसे बड़ी आवश्यकता राज्य के औषधीय पौधों की सम्पदा का लाभ उठाने की है। इसके लिये सुनियोजित रणनीति विकसित की जाए। इन पौधों के प्रति जागरुकता और प्रचार की विधि विकसित की जाए। इसके साथ ही व्यावसायिक रूप से लाभकारी प्रतीत होने वाली प्रजातियों के पादप-रासायनिक, औषधशास्त्रीय और औषधि परीक्षण सम्बन्धी अध्ययन की भी बहुत आवश्यकता है। यह एक कुटीर उद्योग के रूप में विकसित हो सकती है तथा सिक्किम के औषध उद्योग के लिये प्रमुख सप्लायर के रूप में उभर सकता है। इससे सिक्किम को पर्याप्त राजस्व की प्राप्ति होगी, वहीं इससे मानवता की भी महान सेवा होगी।

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